आयुर्वेद में माइग्रेन को अर्धावभेदक कहा जाता है। अर्धावभेदक का अर्थ होता है आधे सिर में दर्द होना। माइग्रेन का दर्द सिर में चुभता हुआ महसूस होता है। माइग्रेन का दर्द कभी भी हो सकता है, हर बार इसकी तीव्रता और दर्द की जगह भी अलग हो सकती है।
ये शिरोरोग (सिर का रोग) की दूसरी सबसे आम वजह है। दर्द की तीव्रता और जगह, दर्द का बार-बार होना या कुछ समय के अंतराल में होना, दर्द शुरु होने का समय और समयावधि तथा दर्द शुरु होने या बंद होने के कारण के आधार पर सिर के रोग अलग-अलग होते हैं।
आयुर्वेद में सेक (सिकाई), विरेचन कर्म (मल त्याग द्वारा शुद्धिकरण), रक्त मोक्षण (रक्तपात), बस्ती कर्म (एनिमा चिकित्सा), नास्य कर्म (सूंघने की चिकित्सा), कवल ग्रह (तेल लगाने की विधि), शिरोधारा और लेप (प्रभावित हिस्से पर औषधि लगाना) जैसे कई तरीकों से माइग्रेन का उपचार हो सकता है।
आयुर्वेद में माइग्रेन के इलाज के लिए अदरक, तगार, त्रिभुवनकीर्ति रस, गोदंती मिश्रण और सितोपलदी चूर्ण जैसी जड़ी-बूटियों और औषधियों का प्रयोग किया जाता है।