ज्यादातर लोग बुरे वक्त के लिए हेल्थ इन्शुरन्स खरीदते हैं। किसी भी बीमारी या एक्सीडेंट के समय हेल्थ इन्शुरन्स हमारे बहुत काम आता है। भले अस्पताल में भर्ती होना हो, डेकेयर ट्रीटमेंट हो या डॉमिसिलरी ट्रीटमेंट हर तरह के हॉस्पटलाइजेशन में हेल्थ इन्शुरन्स हमारी मदद करता है। हेल्थ इन्शुरन्स की मदद हमारे हॉस्पिटल के बिल को चुकाने के रूप में होती है। इस आर्टिकल में हम समझेंगे कि हेल्थ इन्शुरन्स में इलनेस किसे कहा जाता है और उन बीमारियों (इलनेस) की बात करेंगे, जिन्हें हेल्थ इन्शुरन्स पॉलिसी के तहत कवर किया जाता है।

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  1. हेल्थ इन्शुरन्स में इलनेस किसे कहते हैं - What is Illness in Health Insurance in Hindi
  2. हेल्थ इन्शुरन्स में इलनेस कवर कितने तरह का होता है - Types of Illness Covers in Health Insurance in Hindi
  3. हेल्थ इन्शुरन्स में इलनेस कवर कब मिलता है - When you get Illness Cover in Health Insurance in Hindi
  4. एनी वन इलनेस का क्या मतलब है - What is Any one Illness in Health Insurance in Hindi?

ऐसी कोई भी बीमारी या रोग जिसके कारण आपके दैनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है और चिकित्सा उपचार की जरूरत होती है, उसे हेल्थ इन्शुरन्स के अनुसार इलनेस कहा जाता है। इलनेस मुख्यत: 2 प्रकार की होती है - एक्यूट कंडीशन और क्रोनिक कंडीशन

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एक्यूट कंडीशन - एक्यूट कंडीशन के अंतर्गत ऐसी बीमारियां या चोटें आती हैं, जिनके लिए तुरंत डॉक्टर की जरूरत होती है। यह ऐसी स्थिति होती है जो अचानक से सामने आती है और जल्द कार्रवाई करने पर व्यक्ति जल्द ही अपने दैनिक कार्यों को करने में सक्षम भी हो जाता है। यदि सही समय पर उचित इलाज मिल जाए तो एक्यूट कंडीशन से व्यक्ति जल्द ही रिकवर भी कर जाता है।

क्रोनिक कंडीशन - क्रोनिक कंडीशन में ऐसी बीमारियों या चोटों को रखा जाता है, जिनके लिए इलाज प्रक्रिया काफी लंबी चलती है और लगातार लंबे समय तक डॉक्टर कंसल्टेशन, एग्जामिनेशन, चेकअप और टेस्ट की आवश्यकता हो सकती है। इसके अलावा क्रोनिक कंडीशन के अंतर्गत आने वाली बीमारियों को कंट्रोल करने और राहत मिलने में लंबा समय लगता है। कई बार मरीज को इन बीमारियों के हिसाब से खुद को ढालना पड़ता है और रिहैबिलिटेशन की प्रक्रिया से गुजरना होता है। यह बीमारियां एक बार ठीक होने पर फिर से उभर सकती हैं।

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यह तो आप भी मानते होंगे कि किसी बीमारी या एक्सीडेंट के समय पैसों की किल्लत से बचना और सही समय पर उचित इलाज मिल जाना ही किसी भी हेल्थ इन्शुरन्स की प्रमुख बात है। हर इन्शुरन्स में बीमारियां कवर होती हैं। अब प्रश्न उठता है कि हेल्थ इन्शुरन्स के तहत इलनेस कवर कितने तरह का होता है। इलनेस कवर के कुछ भेद निम्न हैं - 

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एक्यूट इलनेस कवर - इसके तहत हर वो आम बीमारी कवर होती है, जिससे भविष्य में आप संक्रमित हो सकते हैं। इस तरह की बीमारियों के लिए आमतौर पर हेल्थ इन्शुरन्स लेने के 30 दिन बाद बाद कवरेज मिलना शुरू हो जाता है। यदि आप myUpchar बीमा प्लस हेल्थ इन्शुरन्स प्लान लेते हैं तो आपको 30 दिन बाद एक्यूट इलनेस के साथ ही पहले ही दिन से मुफ्त ऑनलाइन कंसल्टेशन की भी सुविधा मिलती है।

क्रोनिक या क्रिटिकल इलनेस कवर - इसके तहत वह गंभीर बीमारियां आती हैं, जिनका असर व्यक्ति पर लंबे समय तक रहता है। यदि आप पॉलिसी को लगातार 2 साल या 4 साल तक बिना किसी लैप्स के चलाते हैं तो इस तरह की कई बीमारियों को हेल्थ इन्शुरन्स के तहत कवरेज मिल जाती है। यही नहीं 28-42 कुछ ऐसी क्रिटकल इलनेस हैं, जिनके लिए आप अलग से भी एक पॉलिसी खरीद सकते हैं। ऐसी पॉलिसी को क्रिटिकल इलनेस पॉलिसी कहा जाता है और बीमारी का निदान होते ही कंपनी आपके अकाउंट में आपके चुने सम-इनश्योर्ड की राशि को ट्रांस्फर कर देती है।

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प्री-एग्जिस्टिंग इलनेस कवर - इसके तहत उन बीमारियों को रखा जाता है, जो इन्शुरन्स लेने से 48 महीने पहले तक आपको हुए हों और उनका इलाज चल रहा हो। इन्शुरन्स पॉलिसी खरीदते समय जब आप ऐसी बीमारी होने की बात बताते हैं तो कंपनी आपको उसके लिए 24-48 महीने तक का वेटिंग पीरियड दे सकती है। यानी आपकी हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी ऐसी इलनेस को कवर तो कर सकती है, लेकिन उसके लिए वह आपको इंतजार करने को कहती है। कई बार इन्शुरन्स कंपनी आपको प्री-एग्जिस्टिंग इलनेस के कारण हेल्थ इन्शरन्स देने से इनकार कर सकती है, जबकि कई बार उस बीमारी को कवर करने के लिए आपसे अतिरिक्त प्रीमियम वसूला जाता है और साथ ही वेटिंग पीरियड भी दिया जाता है।

एक और तरह का इलनेस कवर होता है, लेकिन यह आपके साधारण हेल्थ इन्शुरन्स के अंतर्गत नहीं आता। यह इलनेस कवर किसी खास बीमारी के लिए अलग पॉलिसी के रूप में दिया जाता है। इस पॉलिसी में सिर्फ उसी बीमारी (इलनेस) या अंग के लिए कवरेज मिलती है। उदाहरण के लिए टेंटल केयर, कैंसर केयर, आई केयर इन्शुरन्स पॉलिसी।

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आप भले ही किसी भी हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी से अपनी पॉलिसी खरीदें। हर पॉलिसी में अलग-अलग बीमारियों को कवर करने के लिए एक वेटिंग पीरियड होता है। इस वेटिंग पीरियड में साधारण बीमारियां भी आती हैं। आमतौर पर जब आप कोई पॉलिसी खरीदते हैं तो एक्सीडेंट जैसी इमरजेंसी पहले दिन से कवर होती ही है। लेकिन अन्य किसी भी बीमारी के इलाज के लिए आपको कम से कम 30 दिन तक इंतजार करना पड़ता है। हालांकि, क्रिटिकल इलनेस और प्री-एग्जिस्टिंग कंडीशन के लिए 24 महीने से 48 महाने तक का वेटिंग पीरियड हो सकता है।

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इसी बात को उदाहरण से समझाएं तो - मान लीजिए राहुल दिल्ली में रहता है और यहीं पर काम करता है। उसने हाल ही में एक इंडिविजुअल हेल्थ पॉलिसी ली है। पॉलिसी लेने के 15 दिन बाद ही वह बीमार पड़ जाता है। वह नजदीकी अस्पताल में जाकर इलाज करवाता है और क्लेम करता है तो उसे क्लेम नहीं दिया जाएगा, क्योंकि उसकी पॉलिसी में 30 दिन का वेटिंग पीरियड था। अब मान लें कि राहल डेढ़ महीने बाद बीमार होता है और उसे कुछ दिन अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है तो इन्शुरन्स कंपनी जरूरी जांच पड़ताल के बाद उसे क्लेम दे देगी।

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एनी वन इलनेस का मतलब किसी व्यक्ति के किसी एक ही बीमारी से लगातार ग्रस्त रहने से है। आम तौर पर 45 दिन के भीतर किसी बीमारी से दोबारा ग्रस्त होना भी एनी वन इलनेस की कैटेगरी में आता है।

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