हेल्थ इन्शुरन्स क्लेम से संबंधित आईआरडीएआई के संशोधित दिशानिर्देशों के संबंध में आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है :
1. आसान क्लेम सेटलमेंट : आईआरडीएआई के निर्देशों के अनुसार आठ साल तक बिना किसी ब्रेक के प्रीमियम जमा करने के बाद हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती। आठ साल के इस लंबे समय को मोरेटोरियम पीरियड कहा जाता है। आईआरडीएआई के अनुसार यह समय इन्शुरन्स कंपनी के लिए अपने ग्राहक की वास्तविकता का विश्लेषण करने के लिए काफी है। लेकिन आठ साल का समय पूरा होने के बाद इन्शुरन्स कंपनी किसी भी तरह का कोई क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती।
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2. मोरेटोरियम पीरियड का विस्तार : आईआरडीएआई के इन दिशानिर्देशों का दूसरा मुख्य आकर्षण यह है कि अगर आप अपनी पॉलिसी में सम-इनश्योर्ड राशि बढ़ाते हैं तो उस सम-इनश्योर्ड राशि के लिए नया मोरेटोरियम पीरियड होगा। उदाहरण के लिए यदि आपका सम-इनश्योर्ड 5 लाख रुपये है और चार साल बाद आप इसे 10 लाख करने का फैसला लेते हैं तो पहले पांच लाख का मोरेटोरियम पीरियड पॉलिसी लेने के 8 साल बाद पूरा हो जाएगा, जबकि बाद में बढ़ाए गए सम-इनश्योर्ड का मोरिटोरियम सम-इनश्योर्ड बढ़ाने के 8 साल बाद पूरा होगा।
3. फ्रॉड ट्रायल्स : ऐसा नहीं है कि 8 साल का मोरेटोरियम पीरियड खत्म होने के बाद फ्रॉड की स्थिति में भी क्लेम मिल जाएगा। जिस स्थिति के लिए आप क्लेम कर रहे हैं अगर वह इन्शुरन्स पॉलिसी में कवर नहीं है तो कंपनी क्लेम नहीं देगी। इसके अलावा स्थिति को गलत तरीके से पेश करना या किसी स्वास्थ्य स्थिति को छिपाकर पॉलिसी ली है तो पॉलिसी वहीं पर खत्म कर दी जाएगी और जमा किया हुआ पूरा प्रीमियम जब्त कर लिया जाएगा।
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4. को-पेमेंट पर कोई असर नहीं : आईआरडीएआई के नए दिशानिर्देशों का संबंध हेल्थ इन्शुरन्स पॉलिसी में सिर्फ क्षतिपूर्ति से संबंधित है। इसके तहत अस्पताल में भर्ती होने की वास्तविक लागत कवर की जाती है और इसका इन्शुरन्स पॉलिसी में को-पेमेंट पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
5. दावा निपटान की अवधि : आईआरडीएआई के नए दिशानिर्देशों के अनुसार इन्शुरन्स कंपनी को क्लेम की रिक्वेस्ट और सभी जरूरी दस्तावेज मिलने के 30 दिन के भीतर स्वीकार या अस्वीकर करना होगा। यदि कंपनी 30 दिन के भीतर बीमा दावे का निपटान नहीं करती है और उसे रिजेक्ट भी नहीं करती है, तो उसे क्लेम रिक्वेस्ट मिलने की तारीख से ही देरी के लिए भुगतान करना होगा। यह भुगतान बैंक में मिलने वाले ब्याज के ऊपर 2 फीसद अतिरिक्त करना होगा।
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6. जहां पॉलिसी वहीं मोरेटोरियम : आजकल हेल्थ इन्शुरन्स पॉलिसी में पोर्टेबिलिटी की भी सुविधा होती है। अगर आप अपनी हेल्थ इन्शुरन्स पॉलिसी को एक कंपनी से पोर्ट करके दूसरी कंपनी में ले जाते हैं तो मोरेटोरियम पीरियड भी साथ ही जाता है। यानी आपने पहली बार जब पॉलिसी ली थी उसके बाद के 8 साल का समय मोरेटोरियम पीरियड कहलाता है। भले ही इस दौरान आप जितनी इन्शुरन्स कंपनियां बदल लें। 8 साल पूरा होने के बाद कोई भी कंपनी आपको क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती।