भारत में आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा का इतिहास शास्त्रों और पुराणों में मिलता है। सदियों से तमाम प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग करते हुए लाभ प्राप्त किया जा रहा है। जो लोग अपने दैनिक जीवन में भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के सिद्धांतों का पालन करते हैं, वे वरुण औषधि के नाम से परिचित होंगे। इस पौधे के तमाम हिस्सों को प्रयोग में लाया जाता है। वरुण के पौधे को 'क्राटाइवा नूरवाला' के नाम से जाना जाता है। इस पौधे की सबसे खास बात यह है कि न सिर्फ आयुर्वेद बल्कि यूनानी और सिद्ध चिकित्सा प्रणालियों में भी इसका जिक्र मिलता है। गुर्दे की पथरी के इलाज से लेकर मूत्र पथ में संक्रमण तक की कई बीमारियों के इलाज में वरुण को प्रभावी औषधि माना जाता है।
वरुण की उपयोगिता और इसके औषधीय लाभ के बारे में जानने के लिए कई शोध किए जा रहे हैं। भारत में बहुतायत मात्रा में पाए जाने वाले इस पौधे के बारे में आइए विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं।
वरुण से संबंधित सामान्य जानकारी
वैज्ञानिक नाम : क्राटीवा नरवाला, सी.मैग्ना
संस्कृत नाम : सेतुवृक्ष, रोध वृक्ष, साधु वृक्ष, वरण, वसन, कुमारका, तमालका, बारहपुष्प, अजपा, सेतु, सेतुका
सामान्य नाम : बरना, बरुण, बिला, बिलासी, बिलियाना, लेंगम ट्री, थ्री-लीव्ड केपर, सेक्रड लिंगम ट्री, ट्रायून लीफ ट्री
मूल : कैपरिडैसी, कैपरैसी, केपर फैमिली
मूल क्षेत्र और भौगोलिक वितरण : म्यांमार, दक्षिण एशिया और इंडो-मलेशियन क्षेत्रों में पाया जाता है।
उपयोग किए गए भाग : जड़, तने की छाल, फूल, पत्तियां
गुण : सामान्य रूप से वरुण के पौधे का स्वाद कसैला और कड़वा होता है। इसे पचाना आसान होता है। इसकी तासीर गर्म होती है और यह वात दोष के निवारण के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है।
वरुण का पौधा सामान्य रूप से मध्यम आकार का होता है और यह देश के ज्यादातर हिस्सों जैसे गुजरात, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। वरुण का पौधा आमतौर पर नदियों के किनारे उपजता है और हल्के सफेद और हल्के पीले रंग के फूलों के गुच्छों से लदा हुआ दिखाई देता है। इसके फल जामुन के जैसे होते हैं और पकने के बाद इनका रंग लाल हो जाता है। इन फलों को कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ हेतु प्रयोग में लाया जाता है। आइए जानते हैं कि वरुण हमारे स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार से फायदेमंद हो सकता है।