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हाइड्रोसील सर्जरी या हाइड्रोसेलेक्‍टोमी एक छोटी-सी सर्जरी है जो अंडकोष की थैली में से हाड्रोसील को निकालने या उसे ठीक करने के लिए की जाती है। यह स्थिति शिशु और वयस्‍कों दोनों में देखी जा सकती है।

इस सर्जरी की जरूरत तब पड़ती है जब मरीज में लक्षण दिखाई दें और इसका सबसे आम लक्षण हैं अंडकोष की थैली का बढ़ना। इससे पहले कुछ ब्‍लड टेस्‍ट और रेडियोलॉजिकल टेस्‍ट किए जाते हैं।

इसमें ज्‍यादा समय नहीं लगता है और मरीज सुबह अस्‍पताल में भर्ती होकर शाम तक घर जा सकता है। रिकवरी भी जल्‍दी हो जाती है लेकिन किसी प्रकार की दिक्‍कत से बचने के लिए सर्जरी के बाद देखभाल करना जरूरी है।

  1. हाइड्रोसी की सर्जरी क्‍या है - Hydrocele surgery kise kehte hain
  2. हाइड्रोसील सर्जरी कब करवाने की जरूरत होती है - Hydrocele surgery kab karvate hai
  3. सर्जरी से जुड़े जोखिम और जटिलताएं - Hydrocele surgery se jude risk
  4. हाइड्रोसील सर्जरी के बाद देखभाल कैसे की जाती है - Hydrocele surgery ke baad care kaise karni hai
  5. सारांश - Takeaway
हाइड्रोसील का ऑपरेशन के डॉक्टर

अंडकोष की थैली में वृषणों के आसपास फ्लूइड से भरी एक थैली होती है जिसे हाइड्रोसील कहते हैं। शरीर के संवदेनशील हिस्‍सा होता है हाइड्रोसील और इसका साइज बढ़ना चिंता का विषय है।

आमतौर पर हाइड्रोसील अपने आप ही ठीक हो जाता है लेकिन कुछ मामलों में गंभीर लक्षणों के साथ सूजन बढ़ सकती है। तब इसका इलाज सर्जरी से करना पड़ता है। हाइड्रोसील को ठीक करने या निकालने की प्रक्रिया को हाइड्रोसीलेक्‍टोमी या हाइड्रोसील सर्जरी कहते हैं।

मरीज की उम्र के आधार पर, दो तरह से यह प्रक्रिया की जा सकती है :

  • शिशु में हाइड्रोसील सर्जरी
  • वयस्‍कों में हाइड्रोसील सर्जरी

(और पढ़ें - हाइड्रोसील का होम्योपैथिक इलाज)

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आमतौर पर हाइड्रोसील में लक्षण नहीं दिखते हैं। हालांकि, निम्‍न स्थितियों में इसकी जरूरत पड़ सकती है -

  • एक साल से अधिक उम्र के शिशु - एक साल की उम्र तक बिना किसी इलाज के जन्‍मजात हाइड्रोसील अपने आप ठीक हो जाता है। हालांकि, अगर इसके बाद भी सूजन बनी हुई है या हाइड्रोसील का साइज बढ़ रहा है तो इसे निकालने की जरूरत पड़ती है।
  • वयस्‍कों में निम्‍न लक्षण दिखने पर सर्जरी करवानी पड़ती है -
    • सूजन का असामान्‍य साइज होने से हाइड्रोसील का अजीब दिखना
    • अचानक से सूजन बढ़ जाना
    • हाइड्रोसील में दर्द और छूने पर दर्द होना जो कि "टेस्टिकुलर टॉरशन" (अंडकोष को ब्लड सप्लाई रुकना) का संकेत हो सकता है। यह मेडिकल एमेंरजेंसी की स्थिति होती है।
    • सूजन में इंफेक्‍शन होना जिसमें बुखार, छूने पर दर्द और सूजन के आसपास गरमाई होना (पस जमा होने के कारण)।
    • अंडकोष की थैली में अल्‍सर होना। यौन अंग में इंफेक्‍शन या ट्रामा की वजह से पस निकलना या ब्‍लीडिंग होना।

हाइड्रोसील सर्जरी कब नहीं करवानी चाहिए - Hydrocelectomy kab nahi karvate

इस सर्जरी के बहुत कम जोखिम हैं। हालांकि, पहले से कोई बीमारी है जैसे कि डायबिटीज या हार्ट की बीमारी है, तो सर्जरी के बाद एनेस्‍थीसिया से जुड़े जोखिम और इंफेक्‍शन हो सकते हैं। इसलिए सर्जरी से पहले इन स्थितियों को कंट्रोल में करना जरूरी है।

शिशु में हाइड्रोसील होने की वजह से प्रीमैच्‍योर डिलीवरी हो सकती है। इस सर्जरी को चुनने से पहले, बच्चे में अन्य स्थितियों की जांच करके सर्जरी के जोखिमों के बारे में जानना चाहिए।

सर्जरी से पहले क्‍या तैयारी की जाती है - Hydrocelectomy se pahle ki taiyari

मरीज की उम्र के हिसाब से यह सर्जरी जनरल सर्जन या पीडियाट्रिक सर्जन द्वारा की जाती है। सर्जन मरीज या उसके माता-पिता को सर्जरी से जुड़े जोखिमों के बारे में बताएंगे।

मरीज से लक्षणों, शिशु के मामले में जन्‍म की जानकारी, पहले से कोई बीमारी है और कौन-सी दवाएं लेते हैं, इस बारे में पूछा जाता है। शिशु में पैरेंट्स ये सब जानकारी देते हैं।

हाइड्रोसील का पता लगाने के लिए शारीरिक जांच और अन्‍य टेस्‍ट किए जाते हैं। सर्जरी से पहले निम्‍न जांच की जाती हैं :

इस सर्जरी के लिए मरीज सुबह अस्‍पताल में भर्ती होता है और उसे शाम को छुट्टी मिल जाती है। सर्जरी के बाद घर ले जाने के लिए कोई दोस्‍त या परिवार का सदस्‍य होना चाहिए।

सर्जरी से एक दिन पहले कुछ भी खाने-पीने से मना किया जाता है। शिशु में सर्जरी से कम से कम चार घंटे पहले कुछ भी खाने-पीने से मना किया जाता है।

सर्जरी वाले दिन मरीज को सभी रिपोर्टों और कागजों के साथ अस्‍पताल आना होता है। मरीज को हास्‍पीटल गाउन पहनाई जाती है और उसका अंतिम रिव्‍यू करने के बाद नर्स सर्जरी वाली जगह को साफ करती है।

सर्जरी का तरीका और जोखिम बताने के बाद मरीज से उसकी सहमति के लिए का फॉर्म साइन करवाया जाता है। सर्जरी वाली जगह से बाल साफ किए जाते हैं। इसके बाद मरीज को ऑपरेशन थिएटर ले जाया जाता है।

हाइड्रोसील सर्जरी कैसे की जाती है - Hydrocele surgery karne ka tarika

मरीज को ऑपरेशन टेबल पर पीठ के बल लिटा दिया जाता है। हार्ट रेट, बीपी आदि ट्रैक करने के लिए बॉडी से मॉनिटर को अटैच कर दिया जाता है। सर्जरी के लिए जरूरी दवाएं देने के लिए एक आईवी कैनुला लगाया जाता है।

ऑपरेशन के दौरान मरीज को बेहोश करने के लिए जनरल एनेस्‍थीसिया दिया जाता है। मरीज की उम्र के हिसाब से निम्‍न में से किसी एक तरीके से यह सर्जरी की जाती है :

  • शिशुओं में : हाइड्रोसील का कारण पता लगाना, जो कि आमतौर पर पेट की दीवार के कमजोर होने, इसमें विकार होने की वजह से होता है। जहां पर ग्रोइन मुड़ता है, वहां पर सर्जन एक छोटा-सा कट लगाकर हाइड्रोसील में मौजूद फ्लूइड को निकाल लेते हैं। इसके बाद सर्जन हाइड्रोसील की थैली को नकाल या पेट की विकृत दीवार के जरिए उसे वापिस पेट में कर देते हैं। फिर सर्जन टांकों से पेट की दीवार को मजबूती देते हैं।
  • वयस्‍कों में : अंडकोष की थैली पर एक कट लगाकर हाइड्रोसील के फ्लूइड को निकाला जाता है। इसके बाद हाइड्रोसील को काट दिया जाता है। कुछ मामलों में हर्निया भी मौजूद हो सकता है इसलिए हर्निरूा रिपेयर सर्जरी भी की जा सकती है। फिर कट को टांकों की मदद से बंद कर दिया जाता है। बड़े हाइड्रोसील में कभी-कभी ड्रेन लगाया जा सकता है जिससे अंडकोष की थैली में फ्लूइड जमा न हो।

इसका ज्‍यादा मॉडर्न तरीका लेप्रोस्‍कोपी है जिसमें छोटे कट लगाए जाते हैं और सर्जरी करने के लिए कैमरा लगे विशेष उपकरण को अंदर डाला जाता है।

इस पूरी प्रक्रिया में आमतौर पर 30 मिनट का समय लगता है। टांके लगाने के बाद ऑपरेशन वाली जगह पर पट्टी कर दी जाती है ताकि ब्‍लीडिंग न हो।

इस सर्जरी से बहुत कम ही कोई जटिलता या समस्‍या आती है। इसके कुछ जोखिम हैं :

  • बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होना
  • स्‍पर्मेटिक कॉर्ड, टेस्टिकुलर आर्टरी को चोट लगना
  • वृषण को चोट लगना
  • इंफेक्‍शन
  • हर्निया होना
  • बार-बार हाइड्रोसील होना
  • एनेस्‍थीसिया की वजह से परेशानी होना

सर्जरी के बाद मरीज को ऑपरेशन थिएटर से लाकर कमरे में कुछ घंटों तक ऑब्‍जर्वेशन में रखा जाता है। दर्द को कम करने के लिए दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं। जलन या सूजन को कम करने के लिए ठंडी सिकाई की जा सकती है।

छुट्टी देने से पहले डॉक्‍टर डिस्‍चार्ज के पेपर बनाते हैं जिसमें दवाएं और घाव की देखभाल करने के बारे में बताया जाता है, जैसे कि :

  • पहले से कोई बीमारी है तो उसकी दवा शुरू करनी है या नहीं
  • इंफेक्‍शन और दर्द से बचने के लिए एंटीबायोटिक और दर्द निवारक दवाएं। बच्‍चों को सिरप के रूप में दवा दी जाती है।
  • दो दिन के बाद पट्टी हटा दी जाती है।
  • सर्जरी के बाद सूजन को कम करने के लिए कुछ दिन तक ठंडी सिकाई कर सकते हैं लेकिन एक बार में 15 मिनट से ज्‍यादा न करें।
  • चोट से बचने के लिए जॉकस्‍ट्रैप पहनने की सलाह दी जा सकती है।
  • नहाते समय घाव को अच्‍छे से साफकरें और फिर उसे सुखा लें।
  • दो दिन के बाद पट्टी खुलने पर मरीज रोजमर्रा के काम कर सकता है।
  • कोई मुश्किल काम जैसे कि ऐरोबिक एक्‍सरसाइज या वेट ट्रेनिंग कम से कम दो हफ्ते तक ना करें।
  • दो हफ्ते तक सेक्‍स न करें।
  • घाव के पूरी तरह से भरने तक कोई क्रीम या पाउडर उस हिस्‍से पर न लगाएं।
  • टॉयलेट इस्‍तेमाल करने के बाद यौन अंग को साफ करें और सुखाएं ताकि इंफेक्‍शन न हो। शिशुओं में मल या पेशाब से संक्रमण से बचने के लिए डायपर जल्‍दी बदलते रहें।

निम्‍न लक्षण दिखने या बने रहने पर डॉक्‍टर को बताएं :

  • घाव से बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होने पर
  • घाव से पस निकलने पर
  • घाव वाली जगह पर बहुत दर्द और छूने पर दर्द होना
  • अचानक से घाव वाली जगह पर सूजन होना
  • बुखार
  • घाव वाली जगह पर अल्‍सर होना

घाव को पूरी तरह से भरने में दो हफ्ते लगते हैं। पहला फॉलो-अप दो हफ्ते के बाद होना, तब टांके और अगर ड्रेन है तो उसे निकाल दिया जाएगा। इसके बाद मरीज की स्थि‍ति के आधार पर फॉलो-अप के लिए आना होगा।

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हाइड्रोसील में लक्षण दिखने और कॉ‍स्‍मेटिक असहजता होने पर इलाज के तौर पर हाइड्रोसीलेक्‍टोमी नाम की सर्जरी की जाती है। यह छोटी-सी सर्जरी है और इसकी जटिलताएं भी कम होती हैं। इसके नए तरीके आ गए हैं जैसे कि लेप्रोस्‍कोपी में रिकवरी करने में कम समय लगता है। दो दिन के बाद ही मरीज रोजमर्रा के काम शुरू कर सकता है। सर्जरी की सफलता की दर अच्‍छी होने के बावजूद समस्‍या दोबारा हो जाती है।

Dr. Purushottam Sah

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Dr. Anurag Kumar

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