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इलियल-पाउच एनल एनास्टोमोसिस जिसे जे-पाउच सर्जरी भी कहते हैं। अल्‍सरेटिव कोलाइटिस और एडिनोमेटस पॉलिपोसिस जैसी स्थितियों के इलाज के लिए इस सर्जरी की सलाह दी जाती है। सर्जरी के दौरान बड़ी आंत और मलाशय को निकाला जाता है और छोटी आंत के आखिरी हिस्‍से को गुदा से जोड़ा जाता है। जब तक आंत पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती, तब तक के लिए अस्‍थायी रूप से इलिओस्‍टोमी बनाई जाती है।

इस प्रक्रिया में दो से चार घंटे लग सकते हैं और यह ओपन या लैप्रोस्‍कोपी तरीके से की जा सकती है। सर्जरी के बाद तीन से सात दिन तक अस्‍पताल में रूकना पड़ सकता है। घर पहुंचने के बाद जब तक घाव ठीक नहीं हो जाता, तब तक मसालेदार और फाइबर वाली चीजें न खाएं।

डॉक्‍टर रिकवरी के दौरान भारी वजन उठाने के लिए मना सकते हैं लेकिन आप हल्‍की एक्‍सरसाइज कर सकते हैं।

डिस्‍चार्ज के एक से दो हफ्ते बाद फॉलो-अप के लिए जाना होता है लेकिन अगर बुखार और दर्द जैसे लक्षण महसूस हो रहे हैं तो डॉक्‍टर को बताना चाहिए।

(और पढ़ें - एपिफिसिओडेसिस)

  1. इलियल-पाउच एनल एनास्टोमोसिस क्या है - What is Ileoanal Anastomosis in Hindi
  2. इलियल-पाउच एनल एनास्टोमोसिस क्यों की जाती है - Why Ileoanal Anastomosis is done in Hindi
  3. इलियल-पाउच एनल एनास्टोमोसिस कब नहीं करवानी चाहिए - When Ileoanal Anastomosis is not done in Hindi
  4. इलियल-पाउच एनल एनास्टोमोसिस से पहले की तैयारी - Preparations before Ileoanal Anastomosis in Hindi
  5. इलियल-पाउच एनल एनास्टोमोसिस कैसे की जाती है - How Ileoanal Anastomosis is done in Hindi
  6. इलियल-पाउच एनल एनास्टोमोसिस के बाद देखभाल - Ileoanal Anastomosis after care in Hindi
  7. इलियल-पाउच एनल एनास्टोमोसिस की जटिलताएं - Ileoanal Anastomosis Complications in Hindi
इलियल-पाउच एनल एनास्टोमोसिस के डॉक्टर

अल्‍सरेटिव कोलाइटिस के इलाज के लिए की जाने वाली सर्जरी को इलियल एनास्टोमोसिस कहते हैं। आमतौर पर खाना आंशिक रूप से पेट में पचता है और फिर छोटी आंत में जाकर टूटता है और पोषक तत्‍वों को यहां सोखा जाता है।

जो खाना नहीं पचता है, वो इलियम (छोटी आंत का आखिरी हिस्‍सा) से बड़ी आंत तक जाता है। यहां पानी सोखकर बाकी बचे हुए ठोस अपशिष्‍ट यानि मल को बड़ी आंत के आखिरी हिस्‍से और मलाशय में रखा जाता है। मल त्‍याग करने पर यह गुदा मार्ग के जरिए बाहर निकल जाता है।

अब बड़ी आंत की अंदरूनी लाइनिंग में सूजन आती है और अल्‍सर बनने लगता है तो इसे अल्‍सरेटिव कोलाइटिस कहते हैं। पस बनने या ब्‍लीडिंग होने पर ऐसे अल्‍सर बन सकते हैं और बड़ी आंत की पचे हुए खाने से पानी सोखने और सख्‍त मल को रखने की क्षमता कम हो जाती है।

शुरुआत में इस स्थिति का इलाज दवाओं से किया जाता है लेकिन अगर इसके लक्षण कम न हों तो फिर सर्जरी की सलाह दी जाती है।

इस सर्जरी में इलियम को मोड़कर एक पाउच बना दिया जाता है जो मल के शरीर से निकलने तक उसे रखता है। यह पाउच गुदा की ओपनिंग से जुड़ा होता है। इसके बाद सर्जन इलिओस्‍टोमी (पेट की दीवार पर एक ओपनिंग जिससे इलिअम जुड़ा होता है) बनाएंगे।

इस ओपनिंग का एक बैग होता है जहां मल इकट्ठा होता है। इससे इलिअल पाउच को ठीक होने में मदद मिलती है। जब इलिअल पाउच तीन महीने के अंदर ठीक हो जाता है, तब इलिओस्‍टोमी को हटाने के लिए दूसरी सर्जरी की जाती है।

(और पढ़ें - राइनोप्लास्टी सर्जरी क्या है)

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इलियल एनास्टोमोसिस सर्जरी की सलाह निम्‍न स्थितियों में दी जाती है :

  • अल्‍सरेटिव कोलाइटिस
  • फैमिलियल एडिनोमैटस पोलिपोसिस (इसमें आंत के अंदर हजारों पोलिप्‍स बन सकते हैं)

अल्‍सरेटिव कोलाइटिस के कुछ लक्षण हैं :

फैमिलियल एडेनोमैटस पॉलिपोसिस के लक्षण हैं :

(और पढ़ें - बैरिएट्रिक सर्जरी क्या है)

एनल स्पिंचटर के असामान्‍य रूप से काम करने या इस सर्जरी से एनल स्पिंचटर को नुकसान पहुंचने की स्थिति में यह सर्जरी करने से मना किया जा सकता है।

मलाशय के अंतिम हिस्‍से में कैंसर होने और मलाशय और गुदा दोनों को निकालने की जरूरत लगने पर भी यह सर्जरी नहीं की जाती है।

निम्‍न स्थितियों में लैप्रोस्‍कोपी प्रक्रिया की सलाह नहीं दी जाती है :

  • कोलेक्‍टोमी की जरूरत हो
  • प्रेगनेंट हों
  • मोटापा हो
  • पहले पेट की कोई सर्जरी हो चुकी हो
  • क्रोन डिजीज और प्राइमरी स्‍कलेरोसिंग कोलैंजाइटिस जैसी स्थितियों में सावधानी के साथ इस सर्जरी को किया जा सकता है।

(और पढ़ें - प्रोक्टोकोलेक्टॉमी)

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इस सर्जरी के लिए निम्‍न रूप से तैयार होना होता है :

  • डॉक्‍टर पूरी मेडिकल हिस्‍ट्री जानेंगे और शारीरिक जांच करेंगे।
  • कुछ टेस्‍ट करवाए जाएंगे जैसे कि ईसीजी, ब्‍लड टेस्‍ट और मेथिसिलिन रेसिस्‍टेंट स्‍टैफिलोकोकस ऑरियस टेस्‍ट
  • जो भी दवा, जड़ी बूटी, विटामिन या सप्‍लीमेंट ले रहे हैं, डॉक्‍टर को उसके बारे में बताएं।
  • खून के थक्‍के बनने से रोकने के लिए सर्जरी से दो हफ्ते पहले खून पतला करने वाली दवाएं बंद कर दी जाएंगी।
  • सिगरेट पीते हैं तो इसे भी बंद करना होगा।
  • सर्जरी से एक रात पहले कुछ भी खाएं-पिएं नहीं।
  • सर्जरी से पहले पेट साफ करने के लिए कोई दवा दी जाएगी।
  • इस प्रक्रिया के लिए अनुमति मांगने के लिए फॉर्म साइन करवाया जाएगा।
  • सर्जरी से पहले स्‍टोमा की किस तरह देखभाल करनी है, वो नर्स बता देगी।
  • घर ले जाने के लिए किसी दोस्‍त या रिश्‍तेदार को लेकर आएं।

(और पढ़ें - अम्बिलिकल हर्निया ऑपरेशन)

अस्‍पताल पहुंचने के बाद आपको हॉस्‍पीटल गाउन पहनाई जाएगी। इसे बाद पैरों को हार्ट से थोड़ा ऊपर उठाकर पीठ के बल लिटाया जाएगा। अब ब्‍लड प्रेशर, ऑक्‍सीजन लेवल और हार्ट रेट चेक की जाएगी और सर्जरी के दौरान जरूरी दवाएं और तरल पदार्थ हाथ या बांह में ड्रिप लगाकर दिए जाएंगे।

टांगों में खून के थक्‍के बनने के जोखिम को कम करने के लिए विशेष इंजेक्‍शन और सपोर्ट स्‍टॉकिंग दिए जा सकते हैं।

पेशाब निकालने के लिए मूत्राशय में कैथेटर ट्यूब लगाई जाएगी। जनरल एनेस्‍थीसिया देकर यह सर्जरी की जाएगी। सर्जरी के दौरान आप ऑक्‍सीजन मास्‍क से सांस लेंगे।

यह सर्जरी ओपन या लैप्रोस्‍कोपी तरीके से की जा सकती है :

ओपन सर्जरी का तरीका है :

  • पेट के निचले हिस्‍से की मिड लाइन पर एक कट लगाया जाएगा।
  • देखा जाएगा कि पेट में को असामान्‍य चीज और छोटी आंत में क्रोन डिजीज तो नहीं है। यदि कोई असामान्‍य चीज दिखती है तो सर्जरी नहीं की जाएगी।
  • इसके बाद सर्जन आंत और मलाशय में कट लगाएंगे और उन्‍हें पेट से निकाल लेंगे।
  • अब इलिअम को J या S के आकार का पाउच बनाया जाएगा और इसे वापिस पेट में लगा दिया जाएगा।
  • इसे बनाने के बाद सर्जन देखेंगे कि पाउच से ब्‍लीडिंग और लीक तो नहीं हो रहा, फिर इसे इसकी जगह पर स्‍टैपल कर देंगे।
  • वो पाउच के पास अस्‍थायी इलिओस्‍टोमी बना सकते हैं और कोई भी जमा तरल को निकालने के लिए ऑपरेशन वाली जगह में ट्यूब लगा देंगे।
  • इसके बाद घुलने वाले टांकों, स्‍टैपल या टिश्‍यू ग्‍लू से कट को बंद कर दिया जाएगा।

लैप्रोस्‍कोपिक तरीके में एक बड़े कट की बजाय चार से पांच छोटे कट लगाए जाते हैं। फिर एक कट से सर्जन कैमरा लगी ट्यूब यानि लैप्रोस्‍कोप अंदर डालते हैं। यह कैमरा पेट के अंदर की तस्‍वीरों को बाहर मॉनिटर पर दिखाता है। बाकी कटों से अलग-अलग उपकरणों को अंदर डाला जाता है।

इस सर्जरी में दो से चार घंटे लगते हैं। सर्जरी पूरी होने के बाद मरीज को उसके कमरे में शिफ्ट कर दिया जाता है और उसे मॉनिटर किया जाता है। तीन से सात दिनों तक अस्‍पताल में रूकने की जरूरत होगी।

इस दौरान निम्‍न चीजें हो सकती हैं :

  • दर्द के लिए दवा दी जाएंगी।
  • सर्जरी के बाद बिस्‍तर से उतरकर थोड़ा चलने-फिरने के लिए कहा जाएगा।
  • जब आप खुद से पानी और अन्‍य फ्लूइड लेने लगेंगे तब आईवी ड्रिप निकाल दी जाएगी। अस्‍पताल से छुट्टी मिलने के समय पर कैथेटर और ड्रेन ट्यूब निकाल दी जाएगी।

(और पढ़ें - पेनिक्यूलेक्टोमी क्या है)

घर पहुंचने के बाद निम्‍न रूप से देखभाल करनी होगी :

  • घाव की देखभाल : इस पर कोई लोशन या ऑइंटमेंट न लगाएं। दो दिन बाद नहा सकते हैं लेकिन फॉलो-अप तक बाथ टब, स्विमिंग और हॉट टब में नहाएं। स्‍टेरि स्ट्रिप और टिश्‍यू ग्‍लू अपने आप गिर जाएंगे और इन्‍हें दबाव देकर निकालना नहीं चाहिए।
  • दर्द निवारक : डॉक्‍टर दर्द निवारक दवाएं लिखेंगे। कुछ दिनों में दर्द कम होने पर खुराक भी कम होती जाएगी।
  • काम : 6 हफ्तों तक भारी सामान न उठाएं। ठीक लगे तो पैदल चलें और सीढियां चढ़ें लेकिन खुद को ज्‍यादा थकाएं नहीं।
  • ऑफिस : दो से तीन महीने के बाद जब आपको हेल्‍दी महसूस होने लगे, आप काम पर लौट सकते हैं।
  • डाइट : आपको कुछ खास खाने की जरूरत नहीं है लेकिन अगर इलिओस्‍टोमी लगी है तो मसालेदार और फाइबर युक्‍त चीजें न खाएं। ज्‍यादा तरल पदार्थ लें।
  • काउंसलिंग : सपोर्ट की जरूरत लगने पर आप काउंसलर से बात कर सकते हैं।
  • ड्राइविंग : दो से तीन हफ्तों में गाड़ी चला सकते हैं।
  • इलिओस्‍टोमी : स्‍टोमा के आसपास की स्किन को साफ करने की जरूरत होगी। स्‍टोमा बैग हफ्ते में दो या तीन बार बदलना चाहिए और रोज दिन में चार से छह बार खाली करना चाहिए।

डॉक्‍टर को कब दिखाएं?

निम्‍न लक्षण दिखने पर डॉक्‍टर को बताएं :

(और पढ़ें - गैस्ट्रोपेक्सी क्या है)

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इस सर्जरी से निम्‍न जोखिम हो सकते हैं :

  • पेट से ब्‍लीडिंग
  • एनेस्‍टोमोसिस से लीकेज
  • पोर्टल वेन थ्रॉम्‍बोसिस
  • छोटी आंत में रुकावट
  • इनफर्टिलिटी
  • मैलिगनेंसी (जिसमें असामान्‍य कोशिकाएं बिना किसी कंट्रोट के बंट जाती हैं और आसपास के ऊतकों में घुसने लगती हैं)
  • इंफेक्‍शन, घाव खुलना, घाव से ब्‍लीडिंग होना
  • पेल्विक इंफेक्‍शन
  • फिस्‍टुला बनना
  • जनरल एनेस्‍थीसिया के जोखिम जैसे कि सिरदर्द, गले में खराश और मतली

फॉलो-अप के लिए डॉक्‍टर के पास कब जाएं?

अस्‍पताल से छुट्टी मिलने के एक से दो हफ्ते बाद फॉलो-अप के लिए जाना होगा। इस दौरान सर्जरी का रिजल्‍ट और आगे इलाज की जरूरत को देखा जाएगा।

नोट : ऊपर दी गई संपूर्ण जानकारी शैक्षिक दृष्टिकोण से दी गई है और यह डॉक्‍टरी सलाह का विकल्‍प नहीं है।

(और पढ़ें - स्पलेनेक्टॉमी क्या है)

Dr. Paramjeet Singh.

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Dr. Nikhil Bhangale

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संदर्भ

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