अंडाशय के कैंसर को बेहतर तरीके से या कहें शुरुआत में ही डिटेक्ट करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नया टेस्ट विकसित किया है। यह टेस्ट सीए125 एंटीजन पर आधारित है जो अंडाशय के ऊतकों में पाया जाने वाला एक प्लाज्मा मेम्ब्रेन ग्लाइकोप्रोटीन है। अंडाशय कैंसर के डिटेक्शन के लिए इस एंटीजन का इस्तेमाल पहले से होता रहा है, लेकिन कैंसर को शुरुआती स्टेज में आइडेंटिफाई करने में यह विशेष प्रोटीन काफी खराब नतीजे देता रहा है। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर सीए125 एंटीजन को कैंसर ट्यूमर में बने शूगर स्ट्रक्चर्स से जोड़ते हुए टार्गेट किया जाए तो इस कैंसर विशेष को बेहतर सुधार के साथ डिटेक्ट किया जा सकता है।
(और पढ़ें - ओवेरियन कैंसर के इस घातक रूप की कमजोरी का फायदा उठाते हुए वैज्ञानिकों ने खोजा नया संभावित इलाज)
इसी आधार पर नया ओवेरियन कैंसर टेस्ट तैयार किया गया है। इससे जुड़ा अध्ययन प्रतिष्ठित मेडिकल पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुआ है। इसके निर्माण से संबंधित शोध समूह के प्रमुख वैज्ञानिक और फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ तुर्कू के प्रोफेसर किम पीटर्सन ने बताया कि उनके अध्ययन का उद्देश्य एक ऐसा नया टेस्ट विकसित करना था, जो कैंसर ऊतकों से संशोधित या मोडिफाइड शुगर स्ट्रक्चर्स को डिटेक्ट करने का काम करे। हाल में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि शोध समूह ने किस तरह इस नए, तेज, सेंसिटिव और पॉइंट ऑफ केयर डायग्नॉस्टिक टेस्ट को तैयार किया, जो मरीजों के ब्लड सैंपल की मदद से अंडाशय कैंसर का पता लगा सकता है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि मरीजों के ब्लड सैंपल की मदद से यह टेस्ट केवल 30 मिनट में ओवेरियन कैंसर का पता लगा सकता है। यूनिवर्सिटी के बायोकेमिस्ट्री विभाग की बायोटेक्नोलॉजी यूनिट में उपलब्ध तकनीकों, उनकी विशेषज्ञा के व्यापक इस्तेमाल और रैपिड टेस्टों की मदद से वैज्ञानकिों ने यह टेस्ट तैयार किया है। इस बारे में अध्ययन के लेखक और डॉक्टर कैंडिडेट शरीफ बायोमी कहते हैं, 'पारंपरिक सीए125 डायग्नॉस्टिक टेस्ट से तुलना करने पर नए टेस्ट की (ओवेरियन कैंसर को डिटेक्ट करने की) संवेदनशीलता साढ़े चार गुना ज्यादा' मालूम हुई है।'
(और पढ़ें - लक्षण दिखे बिना चार साल पहले ही कैंसर डिटेक्ट कर सकता है यह ब्लड टेस्ट, इलाज में निभा सकता है महत्वपूर्ण भूमिका)
शोधकर्ता अब ओवेरियन कैंसर और अन्य प्रकार के कैंसरों के पीड़ितों पर इस टेस्ट को आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। इस बार यह प्रयास ज्यादा बड़े लेवल पर किया जाएगा, जिसमें पीड़ितों में कैंसर को सटीक तरीके से डिटेक्ट करने की कोशिश होगी। इसका मुख्य उद्देश्य इस रैपिड टेस्ट को और विकसित कर इसकी क्लिनिकल उपयोगिता बढ़ाना है ताकि बीमारी की जांच और इलाज के लिए विकल्पों को बढ़ाया जा सके। इस बारे में प्रोफेसर पीटर्सन का कहना है, 'बीमारी का जल्द से जल्द से पता चलना बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, खासतौर पर बात जब कैंसर की हो। कैंसर को शुरुआत में ही डिटेक्ट करने के लिहाज से अभी तक प्राप्त हुए परिणाम काफी ज्यादा भरोसेमंद हैं। फिलहाल हम अन्य कैंसरों को लेकर अपनाई जारी रही इसी तरह की अप्रोचों की व्यावहारिकता का अध्ययन कर रहे हैं।'
(और पढ़ें - कई प्रकार के कैंसर को रोकने का काम कर सकता है यह मॉलिक्यूल, वैज्ञानिकों ने अध्ययन के आधार पर किया दावा)