कोविड-19 महामारी के चलते स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। संक्रमण की रोकथाम को लेकर अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों को भी रोकना पड़ा। नतीजन, कई बीमारियों के बचाव में लगने वाली वैक्सीन लोगों तक नहीं पहुंच पायीं। खसरे की वैक्सीन इसमें से एक है। एक नई रिसर्च के आधार पर शोधकर्ताओं ने जोर देते हुए कहा है कि चूंकि हजारों बच्चों को खसरे का टीका नहीं मिल सका है, जिसके चलते अगले साल (2021) की शुरुआत में यह बीमारी एक बड़े प्रकोप का कारण बन सकती है। उल्लेखनीय है कि खसरा एक गंभीर संक्रामक बीमारी है जो एक वायरस के कारण होती है। यह वायरस संक्रमित बच्चे या वयस्क के नाक और गले में प्रतिक्रिया करता है।
चिकित्सा के क्षेत्र के प्रमुख पत्रिका "द लांसेट" में इस रिसर्च को प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के जरिए शोधकर्ताओं ने आने वाले वर्षों में संभावित खसरे की महामारी की आशंका जताई है। साथ ही इसे रोकने के लिए तत्काल अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई का आह्वान भी किया है।
कुपोषण से खसरे के मामलों को मिल सकता है बढ़ावा
खसरा और रूबेला वैक्सीन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के एसएजीई वर्किंग ग्रुप के चेयरमैन और ऑस्ट्रेलिया के मर्डोक चिल्ड्रन रिसर्च इंस्टीट्यूट में अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता किम मुलहोलैंड का कहना है, "इस साल कई बच्चे खसरे के टीकाकरण से वचिंत रह गए हैं, जिसके चलते भविष्य में इससे जुड़े एक प्रकोप की आशंका बनी हुई है।" मुल्होलैंड आगे कहते हैं कि कोविड-19 के चलते लगे प्रतिबंध की वजह से साल 2020 में खसरे से जुड़े ज्यादा मामले दर्ज नहीं किए गए। इस लिहाज से यह साल बेहतर रहा है। लेकिन आर्थिक प्रभाव के चलते बच्चों में कुपोषण से जुड़े मामलों को बढ़ावा मिल सकता है। यह चिंताजनक है, क्योंकि कुपोषण से खसरे की गंभीरता बढ़ेगी, जिससे खराब परिणाम और अधिक मौतें होती हैं। खासकर कम और मध्यम आय वाले देशों में स्थिति भयावक हो सकती है।
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मुल्होलैंड के मुताबिक "खसरे से मरने वाले बच्चे अक्सर कुपोषित होते हैं, लेकिन गंभीर खसरा रोग के कारण कई बच्चे कुपोषण की ओर खींचे चले जाते हैं। मुल्होलैंड चेतावनी देते हुए कहते हैं कि कुपोषण, खसरे से जुड़ी प्रतिरक्षा में रुकावट के साथ मृत्यु दर में देरी की ओर ले जाता है, जबकि विटामिन ए की कमी के साथ खसरे से संबंधित अंधापन भी हो सकता है।
संक्रमित बच्चों की बढ़ सकती है संख्या- शोधकर्ता
शोधकर्ता के अनुसार, आने वाले महीनों में उन बच्चों की संख्या में वृद्धि होने की आशंका है जो खसरे के लिए अतिसंवेदनशील यानी संक्रमण के अधिक जोखिम में है। वो इसलिए क्योंकि, कई बच्चे गरीबी के साथ दूरदराज के समुदायों में रहते हैं जहां स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बहुत कम है। यही वजह है कि ऐसे बच्चों में कुपोषण और विटामिन ए की कमी पहले से ही बढ़ रही है। प्रोफेसर मुल्होलैंड का कहना है कि कोविड-19 महामारी के कारण टीके-निवारक रोगों के नियंत्रण पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इस साल के शुरुआती महीनों में टीकाकरण अभियानों को रोका गया और कई देशों में नियमित टीकाकरण सेवाओं को बाधित किया गया।
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डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि अक्टूबर 2020 के अंत तक, 26 देशों में टीकाकरण अभियानों में देरी से 90 लाख से अधिक (94 मिलियन) बच्चे मीजल्स की डोज से वंचित रह गए। मुल्होलैंड का कहना है कि यही वो फैक्टर हैं जो 2021 में गंभीर खसरे के प्रकोप का कारण बनेंगे। इससे मृत्यु दर में वृद्धि के साथ खसरे की बीमारी की गंभीरता भी बढ़ेगी जो कि एक दशक पहले थी। आज हमारे पास मीजल्स वैक्सीन के जरिए बीमारी को रोकने का प्रभावी विकल्प मौजूद है, इसके बावजूद अगर अब कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो यह आशंका है कि आने वाले सालों में खसरा और इसकी गंभीरता के साथ इसकी जटिलताओं में भी वृद्धि देखी जाएगी।