पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाला खर्च काफी तेजी से बढ़ा है और इस कारण से किसी अच्छे अस्पताल से इलाज करवाना मध्यम व निम्न वर्गीय परिवारों के बस से बाहर हो गया है। लेकिन, मजबूरी में व्यक्ति को अस्पतालों में जाकर इलाज भी करवाना पड़ता है और ऐसे में लंबी बीमारी लंबे समय तक कर्जदार भी बनाकर रख देती है। हालांकि, हेल्थ इन्शुरन्स की मदद से इस स्थिति को काफी हद तक आसान किया जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज की महंगाई और गंभीर बीमारयों के चलते सभी के लिए एक उचित हेल्थ इन्शुरन्स प्लान खरीदना जरूरी हो गया है। यदि आप हेल्थ इन्शुरन्स लेने के बारे में सोच रहे हैं, तो आपको अधिक देरी न करते हुए अपने व परिवार के लिए एक अच्छा सा स्वास्थ्य बीमा खरीद लेना चाहिए। हालांकि, हेल्थ इन्शुरन्स लेते समय कुछ विशेष बातों को ध्यान में रखना भी बहुत जरूरी है। कोई भी हेल्थ इन्शुरन्स पॉलिसी खरीदने से पहले उसके सभी दस्तावेजों के बारे में पढ़ लेना चाहिए, क्योंकि उनमें कई शर्तें हो सकती हैं, जिनके बारे में आपका जानना बेहद जरूरी है और इन्ही में से एक है "को-पेमेंट"। इसे "कोपे" भी कहा जाता है, जो बीमाकर्ता कंपनी व बीमाधारक व्यक्ति के बीच एक विशेष कॉन्ट्रैक्ट होता है।
अगर सरल शब्दों में कहें तो यह आपके कुल मेडिकल खर्च का एक छोटा सा हिस्सा होता है, जो आपके द्वारा ही भरा जाता है। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए आपने हेल्थ इन्शुरन्स प्लान खरीदा हुआ है और दुर्भाग्यवश कोई मेडिकल इमर्जेंसी हो जाती है। मानकर चलिए, इस बीमारी के इलाज में आपके 5 लाख रुपये खर्च हो गए, तो आप अपनी बीमा कंपनी को क्लेम के लिए सूचित करेंगे। ऐसे में यदि बीमा कंपनी आपको मेडिकल खर्च का कुछ प्रतिशत हिस्सा अपनी जेब से देने को कहे तो उस राशि को को-पेमेंट या कोपे कहा जाता है।
यदि आप हेल्थ इन्शुरन्स लेने की योजना बना रहे हैं या फिर आप पहले से ही स्वास्थ्य बीमाधारक हैं, तो इस लेख से आपको कोपेमेंट से संबंधित काफी महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है -