खसरा एक संक्रामक बीमारी है जो कि रूबेला वायरस से होती है। ये वायरस संक्रमित व्‍यक्‍ति के खांसने और छींकने पर फैलता है। वायरस के संपर्क में आने के बाद व्‍यक्‍ति में 7 से 14 दिनों के अंदर लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं।

खसरे के विशेष लक्षणों में त्‍वचा पर चकत्ते पड़ना भी एक है जो कि चेहरे से शुरू होकर धीरे-धीरे पूरे शरीर पर फैल जाते हैं। वैसे तो अधिकतर लोग 2 से 3 हफ्ते के अंदर ठीक हो जाते हैं लेकिन कई बार कान में संक्रमण, दस्‍त, निमोनिया, इन्सेफेलाइटिस (मस्तिष्‍क में सूजन) जैसी जटिलताएं आ सकती हैं।

कुछ गंभीर मामलों में ये बीमारी जानलेवा भी साबित हो सकती है। वैश्विक स्‍तर पर बच्‍चों के बीमार पड़ने और मृत्‍यु का पांचवा सबसे बड़ा कारण खसरा ही है। बच्‍चों को आजीवन खसरे से बचाने के लिए वैक्‍सीन दिए जाते हैं। हालांकि, वैक्‍सीन लेने के बावजूद खसरे के मामले युवा लोगों में बढ़ रहे हैं। इसके अलावा कुछ परिवार तो ये सोचकर वैक्सीन नहीं लगवाते हैं कि इससे ऑटिज्‍म का खतरा बढ़ जाता है।

भारत में लगभग 12.7 प्रतिशत लोग उपचार के लिए होम्योपैथिक ट्रीटमेंट पर निर्भर करते हैं। होम्‍योपैथी न सिर्फ लक्षणों का इलाज करती है बल्कि मरीज की संपूर्ण सेहत में सुधार लाती है। खसरे के लिए इस्‍तेमाल होने वाली दवाओं में एकोनिटम नैपेल्लस, एपिस मेलिफिका, बेलाडोना, यूफ्रासिया ऑफिसिनैलिस, जेल्सीमियम सेम्परविरेंस, केलियम बाइक्रोमिकम, पल्सेटिला प्रेटेंसिस और सल्‍फर शामिल हैं।

  1. खसरे की होम्योपैथिक दवा - Khasre ki homeopathic dawa
  2. होम्योपैथी में खसरे के लिए खान-पान और जीवनशैली में बदलाव - Homeopathy me Measles ke liye khan pan aur jeevan shaili me badlav
  3. खसरे की होम्योपैथी दवा कितनी लाभदायक है - Khasre ki homeopathic dawa kitni faydemand hai
  4. खसरे के होम्योपैथिक उपचार से जुड़े अन्य सुझाव - Khasre ke homeopathic upchar se jude anya sujhav

खसरा के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली कुछ होम्‍योपैथिक दवाएं इस प्रकार हैं :

  • एकोनिटम नैपेल्लस (Aconitum Napellus)
    सामान्‍य नाम :
    मॉन्‍क शुड (Monkshood)
    लक्षण : जिन लोगों में निम्‍न लक्षण दिखाई देते हैं, उन्‍हें एकोनाइट दवा दी जाती है :
    • डर लगना और चिंता
    • बेचैनी
    • सिरदर्द में जलन भी महसूस होना
    • आंखें लाल होना/आंखों में जलन
    • चेहरा लाल और गर्म होना एवं सूजन आना
    • रूखी त्‍वचा
    • अत्‍यधिक प्‍यास लगना
    • तेज खुशबू महसूस होना
    • नाक के सिरे (सबसे ऊपर वाला हिस्सा जिसे रूट भी कहा जाता है) पर दर्द होना
    • कभी-कभी ठंड लगना और बुखार
    • शरीर पर ठंडी हवा महसूस होना
    • सुन्‍नता
    • त्‍वचा पर कीड़े रेंगने जैसा एहसास और सिहरन होना
    • स्किन पर बहुत तेज खुजली होना
    • गरमाई में और शाम के समय लक्षण और गंभीर हो जाते हैं। व्‍यक्‍ति को खुली हवा में बेहतर महसूस होता है
       
  • एपिस मेलिफिका (Apis Mellifica)
    सामान्‍य नाम :
    हनी बी (The honey-bee)
    लक्षण : एपिस उन लोगों पर बेहतर असर करती है जो आसानी से रो पड़ते हैं और जो ज्‍यादा शिकायत करते हैं। निम्‍न लक्षणों में ये दवा उपयोगी है :
    • विसर्प (एक प्रकार का त्‍वचा संक्रमण)
    • त्‍वचा पर सूजन, डंक मारने जैसा और गुलाबी रंग होना
    • चेहरे का रंग पीला पड़ना
    • पलकों में सूजन और लालिमा
    • मसूड़ों, जीभ, गले और होंठों में सूजन
    • सूखी खांसी
    • प्‍यास कम लगना
    • दूध पीने का मन करना
    • सुस्‍ती आना
    • स्किन पर रक्‍तमणि (कई फोड़े होना) के साथ जलन और चुभने वाला दर्द होना
    • दोपहर में प्‍यास लगने के साथ ठंड महसूस होना जो कि चलने पर एवं गर्मी में और बढ़ जाएं
    • अचानक पूरे शरीर पर सूजन आना
    • नींद के दौरान अचानक चिल्‍लाना और झटके महसूस होना
    • गर्मी, दबाव से, छूने, गरमाई में और दोपहर में लक्षण और गंभीर हो जाते हैं। मरीज को खुली हवा और ठंडे पानी से नहाने पर बेहतर महसूस होता है
       
  • बेलाडोना (Belladonna)
    सामान्‍य नाम :
    डेडली नाइटशेड (Deadly nightshade)
    लक्षण : बेलाडोना से नीचे बताए गए लक्षणों को ठीक किया जा सकता है :
    • भ्रम रहना
    • छिपने का मन करना
    • चेहरे पर सूजन और चमक आना
    • रूखी त्‍वचा और त्‍वचा का संवेदनशील होना
    • स्किन पर तेज जलन के साथ चेहरे पर कभी-कभी पीलापन और लालिमा आना
    • सूजन के बाद स्किन का सख्‍त होना
    • लाल बुखार (तेजी से फैलने वाला संक्रमण) जैसे कि फोड़े-फुंसी होना जो कि अचानक फैल जाएं
    • सिरदर्द जिसमें हथौड़े पड़ने जैसा महसूस हो
    • नब्ज का तेज, लेकिन कमजोर होना
    • आंखों में सूजन और आंखों का बाहर निकलना
    • प्‍यास कम लगना
    • बुखार
    • नींद आने में दिक्‍कत और सुस्‍ती होना
    • छूने, चलने और लेटने पर लक्षण और गंभीर हो जाते हैं। कमर को सहारा देकर बैठने पर लक्षणों में आराम मिलता है
       
  • यूफ्रासिया ऑफिसिनैलिस (Euphrasia Officinalis)
    सामान्‍य नाम :
    आई ब्राइट (Eyebright)
    लक्षण : यूफ्रासिया निम्‍न लक्षणों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति पर बेहतर असर करती है :
    • सिरदर्द जिसमें हथौड़े पड़ने जैसा महसूस हो
    • श्‍लेष्‍मा झिल्लियों में सूजन (अंगों की अंदरूनी लाइनिंग), खासतौर पर आंखों और नाक में
    • आंखों और नाक से अत्‍यधिक डिस्‍चार्ज होना (कोई तरल पदार्थ निकलना)
    • कैटेरहल कंजक्टिवाइटिस (कंजक्टिवा में सूजन)
    • लगातार आंखों से पानी आना
    • आंखों से तेज गंध वाले आंसू आना
    • पलकों में सूजन, जिसमें जलन भी हो
    • बार-बार पलकें झपकाने की प्रवृत्ति
    • आंखों के सफेद हिस्‍से यानी कॉर्निया में छोटे फोड़े और चिपचिपा श्‍लेम (म्‍यूकस) बनना
    • गालों पर लालिमा और गर्म होना
    • ठंड लगने के साथ बुखार
    • रात के समय पसीना आना, खासतौर पर छाती के ऊपर
    • शाम में, घर में रहने और गरमाई में लक्षण और बढ़ जाते हैं। अंधेरे और कॉफी लेने पर लक्षणों में सुधार आता है
    • ये दवा विशेष रूप से ऊपर बताए गए खसरे के पहले चरण के दौरान आंखों से जुड़े लक्षणों के लिए उपयोगी है
       
  • जेल्सीमियम सेम्परविरेंस (Gelsemium Sempervirens)
    सामान्‍य नाम :
    येलो जैस्मीन (Yellow jasmine)
    लक्षण : ये दवा फोड़े-फुंसियों को बाहर निकालने में मदद करती है और इस प्रकार इलाज की प्रक्रिया में तेजी आती है। निम्‍न लक्षणों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति पर ये दवा बेहतर असर करती है :
    • चक्‍कर आना और सुस्‍ती
    • थकान और मानसिक उदासीनता
    • पूरे शरीर में भारीपन महसूस होना, विशेष तौर पर पलकों पर
    • चेहरे का गर्म और लाल होना
    • नाक से पतला और रगड़ने जैसा डिस्‍चार्ज होना
    • खाना निगलने में दिक्‍कत
    • प्‍यास न लगना
    • सूखी खांसी के साथ छाती में दर्द
    • नब्ज धीमी पड़ना
    • गर्दन, पीठ, कूल्‍हों और हाथ-पैरों की मांसपेशियों में दर्द
    • प्रलाप (एक प्रकार का मानसिक विकार) खासतौर पर सोने पर
    • त्‍वचा पर खुजली, रूखापन और गर्म महसूस होना
    • थकान और चेहरे का लाल पड़ने के साथ लाल बुखार
    • बहुत ज्‍यादा कांपना और हाथ-पैरों में कमजोरी
    • फोड़े-फुंसी के ठीक होने पर उस जगह पर काले-नीले रंग के धब्‍बे पड़ना
    • सिर में हल्‍का दर्द होने के साथ बुखार
    • उमस और अत्‍यधिक भावनात्‍मक (जैसे कि अति उत्‍साहित) होने पर और उमस में मरीज की स्थिति और खराब हो जाती है। खुली हवा, ज्‍यादा पेशाब करने और चलने पर लक्षणों में सुधार आता है
       
  • केलियम बाइक्रोमिकम (Kalium Bichromicum)
    सामान्‍य नाम :
    बाइक्रोमेट ऑफ पोटाश
    लक्षण : निम्‍न लक्षणों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को केलियम बाइक्रोमिकम दी जाती है :
    • सिरदर्द (जो कि आइब्रो के आसपास भी हो) के बाद आंखों का धुंधलापन
    • पलकों में अत्‍यधिक मात्रा में पतला फ्लूइड जमने के साथ पीला और लसदार डिस्‍चार्ज होना
    • नाक से गाढ़ा, लसदार और हरे-पीले रंग का डिस्‍चार्ज होना
    • तेज छींक आना
    • सूंघने की क्षमता कम होना
    • नाक के सिरे पर दबाव और दर्द महसूस होना
    • कान से गाढ़ा, पीला, चिपचिपा और बदबूदार डिस्‍चार्ज होने के साथ तेज दर्द होना
    • लार ग्रंथियों में सूजन
    • कर्कश आवाज जो कि शाम के समय ज्‍यादा परेशान करे
    • सूखी खांसी जिसमें खांसने पर तेज आवाज आए
    • त्‍वचा पर अल्‍सर होना जिनके किनारों पर छेद हों
    • स्किन पर पस से भरे फोड़े-फुंसी होना जो कि चेचक जैसे लगें, इसके साथ ही जलने वाला दर्द होना, लेकिन बुखार न होना
    • जोड़ों में सूजन और अकड़न
    • सुबह के समय और बियर पीने पर लक्षण और बढ़ जाते हैं। गर्मी में लक्षणों में सुधार आता है
       
  • पल्सेटिला प्रेटेंसिस (Pulsatilla Pratensis)
    सामान्‍य नाम :
    विंड फ्लॉवर (Windflower)
    लक्षण : ये दवा बहुत ही ज्‍यादा संवेदनशील लोगों को दी जाती है जो आसानी से रो पड़ते हैं और अत्‍यधिक उत्तेजित या परेशान हो जाते हैं एवं जिन्‍हें अधिक दुलार मिलता है। इस दवा से जिन लोगों को फायदा होता है, उनमें निम्‍न लक्षण दिखाई देते हैं :
    • पलकों में सूजन जो अक्‍सर एकसाथ चिपक जाएं
    • खासतौर पर आंख और कान की श्‍लेष्‍मा झिल्लियों से गाढ़ा, मुलायम और हरे-पीले रंग का डिस्‍चार्ज होना
    • आंखों में जलन और खुजली होना
    • कान के बाहरी हिस्‍से में सूजन और लालिमा
    • मुंह में सूखापन
    • प्‍यास न लगना
    • जीभ का पीला या सफेद पड़ना
    • होंठों में सूजन
    • नीचे वाले होंठ के बीचे में दरार आना
    • वैरिकोज वेन्स
    • सिरदर्द
    • दस्‍त, भूख में कमी के साथ जी मतली
    • सूखी खांसी, खासतौर पर शात और रात के समय
    • ठंड लगने के साथ दर्द होना
    • गरमाई सहन न कर पाना
    • गरमाई से, बाईं करवट लेटने और खाना खाने के बाद लक्षण और बढ़ जाते हैं। खुली हवा, ठंडा खाने और पीने पर एवं चलने पर लक्षणों में सुधार आता है
       
  • सल्‍फर (Sulphur)
    सामान्‍य नाम :
    सब्‍लीमेटेड सल्‍फर (Sublimated sulphur)
    लक्षण : आमतौर पर सल्‍फर उन लोगों को दी जाती है जिन्‍हें बहुत ज्‍यादा भूलने की बीमारी, भ्रम और सोचने में दिक्‍कत आती है। ऐसे लोग आमतौर पर परेशान, अवसादग्रस्‍त, ज्‍यादा भूख लगने पर भी दुबले और कमजोर होते हैं। इनमें निम्‍न लक्षण दिखाई देते हैं :
    • सिरदर्द के साथ सिर में भारीपन
    • आंखों में जलन
    • होंठों पर जलन और रूखापन एवं होंठों का रंग लाल पड़ना
    • अत्‍यधिक एसिडिटी
    • या तो बहुत ज्‍यादा भूख लगना या न लगना
    • बार-बार बुखार आना
    • अस्‍वस्‍थ, रूखी और पपड़ीदार त्‍वचा
    • मामूली चोट लगने पर भी पस बनना
    • त्‍वचा पर बहुत ज्‍यादा खुजली होना खासतौर पर शाम के समय और गरमाई में। वसंत और वर्षा ऋतु में ऐसा बार-बार होता है
    • जिन हिस्‍सों पर त्‍वचा मुड़ती है, वहां पर रगड़ या घर्षण होना
    • बिस्‍तर की गरमाई, सुबह और रात के समय, नहाने के बाद और कभी-कभी उत्तेजक शराब लेने से लक्षण और खराब हो जाते हैं। व्‍यक्‍ति को शुष्‍क और गर्म मौसम में बेहतर महसूस होता है
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होम्‍योपैथिक दवाओं को बहुत पतली खुराक में तैयार किया जाता है और विभिन्‍न आहार एवं जीवनशैली से संबंधित कारक इनके असर को प्रभावित कर सकते हैं। मरीज के आहार से जुड़ी ऐसी बातों की जानकारी होना जरूरी है जो कि होम्‍योपैथिक दवाओं के असर को प्रभावित कर सकती हैं। इसके अलावा उपचार से अधिक से अधिक लाभ पाने के लिए भी आवश्‍यक बदलाव करना जरूरी है। होम्‍योपैथिक उपचार लेने के दौरान कुछ बातों का ध्‍यान रखना जरूरी है, जैसे कि :

क्‍या करें

क्‍या न करें

  • औषधीय मसालों से बनी शराब और कॉफी न पिएं
  • अत्‍यधिक मसालेदार खाना और सॉस न खाएं
  • औषधीय गुण रखने वाली सब्जियों से बने व्‍यंजन खाने से बचें
  • कोल्‍ड ड्रिंक और आइसक्रीम न खाएं
  • प्‍याज और अजमोद को अपने आहार में शामिल न करें
  • पुरानी चीज और बासी मीट खाने से बचें
  • अधिक देर तक सोने की गलती न करें
  • तेज खुशबू वाले परफ्यूम, टूथ पाउडर और फूलों के इस्‍तेमाल से बचें
  • गीले और गर्म कमरे में न जाएं
  • मानसिक और शारीरिक तनाव न लें

खसरे के इलाज में होम्‍योपैथिक दवाएं बहुत असरकारी होती हैं। इससे न केवल खसरे के लक्षणों की तीव्रता में अद्भुत कमी आती है, बल्कि मरीज की प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करने में मदद मिलती है। इस प्रकार खसरे से जुड़ी जटिलताओं को रोका जा सकता है।

एक मामले के अध्‍ययन में दुर्लभ न्‍यूरोलॉजिकल सिंड्रोम (तंत्रिका तंत्र से जुड़ा विकार) और सब-एक्‍यूट खसरा इंसेफेलाइटिस से ग्रस्‍त 6 वर्षीय बच्‍चे का प्रभावी रूप से होम्योपैथिक दवा, जिंकम मेटालिकम से इलाज किया गया था। सब-एक्‍यूट खसरा इंसेफेलाइटिस का मतलब लंबे समय से खसरे के लिए ट्रीटमेंट लेने की वजह से बच्‍चे की इम्‍युनिटी कमजोर होना और संक्रमण का मस्तिष्‍क को प्रभावित करना है।

एक विश्लेषणात्मक अध्ययन में एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (खसरे में होने वाली जटिलता) 6 महीने से लेकर 18 साल के बच्‍चों को एलोपैथी के साथ होम्‍योपैथिक ट्रीटमेंट दी गई। अध्ययन ने होम्योपैथिक दवाओं की प्रभावशीलता को इंगित करते हुए मृत्यु दर और रोगियों में अस्‍वस्‍थता में कमी आने का निष्कर्ष निकाला।

एलोपैथी एंटीबायोटिक दवाओं के अत्‍यधिक उपयोग से मरीज पर धीरे-धीरे एंटीबायोटिक का प्रतिरोध कम होने लगता है। सिर्फ एलोपैथी से ही अकेले रोगाणुओं को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, इसके साथ मरीज को होम्‍योपैथी उपचार दिया जा सकता है या फिर विकल्‍प के रूप में भी होम्‍योपैथी ट्रीटमेंट ली जा सकती है। होम्‍योपैथिक दवाओं को प्राकृतिक स्रोतों से तैयार किया जाता है और ये बच्‍चों एवं वयस्‍कों दोनों के लिए सुरक्षित हैं।

(और पढ़ें - खसरा में क्या करना चाहिए)

खसरा एक संक्रामक रोग है जो कि रूबेला वायरस से होता है। ये प्रमुख तौर पर बच्‍चों को प्रभावित करता है और खांसने एवं छींकने पर फैलता है। ये स्थिति खुद से भी ठीक हो सकती है या गंभीर जटिलताएं सामने आ सकती हैं या फिर इसकी वजह से मृत्‍यु तक हो सकती है।

वैसे तो इस बीमारी के लिए वैक्‍सीन उपलब्‍ध है, लेकिन उनके कुछ दुष्‍प्रभाव माने जाते हैं और हर कोई वैक्‍सीन नहीं लगवा पाता है। इसलिए ये बीमारी अब तक बच्‍चों में मृत्‍यु का पांचवा सबसे बड़ा कारण बनी हुई है।

कुछ अध्‍ययनों में खसरे के इलाज में होम्‍योपैथिक दवाओं को असरकारी पाया गया है। चूंकि, होम्‍योपैथी दवाओं को बहुत कम खुराक में तैयार किया जाता है इसलिए इनके कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होते हैं।

एलोपैथी दवाओं के साथ सुरक्षित तौर पर होम्‍योपैथी दवाएं ली जा सकती हैं। इन दवाओं को हमेशा अनुभवी होम्‍योपैथी चिकित्‍सक की देखरेख में ही लेना चाहिए। मरीज की चिकित्‍सकीय स्थिति के बारे में पूरी जानकारी लेने से सही दवा चुनने में मदद मिलती है।

संदर्भ

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  2. Dr Saurabh Ram Bihari Lal Shrivastava, Dr Prateek Saurabh Shrivastava, Dr Jegadeesh Ramasamy. Measles in India: Challenges & recent developments Infect Ecol Epidemiol. 2015; 5: 10.3402/iee.v5.27784 PMID: 26015306
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