मलेरिया एक गंभीर बीमारी है, जिससे हर साल लाखों लोग संक्रमित होते हैं। साथ ही ये बीमारी हजारों लोगों की मौत का कारण भी बनती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अनुमान के मुताबिक साल 2019 में मलेरिया के चलते चार लाख से अधिक (4,09,000) लोगों की मौत हुई। डब्ल्यूएचओ ने अपनी विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2020 में बताया कि मच्छर जनित बीमारी जैसे कि मलेरिया के खिलाफ कार्रवाई स्थिर होने के चलते ये आंकड़े इतने भयावक दिखाई देते हैं। विशेषकर अफ्रीकी देशों को इसका सबसे अधिक खामियाजा उठाना पड़ा है जहां मलेरिया से जुड़े संक्रमित और मौतों के मामलों की संख्या अत्याधिक थी।
मृतकों के मामलों में गिरावट, फिर भी लाखों की मौत
साल 2019 में, मलेरिया के कुल मामलों की संख्या का अनुमान लगाएं तो पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर कुल 22 करोड़ 90 लाख (229 मिलियन) मामलों की पु्ष्टि हुई। हैरानी की बात है कि मलेरिया संक्रमितों का यह आंकड़ा पिछले चार सालों से समान स्तर पर बना हुआ है। हालांकि, राहत की बात है कि संक्रमण से होने वाली मौतों के मामलों में एक बड़ी गिरावट लगातार देखी गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2000 में मलेरिया से होने वाली मौत के सात लाख से अधिक (7,36,000) मामले सामने आए थे। लेकिन यहां से मौतों के मामलों में गिरावट का सिलसिला देखा गया है और बीते दो सालों में मृतकों की संख्या काफी कम हुई है। एक अनुमान के मुताबिक साल 2018 में मलेरिया से होने वाली मौत के 4,11,000 मामले सामने आए थे, जबकि बीते साल मलेरिया से 4,09,000 मौतों का दावा किया गया है।
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हालांकि, संक्रमण की रोकथाम और बचाव संबंधी प्रयासों में थोड़ी कमी आई है। सार्वजनिक संगठनों ने इसके पीछे फंडिंग को जिम्मेदार ठहराया है। डब्ल्यूएचओ की मानें तो वैश्विक स्तर पर बीमारी से जुड़े आंकड़ों में सकारात्मक बदलाव और सुधार संबंधी लक्ष्यों को पाने के लिए एक अच्छी फंडिंग की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने बताया कि 2019 में 500 करोड़ डॉलर से अधिक (5.6 बिलियन) के फंड का लक्ष्य था, लेकिन केवल 300 करोड़ (3 बिलियन) डॉलर की प्राप्ति हुई। इस तरह से फंडिंग की कमी ने मलेरिया नियंत्रण संबंधी महत्वपूर्ण साधनों के बीच एक बड़ा अंतर और खतरा पैदा हुआ है।
अफ्रीकी देशों में मलेरिया का ज्यादा प्रकोप- रिपोर्ट
संगठन की ओर से जारी आंकड़ों में बताया गया है कि मलेरिया का सबसे अधिक प्रकोप अफ्रीकी देशों में है, जहां बीमारी से जुड़े 90 फीसद मामले दर्ज की किए जाते हैं। अनुमान के मुताबिक बीते साल अफ्रीकी महाद्वीप में मलेरिया के चलते 3,84,000 मौत के मामले सामने आए। इन आंकड़ों के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधानोम गेब्रियेसुस कहते हैं ' यह वो वक्त है जब अफ्रीकी और दुनियाभर के शीर्ष नेताओं को मलेरिया जैसी गंभीर बीमारी से जुड़ी चुनौतियां से पार पाने के लिए फिर से आगे आना होगा।'
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पूर्व अफ्रीकी देश इथियोपिया के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक 'यहां संयुक्त कार्रवाई की जरूरत है ताकि दुनिया के सामने मलेरिया मुक्त से जुड़ा एक उदाहरण पेश कर सकें।' देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर चार ऐसे बड़े देश हैं जहां साल 2019 में मलेरिया से जुड़े करीब आधे मामले दर्ज किए गए। इसमें नाइजीरिया में 27 प्रतिशत, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में 12 प्रतिशत, युगांडा में पांच प्रतिशत और मोजाम्बिक में मलेरिया के चार प्रतिशत मामलों की पुष्टि हुई थी।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार एक अच्छी बात यह है कि मलेरिया रोकथाम से जुड़े अधिक अभियानों पर कोविड-19 महामारी का ज्यादा बड़ा प्रभाव देखने को नहीं मिला है। चूंकि यहां एक बड़ी चिंता यह थी कि कोविड-19 संक्रमण के चलते मलेरिया को नियंत्रित करने की कोशिशों को नुकसान पहुंचेगा। हालांकि, थोड़ा असर जरूर हुआ है और अफ्रीका में डब्ल्यूएचओ के रिजनल डायरेक्टर मात्शिदिसो मोएटी ने इसका जिक्र भी किया। उनके मुताबिक 'कोविड-19 की चुनौतियों ने मलेरिया पर नियंत्रण पाने के हमारे आगे के प्रयासों को पटरी से उतार दिया है। विशेषकर के बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज में खासी परेशानियां आई हैं।'
भारत में मलेरिया से जुड़े आंकड़ों में सुधार
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि मलेरिया-रोधी उपचार में थोड़ा सी भी खलल या दखलअंदाजी जीवन को खतरे में डाल सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मलेरिया के उपचार में 10 फीसद दखलअंदाली, उप-सहारा अफ्रीका में 19,000 अतिरिक्त मौतों का कारण बन सकती है। दूसरी ओर एक अच्छी बात यह है कि दुनिया के 21 देशों ने पिछले दो दशकों में मलेरिया को खत्म कर दिया है। अफ्रीका के बाहर देखा जाए तो भारत जैसे देशों में संक्रमण के रोकथाम संबंधी ऐसे परिणाम सामने आए हैं। यहां पिछले दो वर्षों में संक्रमित मामलों में 18 प्रतिशत और मौतों में 20 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
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इसी तरह एंटीमलेरियल ड्रग रेजिस्टेंस के खतरे के बावजूद, दक्षिण-पूर्व एशिया के ग्रेटर मेकांग उप-भाग के छह देश 2030 तक मलेरिया को खत्म करने का लक्ष्य बनाए हुए हैं। इन देशों में मलेरिया के मामलों में (2000 से 2019 तक) 90 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई है।