हड्डियों की कमजोरी (ऑस्टियोपोरोसिस) की समस्या बुढ़ापे से अक्सर जोड़ी जाती है। सामान्य रूप से पुरुषों और महिलाओं दोनों में ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या हो सकती है। वहीं, मेडिकल जानकारों के हवाले से बताया जाता है कि रजोनिवृत्ति के बाद एक-तिहाई महिलाएं इस समस्या से प्रभावित होती हैं। इस सिलसिले में स्विट्जरलैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ जिनेवा में एक शोध किया गया है, जो बताता है कि गर्म तापमान (34 डिग्री सेल्सियस तक) वाले माहौल में रहने से हड्डियां मजबूत होती हैं और उनमें बोन लॉस की कमी होती है, जोकि ऑस्टियोपोरोसिस का एक विशेष लक्षण है। वहीं, यह भी पता चला है कि शरीर में मौजूद गट माइक्रोबायोटा की कंपोजीशन में गर्मी से होने वाले बदलाव के कारण भी हड्डियों की कमजोरी दूर होती है। शोधकर्ताओं ने चूहों पर अध्ययन करने के बाद यह दावा किया है। इसमें शोधकर्ताओं ने गर्म वातावरण में रहने वाले एक स्वस्थ चूहों का माइक्रोबायोटा हड्डियों की कमजोरी से पीड़ित दूसरे चूहों में डालकर देखा और पाया कि यह काम करता है।
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शोधकर्ताओं का दावा है कि माइक्रोबायोटा के ट्रांसप्लांट के बाद चूहों की हड्डियों में न सिर्फ मजबूती आई, बल्कि उनके घनत्व में भी बढ़ोतरी देखी गई। उन्होंने बताया कि सेल मेटाबॉलिज्म से जुड़े ये परिणाम ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज और रोकथाम में प्रभावी और नवीन भूमिका निभा सकते हैं। यह अध्ययन सेल मेटाबॉलिज्म नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसकी रिपोर्ट में अध्ययन में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ जिनेवा के सेल फिजियोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म विभाग के प्रोफेसर मिर्को त्राकोस्की ने कहा है, 'एक प्रयोग में हमने नए-नए जन्मे चूहों को 34 डिग्री सेल्सियस वाले तापमान में रखा। हमने पाया कि उनकी हड्डियां ज्यादा लंबी और मजबूत बनीं।'
इन शोधकर्ताओं के मुताबिक, गर्म वातावरण में रहने वाले कई चूहों की हड्डियों में उनके वयस्क होने के बाद भी कोई बदलाव नहीं हुआ और वे पहले जैसी मजबूती और घनत्व के साथ बनी रहीं। समय के साथ उनमें और सुधार ही देखने को मिला। इसके बाद वैज्ञानिकों ने अपने इसी प्रयोग को रजोनिवृत्ति के कारण होने वाले ऑस्टियोपोरोसिस से जुड़े मॉडल के तहत आजमाया। इसमें उन्हें जो परिणाम मिले, उस बारे में बताते हुए अध्ययन से जुड़े एक और शोधकर्ता और लेखक प्रोफेसर क्लेर शेवरल ने कहा, 'हमने बहुत दिलचस्प प्रभाव देखे। वातावरण को गर्म रखने के सामान्य तरीके से हमें चूहों को ऑस्टियोपोरोसिस की वजह से होने वाले बोन लॉस से बचाने में मदद मिली है।'
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लेकिन क्या ये परिणाम इन्सानों के मामले में भी मिलेंगे? इस सवाल के जवाब के लिए रिसर्च टीम ने हड्डियों की कमजोरी से जुड़ी इस बीमारी से संबंधित वैश्विक एपिडेमियोलॉजिकल डेटा का विश्लेषण किया। इसमें वातावरण के औसत तापमान, अक्षांक्ष, कैल्शियम उपभोग और विटामिन डी के स्तरों की जांच की गई। शोधकर्ता यह जानकर हैरान हुए कि जिन मरीजों से जुड़े इलाकों का तापमान ज्यादा था, वहां कूल्हे के फ्रैक्चर के मामले बहुत कम थे। यहां बता दें कि ऑस्टियोपोरोसिस के परिणामस्वरूप मरीजों में हिप फ्रैक्चर के काफी मामले देखने को मिलते हैं।
इस जानकारी पर प्रोफेसर त्राकोस्की कहते हैं, 'हमें भौगोलिक अक्षांश और हिप फ्रैक्चर के बीच स्पष्ट संबंध होने का पता लगाया है। इसका मतलब है कि उत्तर के देशों में हिप फ्रैक्चर के मामले गर्म रहने वाले दक्षिण की अपेक्षा ज्यादा हैं। विश्लेषण के तहत विटामिन डी और कैल्शियम जैसे फैक्टर्स की भूमिका पर बात करें तो उनसे इस संबंध में कोई बदलाव नहीं होता है। जैसे ही हमने तापमान के फैक्टर को हटाया यह संबंध खत्म हो गया। इसका अर्थ यह नहीं है कि विटामिन डी और कैल्शियम की कोई भूमिका नहीं है, लेकिन निर्धारक कारक गर्मी या इसकी कमी ही है।'