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ऊफोरेक्‍टोमी एक सर्जरी है जिसमें एक या दोनों ओवरियों को निकाल दिया जाता है। जब ओवरी की किसी बीमारी में दवाओं से इलाज संभव न हो, तब इस सर्जरी की जरूरत पड़ती है। अगर इस सर्जरी,में दोनों ओवरियों को निकाला जा रहा है तो महिला में बांझपन और रजोनिवृत्ति हो जाती है।

हालांकि, सर्जरी से पहले मरीज की सही काउंसलिंग करना जरूरी है। इस सर्जरी से पहले कुछ ब्‍लड टेस्‍ट और रेडियोलॉजिकल टेस्‍ट करवाए जाते हैं।

इस ऑपरेशन में किस तरीके का इस्‍तेमाल हुआ है और क्‍या बीमारी थी, उसके आधार पर निश्चित होता है कि सर्जरी में कितना समय लगेगा और मरीज को अस्‍पताल में कितनी देर तक रूकना पड़ेगा। ऑपरेशन के बाद दो से छह हफ्तों में रिकवरी हो जाती है।

  1. अंडाशय निकालने का ऑपरेशन क्‍या है?
  2. अंडाशय निकालने का ऑपरेशन क्‍यों की जाती है
  3. अंडाशय निकालने की सर्जरी कब नहीं करवानी चाहिए
  4. सर्जरी से पहले क्‍या तैयारी करनी होती है
  5. ओवरी निकालने की सर्जरी कैसे की जाती है
  6. अंडाशय निकालने के ऑपरेशन के जोखिम और परिणाम
  7. अंडाशय निकालने का ऑपरेशन के बाद डिस्‍चार्ज, फॉलो-अप और देखभाल
  8. सारांश
ओवरी निकालने की सर्जरी के डॉक्टर

महिला के प्रजनन तंत्र के अंदरूनी यौन अंगों में ओवरी आती हैं। ओवरी के दो प्रमुख कार्य होते हैं :

  • भ्रूण बनाने के लिए एग बनाना।
  • गर्भाशय के कार्य को नियंत्रित करने के लिए एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍टेरोन हार्मोन बनाना खासतौर पर पीरियड्स के दौरान। ये हार्मोंस हड्डियों और हार्ट को स्‍वस्‍थ बनाए रखने के भी जिम्‍मेदार होते हैं।

ओवरी में कोई असामान्‍यता आने पर इन दो कार्यों में रुकावट पैदा हो सकती है।

फैलोपियन ट्यूब और गर्भाशय में कोई बीमारी होने पर भी ओवरी प्रभावित हो सकती है। जब दवाएं असर न करें, तब सर्जरी से इलाज किया जाता है। ओवरी निकालने को ऊफोरेक्‍टोमी कहते हैं।

यह दो प्रकार से हो सकती है : एक ओवरी (यूनिलेटरल) या दोनों ओवरी (बाइलेटरल)। यूनिलेटरन ऊफोरेक्‍टोमी से इनफर्टिलिटी या हार्मोनल संतुलन पर कोई असर नहीं पड़ता है लेकिन बाइलेटरल से इनफर्टिलिटी और मेनोपॉज हो जाता है। सर्जरी के तीन तरीके हैं :

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ऐसे कई संकेत हैं जो ऊफेरोक्‍टोमी सर्जरी की जरूरत का संकेत देते हैं। जब दवा से बीमारी को ठीक न किया जाए, तो इस सर्जरी की सलाह दी जाती है। निम्‍न स्थितियों में ऊफेरोक्‍टोमी की सलाह दी जा सकती है :

  • एंडोमेट्रियोसिस : इसमें गर्भाशय की अंदरूनी लाइनिंग की कोशिकाएं कहीं भी जैसे कि ओवरी पर विकसित होने लगती हैं।
  • औवरी में गैर-कैंसरकारी सिस्‍ट या ट्यूमर होना।
  • ओवेरियन कैंसर
  • ट्यूबो ओवेरियन फोड़ा : फैलोपियन ट्यूब और ओवरी में पस से भरा फोड़ा  होना।
  • ओवरी टोर्जन : ओवरी मुड़ने की वजह से ओवरी तक खून की आपूर्ति न हो पाना। मरीज को पेट में दर्द होना जिसका तुरंत इलाज करना हो।
  • एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी या एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी का रप्‍चर : जब गर्भाशय के बजाय प्रेग्‍नेंसी प्रजनन मार्ग के अन्‍य हिस्‍सों में हो। रप्‍चर एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी में अचानक से तेज दर्द होता है जिसमें तुरंत इलाज देने की जरूरत होती है।
  • पेल्विक इंफ्लामेट्री डिजीज में पूरे अंदरूनी प्रजनन तंत्र में इंफेक्‍शन और सूजन हो जाती है।
  • कुछ महिलाओं में कुछ जेनेटिक्‍स की वजह से ओवेरियन और ब्रेस्‍ट कैंसर हो जाता है। इनमें इलाज के तौर पर सर्जरी की जाती है।

यह एक बड़ी सर्जरी होती है। इससे निम्‍न स्थितियों में दिक्‍कत हो सकती है :

  • पहले से ही डायबिटीज, हार्ट की बीमारी, हड्डियों की बीमारी के मरीज हैं। इसमें सर्जरी से पहले इन बीमारियों को कंट्रोल करने पर जोर दिया जाता है क्‍योंकि इनकी वजह से एनेस्‍थीसिया से दिक्‍कत होने का खतरा और सर्जरी के बाद रिकवर करने का समय बढ़ जाता है।
  • मेटास्‍टासिस के साथ कैंसर के एक्टिव होने पर।
  • जो महिलाएं आगे कंसीव करना चाहती हैं, उनकी बाइलेटरल ऊफोरेक्‍टोमी बहुत ज्‍यादा जरूरी होने पर ही की जाती है।

गायनेकोलॉजिस्‍ट सर्जन यह ऑपरेशन करते हैं। प्रक्रिया को समझाने, सर्जरी के जोखिम और रिजल्‍ट के बारे में सर्जन मरीज को बताते हैं। मरीज से उसके लक्षणों, पहले से कोई बीमारी है, मासिक चक्र कैसा है, फैमिली और दवाओं की हिस्‍ट्री पूछी जाती है। मरीज की शारीरिक जांच भी की जाती है।

अगर मरीज की दोनों ओवरियां निकाली जा रही हैं, तो काउंसलिंग बहुत जरूरी है क्‍योंकि इसके बाद महिला को इनफर्टिलिटी और मेनोपॉज से जूझना होगा। यदि महिला सर्जरी के बाद भी प्रेगनेंट होना चाहती है तो ऑपरेशन से पहले फर्टिलिटी डॉक्‍टर बाद के लिए महिला के एग को स्‍टोर करने की सलाह देते हैं। सर्जरी के बाद मेनोपॉज होने की वजह से हार्ट और हड्डी से संबंधित विकृतियां हो सकती हैा इसलिए इनके लिए पहले ही इलाज के विकल्‍प पूछ लें।

पहले से हुई किसी बीमारी की दवा ले रहे हैं, तो सर्जरी से पहले उसमें बदलाव या बंद करने की सलाह दी जा सकती है।

निम्‍न टेस्‍ट करवाए जाते हैं :

  • रूटीन ब्‍लड टेस्‍ट
  • रूटीन यूरिन टेस्‍ट
  • छाती का एक्‍स-रे
  • ईसीजी
  • ओवरियों को देखने के लिए पेट और पेल्विस का अल्‍ट्रासाउंड।
  • कुछ मामलों में पेट के एमआरआई या सीटी स्‍कैन की जरूरत पड़ सकती है।

यह एक बड़ी सर्जरी होती है इसलिए मरीज को कुछ दिनों तक अस्‍पताल में रूकना पड़ सकता है। मरीज को सर्जरी से एक या दो दिन पहले अस्‍पताल में भर्ती होना होता है और उसे अपने साथ सभी जरूरी रिपोर्ट और दस्‍तावेज लाने होते हैं। भर्ती होने के बाद मरीज को हॉस्‍पीटल गाउन पहनाई जाती है और निम्‍न चीजें की जाती हैं :

  • ऑपरेशन के लिए मरीज की अनुमति लेने के लिए फॉर्म साइन करवाया जाता है।
  • सर्जरी वाली जगह को तैयार किया जाता है जैसे कि पेल्विस, पेट और टांगों के बाल हटाना और नहाना।
  • बांह की नस में ड्रिप लगाकर जरूरी दवाएं और फ्लूइड दिए जाते हैं ताकि मरीज सर्जरी से 8 से 10 घंटे पहले तक भूखा रह सके।
  • पेट साफ रखने के लिए मरीज को रेचक दिए जाते हैं।
  • मरीज को बेचैनी न हो, इसके लिए डॉक्‍टर उसे बेहोशी की हल्‍की दवा दे सकते हैं।
  • फिर सर्जन मरीज का फाइनल रिव्‍यू करते हैं और नर्स मरीज को ऑपरेशन थिएटर में ले जाती है।
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मरीज को ऑपरेशन टेबल पर पीठ के बल लिटाया जाता है। हार्ट रेट, बीपी और ऑक्‍सीजन सैचुरेशन चैक करने के लिए बॉडी से मॉनिटर को अटैच किया जाता है। अब सर्जरी के दौरान दवाएं देने के लिए आईवी कैनुला लगाया जाता है। सर्जरी वाली जगह पर पेशाब न आए, इसलिए मूत्र नली में कैथेटर लगाया जाता है। सर्जरी वाली जगह को साफ कर के आसपास के हिस्‍से को सर्जिकल ड्रेप से ढक दिया जाता है।

आमतौर पर य‍ह प्रक्रिया जनरल एनेस्‍थीसिया देकर किया जाता है। निम्‍न तरीकों से यह सर्जरी की जा सकती है :

  • लेप्रोटोमी : इसमें पेट के ऊपर लंबा मिडलाइन कट लगाया जाता है। इससे पेट तक अच्‍छी पहुंच बन जाती है और ओवरी निकालने का तरीका आसान हो जाता है। हालांकि, इसमें इंफेक्‍शन और अन्‍य तरीकों की तुलना में घाव के भरने का समय बढ़ जाता है।
  • लेप्रोस्‍कोपिक : इस तरीके में पेट के ऊपर दो से तीन छोटे कट लगाए जाते हैं। एक कट से कैमरे को पेट के अंदर डाला जाता है। अन्‍य कट से ओवरी निकालने के बाकी उपकरण डाले जाते हैं।
  • वैजाइनल : जब ओवरी के साथ गर्भाशय को भी निकालना हो, तो यह तरीका अपनाया जाता है। इसमें मरीज को पीट के बल लिटाकर उसकी टांगों को चौड़ा कर के रखा जाता है। सर्जन योनि से पेट तक पहुंचने हैं और विशेष सर्जिकल उपकरणों की मदद से ओवरी, फैलोपियन ट्यूबों और गर्भाशय को निकाल देते हैं।

ऊफोरेक्‍टोमी को निम्‍न रूप से बांटा जा सकता है :

  • यूनिलेटरल ऊफोरेक्‍टोमी : एक ओवरी निकाली जाए
  • बाइलेटरल ऊफोरेक्‍टोमी : दोनों ओवरियां निकाली जाएं
  • साल्‍पिंगो ऊफोरेक्‍टोमी : फैलोपियन ट्यूब के साथ ओवरी निकाली जाएं
  • बाइलेटरल साल्पिंगो ऊफोरेक्‍टोमी : फैलोपियन ट्यूबें और दोनेां ओवरियां निकाली जाएं
  • हिस्‍टेरेक्‍टोमी के साथ साल्पिंगो ऊफोरेक्‍टोमी : इसमें फैलोपियन ट्यूबों और ओवरी के साथ गर्भाशय को निकाला जाता है।

हर प्रक्रिया में अलग समय लगता है और उसके जोखिम और रिकवरी का समय भी अलग है। कुछ मामलो में जहां हिस्‍टेरेक्‍टोमी की जाती है, जो पेल्विस से अतिरिक्‍त खून और फ्लूइड को निकालने के लिए सर्जिकल ड्रेन लगाई जाती है। प्रक्रिया होने के बाद कट को बंद कर दिया जाता है और ओवरी को आगे की जांच के लिए लैब में भेज दिया जाता है।

बड़ी सर्जरी होने के बावजूद इसके जोखिम कम हैं। इसकी वजह से निम्‍न जटिलताएं आ सकती हैं :

  • सर्जरी के दौरान बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होना।
  • आसपास की संरचनाओं जैसे कि मूत्राशय और मलाशय को चोट लगना।
  • ट्यूमर या सिस्‍ट को चोट लगना जिससे उनमें मौजूद चीजों का पेट में पहुंचना।
  • ओवरी के ऊतकों को पूरा न निकालना जिससे ओवेरियन रेमनेंट सिंड्रोम हो सके। इसमें पेल्विक में बहुत दर्द होता है।
  • टांके वाली जगह पर इंफेक्‍शन होना।
  • टांके वाली जगह पर तेज दर्द या सूजन होना।
  • यदि मरीज की दोनों ओवरियां निकाली जा रही हैं, तो मरीज ऑपरेशन के तुरंत बाद इनफर्टिलिटी और मेनोपॉज में चला जाएगा।

सर्जरी के बाद कुछ घंटों के लिए मरीज को ऑब्‍जर्वेशन रूम में रखा जाता है। कुछ मामलों में रातभर मॉनिटर करने के लिए मरीज को आईसीयू में रखा जा सकता है।

दर्द को कम करने के लिए दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं। इंफेक्‍शन से बचने के लिए आईवी ड्रिप से एंटीबायोटिक दी जाती हैं। सर्जरी के बाद 24 घंटे तक कैथेटर लगा रहता है और कुछ मामलों में कुछ दिनों तक रहता है। गैस निकलने का मतलब है कि एनेस्‍थी‍सिया का असर कम हो रहा है और मल त्‍याग में कोई दिक्‍कत नहीं आएगी।

रोज घाव की पट्टी बदली जाएगी। जितनी जल्‍दी हो सके मरीज को चलना-फिरना शुरू करने के लिए कहा जाएगा। 12 से 24 घंटों के बाद लिक्‍विड से सेमी-लिक्विड डाइट से सामान्‍य आहार पर लाया जाएगा। जब मरीज हल्‍के-फुल्‍के काम करने लगे, तब उसे अस्‍पताल से छुट्टी दी जा सकती है।

सर्जन डिस्‍चार्ज के पेपर तैयार करते हैं जिसमें दवाओं और घाव की देखभाल के लिए निर्देश दिए जाते हैं। इसमें निम्‍न चीजें होती हैं :

  • पहले से हुई किसी बीमारी की दवा ले रहे हैं तो उसे जारी रखना है या नहीं।
  • ऑपरेशन के बाद दर्द और इंफेक्‍शन से बचने के लिए एंटीबायोटिक और दर्द निवारक दवाओं के नाम।
  • घाव की देखभाल और पट्टी करने के निर्देश।
  • सेक्‍स, मुश्किल काम जैसे कि वजन उठाने और साइक्लिंग आदि करने से कुछ हफ्तों के लिए मना किया जा सकता है।
  • यदि दोनों ओवरियां निकाली गई हैं, तो मेनोपॉज होगा और इसके लिए हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी दी जाती है।

निम्‍न लक्षण दिखने पर सर्जन को बताएं :

  • घाव से बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने पर
  • घाव वाली जगह से पस निकलने पर
  • घाव वाली जगह पर बहुत ज्‍यादा सूजन और दर्द होने पर
  • पेशाब और मल त्‍याग करने में दिक्‍कत होने
  • बुखार
  • दोनों ओवरियां निकालने के बाद मेनोपॉज होने की वजह से बहुत ज्‍यादा डिप्रेशन, गर्मी लगने, मूड स्विंग्‍स होना।

लेप्रोस्‍कोपिक सर्जरी के एक हफ्ते के बाद ही फॉलो-अप के लिए आना होगा जिसमें टांके खोले जाएंगे। लैप्रोटोमी में कुछ और दिन बाद टांके खोले जा सकते हैं। अगर मेनोपॉज हो गया तो डॉक्‍टर देखेंगे कि कब और कैसे हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी देनी है।

इसके बाद फैमिली प्‍लानिंग के विकल्‍पों पर बात की जा सकती है। मेनोपॉज और इनफर्टिलिटी के लक्षणों से निपटने के लिए काउंसलिंग की सलाह दी जा सकती है। सर्जरी के तरीके के आधार पर घाव को भरने में 2 से 6 हफ्ते लग सकते हैं।

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ऊफोरेक्‍टोमी में एक या दोनों ओवरियों को निकाला जाता है। इस सर्जरी के जोखिम कम हैं और कभी-कभी इससे जान भी बचाई जाती है। सर्जरी की आधुनिक तकनीकों से रिकवर करने का समय कम हो गया है। अगर दोनों ओवरियां निकाली गई हैं तो मेनोपाॅज और इनफर्टिलिटी हो सकती है। इसके लिए काउंसलिंग लेनी अहम है। मेनोपॉज को हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी से मैनेज किया जा सकता है।

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