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लैरिनगेक्टोमी एक सर्जरी है। इसमें गले के ऊपरी हिस्से (लैरिंग्स) यानी कंठ को आंशिक या पूर्ण रूप से हटा दिया जाता है। इस अंग को वॉइस बॉक्स भी कहते हैं। आमतौर पर लैरिंजल कैंसर (कंठ-उपास्थि का कैंसर, जो गले के कैंसर के तहत आता है) के ट्रीटमेंट के लिए लैरिनगेक्टोमी परफॉर्म की जाती है। हालांकि कंठ से जुड़े ट्रॉमा में भी यह सर्जरी की जा सकती है। कैंसर होने पर लैरिनगेक्टोमी में गले में एक चीरा लगाकर कंठ को निकाल लिया जाता है। कोई कैंसरकारी कोशिका बाकी न रह जाए, इसलिए आसपास के ऊतकों को भी हटा लिया जाता है। लैरिनगेक्टोमी सर्जरी के बाद हो सकता है मरीज को बोलने में परेशानी हो। मरीज को पोस्ट-ऑपरेटिव केयर की भी जरूरत होती है। इस दौरान उसकी खाने-पीने की जरूरतों का ध्यान रखना होता है। लैरिनगेक्टोमी के बाद कैंसर मरीज की रेडियोथेरेपी करनी पड़ सकती है। इस ऑपरेशन की संभावित जटिलताएं भी हैं, जिनमें संक्रमण, ब्लीडिंग और घाव भरने में देरी शामिल है।

  1. लैरिनगेक्टोमी क्या है - What is Laryngectomy in Hindi
  2. लैरिनगेक्टोमी क्यों की जाती है - Why Laryngectomy is done in Hindi
  3. लैरिनगेक्टोमी से पहले की तैयारी - Preparations before Laryngectomy in Hindi
  4. कैसे की जाती है लैरिनगेक्टोमी - How is Laryngectomy done in Hindi
  5. लैरिनगेक्टोमी के बाद देखभाल - Care of after Laryngectomy surgery in Hindi
  6. लैरिनगेक्टोमी की जटिलताएं - Laryngectomy Complications in Hindi

लैरिनगेक्टोमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें कंठ को आंशिक अथवा पूर्ण रूप से हटा दिया जाता है। यह वॉइस बॉक्स गले का हिस्सा होता है और फैरिंक्स (गले का एक भाग) और विंडपाइप (वायु नली) के बीच स्थित होता है। वायु नली और खाने की नली गले में एकसाथ जुड़ी होती है।

लैरिनगेक्टोमी के दौरान खाने की नली यानी इसॉफेगस और वायु नली यानी ट्रेकिया को अलग किया जाता है। मरीज के सांस लेने के लिए अलग से जगह बनाई जाती है। इसके बाद लैरिंग्स (कंठ) को निकाल दिया जाता है। ऑपरेशन के बाद मरीज का सामान्य रूप से बोलना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में पार्शियल अप्रोच के तहत भी सर्जरी की जा सकती है ताकि कंठ का कुछ या अधिकतर हिस्सा बचा रहे। लैरिनगेक्टोमी का प्राथमिक उद्देश्य लैरिंग्स ट्यूमर को हटाना है, लेकिन दूसरा अहम मकसद इस अंग के कार्यों (सांस लेना, निगलना और बोलना) को बहाल करना भी है।

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निम्नलिखित परिस्थितियों में डॉक्टर लैरिनगेक्टोमी कराने का सुझाव दे सकते हैं-

  • कंठ का कैंसर होने पर, जिसका अन्य तरीकों से इलाज संभव न हो
  • हाइपोफैरिंक्स (गले का सबसे निचला भाग) का कैंसर
  • लैरिंक्स में इंजरी
  • कंठ में सूजन
  • लैरिंजल कैंसर का फिर विकसित होना

लैरिंजल कैंसर के निम्नलिखित लक्षण होते हैं-

  • निगलने में लगातार दिक्कत
  • आवाज में कर्कशता
  • वजन घटना
  • लगातार खांसी आना

नीचे लिखी परिस्थितियों और कारणों के चलते लैरिनगेक्टोमी कराने की सलाह नहीं दी जाती-

  • अगर सर्जन को लगता है कि ट्यूमर का इलाज नहीं हो सकता।
  • अगर कैंसर गंभीर रूप से मेटास्टेटिक स्टेज पर पहुंचकर शरीर के अन्य अंगों तक फैल जाए।
  • जिन लोगों की ओवरऑल हेल्थ अच्छी नहीं होती और पहले से अन्य बीमारियों से पीड़ित होते हैं।
  • अगर जीभ या ग्रीवा धमनी (करॉटिड आर्टेरी) ट्यूमर की चपेट में आ जाए।

सर्जरी से पहले डॉक्टर मरीज को प्रोसीजर के बारे में विस्तार से समझाएगा और उसके संदेहों को दूर करेगा। ऑपरेशन से पहले निम्नलिखित तैयारियां की जाती हैं-

  • मरीज का कंप्लीट फिजिकल एग्जामिनेशन होगा।
  • वोकल कॉर्ड की संपूर्ण जांच होगी।
  • एक बायोप्सी टेस्ट होगा, जिसमें कैंसरकारी ऊत्तकों के एक हिस्से को हटा दिया जाता है और उनकी माइक्रोस्कोपिक जांच की जाती है।
  • नैसेंडोस्कोपी की जाएगी, जिसमें मरीज की नाक में एनेस्थेटिक स्प्रे किया जाएगा और नाक व गले में एक ्ट्यूब डाली जाएगी। इस ट्यूब के आखिर में छोटी सी लाइट होती है और एक कैमरा लगा होता है, जो अंगों में कुछ भी असामान्य पाने में डॉक्टर की मदद करता है।
  • मरीज के सीटी स्कैन, पीईटी आदि टेस्ट किए जाएंगे ताकि ट्यूमर की लोकेशन और आकार का पता लगाया जा सके। साथ ही, यह भी देखा जा सके कि कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों में फैला है या नहीं।
  • इसके अलावा, आसपास मौजूद लिम्फ नोड्स की आगे की जांच के लिए एमआरआई स्कैन और अल्ट्रासाउंड भी किए जा सकते हैं।

अन्य तैयारियां

  • लैरिनगेक्टोमी को एक मेजर सर्जरी माना जाता है। इसलिए इसके प्रोसीजर की शुरुआत से पहले मरीज की काउंसलिंग आवश्यक रूप से की जाती है। इस प्रोसेस में उसे बीमारी, सर्जरी (जोखिम और संभावित परिणामों समेत) और जीवित बचने की संभावना के बारे में बताया जाता है।
  • सर्जरी के बाद सांस लेने, बोलने और निगलने की क्षमता में होने वाले बदलावों के बारे में समझाने के लिए एक स्पीच पैथोलॉजिस्ट की मदद ली जाती है।
  • सर्जरी से पहले मरीज के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए एक डायटिशियन या न्यूट्रीशनिस्ट मरीज की मदद कर सकता है।
  • उसे यह भी बताया जाएगा कि ऑपरेशन के बाद उसे कितना समय आराम करना होगा, जिसके लिए काम से छुट्टी लेने की जरूरत पड़ सकती है।
  • सर्जरी वाले दिन मरीज को अपने किसी पारिवारिक सदस्य या दोस्त के साथ अस्पताल आने को कहा जाएगा जो बाद में उसे घर ले जाए।
  • सर्जरी से पहले डॉक्टर को यह बताना जरूरी है कि मरीज पहले से किन दवाओं या हर्बल सप्लिमेंट का इस्तेमाल कर रहा है और सर्जरी के दौरान भी इन दवाओं को लेना जरूरी है।
  • अगर मरीज को किसी प्रकार की एलर्जी है तो उसके बारे में सर्जन को बताना चाहिए।
  • अगर वह अल्कोहल का सेवन करता है तो इसकी जानकारी भी सर्जरी करने जा रहे डॉक्टर को दी जानी चाहिए ताकि वह इसे ध्यान में रखते हुए ऑपरेशन की योजना तैयार करें। बताया जाता है कि अचानक शराब छोड़ने से भी स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है।
  • इसके अलावा, अगर मरीज धूम्रपान करता है तो इसे भी सर्जरी से कुछ दिन पहले बंद करना होगा ताकि सर्जरी के दौरान सांस लेने में दिक्कत न हो।

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जैसा कि पहले बताया गया है कि लैरिनगेक्टोमी संपूर्ण और आंशिक दोनों हो सकती है। दोनों ही स्थिति में एक से दो घंटे का समय लग सकता है। वायु नली के ऊपरी हिस्से से जुड़ा कंठ हवा को अपने से गुजारते हुए फेफड़ों तक पहुंचने में मदद करता है।

टोटल लैरिनगेक्टोमी में कंठ को पूरी तरह निकाल दिया जाता है और वायुमार्ग को ब्लॉक कर दिया जाता है। फिर एक स्थायी खुली जगह (छेद या स्टोमा) बनाकर एक ट्रॉकियोस्टोमी ट्यूब डाल दी जाती है।

वहीं, पार्शियल लैरिनगेक्टोमी या हेमिलैरिनगेक्टोमी में कम ऊतक हटाए जाते हैं और यह कोशिश की जाती है कि कंठ काम करता रहे और उसकी रचना बरकरार रहे। इस प्रकार की लैरिनगेक्टोमी में ट्रॉकियोस्टोमी ट्यूब को बाद में निकाल लिया जाता है।

टोटल लैरिनगेक्टोमी की प्रक्रिया

  • डॉक्टर यूरीन के निकलने के लिए मरीज के ब्लैडर में ट्यूब लगाएगा।
  • मरीज को तरल पदार्थ प्रोवाइड कराने के लिए नस के जरिये उसके हाथ में एक नली (इंट्रावीनस लाइन) लगाई जाएगी।
  • जनरल एनेस्थीसिया देने के बाद एक कृत्रिम वायु नली गले के जरिये अंदर डाली जाएगी ताकि मरीज सांस लेता रहे।
  • इसके बाद मरीज की लैरिनगोस्कोपी की जाएगी, यह देखने के लिए कैंसर कितना फैल चुका है। इससे यह भी पता चलता है कि मरीज के प्रभावित अंग के आसपास मौजूद हिस्से को सर्जरी से हटाने की जरूरत है या नहीं।
  • इसके बाद सर्जन मरीज के गले पर एक कट लगाएगा।
  • फिर कट को और अंदर तक ले जाया जाएगा ताकि आंतरिक अंगों, नसों और रक्त वाहिकाओं तक पहुंचा जा सके।
  • इसके बाद डॉक्टर कंठ के आसपास कैंसरकारी ढांचे को निकाल देगा और उसके बाद पूरे अंग को ही हटा दिया जाएगा।
  • अगला काम गले में एक स्थायी स्टोमा यानी खुली जगह बनाना होगा, जिसमें ट्रॉकियोस्टोमी ट्यूब लगाई जाएगी। ऑपरेशन से पहले वायु नली का जो अंतिम भाग लैरिंक्स से कनेक्ट था, अब वह इस स्टोमा से जुड़ा रहेगा और इसी से मरीज सांस लेगा।
  • स्टोमा बनाने के बाद टांके लगाकर कट को बंद कर दिया जाएगा।  
  • अंत में सर्जन कट के कारण बने घाव में से होने वाले रिसाव को बाहर निकालने के लिए नलियां लगाएगा।

वहीं, पार्शियल लैरिनगेक्टोमी की बात करें तो इसे ओरल ओपनिंग या गले पर कट लगाकर किया जा सकता है। इस सर्जरी में बनाया गया छेद अस्थायी होता है। वोकल कॉर्ड के एक हिस्से को सुरक्षित रखा जाता है ताकि ऑपरेशन के बाद भी मरीज बोलना जारी रख सके।

हालांकि आंशिक लैरिनगेक्टोमी में सर्जन जांच-पड़ताल के बाद आवश्कतानुसार लिम्फ नोड्स को निकाल सकता है। इसे एक बड़ी सर्जरी माना जाता है, जिसके बाद कैंसर के फिर से होने की संभावना कम हो जाती है।

कभी-कभी आंशिक लैरिनगेक्टोमी के बाद मरीज को रेडिएशन थेरेपी दी जाती है। यह ट्रीटमेंट आमतौर पर दिन में एक बार दिया जाता है और मरीज को लंबे वक्त तक अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं होती।

लैरिनगेक्टोमी के बाद की प्रक्रिया और संभावनाएं

  • सबसे पहले मरीज के शरीर में कुछ देर के लिए इंट्रावीनस लाइन बनाकर नली डाली जाएगी।
  • उसे परेशानी न हो, इसलिए दर्द निवारक दवाएं भी दी जाएंगी।
  • सर्जरी के बाद के शुरुआती दिनों में मरीज को ट्यूब के जरिये खाना (तरल पदार्थ के रूप में) खिलाया जाएगा जो उसकी नाक, गले से होते हुए पेट में पहुंचेगा। इस नली को एक या दो हफ्तों के बाद तब निकाला जाएगा, अगर घाव में हुआ सुधार संतोषजनक पाया गया।
  • लेकिन स्टोमा को बंद होने से रोकने के लिए ट्रॉकियोस्टोमी ट्यूब को नहीं निकाला जाएगा।
  • अस्पताल का स्टाफ सबसे पहले स्टोमा को साफ करेगा और अगले कुछ दिनों में मरीज को इसे साफ करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • सर्जरी के बाद के दिनों में बोलने में कठिनाई होगी, इसलिए मरीज को लिखकर कम्युनिकेट करने के लिए नोटपैड या वाइट बोर्ड दिया जाएगा।
  • मरीज के जीभ या गले के अंदर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगाई जाएगी। बाद में वायु नली और भोजन नली के बीच एक विशेष वॉल्व लगा दिया जाएगा, जो आवाज को मुंह से बाहर निकलने में मदद करेगा। इस तरह मरीज बात कर पाएगा।
  • एक स्पीच पैथोलॉजिस्ट मरीज पर करीबी नजर रखेगा और उसे कम्युनिकेट करने में मदद करेगा।
  • सर्जरी के बाद मरीज को 14 दिन अस्पताल में बिताने होंगे।

लैरिनगेक्टोमी के बाद मरीज की निम्नलिखित तरीके से देखभाल किए जाने की जरूरत होती है-

  • मेडिकल टीम मरीज को नेबुलाइजर इस्तेमाल करना सिखाएगी ताकि वह सांस लेने के दौरान हवा नम रहे और फिल्टर हो सके।
  • स्टोमा के आसपास की त्वचा को साफ रखने के लिए रोगाणुहीन, नम और जालीदार कपड़े का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर मरीज को स्किन पर पपड़ी जमती दिखे तो उसे सावधानी के साथ गीले कपड़े से साफ करें। कपड़े को सलाइन से गीला कर सकते हैं।
  • शुरुआती हफ्तों में अपने खान-पान का ध्यान रखने के लिए डायटिशियन से सलाह ले सकते हैं क्योंकि मरीज के लिए सामान्य भोजन करना मुश्किल होगा।
  • एक पेशेवर थेरेपिस्ट रोजाना की गतिविधियों को करने में मरीज की मदद कर सकता है।
  • साफ-सफाई और कपड़े धोने जैसे सामान्य कामों के लिए मरीज को परिवार के किसी सदस्य की मदद की भी जरूरत पड़ सकती है।
  • सर्जरी के बाद मरीज के लिए फाइबर युक्त तरल पदार्थ लेना अच्छा है ताकि उसे कब्ज न हो।

पार्शियल लैरिनगेक्टोमी के फंक्शनल परिणाम आमतौर पर अच्छे होते हैं और अधिकतर मरीजों को खाने के लिए लंबे समय तक नली की जरूरत नहीं पड़ती।

डॉक्टर को कब दिखाना है?

  • जब स्टोमा के आसपास क्रस्ट (एक सूखी लेयर या पपड़ी) बनने लगे।
  • सांस लेने और निगलने में दिक्कत हो
  • ब्लीडिंग होने लगे
  • स्टोमा का आकार छोटा होने लगे
  • फफोले होने लगें
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लैरिनगैक्टोमी से जुड़ी जटिलताएं निम्नलिखित हैं-

  • संक्रमण
  • ब्लीडिंग
  • घाव में किसी तरह की समस्या होना
  • फिस्ट्यूला बनना (शरीर में दो खाली जगहों के बीच असामान्य कनेक्शन पैदा होना)
  • आवाज खराब हो जाना
  • निगलने में कठिनाई
  • स्टोमा के आसपास हीलिंग प्रोसेस की गति धीमी होना
  • स्टोमा के आसपास की त्वचा में इन्फ्लेमेशन और डैमेज होना
  • नाक, पेट और मुंह में स्थायी ट्यूब लगाने की जरूरत पड़ने का खतरा
  • कैंसर के फिर से होने का जोखिम

सर्जरी के बाद डॉक्टर मरीज को बताएगा कि उसे कब-कब अस्पताल आना है। इसमें मरीज का चेकअप होगा और मेडिकल टीम उसे कुछ टेस्ट कराने की सलाह देगी। इससे मरीज की रिकवरी के बारे में पता चलेगा और यह जांच भी की जाएगी कि कहीं कैंसर वापस तो नहीं आ गया। शुरुआती सालों में डॉक्टर से ज्यादा अपॉइंटमेंट लेने पड़ सकते हैं। बाद के सालों में यह फ्रीक्वेंसी काफी कम हो जाएगी।

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी केवल शिक्षित करने के लिए है। यह किसी भी प्रकार से एक क्वालिफाइड डॉक्टर द्वारा दी जाने वाली मेडिकल एडवाइस का विकल्प नहीं है।

संदर्भ

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