वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला मलेरिया वैक्सीन लॉन्च किया गया। अफ्रीकी देश मलावी से इसकी शुरुआत हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, उम्मीद है कि यह वैक्सीन विशेषकर पांच साल से कम उम्र के हजारों बच्चों को जानलेवा मलेरिया से सुरक्षा प्रदान करेगा। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि RTS,S को बनाने में तीस साल की मेहनत लगी और यह अभी तक दुनिया में पहला वैक्सीन होगा जो बच्चों में महत्वपूर्ण रूप से मलेरिया के मामलों को कम करेगा।
3 लाख से ज्यादा बच्चों को दिया जाएगा वैक्सीन
10 में से 4 क्लीनिकल ट्रायल्स में यह मलेरिया को रोकने में कारगर पाया गया। एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इन 10 मामलों में से 3 मामले जानलेवा मलेरिया के थे। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि तीन अफ्रीकी देशों में 3,60,000 बच्चों को एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह वैक्सीन दिया जाएगा। मलावी में दो साल से कम उम्र के बच्चों को यह वैक्सीन देना शुरू कर दिया है। केन्या और घाना आने वाले हफ्तों में इसकी शुरूआत करेंगे। दोनों देशों का स्वास्थ्य मंत्रालय यह तय करेगा कि इसके इस्तेमाल की शुरुआत कहां से की जाए।
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बड़ा हथियार साबित होगा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर ने कहा, ‘पिछले 15 सालों में हमने देखा है कि मच्छरदानियों और दूसरे रोकथाम के उपाया में जोरदार इजाफा हुआ है। लेकिन इसकी प्रगति रुक गई है और कुछ इलाकों में मलेरिया की दोबारा वापसी हुई है। यह टीका हमें इस दिशा में आगे बढ़ने में मदद करेगा।’
अफ्रीका सबसे ज्यादा प्रभावित
मलेरिया एक परजीवी बीमारी है, जो मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होती है। इसकी रोकथाम और उपचार दोनों ही संभव है। हर साल इससे करीब 4,35,000 लोगों की मौत हो जाती है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों के ऊपर इसका सबसे ज्यादा खतरा रहता है, जिनके लिए यह जानलेवा तक साबित होती है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हर दो मिनट में मलेरिया से एक बच्चे की मौत हो जाती है। इनमें से ज्यादातर मौतें अफ्रीका में होती हैं, जहां पर हर साल 2,50,000 से ज्यादा बच्चों की बीमारी से मौत हो जाती है।
वैक्सीन की क्षमता पर आमराय नहीं
इस पर इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर में इस प्रकार की बिमारियों के विशेषज्ञऔर डायरेक्टर ने कहा कि इस वैक्सीन ने ट्रायल्स में जो नतीजे दिखाए हैं क्या यह असल दुनिया में वैसे ही नतीजे दिखा पाएगा, जो कि एक बड़ा सवाल है। उन्होंने कहा, ‘मलेरिया वैक्सीन को लॉन्च करना एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन इस वैक्सीन की क्षमता दूसरे शिशु वैक्सीन्स के मुकाबले काफी कम है।’ उन्होंने कहा कि एक बड़े ट्रायल में इस वैक्सीन ने मलेरिया के करीब 40 प्रतिशत मामलों में कमी की और मलेरिया के घातक मामलों में यह आंकड़ा 30 पर्सेंट रहा है। तुलनात्मक रूप से दूसरे शिशु वैक्सीन 90 प्रतिशत से ज्यादा सुरक्षा प्रदान करते हैं।
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वे आगे कहते हैं कि मलेरिया जैसा परजीवी दूसरे वायरस और बैक्टीरिया के मुकाबले ज्यादा जटिल होता है। हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को नुकसान पहुंचाने की उनके पास ज्यादा क्षमता हो सकती है। इसलिए मलेरिया के लिए एक प्रभावी वैक्सीन बनाना चुनौतीपूर्ण है।
मलेरिया की वापसी का खतरा
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2000 से लेकर 2015 के बीच मलेरिया से होने वाली मौतों में 62% और इसके मामलों में 41 प्रतिशत की कमी आई थी। हालांकि, हालिया आंकड़े इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि मलेरिया की वापसी हो रही है। 2016 में 21.7 करोड़ के मुकाबले 2017 में मलेरिया के 21.9 करोड़ मामले सामने आए। इस पर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ह्यूमन जेनेटिक्स के प्रोफेसर ने कहा, ‘इस बीमारी से निपटना मुश्किल है। इससे लड़ने के उपकरण मामूली रूप से प्रभावी हैं लेकिन 10-20 साल बाद मच्छर दवाइयों और कीटनाशकों के प्रतिरोधी बन जाएंगे, जिससे यह सब कारगर साबित नहीं होंगे। असल चिंता 2020 को लेकर है, जब मलेरिया के मामलों में दोबारा उछाल आएगा।
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