मुसीबत कभी भी वक्त देखकर और पता पूछकर नहीं आती। कोई भी व्यक्ति कभी भी बीमार पड़ सकता है और कभी भी एक्सीडेंट के कारण घायल हो सकता है। ऐसे ही बुरे समय के लिए हेल्थ इन्शुरन्स की परिकल्पना की गई और हम सब ऐसे हालात में वित्तीय मुसीबत से बचने के लिए हेल्थ इन्शुरन्स खरीदते हैं। बहुत से लोगों को सालों-साल समय पर हेल्थ इन्शुरन्स का प्रीमियम भरने के बावजूद क्लेम नहीं मिलता या क्लेम मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। कई बार इसका कारण वेटिंग पीरियड होता है, जो निश्चित समय के बाद खत्म हो जाता है। अगर प्री-एग्जिस्टिंग कंडीशन के कारण क्लेम नहीं मिल रहा तो एक निश्चित समय के बाद ज्यादातर ऐसी समस्याएं भी कवर होती हैं। यदि इनमें से कुछ भी नहीं है, फिर भी वर्षों तक प्रीमियम देने के बावजूद इन्शुरन्स कंपनी क्लेम नहीं देती है, तो ऐसे में व्यक्ति खुद को ठगा हुआ महसूस करता है। ऐसी ही स्थिति के लिए बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने कदम उठाए हैं। चलिए जानते हैं आईआरडीएआई ने बीमाधारकों के पक्ष में ऐसा क्या फैसला लिया है, जो उनके क्लेम को रिजेक्ट होने से रोकता है -

(और पढ़ें - हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी क्लेम देने से इनकार करे तो क्या करें?)

  1. क्लेम नहीं होगा रिजेक्ट - What is Moratorium Period in Health Insurance in Hindi
  2. इन्शुरन्स क्लेम के निपटान की मुख्य विशेषताएं - Highlights of the Health Insurance Claims Settlements in Hindi
  3. आईआरडीएआई ने नए दिशानिर्देश आने के बाद पॉलिसी पर उनका प्रभाव - After-Effects of the Updated Guideline From IRDAI in Hindi
  4. सौ की एक बात - Bottom Line

आपने बीमारी या एक्सीडेंट जैसी इमरजेंसी को ध्यान में रखते हुए अपने लिए हेल्थ इन्शुरन्स प्लान खरीदा है। आप सालों-साल उसका प्रीमियम भी समय पर भरते आ रहे हैं। ऐसे में कोई इन्शुरन्स कंपनी आपको क्लेम देने से कैसे इनकार कर सकती है। लेकिन कुछ लोगों को ऐसी समस्या का सामना करना पड़ा। ऐसी ही स्थिति के लिए आईआरडीएआई ने मोरेटोरियम पीरियड की परिकल्पना की है। मोरेटोरियम पीरियड कुल 8 वर्ष का होता है। अगर आप मोरेटोरियम पीरियड यानी 8 साल तक लगातार प्रीमियम चुकाते हैं तो हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी आपको क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती। यानी 8 साल प्रीमियम चुकाने के बाद किसी भी स्थिति में इन्शुरन्स कंपनी आपके क्लेम रिक्वेस्ट को रिजेक्ट नहीं कर सकती। मोरेटोरियम से जुड़े इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य हेल्थ इन्शुरन्स क्लेम से जुड़ी सामान्य नियम और शर्तों का मानकीकरण (स्टैंडर्डाइजेशन) करना है। आईआरडीएआई का यह कदम क्लेम रिजेक्ट होने से बीमाधारकों को होने वाले बड़े नुकसान से बचाने में लाभदायक है।

(और पढ़ें - क्या दो कंपनियों में एक साथ हेल्थ इन्शुरन्स क्लेम किया जा सकता है?)

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हेल्थ इन्शुरन्स क्लेम से संबंधित आईआरडीएआई के संशोधित दिशानिर्देशों के संबंध में आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है :

1. आसान क्लेम सेटलमेंट : आईआरडीएआई के निर्देशों के अनुसार आठ साल तक बिना किसी ब्रेक के प्रीमियम जमा करने के बाद हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती। आठ साल के इस लंबे समय को मोरेटोरियम पीरियड कहा जाता है। आईआरडीएआई के अनुसार यह समय इन्शुरन्स कंपनी के लिए अपने ग्राहक की वास्तविकता का विश्लेषण करने के लिए काफी है। लेकिन आठ साल का समय पूरा होने के बाद इन्शुरन्स कंपनी किसी भी तरह का कोई क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती।

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2. मोरेटोरियम पीरियड का विस्तार : आईआरडीएआई के इन दिशानिर्देशों का दूसरा मुख्य आकर्षण यह है कि अगर आप अपनी पॉलिसी में सम-इनश्योर्ड राशि बढ़ाते हैं तो उस सम-इनश्योर्ड राशि के लिए नया मोरेटोरियम पीरियड होगा। उदाहरण के लिए यदि आपका सम-इनश्योर्ड 5 लाख रुपये है और चार साल बाद आप इसे 10 लाख करने का फैसला लेते हैं तो पहले पांच लाख का मोरेटोरियम पीरियड पॉलिसी लेने के 8 साल बाद पूरा हो जाएगा, जबकि बाद में बढ़ाए गए सम-इनश्योर्ड का मोरिटोरियम सम-इनश्योर्ड बढ़ाने के 8 साल बाद पूरा होगा।

3. फ्रॉड ट्रायल्स : ऐसा नहीं है कि 8 साल का मोरेटोरियम पीरियड खत्म होने के बाद फ्रॉड की स्थिति में भी क्लेम मिल जाएगा। जिस स्थिति के लिए आप क्लेम कर रहे हैं अगर वह इन्शुरन्स पॉलिसी में कवर नहीं है तो कंपनी क्लेम नहीं देगी। इसके अलावा स्थिति को गलत तरीके से पेश करना या किसी स्वास्थ्य स्थिति को छिपाकर पॉलिसी ली है तो पॉलिसी वहीं पर खत्म कर दी जाएगी और जमा किया हुआ पूरा प्रीमियम जब्त कर लिया जाएगा।

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4. को-पेमेंट पर कोई असर नहीं : आईआरडीएआई के नए दिशानिर्देशों का संबंध हेल्थ इन्शुरन्स पॉलिसी में सिर्फ क्षतिपूर्ति से संबंधित है। इसके तहत अस्पताल में भर्ती होने की वास्तविक लागत कवर की जाती है और इसका इन्शुरन्स पॉलिसी में को-पेमेंट पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

5. दावा निपटान की अवधि : आईआरडीएआई के नए दिशानिर्देशों के अनुसार इन्शुरन्स कंपनी को क्लेम की रिक्वेस्ट और सभी जरूरी दस्तावेज मिलने के 30 दिन के भीतर स्वीकार या अस्वीकर करना होगा। यदि कंपनी 30 दिन के भीतर बीमा दावे का निपटान नहीं करती है और उसे रिजेक्ट भी नहीं करती है, तो उसे क्लेम रिक्वेस्ट मिलने की तारीख से ही देरी के लिए भुगतान करना होगा। यह भुगतान बैंक में मिलने वाले ब्याज के ऊपर 2 फीसद अतिरिक्त करना होगा।

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6. जहां पॉलिसी वहीं मोरेटोरियम : आजकल हेल्थ इन्शुरन्स पॉलिसी में पोर्टेबिलिटी की भी सुविधा होती है। अगर आप अपनी हेल्थ इन्शुरन्स पॉलिसी को एक कंपनी से पोर्ट करके दूसरी कंपनी में ले जाते हैं तो मोरेटोरियम पीरियड भी साथ ही जाता है। यानी आपने पहली बार जब पॉलिसी ली थी उसके बाद के 8 साल का समय मोरेटोरियम पीरियड कहलाता है। भले ही इस दौरान आप जितनी इन्शुरन्स कंपनियां बदल लें। 8 साल पूरा होने के बाद कोई भी कंपनी आपको क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती।

आईआरडीएआई के नए निशानिर्देशों का प्रमुख उद्देश्य मेडिकल इन्शुरन्स प्लान में क्लेम प्रोसेस यानी दावा प्रक्रिया को आसान बनाना है। इसके साथ ही इन दिशानिर्देशों ने बीमाधारकों के दिल से क्लेम रिजेक्ट होने के डर को भी खत्म कर दिया। 8 साल का मोरेटोरियम पीरियड खत्म हो जाने के बाद इन्शुरन्स कंपनी बीमाधारक के मेडिकल इतिहास में झांककर क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती। हालांकि फ्रॉड साबित होने या हेल्थ इन्शुरन्स के एक्सक्लूजन के मामले में क्लेम को रिजेक्ट किया जा सकता है।

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हेल्थ इन्शुरन्स में क्लेम सेटलमेंट को लेकर आईआरडीएआई के नए दिशानिर्देशों के बाद स्वास्थ्य बीमा में क्लेम के आसान और तेजी से निपटान की उम्मीद की जा सकती है। 8 वर्ष का मोरेटोरियम पीरियड खत्म होने के बाद बीमाधारक आसानी और तेजी से क्लेम सेटलमेंट के लिए निश्चिंत हो सकता है।

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