प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों की पौरुष ग्रंथि में होने वाला कैंसर है। यह विश्वभर के पुरुषों में पाया जाने वाला दूसरा सबसे घातक कैंसर है। पौरुष ग्रंथि में वीर्य उत्पादन होता है, जिससे शुक्राणु ट्रांसपोर्ट होते हैं। अभी तक इसके इलाज में सर्जरी या रेडिएशन थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि, इनके कई साइड इफेक्ट्स जैसे बांझपन होने का खतरा बना रहता है। इसीलिए वैज्ञानिकों की एक टीम ने प्रोस्टेट कैंसर का एक ऐसा इलाज विकसित किया है, जिसके बाद न तो सर्जरी की आवश्यकता होगी और न ही ऑपरेशन की और साथ ही इसकी सफलता दर भी 80 फीसद है।
प्रोस्टेट कैंसर के 4 स्टेज होते हैं, जिनका सही समय पर परीक्षण और इलाज करवाना बेहद आवश्यक होता है। स्टेज 1, स्टेज 2, स्टेज 3 और स्टेज 4। शुरुआत में यह कैंसर पौरुष ग्रंथि तक ही सीमित होता है, लेकिन आखिरी चरण तक जाते-जाते यह शरीर के अन्य अंगों में भी फैल जाता है।
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रेडियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ नार्थ अमेरिका द्वारा इस नए इलाज को विकसित किया गया है। इस तकनीक में नॉवेल एमआरआई-गाइडेड अल्ट्रासाउंड के जरिए प्रोस्टेट कैंसर को सर्जरी के बिना ठीक किया जा सकेगा। शोधकर्ताओं ने साथ में यह भी कहा कि इस तकनीक से प्रोस्टेट बढ़ने की स्थिति का भी इलाज किया जा सकता है।
विश्व भर में प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में अधिकतर सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता रहा है। यह इलाज बेहद चुनौतीपूर्ण और कठिन होता है। सर्जरी के जोखिमों को कम करते हुए इस नई तकनीक में एक रॉड के आकर के उपकरण को मूत्रमार्ग में डाला जाता है जो एक मैग्नेटिक रेजोनेंस के जरिए अल्ट्रासाउंड की किरणों को नियंत्रित करता है। साउंड वेव्स अंदर गर्मी पैदा करती हैं जिससे ट्यूमर शरीर के किसी अन्य अंग को नुकसान पहुंचाए बिना नष्ट हो जाता है।
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शोधकर्ताओं के अनुसार इस नई तकनीक में अल्ट्रासाउंड थेरेपी के जरिए प्रोस्टेट कैंसर का बेहद कम साइड इफेक्ट्स के साथ इलाज किया जा सकेगा। रेडियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ नार्थ अमेरिका ने इस स्टडी में प्रोस्टेट कैंसर से ग्रस्त 115 पुरुषों को शामिल किया। अल्ट्रासाउंड से इलाज करने के बाद ग्रुप के 80 फीसदी व्यक्तियों में कैंसर नष्ट हो गया था, जिसमें 65 फीसदी लोगों में 1 वर्ष के बाद कैंसर के कोई लक्षण नहीं पाए गए। पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के रक्त प्रतिजन के निशानों में भी कमी देखी गई और साथ ही मल त्याग के समय होने वाली सभी समस्याओं की कोई शिकायत नहीं पाई गई।
स्टडी के को-ऑथर और लॉस एंजेलिस में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया के रेडियोलोजी और यूरोलॉजी प्रोफेसर स्टीवन रमन का कहना है कि यह एक आउटपेशंट (मरीज को अस्पताल में बिना भर्ती कराए) प्रक्रिया है, जिससे रिकवर होने में कम समय लगता है। प्रोफेसर ने आगे बताते हुए कहा कि हमने मरीजों के प्रोस्टेट वॉल्यूम में 90 प्रतिशत तक कमी देखी और बांझपन के मामले कम पाए गए, साथ ही मूत्र असंयमितता के कोई लक्षण नहीं मिले। इस प्रक्रिया को तुलसा-प्रो नाम दिया गया जिसे यूरोप में इलाज के तौर पर इस्तेमाल करने की मंजूरी मिल चुकी है।
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प्रोस्टेट कैंसर की कई वजहें हो सकती हैं, जिनमें मुख्य रूप से धूम्रपान और जंक फूड का सेवन शामिल है। हाल ही में हुई एक भारतीय रिसर्च के तहत भारत में अगले वर्ष तक प्रोस्टेट कैंसर के आंकड़े दोगने होने की आशंका है। तुलसा-प्रो को भारतीय अस्पतालों में मंजूरी मिलने से इन बढ़ते मामलों को रोका जा सकता है।