धातु रोग एक ऐसी स्थिति है जिसमें सेक्स ना करने पर भी अनैच्छिक वीर्यस्खलन होता है। ये दिन में जागते या रात में सोते समय हो सकता है। अगर किसी पुरुष को सप्ताह में तीन बार से ज्यादा शुक्रपात (वीर्यस्खलन) के साथ-साथ चक्कर आना, अनिद्रा, कमर और पैरों में कमजोरी या एनर्जी में कमी महसूस होती है तो इस समस्या को रोग के रूप में जाना जाता है। बहुत ज्यादा सेक्स, हस्तमैथुन, भावनात्मक रूप से असंतुलन और शराब पीने की वजह से धातु रोग हो सकता है।
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आयुर्वेद में धातु रोग को धात सिंड्रोम बताया गया है जिसमें वीर्य का नुकसान होने लगता है। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार पुरुषों के शरीर में वीर्य एक महत्वपूर्ण तत्व होता है और इसका शरीर से अधिक निकलना वीर्य के नुकसान को दर्शाता है। धात रोग जैसे प्रजनन प्रणाली से संबंधित रोगों के इलाज के लिए खानपान में बदलाव और हर्बल उपचार की सलाह दी जाती है।
पंचकर्म थेरेपी में से बस्ती (एनिमा) और स्नेहन (तेल लगाना) की मदद से खराब हुए शुक्र धातु को वापिस से संतुलन में लाकर धातु रोग का इलाज किया जाता है। धात रोग के इलाज के लिए आयुर्वेद में जड़ी बूटियों एवं हर्बल मिश्रण जैसे कि अश्वगंधा, बाला और गुडूची के साथ अभ्रक भस्म का इस्तेमाल किया जाता है।