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परफोरेटिड ईयरड्रम या कान के परदे में छेद को रिपेयर करने के लिए टिम्पेनोप्लास्टी नाम की सर्जरी की जाती है। यह सर्जरी बड़े छेदों में की जाती है जो खुद से ठीक नहीं हो सकते हैं।

टिम्पेनोप्लास्टी से पहले ब्‍लड टेस्‍ट, रेडियोलॉजिकल टेस्‍ट और स्‍पेशल हियरिंग टेस्‍ट किए जाते हैं। जनरल एनेस्‍थीसिया देने के बाद यह सर्जरी की जाती है और इसमें कुछ दिनों तक अस्‍पताल में रूकना पड़ता है।

सर्जरी के बाद देखभाल करना जरूरी होता है ताकि जल्‍दी रिकवरी हो सके जिससे कान अपना काम ठीक तरह से कर पाए।

  1. टिम्पेनोप्लास्टी क्‍या है - Tympanoplasty kya hai
  2. टिम्पेनोप्लास्टी कब करवा सकते हैं - Tympanoplasty kise karvani chahiye
  3. टिम्पेनोप्लास्टी कब नहीं करवानी चाहिए - Tympanoplasty kaun nahi karva sakta hai
  4. टिम्पेनोप्लास्टी से पहले की तैयारी - Tympanoplasty se pahle ki taiyari
  5. टिम्पेनोप्लास्टी सर्जरी कैसे की जाती है - Tympanoplasty karne ka tarika
  6. टिम्पेनोप्लास्टी से जुड़े जोखिम और जटिलताएं - Tympanoplasty se jude risk
  7. टिम्पेनोप्लास्टी के बाद देखभाल कैसे की जाती है - Tympanoplasty ke baad care kaise ki jati hai
  8. सारांश - Takeaway
टिम्पेनोप्लास्टी के डॉक्टर

कान के तीन हिस्‍से होते हैं - बाहरी, मध्‍य और अंदरूनी कान।

कान के मध्‍य हिस्‍से में ईयरड्रम (जिसे टिमपेनिक मेम्ब्रेन कहा जाता है) और ईयर ओसिकल्‍स होते हैं जिसमें तीन छोटी हड्डियां होती हैं जो साउंड को बनाने में मदद करती हैं।

टिम्‍पेनिक मेम्ब्रेन (यानी झिल्‍ली) समतल कोन की तरह होती है जिसकी नोक अंदर की ओर मुड़ी हुई होती है। इसमें रक्‍त वाहिकाएं और संवेदी तंत्रिकाएं होती हैं जो दर्द के प्रति बहुत ज्‍यादा संवेदनशील बनाती हैं। यह झिल्‍ली बाहरी वातावरण से साउंड वाइब्रेशन लेकर उसे ईयर ओसिकल्‍स को भेजते हैं।

(और पढ़ें - कान में दर्द)

जब टिम्‍पेनिक झिल्‍ली कान के मध्‍य में होने वाली बीमारियों या प्रेशर बढ़ने और बाहरी इंफेक्‍शन की वजह से फट जाती है, तब कान के मध्‍य से अंदरूनी कान में साउंड भेजने का काम प्रभावित होता है जिससे कुछ हद तक बहरापन हो सकता है।

अगर छेद छोटा हो और कोई परेशानी न हो, तो ईयरड्रम अपने आप ठीक हो सकता है। हालांकि, अगर छेद बड़ा हो और यह किसी बीमारी या किसी इंफेक्‍शन की वजह से हो, यह जल्‍दी ठीक नहीं होता है जिससे परमानेंट हियरिंग इंपेयरमेंट हो सकता है।

छेद को भरने के लिए ग्राफ्ट टिश्‍यू से ईयरड्रम को रिपेयर किया जाता है। इस प्रक्रिया को टिम्पेनोप्लास्टी कहते हैं। इसके अलावा अगर ईयर ओसिकल्‍स के इलाज की ज़रूरत हो तो टिम्पेनोप्लास्टी में यह भी किया जाता है।

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आमतौर पर छोटे छेद अपने आप ठीक हो सकते हैं। हालांकि, निम्‍न स्थितियों में टिम्पेनोप्लास्टी की सलाह दी जाती है :

  • छेद बड़ा हो
  • कान में कोई इंफेक्‍शन न हो या कान 3 से 4 महीने से ज्‍यादा समय से सूखा हो जो सिर्फ एंटीबायोटिक से ठीक न हो पाए।
  • ईयर ओसिकल्‍स का खराब होना

निम्‍न मामलों में टिम्पेनोप्लास्टी की वजह से जोखिम बढ़ जाता है :

  • कान में संक्रमण - इंफेक्‍शन से लगातार पस निकल रही हो और कान के मध्‍य से ड्रेब्रिस हो।
  • अगर एक ही कान काम करता है, तो सावधानी बरतना जरूरी है।
  • चूंकि, यह सर्जरी जनरल एनेस्‍थीसिया देकर की जाती है, पहले से हुई किसी बीमारी जैसे कि डायबिटीज, हार्ट की बीमार‍ियों आदि से एनेस्‍थीसिया से होने वाली जटिलताओं का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में रिकवरी करने में लंबा समय लगता है। इन स्थितियों को सर्जरी से पहले कंट्रोल कर लेना चाहिए।

आमौर पर यह सर्जरी ईएनटी सर्जन द्वारा की जाती है। मरीज से उसके लक्षणों, पहले कोई बीमारी रही हो और दवा आदि के बारे में पूछा जाता है।

ऑटोस्‍कोप नाम के उपकरण से कान की जांच की जाती है। ऑटोस्‍कोप से कान की अंदरूनी संरचना को देखा जाता है। ऑटोस्‍कोपिक जांच में सर्जन निम्‍न बातों को जान लेते हैं -

  • छेद कितना बड़ा है
  • छेद किस जगह पर है
  • कोई डेब्रिस या पस निकल रही हो
  • इंफेक्‍शन का कोई संकेत हो
  • तुलना के लिए दूसरे कान की जांच करें

पहले किसी बीमारी के लिए दवा ले रहे हैं, तो सर्जन सर्जरी से पहले दवा में बदलाव या उसे बंद कर सकते हैं।

सर्जरी से पहले निम्‍न जांचें की जाती हैं -

  • कंप्‍लीट ब्‍लड काउंट - हीमोग्‍लोबिन लेवल और इंफेक्‍शन की गंभीरता जानने के लिए।
  • कान से सैंपल लेकर उसे लैब में जांच के लिए भेजा जाता है।
  • लिवर फंक्‍शन टेस्‍ट और किडनी फंक्‍शन टेस्‍ट
  • कोएगुलेशन प्रोफाइल
  • छाती का एक्‍स-रे
  • ईसीजी
  • एक्‍स-रे, सीटी स्‍कैन या सिर का एमआरआई जिसमें कान पर फोकस किया जाता है। इससे पता चलता है कि बीमारी कितनी बढ़ी है और कौन-से ईयर ओसिकल्‍स में है।
  • ऑडियोमेट्रिक टेस्‍ट - कान से कितना सुनाई दे रहा है, यह जानने के लिए विशेष जांच की जाती है। बीमारी वाले कान की जांच और दूसरे वाले सही कान से तुलना की जाती है। दोनों कानों में बीमारी होने पर नॉर्मल कान में बेसलाइन रिजल्‍ट से टेस्‍ट के रिजल्‍ट की तुलना की जाती है।

मरीज को कुछ दिनों तक अस्‍पताल में रूकना पड़ सकता है।

सर्जरी से एक रात पहले मरीज को कुछ भी खाने-पीने से मना किया जाता है। सर्जरी वाले दिन मरीज जरूरी कागजों और रिपोर्ट लेकर आना होता है। इसके बाद मरीज को हॉस्‍पीटल गाउन पहनाई जाती है। और नर्स सर्जरी वाली जगह को साफ करती है।
ऑपरेशन से पहले मरीज की अनुमति के लिए एक फॉर्म साइन करवाया जाता है जिसमें सर्जरी से जुड़े जोखिम और जटिलताओं के बारे में बताया गया होता है। चेहरे और कान के पास बाल हैं, तो उन्‍हें साफ किया जाता है।

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मरीज को ऑपरेशन टेबल पर पीठ के बल लिटाया जाता है। अब सिर को इस तरह घुमाया जाता है कि जिस कान का ऑपरेशन करना हो, वो ऊपर की ओर रहे। हार्ट रेट, बीपी और ऑक्‍सीजन सैचुरेशन ट्रैक करने के लिए मॉनिटर को बॉडी से अटैच किया जाता है। हाथ में आईवी ड्रिप लगाकर दवा दी जाती है। यह सर्जरी जनरल एनेस्‍थीसिया देकर की जाती है।

टिम्पेनोप्लास्टी दो अलग तरीकों से की जाती है जो कि इस बात पर निर्भर करता है कि ईयरड्रम तक पहुंचने के लिए कान के किस हिस्‍से का इस्‍तेमाल किया जा रहा है।

  • ट्रांस-कैनाल अप्रोच - इसमें पूरी प्रक्रिया कान की नलिका यानि ईयर कैनाल से की जाती है। टिम्‍पेनिक झिल्‍ली ग्राफ्टिंग के लिए स्किन लेने के लिए कान के पीछे छोटा कट लगाया जाता है। इसमें बाहर कोई कट लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है। हालांकि, ईयरड्रम कम दिख पाने की वजह से इस तरीके से सिर्फ छोटे छेदों को ही ठीक किया जा सकता है।
  • पोस्‍ट ऑरिकुलर अप्रोच - इस तरीके में ऑरिकल पर कर्व में कट लगाया जाता है। इस तरीके से ईयरड्रम ज्‍यादा दिख पाता है इसलिए यह तरीका ज्‍यादा कॉमन है।

ग्राफ्ट लगाने से पहले सर्जन कान को साफ करते हैं। क्षतिग्रस्‍त हुए ईयर ओसिकल्‍स को दोबारा बनाने या उन्‍हें रिपेयर करने के लिए और तकनीके अपनाई जा सकती हैं। कुछ मामलों में ओसिकल्‍स के काम के लिए प्रोस्‍थेसिस इंप्‍लांट किया जा सकता है।

छेद को भरने के लिए ग्राफ्ट मरीज की खुद की बॉडी से लिया जाता है। ग्राफ्ट संयोजी ऊतक की तरह होता है जो टेंपोरलिस मसल को ढकने वाली परत से लिया जाता है। कार्टिलेज, नसों और फैट जैसे अन्‍य ग्राफ्ट भी इस्‍तेमाल हो सकते हैं। ग्राफ्ट छेद के ऊपर या उसके नीचे लगाया जा सकता है।

ग्राफ्ट लगाने के बाद कट को बंद कर दिया जाता है और कान की नलिका पर पट्टी कर दी जाती है। इस पूरी सर्जरी में दो से तीन घंटे का समय लगता है।

टिम्पेनोप्लास्टी से जुड़े जोखिम और जटिलताएं :

  • बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होना
  • इंफेक्‍शन को पूरा न निकालना
  • ग्राफ्ट में छेद होना
  • मस्तिष्‍क या ऑर्बिट को चोट लगना
  • सुनने वाली नस को चोट लगना
  • संतुलन के लिए जिम्मेदार नस को चोट लगना
  • सर्जरी के बाद कान में घंटी बजना
  • परमानेंट या पूरा बहरापन होना
  • टेस्‍ट के लिए जिम्‍मेदार नस जो कान के मध्‍य हिस्‍से से होकर निकलती है, उस नस को चोट लगने पर स्‍वाद ठीक से न आ पाना।
  • चेहरे की मांसपेशियों में चोट लगने की वजह से चेहरे की मांसपेशियों में लकवा होना।
  • एनेस्‍थीसिया की वजह से दिक्‍कत होना

सर्जरी के बाद मरीज को कुछ घंटों के लिए ऑब्‍जर्वेशन रूम में रखा जाता है। ट्यूनिंग फोर्क से मरीज की आवाज सुनने की क्षमता का पता लगाया जाता है। दर्द के लिए पेन किलर दवाएं दी जाती हैं। इस समय यह भी देखा जाता है कि ऑपरेशन के बाद ब्‍लीडिंग तो नहीं हो रही है।

मरीज के होश में आने पर उसे वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है। सब कुछ ठीक लगने पर सर्जन डिस्‍चार्ज पेपर तैयार किए जाते हैं जिसमें जरूरी दवाएं और घाव की देखभाल से जुड़ी जानकारी होती है। डिस्‍चार्ज पेपर में निम्‍न चीजें होती हैं :

  • पहले से कोई बीमारी की दवा ले रहे हैं, तो उसे जारी रखनी है या नहीं।
  • इंफेक्‍शन और दर्द से बचने के लिए एंटीबायोटिक और दर्द निवारक दवा दी जाएगी। ईयर ड्रॉप्‍स दी जा सकती है।
  • कान में रूई के फाहे को लगाकर कान को सूखा रखा जाता है।
  • मरीज नहा सकता है लेकिन ऑपरेशन वाले कान में पानी नहीं जाना चाहिए।
  • इस कान से ड्रेनेज होना नॉर्मल है।
  • जब तक ईयर ड्रम पूरी तरह से ठीक नहीं होता, तब तक स्विमिंग और हवाई यात्रा नहीं करनी होती है।
  • रिकवरी के बाद दो हफ्तों तक वेट लिफ्टिंग जैसे मुश्किल एक्‍सरसाइज न करने की सलाह दी जाती है। इससे मध्‍य कान पर प्रेशर बढ़ सकता है जिससे दोबारा छेद हो जाएगा।
  • मरीज को कान में क्‍लिक, पॉप और दर्द महसूस हो सकता है जिसमें भारीपन भी हो। कान के ठीक होने पर यह अपने आप कम होता चला जाता है।

निम्‍न लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्‍टर को बताएं :

  • कान से डिस्‍चार्ज या ब्‍लीडिंग
  • ज्‍यादा दर्द
  • बहुत ज्‍यादा चक्‍कर आने और उल्‍टी होने पर जो दवा से भी ठीक न हो
  • कान से पस निकलना या बुखार चढ़ना
  • अचानक से बिलकुल सुनाई न देना

आमतौर पर एक हफ्ते के बाद फॉलो-अप होता है जिसमें ग्राफ्ट को चेक किया जाता है और इंफेक्‍शन के संकेत देखे जाते हैं। इसके बाद डॉक्‍टर बताते हैं कि दोबारा चेकअप के लिए कब आना है।

कान ठीक होने के दो हफ्ते के बाद रोजमर्रा के काम आराम से कर सकते हैं। हालांकि, 6 से 12 हफ्ते लगते हैं पूरी तरह से ठीक होने में, तब तक हवाई यात्रा और स्विमिंग न करें। रिकवरी होने के साथ सुनाई देने की क्षमता में सुधार आता जाएगा और कान नॉर्मल होता जाएगा।

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बहरापन एक अत्यंत दुर्बल करने वाली विकलांगता या समस्‍या है। यह आमतौर पर ईयरड्रम के फटने की वजह से होती है। टिम्पेनोप्लास्टी सर्जरी में ईयरड्रम में हुए छेद को भरा जाता है। इस प्रक्रिया में कम समय लगता है और इसकी सफलता की दर ज्‍यादा है और जटिलताएं कम होती हैं। ऑपरेशन के बाद सही देखभाल से जल्‍दी रिकवर किया जा सकता है।

Dr. Anu Goyal

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कान, नाक और गले सम्बन्धी विकारों का विज्ञान
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