स्क्लेरोडर्मा एक प्रकार की दुर्लभ बीमारी होती है. इसमें व्यक्ति की त्वचा सख्त होने लगती है. दरअसल, स्क्लेरोडर्मा एक प्रकार का ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है. इस स्थिति में व्यक्ति का इम्यून सिस्टम गलती से शरीर के स्वस्थ ऊतकों पर हमला करने लगता है और उन्हें नुकसान पहुंचाने लगता है. यह रोग अक्सर 30 से 50 वर्ष की आयु के लोगों को प्रभावित करता है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं को स्क्लेरोडर्मा होने का जोखिम होता है. इसे लाइलाज बीमारी माना गया है, लेकिन आयुर्वेद में कुछ दवाओं के जरिए इसका इलाज संभव माना गया है. कुछ वैज्ञानिक शोधों में इसकी पुष्टि की गई है.

आज इस लेख में आप जानेंगे कि स्क्लेरोडर्मा के लिए आयुर्वेदिक इलाज क्या है -

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  1. स्क्लेरोडर्मा में फायदेमंद आयुर्वेदिक इलाज
  2. सारांश
स्क्लेरोडर्मा की आयुर्वेदिक दवाएं व इलाज के डॉक्टर

अगर स्क्लेरोडर्मा से जुड़े आयुर्वेदिक शोध को देखा जाए, तो आयुर्वेदिक दवाइयों के जरिए इस स्थिति में थोड़ा सुधार देखा गया है. इस चिकित्सा में कई महीनों का लंबा वक्त लगा है, लेकिन मरीज में चिकित्सा के दौरान और बाद में काफी फर्क देखा गया है. ये आयुर्वेदिक चिकित्सा कुछ इस प्रकार है -

अन्तः परिमार्जन चिकित्सा

इस दौरान मरीज की आयुर्वेदिक दवाइयों से चिकित्सा शुरू की गई है. इसके तहत मरीज को भोजन से पहले 15 मिली मंजिष्ठादि कषायम् दिन में 2 बार और 500 मिलीग्राम कैशोर गुग्गुल की 2 गोलियां दिन में 2 बाद 45 मिली गर्म पानी के साथ लेने के लिए कहा गया. वहीं, खाने के बाद 250 मिलीग्राम गंधक रसायन की 1 गोली दिन में 2 बार लेने को कहा गया. इसके अलावा, 1 चम्मच महातिक्तक घृत व रात में भोजन के बाद 1 चम्मच माणिभद्रा गुडा लेने को कहा गया. ये सभी दवाइयां 15 दिन तक लेने काे कहा गया.

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बाह्य-परिमार्जन चिकित्सा

इसमें मरीज के लिए बाहरी चिकित्सा पद्धति को अपनाया गया है. इसमें सर्वांग अभ्यंग थेरेपी का उपयोग किया गया. इसमें बालगुदुच्यादि तेल के साथ मरीज के पूरे शरीर की मालिश की गई. इसके अलावा, दशमूल कषायम् के साथ सर्वांग स्वेदन किया गया. आयुर्वेद में सर्वांग स्वेदन एक प्रकार की हीट थेरेपी होती है.

इसके अलावा, तकराधार उपचार भी किया गया है. तकराधार दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें तकरा का मतलब छाछ और धार मतलब डालना होना है. ऐसे में तकराधार उपचार में औषधीय जड़ी-बूटियों से युक्त छाछ से मालिश की जाती है. इन उपचारों के बाद मरीज में काफी सुधार देखा गया. मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज करते समय भी कुछ आयुर्वेदिक दवाइयां दी गईं.

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शोधन थेरेपी

ये एक प्रकार की प्यूरीफिकेशन थेरेपी होती है, जिसमें शरीर में व्याप्त दोषों को संतुलित करने का प्रयास किया जाता है. इस आयुर्वेदिक थेरेपी में पूरा कोर्स दवा में छोटे-छोटे बदलाव के साथ किया जाता है. मरीज में हो रहे सुधार के अनुसार दवाओं को बदला जाता है.

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स्क्लेरोडर्मा के लिए आयुर्वेद में अलग-अलग तरह की चिकित्सा पद्धति अपनाई जा सकती है. यह पूरी तरह से स्क्लेरोडर्मा की गंभीरता पर निर्भर करता है. अगर किसी को यह समस्या है, तो बेहतर है कि वो किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर से इस बारे में बात करें और उसी के अनुसार आगे का इलाज कराएं. बेहतर है कि स्क्लेरोडर्मा के शुरुआती लक्षणों पर ध्यान देकर या त्वचा में अचानक होने वाले बदलाव पर ध्यान देकर शुरुआत में ही विशेषज्ञ से राय ली जाए.

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