गर्भावस्था में, बच्चे के साथ-साथ मां के स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार बहुत जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान शरीर में कई शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इसलिए यह जानना आवश्यक है कि आहार में किन खाद्य पदार्थों को शामिल किया जा सकता है और किन चीजों से परहेज करना चाहिए। आज हम जानेंगे कि गर्भावस्था में चिकन खाना चाहिए या नहीं? अगर गर्भावस्था में चिकन खाना चाहिए तो चिकन खाने के फायदे और नुकसान क्या हैं?

चिकन उन खाद्य पदार्थों में से एक है जो गर्भवती महिला द्वारा सेवन करने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है और अन्य आवश्यक विटामिन और खनिज भी प्रदान करता है।

चिकन अत्यधिक पौष्टिक भोजन में से एक है जिसमें प्रोटीन और नौ अलग अलग प्रकार के एमीनो एसिड मौजूद हैं। चिकन में वसा की मात्रा कम होती है जिसकी वजह से चिकन खाने से मोटापा नहीं बढ़ता, जिससे यह गर्भवती महिला के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत माना जाता है।

गर्भवती महिला के लिए बना चिकन अच्छी तरह से पकाया होना चाहिए। कच्चा या अधपका चिकन खाने से परहेज करना चाहिए क्योंकि यह लिस्टेरिया नामक बैक्टीरिया से दूषित होता है। जिससे लिस्टिरिओसिज़ संक्रमण हो सकता है। 160 डिग्री फ़ारेनहाइट से ऊपर चिकन को गर्म करने से लिस्टीरिया बैक्टीरिया नष्ट हो सकता है।

  1. गर्भावस्था में चिकन खाने के फायदे - Pregnancy mein chicken khane ke laabh
  2. गर्भावस्था में चिकन खाने के नुकसान - Pregnancy mein chicken khane ke nuksan
  3. गर्भावस्था में चिकन कैसे और कितना खाएं - Pregnancy mein chicken kaise aur kitna khaye
  4. गर्भावस्था में चिकन खाने की सावधानियां - Pregnancy mein chicken khane ki savdhaniyan

गर्भवती होने पर चिकन खाने के कुछ फायदे निम्नलिखित हैं:

  • चिकन नियासिन या विटामिन बी3 का एक अच्छा स्रोत है जो मस्तिष्क के विकास और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
  • गर्भावस्था के शुरुआती समय में चिकन खाने से गर्भ में पल रहे शिशु के स्वस्थ विकास के लिए सहायता मिलती है।
  • चिकन में नौ आवश्यक एमीनो एसिड होते हैं जो मांसपेशियों का निर्माण कर उन्हें मजबूत करते हैं।
  • चिकन वसा कम होती है जो आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है और अपशिष्ट वसा के निर्माण को रोकता है।
  • 1 कप चिकन का सेवन गर्भवती महिला की दैनिक प्रोटीन आवश्यकताओं को  सत्तासी प्रतिशत तक पूरा कर सकता है।
  • चिकन ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी एसिड का भी स्रोत है।
  • चिकन लिवर विटामिन और कोलिन का एक अच्छा स्रोत है। यह जन्म के बाद शुरुआती वर्षों में शिशुओं के मस्तिष्क और स्मृति को तेज करता है। (और पढ़ें - दिमाग को तेज करने के उपाय)
  • चिकन के लीवर में फोलेट भी होता है जो शिशुओं में न्यूरल ट्यूब दोष को रोकने में मदद करता है। (और पढ़ें - स्पाइना बाइफ़िडा का इलाज)
  • चिकन में विटामिन ए और विटामिन ई, सेलेनियम और थायमिन होता है। इन विटामिन और खनिजों में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। ये मेटाबोलिज्म (चयापचय) को बढ़ावा देते हैं और ऊर्जा के स्तर को भी बढ़ाते हैं।
  • चिकन शरीर को आयरन और जिंक की आपूर्ति करता है जो नई कोशिकाओं के विकास में मदद करता है। चिकन में मौजूद आयरन शरीर द्वारा आसानी से सोखा जा सकता है।
  • ये खनिज और पोषक तत्व बच्चे के अंगों, कोशिकाओं और हड्डियों के विकास में सहायता करते हैं। यह मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोगों जैसी बीमारियों से भी बचाता है।

(और पढ़ें - हड्डियां मजबूत करने के उपाय)

गर्भावस्था में चिकन खाने के निम्नलिखित नुकसान हो सकते हैं:

  • चिकन में कोई हानिकारक पदार्थ या खनिज होता हो, ऐसा कोई भी मामला अब तक प्रकाश में नहीं आया है। इसे गर्भावस्था में खाए जाने वाले सबसे सुरक्षित भोजन में से एक माना गया है। चिकन से जुड़ा एकमात्र जोखिम लिस्टेरिया बैक्टीरिया के कारण होता है। यह दूषित चिकन में पाया जाता है और इससे लिस्टेरियोसिस नाम का संक्रमण होता है। गर्भवती महिलाओं में लिस्टेरियोसिस के कारण प्रीटर्म डिलीवरी, गर्भपात, नवजात शिशु में संक्रमण या मृत्यु का खतरा भी होता है। (और पढ़ें - नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें)
  • अध्ययनों के अनुसार, जन्म के पूर्व लिस्टेरियोसिस के 22% मामलों में नवजात की मौत हो जाती है। गर्भवती महिला में लिस्टेरिया संक्रमण के मामले आम नहीं हैं लेकिन ऐसा माना गया है कि सामान्य महिलाओं की तुलना में गर्भवती महिलाओं को किसी बीमारी या संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। यह बैक्टीरिया 160 डिग्री फ़ारेनहाइट से अधिक तापमान में जीवित नहीं रह पाता है। इसीलिए बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए खाने से पहले इस तापमान से ऊपर ही चिकन पकाने की सलाह दी जाती है।
  • कच्चे और अधपके चिकन के सेवन से साल्मोनेला नाम का बैक्टीरियल संक्रमण भी हो सकता है। इस बैक्टीरिया से साल्मोनेलोसिस फूड पाइजनिंग हो सकती है। साल्मोनेलोसिस के लक्षणों में मतली, उल्टी, पेट में ऐंठन, दस्त, बुखार और सिरदर्द शामिल हैं लेकिन कुछ मामलों में गर्भपात भी हो सकता है।
  • गर्भावस्था के समय किसी भी खाद्य पदार्थ को भोजन में शामिल करने का निर्णय लेने से पहले चिकित्सक से परामर्श लेना ही ठीक रहता है।

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डॉक्टरी सलाह के अनुसार गर्भावस्था के दौरान चिकन का सेवन बेहद लाभप्रद तो है लेकिन कोई भी खाद्य पदार्थ को खाने की अति हमेशा नुकसानदेह ही होती है। गर्भवती के आहार में रोज चिकन को हिस्सा नहीं बनाना चाहिए।

यदि किसी को चिकन खाना बेहद पसंद है या वो रोज चिकन ही खाती है ऐसी परिस्तिथि में गर्भावस्था के दौरान गर्भवती स्त्री को रोज सिर्फ 100 ग्राम पका हुआ चिकन खाने की ही सलाह दी जाती है।

चिकन को उबाल कर,भून कर या किसी अन्य प्रकार की डिश बनाकर भी खाया जा सकता है लेकिन यह बात हमेशा याद रखनी है कि गर्भवती महिला को पूरी तरह से पका हुआ चिकन ही खाना चाहिए। अधपका चिकन गर्भावस्था में हानिकारक हो सकता है। चिकन का सेवन फ्राइड चिकन, चिकन सूप, सैंडविच, बर्गर, सलाद आदि किसी भी रूप में कर सकते हैं।

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चिकन खाने में निम्नलिखित कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए:

  • चिकन को पूर्णतः पका कर ही खाएं।
  • चिकन को ज्यादा तीखा-तल्ख बना कर नहीं खाएं।
  • चिकन को सही तापमान में ही पकाएं जिससे चिकन में मौजूद सभी बैक्टीरिया नष्ट हो सके।
  • बजार से खरीदा गया रोस्ट चिकन तुरंत खाना चाहिए या इसे फ्रिज में ठंडा करने के बाद दोबारा खाने से पहले दोबारा गर्म कर लेना चाहिए।  

गर्भावस्था के दौरान चिकन खाना बिल्कुल स्वस्थ है क्योंकि चिकन प्रोटीन, खनिज और विटामिन जैसे पोषक तत्वों का स्रोत है। चिकन के सेवन से भ्रूण के कोशिका, अंग और हड्डियों के विकास में मदद मिलती है। अधिकांश डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान चिकन खाने के खिलाफ नहीं होते हैं, फिर भी चिकन को गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला के आहार का हिस्सा बनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए क्योंकि अलग अलग व्यक्ति के साथ अलग-अलग बातें लागू होती हैं क्योंकि सभी का स्वास्थ्य और खानपान का तरीका समान नहीं होता इसलिए जरूरी यही है की गर्भावस्था ले दौरान सुरक्षित रहा जाए। इस समय मां पर खुद से ज्यादा गर्भ में पल रहे बच्चे की जिम्मेदारी होती है।

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