ग्लोबल वॉर्मिंग यानी जलवायु परिवर्तन का मतलब पृथ्वी के बढ़ते तापमान से है, जिसके कारण मौसम में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। इसका असर बहुत हद तक हमारे जीवन पर भी पड़ता है। खासकर के हमारे बच्चों पर। इसी के तहत बीते फरवरी महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसके हवाले से बताया था कि बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य और अच्छा पर्यावरण देने की हमारी सभी कोशिशें असफल रही हैं।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते कई तरह की गंभीर बीमारियों को बढ़ावा भी मिला है। इसमें वेक्टर-जनित (कीड़े-मकोड़ों से होने वाली बीमारियां) यानी डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों को पनपने में मदद मिली है। आंकड़े बताते हैं कि केवल इन बीमारियों के चलते हर साल 7 लाख से ज्यादा मौतें होती हैं। वहीं अमेरिका के लॉस एंजेलिस में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक रिसर्च बताती है कि जलवायु परिवर्तन के चलते प्रीमैच्योर यानी समय से पहले डिलीवरी संबंधी घटनाओं को भी बढ़ावा मिला है। ये वो उदाहरण है जो कि बताते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग हमारे लिए कितनी घातक है। शायद यही वजह है कि आज की पीढ़ी जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान से डरी हुई है।
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एक मशहूर अमेरिकी अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते कुछ अमेरिकी लोगों में बच्चों के जन्म से जुड़ी चिंता बढ़ी है। मसलन अब ऐसे लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है जो माता-पिता नहीं बनना चाहते हैं। ब्रिटेन के प्रमुख अखबार 'द गार्डियन' के हवाले से इस तरह की पहली रिसर्च में शोधकर्ताओं ने पाया कि सर्वे में शामिल 96.5 प्रतिशत लोग इसको लेकर बहुत या बेहद ज्यादा चिंतित थे। इसमें उनकी चिंता ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते भविष्य में उनके होने वाले बच्चों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से जुड़ी थी।
रिसर्च के तहत 27 वर्षीय एक महिला ने शोधकर्ताओं को बताया, 'मुझे ऐसा लगता है कि मैं इस दुनिया में एक बच्चे को जन्म नहीं दे सकती। चूंकि इन परिस्थिति में मेरे बच्चे को जीवित रहने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और इन चुनौतियों में, मैं उसे नहीं झौक सकती।' वहीं, साइंटिफिक जर्नल क्लाइमैटिक चेंज में प्रकाशित एक अध्ययन में शामिल प्रतिभागी भी जलवायु परिवर्तन की स्थिति से चिंतित दिखे। उनके मुताबिक भविष्य में मौमस की स्थितियों से प्रतिद्वंद्वी विश्व युद्ध होगा। वहीं इनके अलावा कुछ ऐसे लोग भी थे जो दूसरे या तीसरे बच्चे के जन्म को लेकर इनकार करते नजर आए। गार्डियन के मुताबिक छह फीसद लोगों ने कहा कि उन्होंने जिन बच्चों को जन्म दिया है, उनके जन्म को लेकर ही उन्हें अफसोस है कि वो इन बच्चों को दुनिया में क्यों लेकर आए।
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एक 40 वर्षीय मां ने अपने बयान में कहा कि उन्हें अपने बच्चों के होने पर अफसोस है क्योंकि उन्हें डर है कि उनके बच्चे जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के खत्म होने का सामना करेंगे। वहीं इको-रिप्रोडेक्टिव कंसर्न्स इन द एज ऑफ क्लाइमेट चेंज नाम के अध्ययन में 607 अमेरिकी लोगों (27 से 45 साल की उम्र के) को शामिल किया गया। रिसर्च में शामिल लोगों में से तीन-चौथाई महिलाएं थीं, लेकिन शोधकर्ताओं ने महिलाओं और पुरुषों से जुड़ी प्रतिक्रियाओं के बीच कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं पाया। हालांकि, अधिक आयु के लोगों की तुलना में युवाओं ने अधिक चिंता व्यक्त की। अध्ययन के सह-लेखकों में से एक, सिंगापुर में येल-एनयूएस कॉलेज के मैथ्यू शिंडर-मेयरसन ने लोगों से मिली इस प्रतिक्रिया को बहुत गंभीर और भावनात्मक बताया।
हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं जब ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर लोगों की ऐसी प्रतिक्रिया सामने आई है। अमेरिका से पहले ब्रिटेन में दो साल पहले ही इससे जुड़ा एक अभियान शुरू किया था जिसे 'बर्थस्ट्राइक' का नाम दिया गया। चर्चित मीडिया संस्थान 'सीएनएन' में प्रकाशित बीते वर्ष की एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटिश संगीतकार बिल्येथ पेपिनो ने क्लाइमेट चेंज को लेकर बच्चे नहीं पैदा करने का फैसला किया था। उन्होंने सीएनएन को बताया 'मैं बच्चे चाहती हूं लेकिन मुझे नहीं लगता ये वक्त या परिस्थितियां एक बच्चे के लिए सही हो सकती है। उनका मानना है कि ये वो परिस्थितियां हैं, जिनसे विनाशकारी संघर्ष होगा। इसलिए उन्होंने साल 2018 के अंत में 'बर्थस्ट्राइक' नाम से एक अभियान की स्थापना की। दरअसल बर्थस्ट्राइक एक ऐसे लोगों का समूह है, जिन्होंने विकट और गंभीर परिस्थितियों के चलते बच्चों को जन्म नहीं देने का फैसला किया है। इस समूह के साथ उस समय तक 330 से अधिक लोग जुड़े थे, जिसमें अनुमानित 80 फीसद महिलाएं थीं।
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