शरीर की सफाई या यूं कह लीजिए कि बॉडी को फिल्‍टर करने का काम किडनी करती हैं। ये पोषक तत्‍वों को लेकर, शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती हैं। इस सक्षम फिल्‍ट्रेशन यूनिट के आखिरी बैरियर की कोशिकाओं को पोडोसाइट्स कहते हैं।

किडनी की बीमारी से पोडोसाइट नाम की कोशिका के क्षतिग्रस्‍त होने को पोडोसाइटोपैथी कहते हैं। प्रोटीनूरिया के सबसे आम कारण में पोडोसाइटोपैथी शामिल है। आगे जानिए पोडोसाइटोपैथी के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में।

  1. पोडोसाइटोपैथी के लक्षण
  2. पोडोसाइटोपैथी के कारण
  3. पोडोसाइटोपैथी का निदान
  4. पोडोसाइटोपैथी को कंट्रोल कैसे करें
  5. पोडोसाइटोपैथी ट्रीटमेंट का परिणाम

नेफ्रोटिक सिंड्रोम और प्रोटीनूरिया का सबसे आम कारण पोडोसाइटोपैथी ही है।

  • नेफ्रोटिक सिंड्रोम : य‍ह एक किडनी रोग जिसमें शरीर से विषाक्‍त पदार्थों और अतिरिक्‍त पानी को फिल्‍टर करने वाली छोटी रक्‍त वाहिकाएं डैमेज हो जाती हैं। इसमें सूजन आ जाती है।
  • प्रोटीनूरिया : इसमें पेशाब में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।

आमतौर पर इन स्थितियों से मरीज के ग्रस्‍त होने के बाद ही प्रोब से जांच करने पर पोडोसाइटोपैथी का पता चलता है।

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पोडोसाइट्स को चोट लगना पोडोसाइटोपैथी का प्रमुख कारा है। सिस्‍टेमिक इम्‍यून विकारों की वजह से ये चोटें लग सकती हैं।

हालांकि, हो सकता है कि कभी-कभी ऐसे विकारों से ये चोटें न लगें। इस स्थिति में इन्‍हें घावों के रूप में समझा जा सकता है जिसे बायोप्‍सी से देखा जा सकता है। ये घाव अविशिष्ट होते हैं और इनका संबंध कुछ इलाज की प्रक्रियाओं और जेनेटिक गड़‍बडियों जैसी समस्‍याओं से हो सकता है।

पोडोसाइटोपैथी के निदान का पहला कदम होता है, मौजूदा स्रोतों से मरीज और उसके परिवार की मेडिकल हिस्‍ट्री जानना। इसके अलावा निम्‍न टेस्‍ट भी किए जा सकते हैं :

जीन डायग्‍नोस्टिक से पोडोसाइटोपैथी के किसी जेनेटिक या अनुवांश‍िक कारण का पहले ही पता लगाया जा सकता है। इससे डॉक्‍टर और मरीज, दोनों का ही समय बचता है और वो बेअसर और गैर-जरूरी उपचार पर अपना समय बर्बाद नहीं करते हैं।

यह मॉलेक्‍यूलर निदान प्रदान करता है इसलिए 30 साल से कम उम्र के सभी मरीजों को इसकी सलाह दी जाती है।

वयस्‍कों में जल्‍दी निदान के लिए किडनी बायोप्‍सी की सलाह दी जा सकती है। बच्‍चों में किडनी बायोप्‍सी तभी की जाती है, जब शुरुआती ट्रीटमेंट फेल हो जाए।

यूरीनैलिसिस और रेनल एनालिसिस के साथ बायोकेमिस्‍ट्री एसेसमेंट भी किया जाता है।

यदि जेनेटिक कारण की वजह से पोडोसाइटोपैथी हुआ है, तो पहचान किए गए जीन के आधार पर इसका मैनेजमेंट होना चाहिए। पोडोसाइट विश‍िष्‍ट थेरेपी से इस स्थिति को ठीक किया जा सकता है। इसमें जेनेटिक विकारों के लिए स्‍टेम सेल थेरेपी शामिल है।

स्‍टेरॉइड पर निर्भर मरीजों या जहां मरीज बार-बार रिलैप्‍स हो रहा है, उन मामलों में स्‍टेरॉइड स्‍पेरिंग इम्‍यूनोसप्रेसिव एजेंटों को भी लिया जा सकता है।

ग्‍लोमेरुलर हाइपरफिल्‍ट्रेशन को कंट्रोल और मॉनिटर करना चाहिए। इस स्थिति के लक्षणों का इलाज कर के इसे ठीक किया जा सकता है। ग्‍लोमेरुली और बोमैन कैप्‍सूल किडनी के लिए प्रमुख फिल्‍ट्रेशन यूनिट बनाते हैं।

पोडोसाइटोपैथी के लिए जीन टारगेटिड ट्रीटमेंट बेस्‍ट होती हैं। बायोटेक्‍नोलॉजी, जेनेटिक्‍स और दवाओं को लेकर जानकारी तेजी से बढ़ती जा रही है और इससे जेनेटिक टेस्टिंग आसान हो गई है। पोडोसाइटोपैथी जैसी स्थितियों के मामले में भी है।

संदर्भ

  1. Steven W. Kraft, Melvin M. Schwartz, Stephen M. Korbet and Edmund J. Lewis Glomerular Podocytopathy in Patients with Systemic Lupus Erythematosus JASN January 2005, 16 (1) 175-179
  2. Ana Diez-Sampedro, Oliver Lenz, Alessia Fornoni, Podocytopathy in Diabetes: A Metabolic and Endocrine Disorder, American Journal of Kidney Diseases, Volume 58, Issue 4, 2011, 637-646
  3. Weixin Hu, Yinghua Chen, Shaofan Wang, Hao Chen, Zhengzhao Liu, Caihong Zeng, Haitao Zhang and Zhihong Liu Clinical–Morphological Features and Outcomes of Lupus Podocytopathy Clinical Journal of the American Society of Nephrology: 11 (4) Clinical Journal of the American Society of Nephrology Vol. 11, Issue 4 April
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