मेंटल इलनेस या मानसिक रोगों को हमारे देश में अब तक नजरअंदाज ही किया जाता है। दरअसल हमारे देश में मानसिक रोग का मतलब पागलपन मान लिया गया है। यही वजह है कि साधारण मानसिक बीमारियों को आसानी से नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन अब वक्त बदल रहा है और हम भाग्यशाली भी हैं कि लोग अपनी मानसिक परेशानियों के प्रति सचेत हो रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर 100 में से पांच व्यक्ति मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। पूर्व में जहां मानसिक समस्या होने के बावजूद उसे नकारा जाता था, वहीं अब लोग इन समस्याओं को स्वीकार कर रहे हैं। इसमें कोई छोटा-बड़ा, आम और खास नहीं हैं। पूर्व में मानसिक बीमारियों के प्रति लोगों का नजरिया ऐसा था कि कोई भी इसे स्वीकार नहीं करता था। पहले इन्शुरन्स में भी मानसिक रोगों के लिए कवरेज नहीं मिलता था। अब धीरे-धीरे समाज में बदलाव आ रहा है तो इन्शुरन्स का क्षेत्र भी इसके लिए तैयार हो गया है।
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हेल्थ इन्शुरन्स पॉलिसी के तहत अब तक सिर्फ शारीरिक बीमारियों या कंडीशन को ही कवर किया जाता था। लेकिन अब हेल्थ इन्शुरन्स कंपनियां अपनी मेडिकल पॉलिसी के तहत मानसिक रोगों को भी कवर करने लगी हैं। यह सब मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 आने के बाद हुआ। इस एक्ट के आने के बाद अब मानसिक रोगों को भी शारीरिक बीमारियों और कंडीशन के बराबर ही महत्व मिल गया है। इन्शुरन्स रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईआरडीएआई) ने सभी इन्शुरन्स कंपनियों को एक सर्कुलर जारी कर मेंटल हेल्थकेयर एक्ट का पालन सुनिश्चित करने को कहा है।
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