ब्लैक डेथ को 14वीं शताब्दी में यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में फैलने वाली एक जानलेवा बीमारी के रूप में जाना जाता है। साल 1347 से 1351, यानी करीब चार साल में ही इस बीमारी के चलते 7.5 करोड़ से 20 करोड़ के बीच लोगों की जान चली गई थी। ब्यूबोनिक प्लेग को ब्लैक डेथ का प्रमुख कारक माना जाता है। बुबो और लिम्फ नोड्स में दर्द व सूजन की स्थिति के कारण इसका नाम ब्यूबोनिक प्लेग पड़ा। इसके अलावा रोगियों में बुखार, ठंड लगना, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, मतली और उल्टी जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं।

ब्यूबोनिक प्लेग, तीन प्रकार के प्लेग में से एक है। अन्य दो को सेप्टिकैमिक प्लेग और न्यूमोनिक प्लेग के नाम से जाना जाता है। सबसे पहले इन तीनों के बारे में समझते हैं। 

ब्यूबोनिक प्लेग, लिंफैटिक सिस्टम यानी लसीका प्रणाली को प्रभावित करता है। सेप्टिकैमिक प्लेग तब होता है जब प्लेग बैक्टीरिया रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं और न्यूमोनिक प्लेग तब होता है जब बैक्टीरिया फेफड़ों को संक्रमित करते हैं। ब्यूबोनिक प्लेग, इन तीन में से सबसे आम और सबसे कम घातक है। साल 1894 में पहली बार 'अलेक्जेंड्रे यर्सिन' नामक वैज्ञानिक ने प्लेग का कारण बनने वाले ‘यर्सिनिया पेस्टिस’ बैक्टीरिया की पहचान कर उसका वर्णन किया था। 20वीं सदी के मध्य में वैज्ञानिकों ने एंटीबायोटिक दवाओं के साथ प्लेग के इलाज का तरीका खोजा। आज के समय में इस प्लेग का इलाज संभव है, बशर्ते इसका समय पर निदान हो जाए। बीमारी की पहचान करने के लिए फिजिकल टेस्ट के अलावा ब्लड टेस्ट और बुबो से निकलने वाले तरल पदार्थों का परीक्षण किया जाता है।

भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो साल 1855-57 में ब्यूनिक प्लेग का व्यापक प्रकोप देखने को मिला था। कहा जाता है कि उस वक्त करीब 1 करोड़ लोगों की जान इसकी वजह से गई थी। इसके बाद 1994 में ब्यूबोनिक और न्यूमोनिक प्लेग का देश के कई राज्यों (महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश) में प्रकोप देखने को मिला था। इस दौरान मात्र दो महीने के भीतर करीब 56 लोगों की मौत हो गई थी। इस प्रकोप के बारे में एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में इसे 1993 के लातूर में आए भूकंप और सूरत में आई बाढ़ को प्लेग के फैलने के लिए जिम्मेदार बताया।

अब सवाल यह उठता है कि भूकंप और बाढ़ का प्लेग से क्या संबंध हो सकता है? इस विषय को समझने के लिए सबसे पहले यह जान लेना जरूरी है कि आखिर ब्यूनिक और न्यूमोनिक प्लेग के बीच क्या अंतर और संबंध है, साथ ही यह प्लेग फैलता कैसे है?

  1. प्लेग कैसे फैलता है? - Plague kaise failta hai?
  2. ब्यूबेनिक प्लेग के लक्षण - Black Death me kya symptoms dikhaye dete hain?
  3. ब्यूबेनिक प्लेग का कारण - Black Death kin karno se hota hai?
  4. ब्यूबेनिक प्लेग रोग के प्रकार - Black Death disease kitne prakaar ka hota hai?
  5. ब्यूबोनिक प्लेग की रोकथाम - Bubonic Plague ke Prevention ke liye kkya kiya jana chahiye?
  6. ब्यूबोनिक प्लेग का निदान और इलाज - Bubonic Plague ka Diagnosis aur treatment
  7. Black death के डॉक्टर

जैसा कि उपरोक्त पंक्तियों में बताया गया है कि प्लेग मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है। अब समझते हैं कि ब्लैक डेथ का ट्रांसमिशन किस प्रकार से होता है? ब्यूबोनिक प्लेग का मुख्य वाहक पिस्सू होता है, जो चूहों, गिलहरियों और खरगोशों को संक्रमित करता है। अब तक 200 से अधिक स्तनधारी प्रजातियों में संक्रमण पाया गया है।

ब्यूबोनिक प्लेग में बैक्टीरिया, लिम्फेटिक सिस्टम का उपयोग करता है। संक्रमितों के काटने के बाद बैक्टीरिया निकटतम लिम्फ नोड्स (आमतौर पर कांख या कमर) में पहुंच जाता है, जहां से वह तेजी से बढ़ने लगता है। जल्दी ही लिम्फ नोड बैक्टीरिया से भर जाता है और वहां पर सूजन हो जाती है। इस सूजे हुए हिस्से को बुबो कहा जाता है। इसके अलावा संक्रमितों (मानव और पशु) के शव के संपर्क में आने से भी ब्यूबोनिक प्लेग का संक्रमण हो सकता है। इसके अलावा ह्यूमन फ्लीस और जूं भी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बीमारी फैला सकते हैं।

प्लेग का दूसरा रूप यानी सेप्टिकैमिक प्लेग, तब होता है जब यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरिया रक्तप्रवाह में पहुंच जाता है। बैक्टीरिया, प्लेग रोगियों और जानवरों के शवों के संपर्क में आने से फैलता है। लिम्फैटिक सिस्टम, सबक्लेवियन नस के माध्यम से रक्तप्रवाह से जुड़ा हुआ होता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह मार्ग बैक्टीरिया के रक्तप्रवाह में पहुंचने का जरिया हो सकता है।

न्यूमोनिक प्लेग प्लेग तब होता है जब यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरिया फेफड़ों को प्रभावित करता है। यह सबसे घातक प्रकार का प्लेग होता है। संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने और जोर से बोलने के दौरान निकलने वाली ड्रॉपलेट्स के माध्यम से इसका मानव-से-मानव संचरण हो सकता है। हालांकि, यह ड्रॉपलेट्स जमीन पर गिरने से पहले बहुत कम दूरी ही तय कर सकती हैं। जब हम न्यूमोनिक प्लेग की बात कर रहे हैं तो कुछ और बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि ब्यूबोनिक प्लेग फेफड़ों तक में पहुंच जाता है, तो यह न्यूमोनिक प्लेग में बदल सकता है, जोकि बहुत अधिक घातक है।

प्लेग के इन तीन प्रकारों के लक्षण और परिणाम भिन्न हो सकते हैं।

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प्लेग के लक्षण सामने आने में एक से सात दिन तक लग सकते हैं। संक्रमित होने से लेकर लक्षण दिखने की बीच के समय को इनक्यूबेशन पीरियड भी कहा जाता है। ब्यूबोनिक प्लेग या भारत में ब्लैक डेथ और 1994 के प्रकोप का कारण बनने वाले प्लेग के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं

  • बुखार
  • ठंड लगना
  • मायालगिया (मांसपेशियों में दर्द)
  • मतली और उल्टी
  • सिर दर्द

ब्यूबोनिक प्लेग का सबसे प्रमुख लक्षण बुबो होता है। आम तौर पर इसमें बगल में या कमर पर सूजन और लिम्फ नोड्स में तेज दर्द हो सकता है। (यह स्थिति शरीर के किसी भी लिम्फ नोड्स में हो सकती है)। वहीं सेप्टिकैमिक प्लेग का मुख्य लक्षण बुखार, ठंड लगना, कमजोरी, पेट में दर्द, शॉक लगना और संभावित रक्तस्राव हो सकता है, जबकि न्यूमोनिक प्लेग में रोगी को बुखार, कमजोरी, सांस की तकलीफ, बलगम से खून आना और खांसी का अनुभव हो सकता है।

बुबो की पहचान कैसे करें?

बुबो, ग्रीक शब्द ग्रोइन से लिया गया है। बुबो के बारे में निम्न चीजों को जानना भी जरूरी है।

  • शरीर में लाल रंग की सूजन हो जाना
  • आमतौर पर यह बंप पांच सेंटीमीटर से बड़ा नहीं होता है

सामान्य रूप से यह बंप बांह के नीचे, घुटने के पीछे लिम्फ नोड्स में, कॉलर हड्डियों के ऊपर, गर्दन क्षेत्र (सर्वाइकल लिम्फ नोड्स) में हो सकता है।

ब्यूबेनिक प्लेग फैलाने वाले बैक्टीरिया आमतौर पर पिस्सुओं को संक्रमित कर देते हैं। जिसके बाद यह संक्रमण करीब 200 स्तनधारी प्रजातियों को हो सकते हैं। सामान्य रूप से प्लेग बैक्टीरिया से ग्रसित जानवर को काटने पर पिस्सू बैक्टीरिया से संक्रमित हो जाते हैं। इसके बाद यह बैक्टीरिया इन पिस्सुओं के ग्रासनली में विकसित होने लगते हैं और एक समय के बाद यह पूरी ग्रासनली को अवरुद्ध कर देते हैं। इस स्थिति में पिस्सू तब तक भोजन नहीं कर पाता है जब तक वह किसी अन्य में इन बैक्टीरिया को खाली नहीं कर देता है। बैक्टीरिया को खाली करने के लिए जैसे ही पिस्सू किसी इंसान को काटता है, बैक्टीरिया इंसानों के लिम्फ नोड्स में प्रवेश कर जाते हैं और वहीं पर तेजी से बढ़ना शुरू कर देते हैं।

अब तक की जानकारियों के मुताबिक ऐसे करीब 131 प्रकार के पिस्सू हैं जो आमतौर पर ब्यूबेनिक प्लेग को फैलाते हैं। पिस्सू के काटने के एक से सात दिन बाद लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ब्यूबोनिक प्लेग से पीड़ित व्यक्ति रोग के खत्म होने के समय में सबसे ज्यादा संक्रामक होता है, यानी कि जब उसमें से प्लेग खत्म होने के आखिरी चरणों में होता है तो उस समय वह अन्य लोगों को ज्यादा संक्रमित कर सकता है।

साल 1347 से 51 के बीच ब्लैक डेथ के रूप ब्यूबोनिक प्लेग का असर देखने को मिला था। हालांकि, कुछ विज्ञान इतिहासकारों का कहना है कि यह 1353 तक चला था। आइए ब्यूबोनिक प्लेग के बारे में कुछ विशेष बातों को जानते हैं।

  • ब्लैक डेथ या ब्यूबोनिक प्लेग एक जीवाणु संक्रमण है।
  • यह एक जूनोटिक बीमारी है, जिसका अर्थ है कि यह जानवरों से इंसानों के बीच पहुंचे वाली बीमारी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि करीब 5,000 से 10,000 साल पहले इसका संक्रमण जानवरों के माध्यम से इंसानों तक पहुंचा था।
  • ब्यूबोनिक एक वेक्टर जनित बीमारी भी है। जिसका अर्थ है कि इसका एक वाहक है जो संक्रमण को फैलता है, वह है पिस्सू। जानकारों का कहना है कि यह प्लेग सबसे अधिक चूहों से जुड़ा होता है। चूंकि चूहे घरों में, जहाज पर और व्यावहारिक रूप से कहीं भी पहुंच सकते हैं ऐसे में यह प्लेग भी उनके माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थानों तक पहुंच सकता है।
  • ब्यूबोनिक प्लेग, एक फुलमिनेंट डिजीज है, जिसका अर्थ है कि इसका संक्रमण बहुत तेजी से होता है और इसका असर काफी गंभीर हो सकता है। इलाज के अभाव में 30 से 60 फीसदी रोगियों की मौत हो जाती है। न्यूमोनिक प्लेग का मृत्यु दर लगभग 100 फीसदी है, लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ब्युबोनिक प्लेग फेफड़ों में भी पहुंच सकता है जो कई बार न्यूमोनिक प्लेग में बदल जाता है।
  • ब्यूबोनिक प्लेग बैक्टीरिया त्वचा की डर्मिस परत के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। अधिकांश जीवाणु त्वचा से परे नहीं जाते हैं। पीर रिव्यूड जर्नल ट्रेंड्स इन माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित एक शोध के अनुसार यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरिया संभवत: लिम्फ नोड्स तक बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं। इसके बाद बैक्टीरिया बहुत ही तेज गति से बढ़ना शुरू कर देते हैं। इस प्रक्रिया के बाद बैक्टीरिया लिम्फ नोड को छोड़कर रक्तप्रवाह (संभवतः जब लिम्फ नोड्स फट जाते हैं या सबक्लेवियन नस के माध्यम से) में प्रवेश करते हैं। इसके परिणाम स्वरूप सेप्सिस और सेप्टिकैमिक प्लेग होता है।
  • ब्यूबोनिक प्लेग आज भी भारत सहित कई देशों जैसे डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, मेडागास्कर, पेरू और चीन आदि में अक्सर देखने को मिल जाता है। साल 2010 से 15 के बीच, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर में ब्यूबोनिक प्लेग के 3,248 मामलों की पुष्टि की थी। 2017 में मेडागास्कर में भी इसका प्रकोप देखा गया, जहां एक हफ्ते के भीतर 2,000 से अधिक मामले सामने आए थे।

वैज्ञानिकों के तर्क के मुताबिक ब्यूबोनिक प्लेग का प्रकोप इन स्थितियों से जुड़ा हुआ है।

  • कृषि के लिए जब लोगों ने जंगलों को साफ करना और अनाज को संरक्षित रखने की व्यवस्था शुरू की तब चूहों ने मानव बस्तियों में अपना निवास बनाना शुरू कर दिया। ऐसे में वह जानवरों और इंसानों के संपर्क में आने लगे, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया।
  • युद्ध और व्यापार के लिए होने वाली अंतरराष्ट्रीय यात्राओं के कारण बैक्टीरिया का प्रसार एक से दूसरे देशों में होने लगा।
  • बाढ़, भूकंप और अकाल जैसी आपदाओं के कारण भी ब्यूबोनिक प्लेग का प्रसार हुआ। इन आपदाओं के कारण दो स्थितियां जन्म लेती हैं। पहली, कई जानवर भोजन की तलाश में इंसानी बस्तियों तक पहुंच जाते हैं, जिससे संक्रमण फैलता है। दूसरी स्थिति में वैज्ञानिकों का मानना है कि आपदाओं के कारण चूहे और अन्य जीव भी मारे जाते हैं। जब चूहे और अन्य जानवरों की कमी हो जाती है तो पिस्सू अपने भोजन के लिए मनुष्यों की ओर बढ़ते हैं। इस स्थिति में भी संक्रमण का खतरा रहता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ब्यूबोनिक प्लेग को रोकने और भविष्य में इसके प्रकोप से बचने के लिए निम्न सुझावों को प्रयोग में लाने की सिफारिश की है।

प्लेग की रोकथाम कैसे करें?

भारत सहित दुनिया के कई देशों में ब्यूबोनिक प्लेग का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में प्लेग को रोकने के लिए निम्न उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है।

  • अपने आसपास की जगहों को साफ रखें। चूहों और पिस्सू को प्रवेश से रोकने के इंतजाम करें।
  • मृत जानवरों के शवों को छूने से पहले सभी सुरक्षात्मक आवरणों (दस्ताने, मास्क, काले चश्मे आदि) को पहनें।
  • संक्रमित व्यक्ति से उचित दूरी बनाए रखें। यदि आप किसी संक्रमित की देखभाल कर रहे हैं या डॉक्टर हैं तो रोगी के रक्त या थूक के नमूनों को संभालते समय सभी सावधानियों का पालन करें।
  • ब्यूबोनिक प्लेग के टीके उपलब्ध हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ सिर्फ उन्ही लोगों को टीके लगवाने की सलाह देता है, जिनको संक्रमण का बहुत ज्यादा खतरा होता है जैसे स्वास्थ्य कर्मचारी या लैब में बैक्टीरिया का परीक्षण करने वाले आदि।

प्लेग का प्रबंधन

ब्यूबोनिक प्लेग के प्रबंधन के लिए डब्ल्यूएचओ निम्न प्रक्रियाओं का पालन करने की सिफारिश करता है :

  • पहले रोगी के संपर्क में आए लोगों की कॉटैक्ट ट्रेसिंग करना, जिससे उन्हें दवाइयां देकर संक्रमण को और लोगों तक फैलने से रोका जा सके।
  • डब्ल्यूएचओ और स्थानीय सरकारी एजेंसियां ​​संक्रमण के स्रोत को खोजने पर जोर देती हैं। एंटीबायोटिक दवाओं के साथ उचित उपचार सुनिश्चित कराया जाता है।
  • मरीजों और उनके सभी संपर्कों में आए लोगों की कम से कम एक सप्ताह तक निगरानी की जाती है, ताकि उनमें विकसित हो रहे लक्षणों की जांच की जा सके।
  • सैंपल को प्रयोगशालाओं में परीक्षण के लिए ले जाने के दौरान सभी सावधानी बरतने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • हाथ की स्वच्छता (साबुन और पानी से हाथ धोना या सेनेटाइजेशन) और सतह को कीटाणुरहित करने पर जोर दिया जाता है।
  • शवों के संपर्क में आने, दाह संस्कार करते समय सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि इस दौरान भी संक्रमण का खतरा रहता है।
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ब्यूबोनिक प्लेग का यदि शीघ्रता से निदान कर लिया जाए तो एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इसका इलाज किया जा सकता है। चूंकि इसके शुरुआती लक्षण काफी सामान्य होते हैं ऐसे में इसके लक्षणों की पहचान कर पाना मुश्किल होता है। यदि आपके लिम्फ नोड्स में दर्दनाक सूजन का अनुभव हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर आपका फिजिकल टेस्ट कर सकते हैं।

यदि आप किसी ऐसे क्षेत्र में रहते हैं या हाल ही में ऐसे क्षेत्र की यात्रा की है जहां ब्यूूबोनिक प्लेग का खतरा हो सकता है, तो डॉक्टर रोग के निदान के लिए थूक या रक्त का परीक्षण कराने की सलाह दे सकते हैं। कुछ लोगों में लिम्फ नोड में सूजन से निकलने वाले द्रव की भी जांच की जा सकती है। यदि आपमें रोग का निदान होता है तो डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज की शुरुआत कर सकते हैं। ध्यान रहे, ऐसी स्थिति में बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन न करें।

Dr Rahul Gam

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