जल ही जीवन है, इस कहावत को तो आपने सुना ही होगा। हम कुछ समय के लिए भोजन किए बगैर रह सकते हैं, लेकिन एक निश्चित समय तक पानी पिए बगैर रहना मुश्किल हो सकता है। डॉक्टरों से लेकर तमाम हेल्थ एक्सपर्ट ज्यादा से ज्यादा और स्वच्छ पानी पीने की सलाह देते हैं। चूंकि आधुनिकता के इस युग में जल प्रदूषण का स्तर काफी हद तक बढ़ गया है। इसलिए आज हम वाटर प्यूरीफायर और आरओ (रिजर्व ऑस्मोसिस) का इस्तेमाल करते हैं, जिससे स्वच्छ और मीठा पानी मिल सके।

ग्राउड वॉटर यानि भूमिगत जलस्तर का टीडीएस लेवल काफी हद तक बढ़ गया है। इसलिए भी लोग खारा और असुरक्षित पानी पीने से परहेज करते हैं। मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को दो महीने के अंदर अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है। निर्देश के मुताबिक जिन क्षेत्रों में पानी का टीडीएस (टोटल डिजॉल्व्ड सॉ​लिड्स) लेवल प्रतिलीटर 500 मिलीग्राम से कम है। वहां आरओ पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।

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आरओ पर प्रतिबंध की वजह
एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बेंच का कहना है कि उनके आदेश के अनुपालन में देरी की वजह से लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंच रहा है। एनजीटी के मुताबिक पर्यावरण संरक्षण से जुड़े किसी भी कदम को सही वक्त पर उठाना जरूरी है। दरअसल एनजीटी की ओर से गठित विशेषज्ञों की एक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट के जरिए कहा था कि निगम या जल बोर्ड की ओर से लोगों के घरों में जो पानी की आपूर्ति की जाती है, उस पानी को आरओ के जरिए और अधिक शुद्ध करने की आवश्यकता नहीं है।

एनजीटी ने क्यों जताया एतराज?
विशेषज्ञों की कमेटी ने एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में पहले भी कहा था कि अगर लोग नगर निगम से मिलने वाले पानी को भी आरओ के जरिए फिल्टर करके पीते हैं तो यह उन लोगों की सेहत को खराब करता है, क्योंकि इससे पानी में मौजूद मिनरल्स नष्ट हो जाते हैं। कमेटी के मुताबिक आरओ की जरूरत उन्हीं इलाकों में पड़ती है, जहां टीडीएस का लेवल 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा हो। इसके अलावा एनजीटी ने भारत सरकार से यह भी कहा कि देश में जहां आरओ लगाने की अनुमति दी गई वहां पर 60 प्रतिशत पानी को वाटर टेबल रिचार्ज के जरिए यानि रेन वाटर हार्वेस्टिंग की मदद से वापस लाया जाए।

टीडीएस लेवल क्या है?
टीडीएस (टोटल डिसोल्वड सॉलिड्स) अकार्बनिक लवण के साथ-साथ कार्बनिक पदार्थों की छोटी मात्रा से बना होता है। डब्ल्यूएचओ की एक रिसर्च से पता चलता है कि 300 मिलीग्राम प्रति लीटर से नीचे का टीडीएस लेवल अच्छा माना जाता है। वहीं इसकी अपेक्षा जब यह टीडीएस लेवल 900 मिलीग्राम प्रति लीटर होता है तो खराब की स्थिति में आता है। इसके अलावा टीडीएस लेवल 1200 मिलीग्राम प्रतिलीटर से ज्यादा के पानी को पीना ही नहीं, इसे इस्तेमाल करना भी हानिकारक होता है, क्योंकि कई क्षेत्र में टीडीएस लेवल अधिक होता है, इसलिए मौजूदा समय में लोग आरओ का पानी पीते हैं। आरओ पानी को ट्रिटमेंट प्रोसेस के जरिए पानी में शामिल दूषित पदार्थों को निकाल देता है, लेकिन आरओ के जरिए अपनाई जाने वाली तकनीक से पानी में मौजूद कुछ मिनरल्स नष्ट हो सकते हैं।

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कैसे सेहत को नुकसान पहुंचा है आरओ का पानी?
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर जैसमीन कौर के मुताबिक, क्योंकि कई जगहों पर पानी काफी दूषित होता है। इसलिए आरओ की जरूरत होती है, जिसके चलते आप गंदे पानी से होने वाली बीमारी से अपना बचाव कर सकते हैं। जैसे- टाइफाइड और डायरिया।

वहीं, चूंकि कम टीडीएस (500 से कम) पर आरओ इस्तेमाल करने से पानी में मौजूद मिनरल्स नष्ट हो जाते हैं, जिससे हमारे शरीर को जितने मिनरल्स की जरूरत होती है वह नहीं मिल पाते। जैसे- मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम, बाइकार्बोनेट, आयरन, जिंक फ्लोरीन।

डॉक्टर जैसमीन के मुताबिक पानी में अगर मिनरल्स की कमी होती है तो व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याएं आ सकती हैं। जैसे- अगर पानी में फ्लोरीन कम है तो मसूड़ों की तकलीफ हो सकती है। अगर जिंक की कमी है तो बच्चों को डायरिया हो सकता है। इसके अलावा बाल झड़ने और भूख ना लगने की परेशानी भी आ सकती है।

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आरओ की जगह लगाएं वाटर प्यूरीफायर
अगर आपके क्षेत्र में वाटर टीडीएस लेवल 500 मिलीग्राम प्रतिलीटर से कम है तो आप आरओ की जगह वाटर प्यूरीफायर या वाटर फिल्टर का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह पानी के अंदर मौजूद गंदगी को हटाकर साफ और स्वच्छ पानी देगा।

कुल मिलाकर इस रिपोर्ट के आधार पर देखा जाए तो एनटीजी का मकसद आरओ को हटाकर लोगों को स्वच्छ और मिनरल्स युक्त पानी देना है, क्योंकि आरओ के इस्तेमाल से यह मिनरल्स नष्ट हो जाते हैं, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर होता है।

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