दृष्टि दोष (विजन लॉस) आज एक बड़ी समस्या है, जिससे करोड़ों लोग ग्रसित हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ही केवल निकट दृष्टि दोष से पीड़ित लोगों का आंकड़ा बीते 20 सालों में दोगुना से भी ज्यादा हो चुका है, जिसका प्रमुख कारण बढ़ती जीवन प्रत्याशा और हाई डायबिटीज है। यही वजह है कि भारतीयों में आंख संबंधी समस्या ज्यादा सामने आने लगी है। स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े दो अंतरराष्ट्रीय निकायों द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 1990 में साढ़े 5 करोड़ से अधिक (57.7 मिलियन) लोग निकट दृष्टि दोष से जुड़ी परेशाानी से ग्रसित थे वहीं अब साल 2020 में यह आकंड़ा बढ़कर साढ़े 13 करोड़ (137.6 मिलियन) से ज्यादा हो चुका है।
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क्या है नियर विजन लॉस?
निकट दृष्टि दोष का मतलब आस-पास की वस्तुओं पर फोकस करने में असमर्थ होने से है। मतलब वह स्थिति जब व्यक्ति को अपने पास की चीजें साफ या स्पष्ट नहीं दिखाई देती। इस समस्या को प्रेस्बोपिया भी कहा जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो 40 साल की उम्र के मध्य में यह समस्या आती है। विजन लॉस एक्सपर्ट ग्रुप (वीएलईजी) और इंटरनेशनल एजेंसी फॉर प्रिवेंशन ऑफ ब्लाइंडनेस (आईएपीबी) ने अपने एक विश्लेषण से यह डेटा एकत्रित किया है। इससे पता चलता है कि दुनिया भर में निकट दृष्टि दोष से जुड़े साढ़े 50 करोड़ से अधिक (507 मिलियन) मामले पाए गए हैं और इसमें से भी केवल भारत में ही यह आंकड़ा साढ़े 13 करोड़ से अधिक है। गौरतलब है कि विशेषज्ञों को यह डेटा जुटाने में करीब छह से सात साल का समय लग गए।
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क्या कहते हैं आंकड़े?
आंकड़ों से यह भी पता चला कि भारत में मध्यम और गंभीर दृश्य हानि (एमएसवीआई) के मामले 1990 में साढ़े चार करोड़ (40.6 मिलियन) से बढ़कर 2020 में करीब आठ करोड़ (79 मिलियन) यानी लगभग डबल हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार मध्यम और गंभीर दृष्टि हानि वह स्थिति है जब किसी वस्तु को सफाई से देखने की क्षमता 6/18 से कम होकर 3/60 रह जाती है। (अगर किसी रोगी की दृष्टि 3/60 की है, तो इसका मतलब है कि वह व्यक्ति किसी वस्तु को 3 फीट की दूरी से ही स्पष्ट रूप से देख सकता है, जबकि एक सही दृष्टि यानी परफेक्ट विजन वाला व्यक्ति उस वस्तु को 60 फिट की दूरी से भी स्पष्ट रूप से देख सकता है)। दूसरी ओर अंधापन तब होता है जब दृश्य नुकीलापन (शार्पनेस) यानी विजुअल एक्यूटी 3/60 से कम होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि एमएसवीआई का एक प्रमुख कारण डायबिटीज है। चिकित्सा क्षेत्र की प्रमुख पत्रिका द लांसेट की एक स्टडी के अनुसार साल 2016 में भारत में साढ़े 6.5 करोड़ (65 मिलियन) डायबिटीज रोगी थे।
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वहीं, आईएपीबी के एक नए सर्वे से पता चलता है कि भारत में 6 में से एक डायबिटीज रोगी रेटिनोपैथी से पीड़ित है। नेत्र रोग विशेषज्ञ और साउथ एशिया में लॉस एक्सपर्ट ग्रुप का नेतृत्व करने वाले डॉ. विनय नांगिया का कहना है "डायबिटिक रेटिनोपैथी, मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और कुछ कॉर्नियल स्थितियों में उपचार नहीं मिलने के कारण होने वाली दृश्य हानि से अंधापन हो सकता है। ये कारक भारत के सभी एमएसवीआई मामलों का लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि दृष्टि समस्याओं में वृद्धि के पीछे एक और कारक भारतीयों की जीवन प्रत्याशा है। पत्रिका द लांसेट में हाल ही के एक रिसर्च में पाया गया था कि भारत की जीवन प्रत्याशा 1990 में 59 साल से बढ़कर 2019 में 70 साल हो गई थी। नए सर्वेक्षण में पाया गया कि 78 प्रतिशत नेत्रहीन लोग 50 साल से अधिक उम्र के थे।
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