प्रत्‍येक वर्ष लाखों लोगों को प्रभावित करने वाला मूत्र मार्ग संक्रमण (यूटीआई) सबसे सामान्‍य बैक्‍टीरियल संक्रमणों में से एक है। मूत्र मार्ग में अनेक रोगजनक सूक्ष्‍मजीवों के पनपने के कारण ये इंफेक्‍शन होता है और इसका असर उन अंगों के सामान्‍य कार्य पर पड़ता है जो शरीर से पेशाब को बाहर निकालने में मदद करते हैं जैसे कि मूत्रमार्ग, किडनी, मूत्राशय और मूत्रवाहिनी। यूटीआई की समस्‍या पुरुषों से ज्‍यादा महिलाओं में देखी जाती है।

आयुर्वेद के अनुसार यूटीआई के संकेत और संक्रमण मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में दिक्‍कत) से काफी मिलते-जुलते हैं। मूत्रकृच्छ के सामान्‍य लक्षणों में बार-बार पेशाब आना और पेशाब में जलन एवं दर्द महसूस होना शामिल है। यूटीआई के आयुर्वेदिक इलाज में आमलकी (आंवला), गोक्षुरा और कंटकारी (छोटी कटेरी) जैसी जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल चंद्रप्रभा वटी, एलादि चूर्ण, प्रवाल भस्‍म और तारकेश्‍वर रस के यौगिक मिश्रण के साथ किया जाता है।

यूटीआई के इलाज में बस्‍ती (पेल्विस) हिस्‍से में अनुवासन बस्‍ती और ताप बस्‍ती (गर्म सामग्रियों से पसीना लाने की विधि) का इस्‍तेमाल किया जाता है। आहार में कुछ बदलाव कर जैसे कि पुराने चावल, तक्र (छाछ), ठंडे पानी का सेवन एवं शराब, अदरक और सरसों से दूर रह कर यूटीआई से राहत पाने में मदद मिल सकती है। 

(और पढ़ें - शराब के नुकसान क्या है)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से यूरिन इन्फेक्शन - Ayurveda ke anusar Urine Infection
  2. यूरिन इन्फेक्शन का आयुर्वेदिक इलाज - Urine Infection ka ayurvedic ilaj
  3. यूरिन इन्फेक्शन की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - UTI ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार मूत्र मार्ग में संक्रमण होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar UTI me kya kare kya na kare
  5. यूरिन इन्फेक्शन के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - UTI ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. मूत्र मार्ग में संक्रमण की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Urine Infection ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. यूरिन इन्फेक्शन की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - UTI ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
यूरिन इन्फेक्शन की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

चरक के अनुसार, दोष और धातु के आधार पर यूटीआई के निम्‍न आठ प्रकार हैं:

  • वातज (वात के खराब होने के कारण)
  • पित्तज (पित्त के खराब होने के कारण)
  • कफज (कफ के खराब होने के कारण)
  • सन्निपातज (त्रिदोष के खराब होने के कारण)
  • रक्‍तज (रक्‍त धातु के खराब होने के कारण)
  • शुक्रज (शुक्र धातु के खराब होने के कारण)
  • अश्‍मारी (मूत्राशय की पथरी के कारण)
  • शर्कराज (शुगर के बढ़ने के कारण)

आयुर्वेद के अनुसार अनुप मम्‍सा (दलदली जगह पर पशु के मांस से बना शोरबा), रुक्ष माद्य (सूखे मादक पेय पदार्थ), अत्‍यधिक नमक, मसालेदार और खट्टी चीजें, मत्‍स्‍य (मछली), अजीर्ण भोजन (पहले खाए गए भोजन के पचे बिना भोजन करना) और ज्‍यादा खाने, पानी पीने एवं सेक्‍स के दौरान पेशाब रोकने के कारण यूटीआई हो सकता है।

(और पढ़ें - सेक्स कब और कितनी बार करें)

त्रिदोष के खराब होने और अग्निमांद्य (पाचन अग्नि के कम होने) होने पर शरीर में अमा (विषाक्‍त पदार्थ) बनने लगता है। इस अमा के खराब दोष के साथ मिलने पर यूटीआई के लक्षण सामने आने लगते हैं जिसमें श्‍वेत, स्निग्ध और पिछिला मूत्र (पेशाब में ल्‍यूकोसाइट्स), मूत्रेंद्रिय और बस्‍ती गुरुत्‍व (मूत्र प्रणाली में भारीपन), पीतमूत्र (पीले रंग का पेशाब आना) और पेशाब के दौरान जलन महसूस होना शामिल है।  

(और पढ़ें - पेशाब में दर्द और जलन के घरेलू उपाय)

अपान वात (शरीर की निचली गति को नियंत्रित करने वाला वात) का खराब होना भी मूत्रकृच्छ्र के कारणों में से एक है। शूल (दर्द), कृच्‍छरत (पेशाब कम या ज्यादा आना) और बार-बार पेशाब करने की इच्‍छा होना लेकिन पेशाब कम आना, आदि मूत्रकृच्छ्र के लक्षण हैं। 

(और पढ़ें - पेशाब कम आने के कारण)

Women Health Supplements
₹719  ₹799  10% छूट
खरीदें
  • बस्‍ती (एनिमा)
    • बस्‍ती कर्म में हर्बल काढ़े और तेल से बना आयुर्वे‍दिक एनिमा दिया जाता है।
    • ये चिकित्‍सा बड़ी आंत और मलाशय की सफाई में लाभकारी है।
    • तेलों के मिश्रण से बने औषधीय काढ़े का प्रयोग बस्‍ती कर्म के लिए किया जाता है। इसमें सिर्फ एक तेल का इस्‍तेमाल नहीं किया जाता है।
    • रोग की स्थिति के आधार पर ही एनिमा का मिश्रण तैयार किया जाता है। एनिमा का इस्तेमाल फैट को घटाने और शरीर से अमा को बाहर निकालने के लिए जाता है। (और पढ़ें - फैट घटाने के तरीके)
    • निरुह बस्‍ती में दशमूल क्‍वाथ के काढ़े, अनुवासन बस्‍ती में तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है और यूटीआई के उपचार के लिए उत्तर बस्‍ती एक सामान्‍य चिकित्‍सा है।
    • ये उपचार डिस्यूरिया ( पेशाब में दर्द व जलन) और पेशाब में किसी भी प्रकार की रुकावट से राहत दिलाते हैं।
       
  • स्‍वेदन
    • स्‍वेदन चिकित्‍सा में विभिन्‍न प्रक्रियाओं से पसीना लाया जाता है।
    • यह चिकित्सा शरीर के विभिन्न भागों में फैले विषाक्त पदार्थों को तरल में बदलने का काम करती है। इसके बाद ये विषाक्‍त पदार्थ पाचन नली के द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
    • स्‍वेदन शरीर में भारीपन और अकड़न को कम करती है। लगातार ठंड महसूस होने के मामले में भी ये चिकित्‍सा मददगार है। (और पढ़ें - ठंड लगने का उपचार)
    • यूटीआई के इलाज के लिए बस्‍ती वाले हिस्‍से में अवगाह स्‍वेद (सिट्ज बाथ) और ताप स्‍वेद (सिकाई) लाभकारी होती है।
    • स्‍नेहपान (घी या तेल पीना) में भोजन से पहले घृत (क्‍लैरिफाइड मक्‍खन) दिया जाता है। स्‍नेहपान से पहले तेल से कटि (कमर), पार्श्‍व (पसलियों और कूल्‍हों के बीच वाला हिस्‍सा), उदर (पेट) और पंक्षण (पेट और जांघ के बीच का भाग) पर मालिश की जाती है। यूटीआई से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में इससे वात अनुलोमन (वात को नियंत्रित करना) में सुधार आता है। (और पढ़ें - मालिश करने की विधि)
       
  • लेप
    • औषधीय जड़ी बूटियों और तेल से बने गाढ़े पेस्‍ट का इस्‍तेमाल लेप कर्म में किया जाता है। इसमें लेप को पूरे शरीर या प्रभावित हिस्‍से पर सूजन को कम करने के लिए किया जाता है।
    • विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालने, दोष को साफ करने और सौंदर्य को निखारने के लिए लेप का इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - सौंदर्य निखारने के नुस्खे)
    • यूटीआई के इलाज के लिए नारासर (अमोनियम क्‍लोराइड) पाउडर को मूत्राशय वाले हिस्‍से पर लगाया जाता है। इसके बाद इस जगह पर समुद्रीय जल या शैवाल के पानी में भीगे हुए कपड़े को रखा जाता है।
    • यवक्षार या सूर्यक्षार पाउडर (जड़ी बूटियों की राख से बना एल्‍केलाइन मिश्रण) को भी यूटीआई के इलाज के लिए मूत्राशय पर लगाया जाता है। इसके बाद इस जगह पर गीले कपड़े को रखा जाता है।

मूत्र मार्ग में संक्रमण के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • गोक्षुरा
    • गोक्षुरा में ऊर्जादायक, दर्द निवारक, नसों को राहत देने वाले और कामोत्तेजक (लिबिडो बढ़ाने वाला) गुण मौजूद हैं। (और पढ़ें - कामेच्छा बढ़ाने के उपाय)
    • विषाक्‍त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने के लिए इस जड़ी बूटी को जाना जाता है और बवासीर, किडनी में बहुत ज्‍यादा सूजन, एडिमा, नसों में दर्द एवं नपुंसकता के इलाज में लाभकारी है।
    • गोक्षुरा के चिकित्‍सकीय प्रभाव जननमूत्रीय पथ से संबंधित समस्‍याओं जैसे कि यूटीआई के इलाज में लाभकारी हैं।
    • इसे पुनर्नवा के साथ लेने पर किडनी के कार्य में सुधार आता है।
    • यवक्षार रस के साथ गोक्षुरा पाउडर या फिर इसे डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • पुनर्नवा
    • पुनर्नवा स्‍वाद में कड़वी होती है जोकि परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है।
    • गुर्दे की पथरी के इलाज में प्रमुख जड़ी बूटी के रूप में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। ये अस्‍थमा, पीलिया, बवासीर, त्‍वचा और नेत्र रोगों एवं ह्रदय से संबंधित समस्‍याओं के इलाज में भी उपयोगी है। (और पढ़ें - किडनी स्टोन का आयुर्वेदिक इलाज)
    • पुनर्नवा में मूत्रवर्द्धक गुण मौजूद होते हैं जो कि यूटीआई के मामले में संक्रमित बैक्‍ट‍ीरिया को शरीर से बाहर निकालने में लाभकारी है।
    • पुनर्नवा जड़ का काढ़ा सूजन को कम करने में मदद करता है।
    • आप पुनर्नवा को काढ़े, रस, अर्क या चीनी/तेल/पानी/शहद के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • शिलाजीत
    • वात, पित्त और कफ दोष के खराब होने की स्थिति में शिलाजीत शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्‍ति को बढ़ाती है।
    • इसमें ऊर्जादायक, रोगाणुरोधक और मूत्रवर्द्धक गुण होते हैं।
    • शिलाजीत गुर्दे की पथरी, मासिक धर्म से सम्बंधित विकार, डिस्यूरिया, सूजन और मोटापे के इलाज में मदद करती है। (और पढ़ें - मोटापे के लिए योग)
    • ये जड़ी बूटी वात टॉनिक (शक्‍तिवर्द्धक) के रूप में कार्य करती है और वात के खराब होने के कारण हुए यूटीआई के इलाज में असरकारी है।
    • आप शिलाजीत पाउड़र को दूध के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

      Urjas शिलाजीत कैप्सूल, शुद्धता और प्राकृतिकता का प्रतीक है, जो आपको स्वस्थ और ऊर्जावान जीवन की दिशा में मदद करता है। इसमें मौजूद शिलाजीत का सही मात्रा में सेवन करने से आप अपनी सेहत को बनाए रख सकते हैं और अच्छा जीवन जी सकते हैं।
       
  • आमलकी
    • आमलकी में शक्‍तिवर्द्धक, ऊर्जादायक, ब्‍लीडिंग रोकने और पोषण देने वाले गुण मौजूद हैं। (और पढ़ें - ब्लीडिंग रोकने का तरीका)
    • ये पेशाब से संबंधित समस्‍याओं का इलाज करने में उपयोगी है एवं ये यूटीआई की समस्या को कम करने में मदद कर सकती है। पेशाब के दौरान होने वाले दर्द और खराब पित्त के कारण हुए यूटीआई के इलाज में आमलकी लाभकारी है क्‍योंकि इसमें पित्त को साफ करने वाले गुण होते हैं।
    • ये जड़ी बूटी रक्‍त प्रवाह को बेहतर करती है और कब्‍ज, बुखार, कमजोरी एवं पेट में सूजन को कम करती है। (और पढ़ें - ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के उपाय)
    • आप कैंडी, काढ़े, पाउडर या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार आमलकी ले सकते हैं।
       
  • कंटकारी
    • कंटकारी का स्‍वाद कटु (तीखा) और तिक्‍त (कड़वा) होता है।
    • इसमें रुक्ष (सूखे) और लघु (हल्‍के) गुण होते हैं।
    • कंटकारी में दीपन (भूख को बढ़ाने), पाचन, शोथहर (सूजन को कम) और कंथ्‍य (गले के लिए लाभकारी) गुण मौजूद होते हैं। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने के लिए क्या करें)
    • इसमें विषाक्‍त पदार्थों को नष्‍ट करने की भी क्षमता होती  है जो कि इसे दोष से अमा को साफ करके इस दोष को पुन: संतुलित करने में उपयोगी बनाते हैं।
    • ये जड़ी बूटी अरुचि (भूख में अरुचि), बुखार, कास (खांसी), पिनास (सर्दी-जुकाम), श्‍वास (अस्‍थमा) और स्‍वरभेद (गला बैठना) के इलाज में उपयोगी है।(और पढ़ें - बुखार का आयुर्वेदिक इलाज)
    • आप कंटकारी को काढ़े के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

मूत्र मार्ग में संक्रमण के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • चंद्रप्रभा वटी
    • चंद्रप्रभा वटी में 42 सामग्रियां हैं जिनमें त्रिकुट (तीन कषाय – पिप्‍पली, शुंथि [सोंठ], और मारीच [काली मिर्च],) शतावरी, सेंधा नमक, त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण) भृंगराज और गुग्‍गुल शामिल है।
    • मूत्रजननांगी रोग से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में सर्जरी के बाद के प्रभावों को कम करने के लिए चंद्रप्रभा वटी को रोग निरोधी (रोग को रोकने वाली) औषधि के रूप में दिया जाता है।
    • इस औषधि से कई प्रकार की मूत्रजननांगी समस्‍याएं ठीक हो सकती हैं जिसमें डिस्यूरिया, मूत्र मार्ग  में संक्रमण, मूत्र असंयमिता और पेशाब में खून आना शामिल है।
    • आप दूध, शहद, बृहत्‍यादि क्‍वाथ के साथ चंद्रप्रभा वटी या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • प्रवाल भस्‍म
    • संसाधित प्रवाल या लाल मूंगा से प्रवाल भस्‍म को तैयार किया गया है।
    • ये औषधि हृदय रोगों जैसे कि टैकीकार्डिया (दिल की धड़कन तेज होना) और घबराहट, श्‍वास रोगों और जलोदर में उपयोगी है।
    • ये डिस्यूरिया को कम करती है जोकि यूटीआई का प्रमुख लक्षण है।
    • आप घृत, शहद, दूध, चावल के साथ प्रवाल भस्‍म इस्‍तेमाल कर सकते हैं या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार इसे ले सकते हैं।
       
  • शतावरी घृत
    • शतावरी घृत को क्षीर (दूध), शतावरी चूर्ण (पाउडर), शतावरी क्‍वाथ और घृत से तैयार किया जाता है।
    • ये अम्‍लपित्त और यूटीआई की प्रमुख औषधि है।
    • आप शतावरी घृत के साथ चीनी या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • एलादि चूर्ण
  • तारकेश्‍वर रस
    • तारकेश्‍वर रस को हरताल से तैयार किया गया है।
    • इसे पुनर्नवा रस से तैयार किया गया है।
    • ये औषधि प्रमुख तौर पर वातरक्‍त (गठिया) और यूटीआई के इलाज में मदद करती है।
    • आप तारकेश्‍वरस रस के साथ शहद को पेस्‍ट के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • अमृतादि क्‍वाथ
    • अमृतादि क्‍वाथ गुडूची, शुंथि, अश्‍वगंधा, आमलकी, गोक्षुरा और अन्‍य चीज़ों से बना काढ़ा है।
    • ये मिश्रण मूत्रघात (पेशाब करने में दिक्‍कत होना), यूटीआई और मूत्राश्मरी (मूत्राशय की पथरी) के इलाज में उपयोगी है।

व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।

Kumariasava
₹379  ₹425  10% छूट
खरीदें

क्‍या करें

क्‍या न करें

  • नमकीन चीजें, अदरक, हींग, वाइन और सरसों की पत्तियां न खाएं।
  • सूखे खाद्य पदार्थ खाने से बचें।
  • पेशाब को रोके नहीं।
  • अनुचि‍त खाद्य पदार्थ जैसे कि दूध के साथ मछली न खाएं।
  • तला हुआ खाना, मछली, सुपारी और अभिष्यंदी (रुकावट पैदा करने वाले) खाद्य पदार्थ न खाएं। 

(और पढ़ें - गर्भावस्था में यूरिन इन्फेक्शन)

एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में यूटीआई से ग्रस्‍त 26 मरीज़ों को 15 दिनों तक दिन में दो बार गोक्षुरा क्‍वाथ दिया गया। उपचार के साथ-साथ सभी प्रतिभागियों को ज्‍यादा से ज्‍यादा तरल का सेवन और मूत्राशय को बार-बार एवं पूरा खाली करने के लिए कहा गया। अध्‍ययन के अंत में सभी प्रतिभागियों को यूटीआई से 100 प्रतिशत राहत मिली। इस अध्‍ययन के एक महीने बाद तक भी किसी प्रतिभागी को दोबारा यूटीआई की समस्‍या नहीं हुई।

यूटीआई से ग्रस्‍त एक 24 वर्षीय मरीज़ को चंद्रप्रभा वटी के साथ शतावरी और गोक्षुरा चूर्ण दिया गया। इस मरीज़ पर किए गए अध्‍ययन में व्‍यक्‍ति को 7 दिन बाद पेशाब में दर्द और जलन महसूस होने से राहत मिली।

(और पढ़ें - निजी अंगों की सफाई कैसे करें)

वैसे तो आयुर्वेदिक उपचार के कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होते हैं लेकिन फिर भी व्‍यक्‍ति की प्रकृति और रोग की स्थिति के आधार पर ही इनका प्रयोग करना चाहिए वरना इसके दुष्‍प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं। उदाहरणार्थ: पित्त प्रधान प्रकृति वाले व्‍यक्‍ति को आमलकी के कारण दस्‍त हो सकते हैं।

(और पढ़ें - दस्त में क्या खाना चाहिए)

शिशु और मलाशय में ब्‍लीडिंग, बुखार, हैजा, एनीमिया, पेट के कैंसर, पेचिश, पॉलीप्स, विपुटीशोथ (पाचन तंत्र में छोटी-छोटी थैलियां बनना), रति रोग (यौन) और दस्त की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को बस्‍ती चिकित्‍सा नहीं देनी चाहिए। पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को गोक्षुरा नहीं लेनी चाहिए। अचानक बुखार या हाई यूरिक एसिड की स्थिति में शिलाजीत का सेवन नहीं करना चाहिए। 

(और पढ़ें - बार-बार यूरिन इन्फेक्शन क्यों होता है?)

Patrangasava
₹449  ₹500  10% छूट
खरीदें

मूत्र मार्ग में संक्रमण सबसे सामान्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं में से एक है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो इसके बढ़ने की वजह से किडनी तक फेल हो सकती है। पेशाब के दौरान जलन, दर्द और यूटीआई से जुड़े अन्‍य लक्षणों को कम करने में अंग्रेजी दवाएं असरकारी तो हैं लेकिन इनके कुछ दुष्‍प्रभाव भी होते हैं।

(और पढ़ें - किडनी फेल होने के कारण)

यूटीआई के आयुर्वेदिक उपचार में जड़ी बूटियों, औषधियों और लगाने वाली दवाओं का इस्‍तेमाल किडनी के कार्य में सुधार लाने, अमा के स्‍तर को घटाने और खराब हुए दोष को वापस संतुलित करने के लिए किया जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्‍सक संक्रमण को कम करने और संपूर्ण सेहत में सुधार के लिए छाछ और फलों के रस के साथ यूटीआई को कम करने वाले खाद्य पदार्थ खाने की सलाह देते हैं। 

(और पढ़ें - किडनी रोग में क्या खाना चाहिए)

Dr. Harshaprabha Katole

Dr. Harshaprabha Katole

आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

Dr. Dhruviben C.Patel

आयुर्वेद
4 वर्षों का अनुभव

Dr Prashant Kumar

Dr Prashant Kumar

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr Rudra Gosai

Dr Rudra Gosai

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Dr. Nirmal Bhusa. Management of Urinary Tract Infection with Certain Ayurveda Medicines: A Case Study. International Journal of Health Sciences and Research. Vol.7; Issue: 9; September 2017;
  2. Jain R, Kosta S, Tiwari A. Ayurveda and Urinary Tract Infections. J Young Pharm Vol 2 / No 3.
  3. Central Council for Research in Ayurvedic Sciences. [Internet]. National Institute of Indian Medical Heritage. Handbook of Domestic Medicine and Common Ayurvedic Medicine.
  4. Subhash Ranade. Kayachikitsa. Chaukhamba Sanskrit Pratishthan, 2001.
  5. Hegde Gajanana, Priya Bhat. Concept of Lower Urinary Tract Infection in Ayurveda. IAMJ: Volume 2; Issue 4; July - August-2014.
  6. Nishant Singh. Panchakarma: Cleaning and Rejuvenation Therapy for Curing the Diseases . Journal of Pharmacognosy and Phytochemistry. ISSN 2278- 4136. ZDB-Number: 2668735-5. IC Journal No: 8192.
  7. Swami Sadashiva Tirtha. The Ayurveda Encyclopedia. Sat Yuga Press, 2007. 657 pages.
  8. India. Dept. of Indian Systems of Medicine & Homoeopathy. The ayurvedic pharmacopoeia of India. Govt. of India, Ministry of Health and Family Welfare, Dept. of ISM & H., 2007 - Medicine, Ayurvedic.
  9. Oushadhi. [Internet]. A Govt of Kerala. Gulika & Tablets.
  10. Subhash Ranade. Kayachikitsa. Chaukhamba Sanskrit Pratishthan, 2001.
  11. A.Thakamma. et al. Standardisation of Eladichoornam . Drug Standardisation Unit, Ayurveda Research Institute. Vol. No 18(1), July 1998 pages 35 - 40.
  12. Kumar Ajay. et al. A clinical study to evaluate the efficacy of an ayurvedic formulation in management of Pittaja Mutrakrichhra with special reference to urinary tract infection. Int. J. Ayurveda Pharm. 7 (Suppl4), Sep-Oct 2016.
ऐप पर पढ़ें