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कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार की कई सर्जिकल प्रक्रियाएं हैं:
इस प्रक्रिया द्वारा कॉलन में स्थित कैंसरग्रस्त ट्यूमर या कोशिकाओं को निकाला जाता है। कैंसरग्रस्त ट्यूमर पूरी तरह निकल चुके हैं और कैंसर की पुनरावृत्ति नहीं होगी, यह सुनिश्चित करने के लिए कॉलन के स्वस्थ हिस्से को भी निकाला जा सकता है। ज़्यादातर स्थितियों में जहाँ कैंसर के विकास पर नियंत्रण रखा जा सकता है, वहां कॉलन का बस एक-चौथाई या एक-तिहाई हिस्सा ही निकाला जाता है।
कोलेक्टॉमी करने के दो तरीके हैं- ओपन सर्जरी (Open Surgery) और लैप्रोस्कोपिक कोलेक्टॉमी (Laparoscopic Colectomy)। ओपन प्रक्रिया में पेट पर एक लम्बा चीरा काटा जाता है। फिर सर्जिकल उपकरणों की मदद से कॉलन को आसपास के ऊतकों से निकला जाता है। सर्जन कॉलन का कुछ हिस्सा (Partial Colectomy; आंशिक कोलेक्टॉमी) या ज़रुरत पड़ने पर पूरे कॉलन को (Total Colectomy; टोटल कोलेक्टॉमी) निकाल देते हैं। मरीज़ों को करीब एक हफ़्तों तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है।
लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया में पेट पर चार से पांच छोटे चीरे काटे जाते हैं जिसके माध्यम से लैप्रोस्कोप (Laparoscope) डाला जाता है। लैप्रोस्कोप एक पतली लचीली ट्यूब है जिससे एक छोटा वीडियो कैमरा जोड़ा जाता है। कैमरे के माध्यम से पेट के अंदरूनी हिस्सों को देखा जा सकेगा। इससे सर्जन को ट्यूमर को देखने में और उसे निकालने में मदद मिलेगी।
लिम्फाडेनेक्टॉमी (Lymphadenectomy) नामक एक प्रकिया का भी प्रयोग किया जा सकता है जिससे अगर कैंसरग्रस्त कोशिकाएं लिम्फ नोड्स तक फ़ैल गयी हैं तो उनको हटाया जा सके। सर्जिकल प्रक्रिया के दौरान पैथोलोजिस्ट (Pathologist; रोग-विज्ञान विशेषज्ञ) मौजूद होता है ताकि उस ही समय माइक्रोस्कोप (Microscope) पर लिम्फ नोड्स को जांचा जा सके और देखा जा सके कि उन पर तो कैंसरग्रस्त कोशिकाओं का फैलाव नहीं हुआ है। इस प्रकार सर्जन प्रक्रिया में जितने संभव हो उतने कैंसरग्रस्त ऊतकों को निकाल पाएंगे। सर्जरी के समाप्त होने पर कॉलन के स्वस्थ कोनों को फिर जोड़ दिया जाता है।
इस सर्जिकल प्रक्रिया द्वारा मलाशय के क्षतिग्रस्त भाग या अगर कैंसर अग्रिम चरण में है तो पूरा मलाशय निकाला जाता है। अगर कैंसर मलाशय के ऊपरी भाग में है तो इसके लिए लो एंटीरियर रिसेक्शन प्रक्रिया (Low Anterior Resection Procedure) का प्रयोग करके कैंसरग्रस्त ट्यूमर को निकाला जाता है और अगर हानिकारक ट्यूमर मलाशय के निचले हिस्से में है तो इसके लिए अब्डॉमिनोपेरिनियल प्रक्रिया (Abdominoperineal Procedure; पेट-सम्बन्धी एक प्रक्रिया) का प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान भी पैथोलोजिस्ट मौजूद होता है।
लो एंटीरियर रिसेक्शन प्रक्रिया से कैंसरग्रस्त ऊतकों को निकालकर बचे हुए मलाशय को सिग्मोइड कॉलन के साथ जोड़ दिया जाता है। इससे अपशिष्ट पदार्थ (Waste Materials) गुदे के ज़रिये शरीर से बाहर निकल जायेंगे।
अब्डॉमिनोपेरिनियल प्रक्रिया में मलाशय के निचले भाग से कैंसरग्रस्त ऊतकों को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में स्फिंक्टर मांसपेशियों (Sphincter Muscles) को भी (आंशिक या पूरी तरह से) निकाला जाता है। अगर स्फिंक्टर मांसपेशियों को निकाला गया है तो, ऑन्कोलॉजिस्ट शरीर से अपशिष्ट पदार्थ निकालने के लिए एक आउटलेट (Outlet; निकास) बनाते हैं।
अगर अब्डॉमिनोपेरिनियल प्रक्रिया के बाद या स्फिंक्टर मांसपेशियों को पूर्ण रूप से निकालने के बाद सर्जन कॉलन और मलाशय के स्वस्थ भाग को जोड़ने में असमर्थ हैं तो इस प्रक्रिया की ज़रुरत पड़ती है। ऐसे में, पेट के निचले हिस्से में स्टोमा (Stoma) नामक एक कृत्रिम खुलाव बनाया जाता है जिससे अपशिष्ट पदार्थ को शरीर से बाहर निकाला जा सकता है। स्टोमा पेट के बाहरी हिस्से पर बनाया जाता है जिससे कॉलन का सेगमेंट जोड़ा जाता है। अपशिष्ट को इकट्ठा करने के लिए स्टोमा के साथ कोलोस्टॉमी बैग (Colostomy Bag) जोड़ा जाता है। यह एक गंध मुक्त बैग है जो डिस्पोजेबल (Disposable; जिसे फेंका जा सके) होता है।
अगर कैंसर अग्रिम चरण में है और किसी अन्य अंग तक नहीं फैला है तो ये प्रक्रिया लाभकारी सिद्ध हुई है। इस प्रक्रिया में सर्जरी के दौरान पेट में मौजूद कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को सीधा कीमोथेरेपी दी जाती है।
यह प्रक्रिया, आम तौर पर, स्टेज I या स्टेज II के कैंसर के उपचार के लिए प्रयोग की जाती है।
कॉलोनोस्कोपी (Colonoscopy) के द्वारा, सर्जन हानिकारक ट्यूमर (स्टेज I या स्टेज II कैंसर के) को निकालते हैं। यह सर्जरी कॉलोनोस्कोप (Colonoscope) द्वारा की जाती है जोकि एक पतली लचीली ट्यूब है जिससे एक लाइट और कैमरा जुड़ा होता है। कैमरा की मदद से ऑन्कोलॉजिस्ट को हानिकारक ट्यूमर की ठीक जगह और यह कितना फैला है जानने में मदद मिलती है। इस सर्जरी से ऊतकों की ज़्यादा टूट - फूट नहीं होती। अगर हानिकारक ट्यूमर को कॉलोनोस्कोप से निकाला जाता है तो इस प्रक्रिया को एंडोस्कोपिक म्यूकोसल रिसेक्शन (Endoscopic Mucosal Resection, EMR) कहा जाता है। यदि प्रक्रिया में पॉलिप निकाला जाता है तो, इसे पॉलीपेक्टॉमी (Polypectomy) कहा जाता है।
सर्जरी के बाद बिना किसी परेशानी के रिकवरी हो इसके लिए ज़रूरी है कि कुछ बातों का ध्यान रखा जाये:
हर प्रक्रिया की तरह इस प्रक्रिया से भी कुछ जोखिम जुड़े हैं। सर्जरी करवाने से पहले आपको इनके बारे में जानकारी रखनी चाहिए:
कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) कॉलन (Colon) और मलाशय (Rectum) दोनों प्रभावित होते हैं। कैंसरग्रस्त ट्यूमर का स्त्रोत कॉलन या मलाशय में से कोई भी हो सकता है। लेकिन अंत में ट्यूमर कॉलन और मलाशय दोनों को ही प्रभावित करता है जिससे कोलोरेक्टल कैंसर होता है। कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार में इस्तेमाल की गई सर्जिकल प्रक्रिया में कैंसरग्रस्त या हानिकारक ट्यूमर को निकाल दिया जाता है। अगर ट्यूमर पूरे कॉलन या मलाशय तक फ़ैल जाए, तो ऐसे में प्रभावित अंग को निकालना पड़ता है जिससे मेटास्टासिस (Metastasis; कैंसर का फैलना) को रोका जा सके।
कभी कभी, ट्यूमर के आसपास के कॉलन या मलाशय के स्वस्थ भाग को भी हटा दिया जाता है जिससे कैंसर की पुनरावृत्ति की सम्भावना को कम किया जा सके। आसपास के लिम्फ नोड्स को भी निकाला जा सकता है और कॉलन या मलाशय के अंत के कोनों को आँतों से जोड़ दिया जाता है। सर्जरी कोलोरेक्टल कैंसर के लिए मुख्य उपचार है। सर्जरी का तरीका कैंसर के स्टेज पर निर्भर करता है।
सर्जरी ऑन्कोलॉजिस्ट (Oncologist; ट्यूमर का निदान और उपचार करने वाले विशेषज्ञ) को सबसे आसान तरीके से ट्यूमर को निकालने में मदद करती है। यह हानिकारक ट्यूमर का उपचार करने के और कोलोरेक्टल कैंसर की पुनरावृत्ति को रोकने के सबसे विश्वसनीय तरीकों में से एक है। कैंसर की शुरूआती स्टेज में भी यह प्रक्रिया सबसे ज़्यादा सहायक सिद्ध हुई है हालांकि अगर कैंसर अग्रिम चरण पर है तो सर्जरी के साथ अन्य तकनीकें जैसे कीमोथेरेपी (Chemotherapy) या विकिरण चिकित्सा (Radiation Therapy) का भी प्रयोग किया जा सकता है।
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:
इन सभी के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लिंक पर जाएँ - सर्जरी से पहले की तैयारी