जैसा कि पहले बताया गया है कि लैरिनगेक्टोमी संपूर्ण और आंशिक दोनों हो सकती है। दोनों ही स्थिति में एक से दो घंटे का समय लग सकता है। वायु नली के ऊपरी हिस्से से जुड़ा कंठ हवा को अपने से गुजारते हुए फेफड़ों तक पहुंचने में मदद करता है।
टोटल लैरिनगेक्टोमी में कंठ को पूरी तरह निकाल दिया जाता है और वायुमार्ग को ब्लॉक कर दिया जाता है। फिर एक स्थायी खुली जगह (छेद या स्टोमा) बनाकर एक ट्रॉकियोस्टोमी ट्यूब डाल दी जाती है।
वहीं, पार्शियल लैरिनगेक्टोमी या हेमिलैरिनगेक्टोमी में कम ऊतक हटाए जाते हैं और यह कोशिश की जाती है कि कंठ काम करता रहे और उसकी रचना बरकरार रहे। इस प्रकार की लैरिनगेक्टोमी में ट्रॉकियोस्टोमी ट्यूब को बाद में निकाल लिया जाता है।
टोटल लैरिनगेक्टोमी की प्रक्रिया
- डॉक्टर यूरीन के निकलने के लिए मरीज के ब्लैडर में ट्यूब लगाएगा।
- मरीज को तरल पदार्थ प्रोवाइड कराने के लिए नस के जरिये उसके हाथ में एक नली (इंट्रावीनस लाइन) लगाई जाएगी।
- जनरल एनेस्थीसिया देने के बाद एक कृत्रिम वायु नली गले के जरिये अंदर डाली जाएगी ताकि मरीज सांस लेता रहे।
- इसके बाद मरीज की लैरिनगोस्कोपी की जाएगी, यह देखने के लिए कैंसर कितना फैल चुका है। इससे यह भी पता चलता है कि मरीज के प्रभावित अंग के आसपास मौजूद हिस्से को सर्जरी से हटाने की जरूरत है या नहीं।
- इसके बाद सर्जन मरीज के गले पर एक कट लगाएगा।
- फिर कट को और अंदर तक ले जाया जाएगा ताकि आंतरिक अंगों, नसों और रक्त वाहिकाओं तक पहुंचा जा सके।
- इसके बाद डॉक्टर कंठ के आसपास कैंसरकारी ढांचे को निकाल देगा और उसके बाद पूरे अंग को ही हटा दिया जाएगा।
- अगला काम गले में एक स्थायी स्टोमा यानी खुली जगह बनाना होगा, जिसमें ट्रॉकियोस्टोमी ट्यूब लगाई जाएगी। ऑपरेशन से पहले वायु नली का जो अंतिम भाग लैरिंक्स से कनेक्ट था, अब वह इस स्टोमा से जुड़ा रहेगा और इसी से मरीज सांस लेगा।
- स्टोमा बनाने के बाद टांके लगाकर कट को बंद कर दिया जाएगा।
- अंत में सर्जन कट के कारण बने घाव में से होने वाले रिसाव को बाहर निकालने के लिए नलियां लगाएगा।
वहीं, पार्शियल लैरिनगेक्टोमी की बात करें तो इसे ओरल ओपनिंग या गले पर कट लगाकर किया जा सकता है। इस सर्जरी में बनाया गया छेद अस्थायी होता है। वोकल कॉर्ड के एक हिस्से को सुरक्षित रखा जाता है ताकि ऑपरेशन के बाद भी मरीज बोलना जारी रख सके।
हालांकि आंशिक लैरिनगेक्टोमी में सर्जन जांच-पड़ताल के बाद आवश्कतानुसार लिम्फ नोड्स को निकाल सकता है। इसे एक बड़ी सर्जरी माना जाता है, जिसके बाद कैंसर के फिर से होने की संभावना कम हो जाती है।
कभी-कभी आंशिक लैरिनगेक्टोमी के बाद मरीज को रेडिएशन थेरेपी दी जाती है। यह ट्रीटमेंट आमतौर पर दिन में एक बार दिया जाता है और मरीज को लंबे वक्त तक अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं होती।
लैरिनगेक्टोमी के बाद की प्रक्रिया और संभावनाएं
- सबसे पहले मरीज के शरीर में कुछ देर के लिए इंट्रावीनस लाइन बनाकर नली डाली जाएगी।
- उसे परेशानी न हो, इसलिए दर्द निवारक दवाएं भी दी जाएंगी।
- सर्जरी के बाद के शुरुआती दिनों में मरीज को ट्यूब के जरिये खाना (तरल पदार्थ के रूप में) खिलाया जाएगा जो उसकी नाक, गले से होते हुए पेट में पहुंचेगा। इस नली को एक या दो हफ्तों के बाद तब निकाला जाएगा, अगर घाव में हुआ सुधार संतोषजनक पाया गया।
- लेकिन स्टोमा को बंद होने से रोकने के लिए ट्रॉकियोस्टोमी ट्यूब को नहीं निकाला जाएगा।
- अस्पताल का स्टाफ सबसे पहले स्टोमा को साफ करेगा और अगले कुछ दिनों में मरीज को इसे साफ करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
- सर्जरी के बाद के दिनों में बोलने में कठिनाई होगी, इसलिए मरीज को लिखकर कम्युनिकेट करने के लिए नोटपैड या वाइट बोर्ड दिया जाएगा।
- मरीज के जीभ या गले के अंदर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगाई जाएगी। बाद में वायु नली और भोजन नली के बीच एक विशेष वॉल्व लगा दिया जाएगा, जो आवाज को मुंह से बाहर निकलने में मदद करेगा। इस तरह मरीज बात कर पाएगा।
- एक स्पीच पैथोलॉजिस्ट मरीज पर करीबी नजर रखेगा और उसे कम्युनिकेट करने में मदद करेगा।
- सर्जरी के बाद मरीज को 14 दिन अस्पताल में बिताने होंगे।