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हेलर मायोटमी एक सर्जिकल प्रोसीजर है, जिसे एकेलेसिआ (Achalasia) का इलाज करने के लिए किया जाता है। एकेलेसिआ एक गंभीर रोग है, जिसमें व्यक्ति को पेय व खाद्य पदार्थों को निगलने में कठिनाई होने लगती है। एकेलेसिआ के कारण इसोफेगस (खाने की नली) के नीचे वाले स्फिंक्टर में अकड़न आ जाती है। स्फिंक्टर मांसपेशियों से बनी छल्ले-नुमा संरचना है, जो भोजन नली और पेट को आपस में जोड़ती है। इस स्फिंक्टर का काम पेट से भोजन सामग्री को वापस भोजन नली में आने से रोकना होता है। हालांकि, यदि इस स्फिंक्टर में अकड़न आ जाती है, तो यह खुलना बंद कर देता है और परिणामस्वरूप भोजन पेट में ही नहीं जा पाता है।

इस सर्जरी को आमतौर पर लेप्रोस्कोपिक प्रोसीजर की मदद से किया जाता है, जिसमें पेट में कई चीरे लगाए जाते हैं। यदि लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया की मदद से इस समस्या का इलाज नहीं किया जा सकता है, तो इसे ओपन सर्जरी के रूप में किया जाता है, जिसमें पेट के बीच में एक बड़ा चीरा लगाना पड़ता है। सर्जरी के बाद आपको एक से सात दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ सकता है, जो आपके स्वास्थ्य और स्थिति की गंभीरता पर निर्भर करता है। सर्जरी होने के तीन से चार हफ्तों के बाद आप अपनी रोजाना की सामान्य गतिविधियां शुरू कर सकते हैं।

(और पढे़ं - लेप्रोस्कोपी क्या है)

  1. हेलर मायोटमी क्या है - What is Heller Myotomy in Hindi
  2. हेलर मायोटमी किसलिए की जाती है - Why is Heller Myotomy done in Hindi
  3. हेलर मायोटमी से पहले - Before Heller Myotomy in Hindi
  4. हेलर मायोटमी के दौरान - During Heller Myotomy in Hindi
  5. हेलर मायोटमी के बाद - After Heller Myotomy in Hindi
  6. हेलर मायोटमी की जटिलताएं - Complications of Heller Myotomy in Hindi
हेलर मायोटमी के डॉक्टर

हेलर मायोटमी क्या है?

हेलर मायोटमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसे एकेलेसिआ नामक रोग का इलाज करने के लिए किया जाता है। एकेलेसिआ भोजन नली में होने वाला एक विकार है, जिससे निगलने में कठिनाई होने लगती है। भोजन नली को मेडिकल भाषा में इसोफेगस कहा जाता है, यह मांसपेशियों से बनी एक नली होती है जो भोजन को गले से पेट तक पहुंचाती है। भोजन नली के निचले सिरे और पेट के ऊपरी सिरे पर मांसपेशियों से बनी एक छल्ले जैसी संरचना होती है, जिसे स्फिंक्टर कहा जाता है। स्फिंक्टर एक प्रकार का वाल्व है, जो पेट में मौजूद भोजन व अन्य सामग्री को वापस भोजन नली में आने से रोकता है। सामान्य तौर पर जब आप भोजन को निगलते हैं, तो यह स्फिंक्टर ढीला पड़ जाता है और भोजन पेट में चला जाता है और फिर तुरंत बंद हो जाता है, ताकि भोजन वापस न आए।

(और पढ़ें - भोजन नली में कैंडिडा संक्रमण का इलाज)

हालांकि, एकेलेसिआ से ग्रस्त लोगों का स्फिंक्टर पूरी तरह से खुल नहीं पाता है और परिणामस्वरूप भोजन इसोफेगस में ही फंस जाता है या फिर वापस मुंह में आ जाता है। थोड़ा सा पानी पीने के बाद इससे होने वाली निगलने में कठिनाई की समस्या को ठीक किया जा सकता है।

एकेलेसिआ के सटीक कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि स्फिंक्टर की कोशिकाओं में किसी प्रकार की क्षति होने के कारण भी एकेलेसिआ की समस्या हो सकती है।

हेलर मायोटमी की मदद से इसोफेगस के निचले हिस्से में मौजूद स्फिंक्टर की मांसपेशियों और फाइबर को काट दिया जाता है, जिससे स्फिंक्टर ढीला पड़ जाता है। ऐसा करके एकेलेसिआ से ग्रस्त लोगों के भोजन निगलने की प्रक्रिया में काफी सुधार हो जाता है।

इस सर्जिकल प्रक्रिया को सबसे पहले “अर्नेस्ट हेलर” ने 1913 में किया था और मांसपेशियों को काटने की सर्जरी को मायोटमी कहा जाता है। इस प्रकार इस सर्जिकल प्रक्रिया का नाम हेलर मायोटमी पड़ा।

(और पढ़ें - मांसपेशियों में कमजोरी के लक्षण)

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हेलर मायोटमी क्यों की जाती है?

यदि आपको एकेलेसिआ के निम्न लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो डॉक्टर हेलर मायोटमी सर्जरी करने पर विचार कर सकते हैं -

हालांकि, सभी लोगों में एकेलेसिआ के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। उदाहरण के लिए इसके कुछ रोगियों में निगलने में कठिनाई के लक्षण पैदा होने में लगभग 2 साल का समय लग जाता है। यदि एकेलेसिआ को बिना इलाज किए छोड़ दिया जाए, तो यह भोजन नली के कैंसर का कारण बन सकता है।

एकेलेसिआ की पुष्टि करने के लिए निम्न टेस्ट किए जा सकते हैं -

  • इसोफेजियल मेनोमेट्री स्टडी -
    इस टेस्ट में नाक के अंदर से भोजन नली में एक विशेष ट्यूब डाली जाती है, जिसकी मदद से भोजन नली और उसके स्फिंक्टर में दबाव की जांच की जाती है।
     
  • बेरियम स्वॉलो टेस्ट -
    यह एक प्रकार का एक्स रे स्कैन है, जिसमें डॉक्टर आपके निगलने के दौरान विशेष जांच करते हैं।
     
  • डायग्नोस्टिक गैस्ट्रोस्कोपी -
    इस टेस्ट में एक लंबी व पतली ट्यूब को मुंह में डालकर भोजन नली तक पहुंचाया जाता है और अंदरूनी स्थिति की जांच की जाती है।

हेलर मायोटमी किसे नहीं करवानी चाहिए?

डॉक्टर आमतौर पर कुछ लोगों को हेलर मायोटमी ना करवाने की सलाह देते हैं, क्योंकि उनको इस सर्जरी से विभिन्न जटिलताएं हो सकती हैं। इसमें निम्न स्थितियों से ग्रस्त लोग शामिल हैं -

(और पढ़ें - धूम्रपान की लत के लक्षण)

सर्जरी से पहले क्या तैयारी करनी चाहिए?

डॉक्टर सर्जरी से पहले आपको कुछ विशेष तैयारियां करने की सलाह दे सकते हैं। हेलर मायोटमी से पहले सर्जन आपसे निम्न के बारे में बात कर सकते हैं -

  • आपके द्वारा ली जाने वाली दवाओं, हर्बल उत्पादों या अन्य किसी सप्लीमेंट्स के बारे में।
  • आप गर्भवती हैं, हो सकती हैं या फिर गर्भ धारण करने की योजना बना रही हैं। (और पढ़ें - गर्भ धारण से बचने के उपाय)
  • आप रक्त को पतला करने वाली कोई दवा या अन्य उत्पाद तो नहीं ले रहे हैं जैसे एस्पिरिन, आइबूप्रोफेन या वार्फेरिन। यदि ले रहे हैं, तो कुछ दिन के लिए उनका सेवन बंद करने की सलाह दी जा सकती है।
  • यदि आप धूम्रपान या शराब का सेवन करते हैं, तो उन्हें छोड़ने की सलाह दी जा सकती है।
  • आपको कुछ विशेष प्रकार की दवाएं दी जाती हैं, जिन्हें आपको सर्जरी वाले दिन लेना होता है। 

सर्जरी वाले दिन आपको खाली पेट रहने की सलाह दी जा सकती है। यदि आप सर्जरी वाले दिन कुछ खा लेते हैं, तो एनेस्थीसिया दवा से आपको कुछ समस्याएं हो सकती हैं, जैसे -

सर्जरी के लिए अस्पताल जाते समय निम्न बातों का ध्यान रखें -

  • ढीले-ढाले और आरामदायक कपड़े पहनें
  • किसी प्रकार का आभूषण, नेल पॉलिश, अन्य कोई मेकअप और नकली दांत आदि न लगाएं
  • अपने साथ किसी करीबी रिश्तेदार या मित्र को ले जाएं, जो सर्जरी के बाद जिम्मेदारी के साथ आपको घर ले जाएं

(और पढ़ें - शराब की लत के लक्षण)

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हेलर मायोटमी कैसे की जाती है?

अस्पताल में आने के बाद स्टाफ आपको हॉस्पिटल गाउन पहनने के लिए देते हैं और फिर आपको ऑपरेशन थिएटर में ले जाया जाता है। हेलर मायोटमी सर्जरी के दौरान लगातार आपके ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट और ऑक्सीजन के स्तर की जांच की जाती है। आपकी बांह या हाथ की नस में सुई लगाकर उसको इंट्रावेनस लाइन (IV) से जोड़ दिया जाता है। सर्जरी शुरू करने से पहले आपको एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया जाता है। सर्जरी के दौरान आवश्यकता के अनुसार कई अलग-अलग प्रकार की एनेस्थीसिया का इस्तेमाल किया जाता है, जो इस प्रकार हैं -

  • जनरल एनेस्थीसिया -
    इससे आपको सर्जरी के दौरान गहरी नींद आ जाएगी और आपको कुछ भी महसूस नहीं होगा। इसलिए जनरल एनेस्थीसिया का इस्तेमाल सर्जरी के दौरान ही किया जाता है।
     
  • रीजनल एनेस्थीसिया -
    इस के प्रभाव से शरीर के किसी बड़े हिस्से को पूरी तरह से सुन्न कर दिया जाता है, जबकि आप जागते रहते हैं। रीजनल एनेस्थीसिया को कई बार जनरल एनेस्थीसिया के साथ संयोजन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
     
  • लोकल एनेस्थीसिया -
    इससे शरीर के एक छोटे से हिस्से को ही सुन्न किया जाता है और आप इस दौरान जागते रहते हैं। लोकल एनेस्थीसिया का इंजेक्शन सर्जरी वाली जगह पर लगा दिया जाता है, ताकि आपको दर्द महसूस न हो। (और पढ़ें - इंजेक्शन लगाने का तरीका)

हेलर मायोटमी को दो अलग-अलग तरीकों से किया जाता है, जिन्हें ओपन हेलर मायोटमी और लेप्रोस्कोपिक हेलर मायोटमी कहा जाता है। आमतौर पर लेप्रोस्कोपिक हेलर मायोटमी का इस्तेमाल अधिक किया जाता है, क्योंकि इसमें सर्जरी के बाद दर्द व अन्य जटिलताएं कम होती हैं और इसके घाव भी जल्दी ठीक हो जाते हैं। हालांकि, यदि सर्जरी को किसी कारण से लेप्रोस्कोपिक विधि से नहीं किया जा सकता है, तो ओपन हेलर मायोटमी की जाती है। ओपन सर्जरी से त्वचा पर बड़ा निशान (स्कार) रह जाता है और इसमें सर्जरी के बाद लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है।

लेप्रोस्कोपिक हेलर मायोटमी में त्वचा में कई छोटे-छोटे छिद्र किए जाते हैं और उनमें से कैमरा, लाइट व अन्य कई उपकरण शरीर के अंदर डाले जाते हैं। कैमरा की मदद से सर्जन शरीर की अंदरूनी संरचना को टीवी स्क्रीन पर देख पाते हैं। लेप्रोस्कोपिक सर्जरी को आमतौर पर निम्न चरणों के अनुसार किया जाता है -

  • सबसे पहले एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया जाता है।
  • इसके बाद पेट में नाभि के ठीक ऊपर लगभग पांच छिद्र किए जाते हैं।
  • सर्जन पेट को फुलाने के लिए उसमें कार्बन डाइऑक्साइड गैस भर देते हैं।
  • पेट फूलने के बाद उस में मौजूद सभी अंग स्पष्ट दिखने लगते हैं और उपकरणों का इस्तेमाल करने में भी आसानी रहती है।
  • इसोफेगस तक पहुंचने के बाद स्फिंक्टर की कठोर बनी हुई मांसपेशियों में चीरा लगाया जाता है।
  • हेलर मायोटमी सर्जरी में स्फिंक्टर को ढीला बना दिया जाता है और परिणामस्वरूप पेट की सामग्री भोजन नली में जाने (एसिड रिफ्लक्स) का खतरा बढ़ जाता है। इसके लिए डॉक्टर इस सर्जरी के बाद फंडोप्लीकेशन (Fundoplication) नामक सर्जरी कर सकते हैं, जो एसिड रिफ्लक्स होने से बचाती है।
  • यदि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी किसी कारण से नहीं की जा सकती है, तो ओपन हेलर मायोटमी सर्जरी की जाती है। ओपन हेलर मायोटमी में पेट के बीच में एक बड़ा चीरा लगाने की आवश्यकता पड़ती है।

लेप्रोस्कोपिक हेलर मायोटमी सर्जरी में आमतौर पर सिर्फ एक या दो दिनों के लिए ही अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है, जबकि ओपन सर्जरी में लगभग एक हफ्ते तक भर्ती रहना पड़ सकता है। सर्जरी के बाद मरीज को रिकवरी रूम में भेज दिया जाएगा, जहां पर निम्न प्रक्रियाएं की जाएंगी -

  • बीपी, ऑक्सीजन स्तर व अन्य शारीरिक संकेतों पर लगातार नजर रखी जाएगी
  • ड्रिप की मदद से विशेष द्रव दिए जाएंगे।
  • डॉक्टर दर्द से राहत देने के लिए कुछ दर्द निवारक दवाएं दे सकते हैं, जो डॉक्टर के आदेशों के अनुसार ही लेनी चाहिए।
  • संक्रमण होने से रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जा सकती हैं।
  • इसोफेगस की जांच करने के लिए एक विशेष एक्स रे टेस्ट किया जाता है, जिसे “बेरियम इसोफेग्राम” कहा जाता है।
  • सर्जरी के बाद जब मरीज जाग जाता है, तो उसे पीने के लिए कुछ विशेष तरल दिए जाते हैं। यदि तरल पदार्थ पीने में कोई परेशानी नहीं हो रही है, तो अगले दिन से ही डॉक्टर आपको थोड़ी-थोड़ी मात्रा में नरम खाद्य पदार्थ लेने की सलाह दे सकते हैं।

(और पढ़ें - भोजन नली में कैंडीडा संक्रमण)

हेलर मायोटमी के बाद की देखभाल कैसे की जाती है?

हेलर मायोटमी सर्जरी पूरी होने के बाद सर्जन आपको कुछ विशेष देखभाल करने की सलाह दे सकते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -

  • सर्जरी के बाद शुरुआती दिनों में भोजन को निगलना शायद इतना आसान कार्य न हो, इसलिए आपको थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अच्छे से चबाकर ही निगलना चाहिए जिससे आपकी निगलने की प्रक्रिया में लगातार सुधार होता रहेगा।
  • सर्जरी के बाद लगातार दो हफ्तों तक सिर्फ नरम खाद्य पदार्थ ही खाएं। छह से आठ हफ्तों तक ब्रैड न खाएं।
  • आपको सोडा वाले पेय पदार्थों को स्थायी रूप से छोड़ने को कहा जाएगा।
  • फंडोप्लीकेशन सर्जरी के बाद भी आपको एसिड रिफ्लक्स की समस्या हो सकती है।
  • पूरी तरह से ठीक होने के लिए आपके इसोफेगस को कम से कम छह से आठ महीनों का समय लगता है। हालांकि, छह से आठ हफ्तों के बाद ही आप अपनी सामान्य गतिविधियां शुरू कर सकते हैं।
  • हेलर मायोटमी सर्जरी को यदि लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया से किया गया है, तो उसके तीन से चार दिनों बाद आप गाड़ी चला सकते हैं।

हेलर मायोटमी इसोफेगस से रुकावट को हटाने का काम करता है, जिससे सूजन कम हो जाती है। (और पढ़ें - सूजन कम करने के तरीके)

डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?

यदि आपको हेलर मायोटमी सर्जरी के बाद निम्न में से कोई भी समस्या महसूस हो रही है, तो जल्द से जल्द डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए -

(और पढ़ें - कब्ज दूर करने के घरेलू उपाय)

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हेलर मायोटमी से क्या जोखिम हो सकते हैं?

हेलर मायोटमी सर्जरी से निम्न जोखिम व जटिलताएं हो सकती हैं -

  • इसोफेगस की अंदरूनी सतह क्षतिग्रस्त होना
  • सर्जरी वाले घाव में संक्रमण होना
  • सर्जरी के दौरान सप्लीन या अन्य कोई शारीरिक अंग क्षतिग्रस्त हो जाना
  • टांग में रक्त का थक्का बनना जो फेफड़ों तक जा सकता है
  • सर्जरी वाले स्थान पर स्थायी निशान (स्कार) बन जाना
  • सर्जरी में इस्तेमाल की गई चीजों से एलर्जी होना
  • हेलर मायोटमी करने के लिए दी गई एनेस्थीसिया से भी कुछ जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे -
  • कई बार हेलर मायोटमी से पड़ने वाले स्कार को हटाने के लिए या फिर मांसपेशियों के फाइबर क्षतिग्रस्त होने पर उन्हें ठीक करने के लिए अन्य सर्जरी भी करनी पड़ सकती है।

(और पढ़ें - फेफड़ों के रोग का इलाज)

Dr. Paramjeet Singh.

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Dr. Nikhil Bhangale

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