निमोनिया, छोटे बच्चों में होने वाली सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारियों में से एक है। यह कितनी घातक बीमारी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि निमोनिया से पिछले वर्ष दुनियाभर में 5 साल से कम उम्र के 8 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई। यूनीसेफ (यूएनआईसीईएफ) यानी यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रंस फंड की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक निमोनिया के कारण विश्वभर में हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत हो रही है। यूनिसेफ के जरिए पेश किए गए आंकड़ों से पता चला है कि निमोनिया से मरने वाले बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा गरीब तबगे में हैं।
क्या कहती है रिपोर्ट?
डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्वभर में निमोमिया से हर वर्ष 5 साल से कम उम्र के करीब 14 लाख बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं। इतना ही नहीं, दुनियाभर में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की सभी मौत में 18 प्रतिशत हिस्सा निमोनिया ही है। रिपोर्ट से पता चला है कि दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में इसका प्रकोप सबसे ज्यादा दिखता है।
कितना घातक है निमोनिया?
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल निमोनिया से पीड़ित काफी ज्यादा बच्चों की मृत्यु हो गई। इसमें अधिकतर बच्चे अपना दूसरा जन्मदिन भी नहीं देख पाए। 1,53,000 बच्चों की मौत तो उनके जन्म के सिर्फ एक महीने के भीतर ही हो गई। डायरिया और मलेरिया जैसी घातक बीमारियों से भी इतने ज्यादा बच्चों की मौत नहीं होती। मौत का यह आंकड़ा चौंकाने वाला है और यही कारण है कि स्वास्थ्य व बच्चों के लिए काम करने वाली छह संस्थाएं सामने आयीं। उन्होंने निमोनिया के कारण बच्चों की असामयिक मौत के खिलाफ वैश्विक समाधान की मांग की।
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यूनिसेफ के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, हेनरियेटा फोर ने बताया कि निमोनिया का इलाज मौजूद होने के बावजूद हर दिन पांच साल से कम उम्र के लगभग 2,200 बच्चों की मृत्यु हो जाती है। हालांकि, अगर कुछ सावधानी बरत लें तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। लिहाजा इससे लड़ने के लिए वैश्विक स्तर पर सबको मजबूत होने की जरूरत है, जिससे लाखों बच्चों की जान बचाई जा सकती है।
क्यों जानलेवा है निमोनिया?
निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस या फंगस से होता है, जो शरीर के अंदर जाकर फेफड़ों को प्रभावित करता है। जिससे फेफड़ों में मवाद और गंदा पानी जमा हो जाता है। इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों को सांस लेने में दिक्कत होती है, जो एक वक्त पर आकर जानलेवा साबित होता है।
- साल 2018 में निमोनिया के चलते 5 साल से कम उम्र के बच्चों की सबसे ज्यादा मौत हुई।
- इसी साल डायरिया से 4,37,000 और मलेरिया से 2,72,000 बच्चों की पांच साल से कम उम्र में ही मौत हो गई।
क्या है डॉक्टर की राय ?
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर अर्चना निरूला का कहना है कि निमोनिया वायरस के बढ़ने की एक वजह जागरूकता की कमी होना भी है। जिसके चलते लोग बच्चों (नवजात) को टीका नहीं लगवाते। साथ ही बढ़ते प्रदूषण के कारण भी बच्चे इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि बच्चों का इम्यूनिटी सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कमजोर होता है। इसलिए निमोनिया बच्चों को जल्दी प्रभावित करता है।
भारत दूसरे नंबर पर
रिपोर्ट के मुताबिक आंकड़ें बेहद चौंकाने वाले हैं, क्योंकि कुछ विकासित देशों को छोड़ दे तो विकासशील देशों में निमोनिया से मरने वाले बच्चों की संख्या काफी अधिक है। जिसमें हमारे देश का नाम लिस्ट में दूसरे नंबर पर आता है। भारत समेत कुल पांच देश ऐसे हैं, जिनमें निमोनिया से मरने वाले बच्चों की संख्या दुनिया में इस बीमारी से मरने वाले बच्चों की कुल संख्या के आधे से भी ज्यादा है।
देश साल 2018 में निमोनिया से मरने वाले बच्चों की संख्या (5 साल से कम उम्र )
- नाईजीरिया 1,62,000
- भारत 1,27,000
- पाकिस्तान 58,000
- कांगो 40,000
- इथियोपिया 32,000
बच्चों में निमोनिया का ज्यादा खतरा क्यों?
यूनिसेफ की इस रिपोर्ट के मुताबिक एचआईवी या कुपोषण जैसे अन्य संक्रमणों के कारण जिन बच्चों में प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यूनिटी सिस्टम ज्यादा कमजोर होता उनमें निमोनिया होने का ज्यादा खतरा होता है। हालांकि इसके अलावा कई और कारण हो सकते हैं। जैसे-
- अधिक वायु प्रदूषण में रहने वाले बच्चों में निमोनिया का जोखिम ज्यादा है
- गंदा पानी पीने वाले बच्चों में निमोनिया होने का रिस्क होता है
हालांकि, एंटीबायोटिक के साथ निमोनिया का इलाज पूरी तरह से संभव है और कुछ वैक्सीन या टीका लगाने के बाद इस बीमारी को रोका जा सकता है, लेकिन लाखों बच्चों को ये टीका नहीं मिल पाता है। निमोनिया से पीड़ित तीन में से एक बच्चे को जरूरी इलाज नहीं मिल पाता। क्योंकि, इस केस में बच्चों को ऑक्सीजन की जरूरत सबसे ज्यादा होती है, मगर कुछ विकासशील देशों में ऑक्सीजन की कमी से ही अधिकत्तर बच्चों की मौत हो जाती है।
- वैश्विक स्तर पर निमोनिया से निपटने के लिए धन (फंड) इकट्ठा किया जाता है।
- वैश्विक स्तर पर संक्रामक बीमारियों पर खर्च होने वाले धन का करीब 3 प्रतिशत हिस्सा ही इस बीमारी पर खर्च हो रहा है, जबकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 15 फीसद मौत का कारण यही बीमारी है।
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दवाई न मिलने से बढ़ी मृत्यु दर
रिपोर्ट के मुताबिक ये आंकड़े सिंतबर 2018 तक के हैं। जिसमें बताया गया है कि 71 मिलियन यानी 7 करोड़ से ज्यादा बच्चों को न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) की तीन खुराक नहीं मिली, जिसके कारण उन बच्चों में निमोनिया होने का खतरा ज्यादा बढ़ा। एक अनुमान के मुताबिक विश्वभर में करीब 32 प्रतिशत संदिग्ध निमोनिया पीड़ित बच्चों को स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाती हैं और ये आंकड़ा गरीब या विकासशील देशों में बढ़कर 40 प्रतिशत तक हो जाता है।