पोस्टपार्टम डिप्रेशन [Postpartum depression (PPD)], जिसे प्रसवोत्तर अवसाद (Postnatal depression) भी कहा जाता है, एक प्रकार की मनोदशा है जो बच्चे के जन्म बाद होती है और दोनों लिंग (लड़के और लड़की) को प्रभावित कर सकती है। यह परिस्थिति तब भी उत्पन्न हो सकती है, जब किसी कारणवश महिला का गर्भपात या मिस्कैरेज हो जाए अथवा उसका बच्चा मृत पैदा हो।
अत्यधिक उदासी, ऊर्जा में कमी, चिंता, सोने या खाने की दिनचर्या में परिवर्तन, बात बात पर रोना और चिड़चिड़ापन आदि इसके लक्षण हो सकते हैं। इसकी शुरुआत आम तौर पर प्रसव के एक सप्ताह या एक महीने बाद होती है। यह स्थिति बच्चे को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
हालांकि पीपीडी का सही कारण अभी तक ज्ञात नहीं है। माना जाता है कि शारीरिक और भावनात्मक कारकों के कारण यह स्थिति उत्पन्न होती है। हार्मोन परिवर्तन और नींद का अभाव इसके प्रमुख कारक हैं।
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इसके जोखिम कारकों में प्रसवोत्तर अवसाद से पूर्व की स्थिति, बाइपोलर डिसआर्डर (यह एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसमें रोगी कभी तो बहुत खुश और कभी बिना बात के काफी उदास रहता है), परिवार में किसी का डिप्रेशन से ग्रस्त होना, तनाव, प्रसव की जटिलताएं, पारिवारिक समर्थन की कमी या दवाओं का सेवन करने की लत आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसका निदान महिला के लक्षणों पर निर्भर करता है। दो हफ्तों के बाद या जब इसके लक्षण गंभीर हो जाएं तब प्रसवोत्तर अवसाद का संदेह हो जाना चाहिए।
जिन महिलाओं में इससे ग्रस्त होने का जोखिम होता है उन्हें भरोसा दिलाकर या उनका समर्थन करके डिलीवरी के बाद डिप्रेशन से पीड़ित होने से उनकी सुरक्षा की जा सकती है। बाकी इसका उपचार परामर्श सेवा (Counselling) या दवाओं द्वारा किया जा सकता है।
इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) के अवसर पर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैन्टल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस ने भारत में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-2016) किया। इसमें बताया गया है कि भारत में 20 में से 1 व्यक्ति अवसाद से पीड़ित है। ये आंकड़े तब अधिक खतरनाक लगते हैं जब यह पता चलता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के अवसाद से पीड़ित होने की दर बहुत अधिक है क्योंकि 2011 के आंकड़ों के अनुसार पहले से ही भारत में लड़कियों का अनुपात 940/1000 लड़कों पर है अर्थात लड़कों की तुलना में लड़कियों के जन्म लेने की दर पहले से ही कम है। दिल्ली और गुजरात में तो ये अनुपात और भी झकझोर देने वाले हैं। वहां प्रति 1000 लड़कों पर क्रमश: 871 और 890 लड़कियां जन्म ले रही हैं। विशेष रूप से महिलाओं में नॉर्मल डिलीवरी के बाद अवसाद से ग्रस्त होने के अधिक प्रमाण सामने आये हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों के जानने के बावजूद, भारत में प्रजनन स्वास्थ्य कार्यक्रमों (Reproductive health programs) में पीपीडी से बचाव या उपचार के लिए कोई जानकारी नहीं दी जाती है।
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