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Patanjali Giloy Ghan Vati बिना डॉक्टर के पर्चे द्वारा मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है, जो मुख्यतः बुखार, डेंगू, स्वाइन फ्लू के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा Patanjali Giloy Ghan Vati का उपयोग कुछ दूसरी समस्याओं के लिए भी किया जा सकता है। इनके बारे में नीचे विस्तार से जानकारी दी गयी है। Patanjali Giloy Ghan Vati के मुख्य घटक हैं गिलोय जिनकी प्रकृति और गुणों के बारे में नीचे बताया गया है। Patanjali Giloy Ghan Vati की उचित खुराक मरीज की उम्र, लिंग और उसके स्वास्थ्य संबंधी पिछली समस्याओं पर निर्भर करती है। यह जानकारी विस्तार से खुराक वाले भाग में दी गई है।
गिलोय |
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Patanjali Giloy Ghan Vati इन बिमारियों के इलाज में काम आती है -
मुख्य लाभ
अन्य लाभ
यह अधिकतर मामलों में दी जाने वाली Patanjali Giloy Ghan Vati की खुराक है। कृपया याद रखें कि हर रोगी और उनका मामला अलग हो सकता है। इसलिए रोग, दवाई देने के तरीके, रोगी की आयु, रोगी का चिकित्सा इतिहास और अन्य कारकों के आधार पर Patanjali Giloy Ghan Vati की खुराक अलग हो सकती है।
आयु वर्ग | खुराक |
किशोरावस्था(13 से 18 वर्ष) |
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व्यस्क |
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बुजुर्ग |
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चिकित्सा साहित्य में Patanjali Giloy Ghan Vati के दुष्प्रभावों के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। हालांकि, Patanjali Giloy Ghan Vati का इस्तेमाल करने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह-मशविरा जरूर करें।
क्या Patanjali Giloy Ghan Vati का उपयोग गर्भवती महिला के लिए ठीक है?
प्रेग्नेंट महिला Patanjali Giloy Ghan Vati को बिना किसी घबराहट के खा सकती हैं।
क्या Patanjali Giloy Ghan Vati का उपयोग स्तनपान करने वाली महिलाओं के लिए ठीक है?
Patanjali Giloy Ghan Vati का पेट पर क्या असर होता है?
क्या Patanjali Giloy Ghan Vati का उपयोग बच्चों के लिए ठीक है?
क्या Patanjali Giloy Ghan Vati का उपयोग शराब का सेवन करने वालों के लिए सही है
क्या Patanjali Giloy Ghan Vati शरीर को सुस्त तो नहीं कर देती है?
क्या Patanjali Giloy Ghan Vati का उपयोग करने से आदत तो नहीं लग जाती है?
इस जानकारी के लेखक है -
BAMS, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, डर्माटोलॉजी, मनोचिकित्सा, आयुर्वेद, सेक्सोलोजी, मधुमेह चिकित्सक
10 वर्षों का अनुभव
संदर्भ
Ministry of Health and Family Welfare. Department of Ayush: Government of India. [link]. Volume 1. Ghaziabad, India: Pharmacopoeia Commission for Indian Medicine & Homoeopathy; 1986: Page No 53-55