केंद्र सरकार ने अपने तहत आने वाले लगभग सभी अस्पतालों का बजट कम कर दिया है। शनिवार को सामने आई कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, सरकार ने अस्पतलों के लिए जो बजट आवंटित किया है, उससे इन अस्पतालों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। खबर की मानें तो हर साल लाखों मरीजों का मुफ्त इलाज करने वाले इन अस्पतालों को कम बजट के चलते कर्मचारी वेतन जैसे स्थायी खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है। सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि कम बजट के चलते अस्पतालों को या तो मरीजों को मिलने वाली सेवाएं कम करनी होंगी या मरीजों से शुल्क लेना शुरू करना होगा। उन्हें चिंता है कि इससे गरीब तबके के मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
रिपोर्टों के मुताबिक, सरकार ने जिन अस्पतालों का बजट कम किया है, उनमें दिल्ली स्थित एम्स, पुडुचेरी का जेआईपीएमआईआर और पीजीआई चंडीगढ़ जैसे बड़े अस्पताल शामिल हैं। केंद्र सरकार ने इन अस्पतालों को बजट के तहत जो राशि दी है, वह इनके द्वारा दिखाए गए खर्च से भी कम है। दिल्ली स्थित कलावती सारन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल एकमात्र सरकारी अस्पताल है, जिसके बजट में कुछ बढ़ोतरी हुई है। बाकी सभी अस्पतालों को मिलने वाली राशि या तो कम हुई है या फिर उसमें मात्र आधे प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों को चिंता है कि बजट में बढ़ोतरी न होने से अस्पतालों के लिए अपना खर्च निकालने के लिए मरीजों से पैसे वसूलने की नौबत आ सकती है। यहां यह भी बात ध्यान रखने योग्य है कि इन्हीं अस्पतालों में एमबीबीएस और पोस्ट-ग्रैजुएट डॉक्टरों को प्रशिक्षण दिया जाता है। उन पर भी ज्यादा फीस देने का दबाव बनाना पड़ सकता है।
क्या आयुष्मान भारत योजना से हो पाएगी भरपाई?
हालांकि इस बारे में कुछ जानकार अलग राय रखते हैं। उनका कहना है कि 'आयुष्मान भारत' योजना से मिलने वाली रकम से अस्पताल बजट में हुई कटौती की भरपाई कर पाएंगे। लेकिन योजना से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि यह काम आसान नहीं होगा। वित्तीय वर्ष 2019-20 में इस योजना के लिए 6,400 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। रिपोर्टों के मुताबिक नए बजट में भी योजना के लिए इतनी ही राशि दी गई है। लेकिन जब बात योजना को लागू करने की आती है तो यह राशि केवल 2,130 करोड़ रुपये रह जाती है। यानी आयुष्मान भारत के बजट का केवल 33.3 प्रतिशत ही खर्च किया जा सका है। कुछ समय पहले एक आरटीआई के जरिए यह जानकारी सामने आई थी। इसके अलावा योजना से जुड़ा कामकाज देखने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण ने भी कहा है कि योजना के तहत जिन लोगों को फंड दिए गए उनमें से 66 प्रतिशत इलाज के लिए निजी अस्पतालों में गए। ऐसे में सवाल उठता है कि आयुष्मान भारत के जरिए केंद्र सरकार के अस्पतालों का बजट संकट कैसे दूर होगा?
इन अस्पतालों के बजट हुए कम
दिल्ली स्थित एम्स के बजट में मात्र 0.1 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। पिछले वित्तीय वर्ष में देश के इस सबसे बड़े अस्पताल का बजट 3,485 करोड़ रुपये था, जो इस साल केवल पांच करोड़ रुपये की बढ़ोतरी के साथ 3,490 करोड़ रुपये हो पाया है। दिल्ली में ही देश के एक और बड़े अस्पताल सफदरजंग हॉस्पिटल का बजट 1315.8 करोड़ रुपये से 1318.9 करोड़ रुपये किया गया है, यानी मात्र 3.1 करोड़ रुपये की वृद्धि। इसी तरह राम मनोहर लोहिया अस्पताल और लेडी हार्डिंग्स के बजट में केवल 2.1 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की गई है। वहीं, पीजीआई चंडीगढ़, जेआईपीएमआई पुडुचेरी, निमहंस बेंगलुरु, आरआईएमएस इम्फाल, बोर्दोलोई तेजपुर और आरआईपीएनएस ऐजौल के बजटों में कटौती कर दी गई है।