पीसीओएस और स्लीप एपनिया के बीच में संबंध
जिन महिलाओं को सामान्य रूप से मासिक धर्म आते हैं, पीसीओएस उनमें से लगभग 6 से 15 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित करता है। पीसीओएस में आमतौर पर एंड्रोजन का स्राव बढ़ जाना, मोटापा और इन्सुलिन रेसिसटेंस शामिल है। जिनसे प्रारंभिक शुरुआत ग्लूकोज सहन ना होना (30 से 40%), टाइप 2 डायबिटीज (10%) और कार्डियोवास्कुलर डिजीज आदि विकसित होने के जोखिम बढ़ जाते हैं। स्वास्थ्य संबंधी इन गंभीर समस्याओं के अलावा पोलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम और स्लीप के बीच एक मजबूत संबंध देखा गया है।
दूसरी ओर प्रकाशित किए गए एक शोध के अनुसार ठीक से नींद न आने या कम नींद आने की स्थिति को इन्सुलिन रेसिसटेंस, ग्लूकोज इंटॉलरेंस, हाइपरटेंशन और डिस्लिपाइडिमीया (कोलेस्ट्रॉल या लिपिड फैट का अधिक स्तर) जैसे मेटाबॉलिज्म संबंधी विकारों के जोखिम कारक माना गया है। स्लीप एपनिया श्वसन संबंधी विकार होता है, इस स्थिति में मरीज को बार-बार सांस लेने में रुकावट महसूस होने लगती है और खर्राटे भी आते हैं। इस स्थिति के दौरान सांस रुकने की स्थिति कुछ सेकेंड से लेकर कुछ मिनट तक रह सकती है। जब सांस लेने में रुकावट व खर्राटे की समस्या अधिक हो जाती है, तो इस से स्वास्थ्य संबंधी कई जटिलताएं भी विकसित हो जाती हैं।
स्लीप एपनिया और पीसीओएस के बीच के संबंधों पर कई प्रकार की रिसर्च की जा चुकी हैं, कई खोजकर्ता इन दोनों विकारों व इनसे संबंधित समस्याओं के बीच सटीक संबंध का पता करने में लगे हैं। हालांकि यह देखा गया है कि पीसीओएस से ग्रस्त जिन महिलाओं के शरीर का वजन सामान्य से अधिक (मोटापा) है, तो उनको स्लीप एपनिया होने का खतरा अत्यधिक होता है। इसके अलावा इन दोनों रोगों का एक साथ विकसित होने का खतरा समय के साथ बढ़ता रहता है।
दूसरी तरफ से अभी तक सिर्फ एक ही ऐसी रिसर्च को प्रकाशित किया गया है, जिसमें पीसीओएस से ग्रस्त दुबली-पतली महिलाओं में स्लीप एपनिया के प्रचलन के बारे में बताया गया है। आश्चर्य की बात है कि इस स्टडी में इनके बीच में कोई संबंध नहीं बताया गया है।
ऐसा माना जाता है कि स्लीप एपनिया को विकसित करने के लिए पोसीओएस एक पूर्व-निर्धारित (जोखिम) कारक के रूप में काम करता है। हालांकि महिलाओं को स्लीप एपनिया होने के बाद भी पीसीओएस हो सकता है। स्लीप एपनिया और पीसीओएस दोनों से ग्रस्त महिला को इस बात का पता होना भी बहुत जरूरी है, कि स्लीप एपनिया पीसीओएस के लक्षणों को भी बढ़ा सकता है, जैसे इन्सुलिन रेसिसटेंस, हाइपरटेंशन, थकान और शरीर का वजन कम ना कर पाना आदि।
(और पढ़ें - पीसीओएस में गर्भधारण करना)