इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) पाचन तंत्र की एक समस्या है, जो लंबे समय तक प्रभावित (विशेष रूप से बड़ी आंत) कर सकती है। आईबीएस के लक्षण विभिन्न रोगियों में अलग-अलग दिखाई दे सकते हैं। इसके दो सबसे सामान्य लक्षण कब्ज और दस्त होते हैं। आईबीएस के अन्य लक्षणों में पेट के निचले हिस्से में दर्द और असुविधा महसूस होना, पेट फूलना व गैस की समस्या शामिल है।
2018 में दत्ता मेघे इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज यूनिवर्सिटी के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत आईबीएस की समस्या से प्रभावित है। भारतीय पुरुषों और महिलाओं में इस बीमारी का अनुपात 3:1 है।
पश्चिमी देशों में आईबीएस की व्यापकता और भी अधिक है, केवल अमेरिका की बात करें, तो यहां लगभग 20 प्रतिशत लोग इस बीमारी प्रभावित हैं। वैश्विक रूप से, पुरुषों की तुलना में महिलाओं को इस बीमारी का ज्यादा खतरा रहता है।
आईबीएस जानलेवा नहीं है, लेकिन यह लंबे समय तक प्रभावित कर सकता है। इस बीमारी से 15 से 50 वर्ष की आयु के लोग प्रभावित होते हैं, लेकिन इसके सटीक कारण के बारे में अभी तक पता नहीं चला है। हालांकि, इस बीमारी के कई कारक हो सकते हैं। आंतों की सतह पर मांसपेशियों की परतें पंक्तिबद्ध (रोएंदार) होती हैं, जो नियमित लय में फैलती और सिकुड़ती हैं तथा भोजन को आंत्र नली के माध्यम से मलाशय में ले जाती है, जिससे पाचन क्रिया पूरी होती है।
यदि कोई व्यक्ति इरिटेबल बाउल सिंड्रोम से ग्रसित हैं, तो यह संकुचन सामान्य से अधिक तेज और अधिक समय के लिए हो सकता है, जिससे गैस, सूजन और दस्त की समस्या हो सकती है। कुछ स्थितियों में आंतों का संकुचन भोजन मार्ग को धीमा कर देता है, जिस कारण मल त्याग करने में परेशानी आती है।
व्यायाम इस स्थिति के लक्षणों को कम करने में फायदेमंद होता है। हालांकि, यह सटीक इलाज प्रदान नहीं कर सकता है। तनाव की वजह से आईबीएस के लक्षणों की शुरुआत हो सकती है ऐसे में उचित आहार के साथ व्यायाम को रूटीन में शामिल करने से तनाव का प्रबंधन किया जा सकता है, इससे आईबीएस को भी नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
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