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वैसे तो फॉल्स या फैंटम प्रेगनेंसी के मामले सदियों पुराने हैं बावजूद इसके इसे एक दुर्लभ या असाधारण समस्या माना जाता है। रिसर्च का सुझाव है कि फॉल्स प्रेगनेंसी के ज्यादातर मामले उन शादीशुदा महिलाओं में देखने को मिलते हैं जिनमें लंबे समय से बच्चे को पाने की गहरी इच्छा होती है। उदाहरण के लिए- इंग्लैंड की क्वीन मेरी टूडोर को कई बार फैंटम प्रेगनेंसी का अनुभव हुआ क्योंकि उनके मन में अपने वारिस को पाने की बहुत अधिक लालसा थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि वो कभी गर्भवती हुई ही नहीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि ऐसे कई मरीज जिनमें यौन गतिविधि का कोई इतिहास नहीं होता उनमें भी फॉल्स प्रेगनेंसी के मामले देखने को मिलते हैं खासकर तब जब मरीज में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कोई समस्या या साइकोसिस की दिक्कत होती है। अगर कोई महिला एंटीसाइकोटिक दवाइयों का सेवन कर रही हो तो उसमें भी फॉल्स प्रेगनेंसी के लक्षण अचानक ट्रिगर हो सकते हैं।
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वर्ल्ड जर्नल ऑफ क्लिनिकल केसेज में साल 2014 में प्रकाशित एक स्टडी में बताया गया है कि भले ही फैंटम प्रेगनेंसी के मामले दुर्लभ ही देखने को मिलते हैं- आसानी से उपलब्ध और सटीक प्रेगनेंसी टेस्ट के कारण- बावजूद इसके फैंटम प्रेगनेंसी के ज्यादातर मामले भारत जैसे विकासशील देशों में ही देखने को मिलते हैं। इन देशों में प्रजनन और बांझपन (इन्फर्टिलिटी) को लेकर जानकारी की कमी है और लोग ऐसे समाज में रहते हैं जहां उच्च जन्मदर को बढ़ावा दिया जाता है तो ये सारी चीजें मिलकर इन्फर्टाइल या बांझ जोड़ों में ट्रॉमा को बढ़ाने का काम करती हैं। ज्यादातर मामलों में बांझपन के लिए अकेले महिला को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है जिसकी वजह से उसे पीड़ा और पक्षपात का सामना करना पड़ता है। इन कारणों की वजह से इन देशों में फॉल्स प्रेगनेंसी का अनुभव करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ सकती है।
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फॉल्स प्रेगनेंसी की पुष्टि करने के लिए सबसे पहले यूरिन टेस्ट किया जाता है जिसका इस्तेमाल प्रेगनेंसी को कंफर्म करने के लिए किया जाता है। ये बात याद रखनी बेहद जरूरी है कि भले ही फॉल्स प्रेगनेंसी के बाकी सारे लक्षण और संकेत रियल प्रेगनेंसी से मिलते-जुलते हों लेकिन प्रेगनेंसी हार्मोन एचसीजी (ह्यूमन कोरियोनिक गोनैडोट्रोपिन) के उत्पादन की नकल नहीं की जा सकती। अगर महिला फॉल्स प्रेगनेंसी से पीड़ित है तो उसका यूरिन टेस्ट रिजल्ट नेगेटिव ही आएगा। इसी तरह, खून में एचसीजी भी मौजूद नहीं होगा और इसलिए ब्लड टेस्ट भी प्रेगनेंसी के लिए नेगेटिव रिजल्ट ही दिखाएगा।
एक और डायग्नोस्टिक टेस्ट जिससे इसकी पु्ष्टि की जा सकती है वो है महिला के पेल्विक (पेट का निचला हिस्सा) क्षेत्र का अल्ट्रासोनोग्राफिक इमेजिंग टेस्ट। इससे गर्भाशय के अंदर भ्रूण का न होना और भ्रूण की दिल की धड़कन का मौजूद न होना- दोनों बातों की पुष्टि हो जाती है। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड के जरिए कई दूसरी चिकित्सीय समस्याओं का भी पता लगाया जा सकता है जिसमें प्रेगनेंसी से मिलते-जुलते लक्षण देखने को मिलते हैं, उदाहरण के लिए- एक्टोपिक प्रेगनेंसी (भ्रूण गर्भाशय के बाहर बढने लगता है), बीमार बनाने वाला मोटापा और प्रजनन अंगों में किसी तरह का ट्यूमर या कैंसर की समस्या आदि।
किसी महिला के लिए यह जानना कि वह गर्भवती नहीं है खासकर तब जब उसमें लंबे समय से गर्भवती होने की इच्छा पल रही हो एक निराशाजनक स्थिति होती है। लिहाजा महिला को यह बताना कि उसे प्रेगनेंसी नहीं बल्कि फॉल्स या फैंटम प्रेगनेंसी है- यह एक मुश्किल काम होता है और इसे अच्छी तरह से संभालना चाहिए। डॉक्टर को सारे टेस्ट्स और सबूतों के आधार पर आराम से महिला को यह बात बतानी चाहिए और प्यार से समझाना चाहिए। जब महिला को यह बात पता चले तो जरूरी है कि उसका पार्टनर, दोस्त या परिवार के सदस्य उसके आसपास हों ताकि वह उसे संभाल सकें।
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आमतौर पर फॉल्स प्रेगनेंसी में किसी तरह के चिकित्सीय इलाज की तब तक जरूरत नहीं होती जब तक उसके पीछे कोई अंतर्निहित कारण न छिपा हो। उदाहरण के लिए- अगर किसी महिला को प्रजनन सेहत या ट्यूमर की वजह से फैंटम प्रेगनेंसी की समस्या हुई हो तो डॉक्टर मरीज को दवा, जीवनशैली में बदलाव और जरूरी ट्रीटमेंट मुहैया कराते हैं।
यह सोचना या अनुभव करना कि आप एक बच्चे की मां बनने वाली हैं, जल्द ही आपके जीवन में नया मेहमान आने वाला है और फिर अचानक आपको यह पता चले कि कभी कोई प्रेगनेंसी थी ही नहीं किसी भी व्यक्ति के लिए मानसिक आघात से कम नहीं होता। इस घटना का सामना करना और फिर इसके साथ जीवन में आगे बढ़ना कई महिलाओं के लिए बेहद मुश्किल हो जाता है। लिहाजा वे महिलाएं जो फॉल्स प्रेगनेंसी से पीड़ित होती है उन्हें उचित थेरेपी और काउंसलिंग की सुविधा दी जानी चाहिए।
अमेरिकन प्रेगनेंसी एसोसिएशन का सुझाव है कि फैंटम प्रेगनेंसी से पीड़ित महिला का सही तरीके से मनोवैज्ञानिक और तंत्रिका संबंधी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि मनोवैज्ञानिक और तंत्रिका संबंधी समस्याओं की वजह से अक्सर फैंटम प्रेगनेंसी होती है और इसलिए पीड़ित महिला को साइकोथेरेपी, कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी (सीबीटी), दवा और मदद की जरूरत पड़ सकती है ताकि वह इस स्थिति से उबर सके। साथ ही इस दौरान उसकी शारीरिक और मानसिक सेहत भी न बिगड़े।