अमेरिका स्थित यूएससी डॉर्नसिफ कॉलेज ऑफ लेटर्स, आर्ट्स एंड साइंस के वैज्ञानिकों ने संभवतः एक ऐसा ड्रग खोज निकाला है, जो मानव जीवनकाल को बढ़ाने का रास्ता खोल सकता है। वैज्ञानिक विषयों से जुड़ी पत्रिका 'जर्नल ऑफ जेर्नटॉलजी: बायोलॉजिकल साइंसेज' ने हाल में इसे लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें बताया गया था कि कैसे लैबोरेटरी टेस्ट में 'माइफप्रिस्टोन' ड्रग में दो अलग-अलग प्रजातियों का जीवनकाल बढ़ाने की क्षमता का पता चला। इस प्रयोग में शामिल शोधकर्ताओं ने बतौर निष्कर्ष कहा है कि इस ड्रग को दूसरी प्रजातियों में भी अप्लाई किया जा सकता है, जिनमें इन्सान भी शामिल हैं।
पत्रिका के मुताबिक, यूएससी डॉर्निसफ कॉलेज के प्रोफेसर जॉन टावर और उनके साथी शोधकर्ताओं ने मक्खी से मिलती-जुलती प्रजाति फल मक्षिका या फ्रूट फ्लाई ड्रोसोफिला पर माइफप्रिस्टोन को आजमाया था। इस दवा को 'आरयू-486' भी कहा जाता है। शुरुआती प्रेग्नेंसी को खत्म करने के अलावा डॉक्टर कैंसर और कुशिंग जैसे दुर्लभ रोग के इलाज में भी इस दवा का इस्तेमाल करते हैं।
दरअसल, लैब स्टडी में जॉन टावर और उनके साथियों ने नर और मादा ड्रोसोफिला का मिलन (सहवास) कराया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि सहवास के दौरान मादा ड्रोसोफिला को नर ड्रोसोफिला से 'सेक्स पेप्टाइड' नाम का एक मॉलिक्यूल मिलता है। पिछले अध्ययनों में बताया गया है कि इस मॉलिक्यूल की वजह से मादा मक्षिकाओं का स्वास्थ्य और जीवनकाल कम हो जाता है। लेकिन जब शोधकर्ताओं ने इन मक्षिकाओं को माइफप्रिस्टोन खिलाई तो उनमें सेक्स पेप्टाइड के प्रभाव ब्लॉक हो गए। इस कारण सेक्स पेप्टाइड के प्रभाव के चलते होने वाली सूजन में कमी देखी गई और उनकी सेहत में सुधार देखने को मिला।
शोधकर्ताओं ने बताया है कि लैब स्टडी में शामिल जिन मादा फ्रूट फ्लाई को माइफप्रिस्टोन दी गई, उनका जीवनकाल उन समकक्षों से ज्यादा पाया गया, जिन्हें यह ड्रग नहीं दिया गया था। उनकी मानें तो जिन महिलाओं ने आरयू-486 ली है, उनमें भी इसी तरह के प्रभाव देखने को मिले हैं। इस बारे में जॉन टावर का कहना है, 'माइफप्रिस्टोन मक्खियों में प्रजनन को कम कर प्राकृतिक इम्यून रेस्पॉन्स में बदलाव करने का काम करती है। इस तरह यह उनके जीवनकाल को बढ़ा देती है। हम जानते हैं कि इन्सानों में भी माइफप्रिस्टोन रीप्रोडक्शन को कम कर इम्यून रेस्पॉन्स को बढ़ाने का काम करती है। शायद यह उनका जीवनकाल भी बढ़ाने में सक्षम हो?'
लेकिन माइफप्रिस्टोन यह काम कैसे करती है?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए शोधकर्ताओं ने ड्रग लेते समय मक्षिकाओं के वंशाणुओं, मॉलिक्यूल और मेटाबॉलिक प्रक्रियाओं में होने वाले बदलावों पर गौर किया। उन्होंने पाया कि इस काम में 'जूवेनाइल हार्मोन' नाम के एक मॉलिक्यूल की भूमिका अहम होती है। यह हार्मोन फ्रूट फ्लाई के पूरे जीवनकाल में विकास की प्रकिया (अंडा बनने से लेकर वयस्क होने तक) को नियंत्रित करता है।
प्रजनन के दौरान मादा मक्षिका से मिलने वाला सेक्स पेप्टाइड, जूवेनाइल हार्मोन के प्रभावों को खराब करने का काम करता है। यह उनके शरीर में ऐसे बदलाव करता है कि उन्हें स्वस्थ रहने के लिए ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता महसूस होने लगती है। इस मेटाबॉलिक बदलाव के चलते मक्षिकाओं में हानिकारक सूजन होने लगती है और वे माइक्रोबायोम में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से बनने वाले विषैले मॉलिक्यूल के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाती हैं।
माइफप्रिस्टोन ड्रग इन सब प्रतिक्रियाओं व प्रक्रियाओं में बदलाव लाने का काम करता है। इसे लेने के बाद मक्षिकाओं का मेटाबॉलिज्म स्वास्थ्य को बनाए रखने वाली शारीरिक प्रक्रियाओं में बना रहता है। इसी कारण लैब स्टडी में फ्रूट फ्लाई का जीवनकाल उन मक्षिकाओं से ज्यादा पाया गया, जिन्हें माइफप्रिस्टोन नहीं दी गई। जॉन टावर कहते हैं, 'ध्यान देने वाली बात यह है कि यही मेटाबॉलिक प्रक्रियाएं इन्सानों में भी संरक्षित रहती हैं और स्वस्थ और लंबे जीवनकाल में अहम भूमिका निभाती हैं।'
शोधकर्ताओं ने इस ड्रग को अतिसूक्ष्म जीव सी एलिगन पर भी आजमाया था। उनके मुताबिक, इस प्रयोग में भी आरयू-486 ने सी एलिगन का जीवनकाल बढ़ाने का काम किया। चूंकि फल मक्षिकाएं और सी एलिगन के विकास का चक्र एक-दूसरे से भिन्न है और इसके बावजूद माइफप्रिस्टोन ड्रग उनके जीवनकाल बढ़ाने में कारगर साबित हुआ है, इसलिए वैज्ञानिकों को लगता है कि शायद यह दवा इन्सानों का जीवनकाल बढ़ाने में भी तुलनात्मक रूप से (कम या ज्यादा) मददगार साबित हो सकती है।