इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) एक जठरांत्र संबंधी विकार है जो आंतों के सामान्य कामकाज को प्रभावित करता है। इस बीमारी में कई समस्याएं देखने को मिल सकती हैं, जैसे - पेट दर्द, पेट में मरोड़, पेट में सूजन, कब्ज, दस्त, मल में बलगमगैस आदि।

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आईबीएस का कोई ज्ञात कारण नहीं है। हालांकि, कई संभावित कारण इस स्थिति से जुड़े हैं। इनमें गट फ्लोरा (आंत में रहने वाले रोगाणु), पेट की गतिशीलता में कमी (भोजन को आगे धकलने वाली पेट की मांसपेशियों का सिकुड़ना और सिथिल पड़ जाना), जठरांत्र संबंधी मार्ग में सूजन, फूड एलर्जी और फूड इंटोलरेंस शामिल हैं।

शोध से पता चला है कि कुछ पोषक तत्व इन सभी आईबीएस से जुड़े लक्षणों को सुधार करके आईबीएस से राहत देने में मदद सकते हैं। दूसरी ओर, कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे भी हैं जो आंतों की समस्याओं को बढ़ा भी सकते हैं और आईबीएस के लक्षणों को और भी खराब कर देते हैं।

यदि आपको आईबीएस की समस्या है, तो संभव है कि आपके डॉक्टर लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए दवाओं के साथ आहार परिवर्तन की सलाह देंगे। इस आर्टिकल में पढ़ें वे कौन-कौन से खाद्य पदार्थ हैं जो आईबीएस का कारण बन सकते हैं। इस आर्टिकल में हम उन खाद्य पदार्थों के बारे में भी जानेंगे जो आईबीएस की समस्या से राहत दिलाने में मदद सकते हैं।

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  1. आईबीएस में क्या खाना चाहिए - Irritable bowel syndrome diet in Hindi
  2. इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम के लिए स्पेशल डाइट - Special diet for IBS in Hindi
  3. IBS से निजात पाने के लिए डाइट में क्या बदलाव करें - What changes in diet to get rid of IBS in Hindi
  4. IBS में क्या नहीं खाना चाहिए और परहेज - Foods to avoid in IBS in Hindi
आईबीएस में क्या खाएं, क्या नहीं और परहेज के डॉक्टर

IBS की समस्या को आमतौर पर कुछ खास डाइट के जरिए प्रबंधित किया जाता है। इसलिए इस आर्टिकल में कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ के बारे में बताया गया है। जिनको आप अपने आहार में शामिल करके IBS की समस्या को नियंत्रित करने में सफलता पा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं IBS के मरीजों की डाइट कैसी होनी चाहिए -

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पानी - How to reduce IBS with water in Hindi

आईबीएस में पानी के लाभ या हानि को लेकर कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। हालांकि, पानी आपके शरीर के तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन को बनाए रखने के लिए मदद करता है - जो अक्सर आईबीएस की समस्या में दस्त होने पर असंतुलित हो जाता है।

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आंतों में भोजन की आसान आवाजाही और बिना रुकावट मल त्याग में पानी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खासकर तब, जब आप फाइबर युक्त आहार ले रहे हों। इसलिए, खुद को हाइड्रेटेड रखें और सुनिश्चित करें कि आप प्रति दिन कम से कम आठ से 10 गिलास पानी पी रहे हैं। पानी पीने का एक और फायदा यह है कि यह आपके शरीर से तमाम तरह के अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल देता है और आपके सम्पूर्ण स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करता है।

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फाइबर - Soluble fiber foods good for IBS in Hindi

फाइबर एक प्रकार का जटिल कार्बोहाइड्रेट है जो अधिकांश फलों और सब्जियों में मौजूद होता है। फाइबर दो प्रकार के होते हैं - घुलनशील और अघुलनशील। मानव शरीर फाइबर को पचाने के लिए नहीं बना है, इसलिए दोनों प्रकार के फाइबर शरीर से बाहर निकलने से पहले आंत में फर्मेंट होते हैं।

मॉडरेटली फर्मेंटेड सॉल्युबर फाइबर (घुलनशील फाइबर) जैसे कि इसबगोल की भूसी को आईबीएस के रोगियों के लिए अच्छा माना जाता है। अमेरिकन जर्नल ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में प्रकाशित एक प्रणालीगत समीक्षा और मेटा-विश्लेषण के अनुसार, घुलनशील फाइबर आईबीएस के लक्षणों से राहत दिला सकते हैं। इस मेटा-विश्लेषण में 14 रैंडम कंट्रोल ट्रायल शामिल थे, जिनमें 900 से अधिक रोगियों ने भाग लिया।

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प्रतिदिन 25 ग्राम फाइबर लेना आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। अगर आप आईबीएस की समस्या से जूझ रहे हैं तो आप प्रतिदिन 2 बड़े चम्मच अलसी के बीज का सेवन कर सकते हैं। नियमित रूप से छह महीने तक अलसी के सप्लीमेंट लेने से आईबीएस की समस्या में सकारात्मक प्रभाव देखे गए हैं।

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प्रोबायोटिक्स - Probiotics can help in IBS in Hindi

प्रोबायोटिक्स जीवित सूक्ष्म जीव (माइक्रोब्स) होते हैं, जिन्हें फर्मेंटेड फूड जैसे कि योगर्ट (दही) या गोलियों या कैप्सूल के रूप में लिया जा सकता है। वे आईबीएस रोगियों के गट माइक्रोफ्लोरा को ठीक करने में बेहद लाभकारी माने जाते हैं। इस प्रकार यह पाचन प्रक्रिया में सुधार करके पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद करते हैं। प्रोबायोटिक्स पेट की गतिशीलता में सुधार करते हैं और पेट दर्द से राहत दिलाते हैं। हालांकि, सभी प्रोबायोटिक्स एक ही तरीके से कार्य नहीं करते। लैक्टोबैसिलस और बिफीडोबैक्टीरियम को दस्त के लिए विशेष रूप से अच्छा माना जाता है।

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प्रोबायोटिक्स में सैकैरोमाइसीज जैसे यीस्ट भी हो सकते हैं। यदि रोग प्रतिरोधक प्रणाली कमजोर है, आप कीमोथेरेपी या स्टेरॉयड ले रहे हैं तो प्रोबायोटिक्स लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह ले लें।

जिन्हें आईबीएस की समस्या होती है, आमतौर पर वे जानते हैं कि किस तरह के खाद्य पदार्थ से उनकी समस्या बढ़ जाती है और फिर वे धीरे-धीरे उस चीज को अपनी डाइट से कम करने लगते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह से किसी चीज का सेवन बंद करने से लक्षणों में राहत तो मिल सकती है, लेकिन इस वजह से आपके शरीर में कुछ पोषक तत्वों की कमी भी हो सकती है। इसलिए, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि जब आप अपनी डाइट में बदलाव करें तो आपको सभी आवश्यक पोषक तत्व भी प्राप्त हों।

आईबीएस में आहार में बदलाव बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस स्थिति से राहत पाने के लिए विशेष आहार की सिफारिश की जाती है। यहां तीन आहारों के बारे में बताया जा रहा है जो आईबीएस के रोगियों के लिए मददगार हो सकते हैं -

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ग्लूटेन मुक्त भोजन - Gluten free diet benefits for IBS in Hindi

आईबीएस के बहुत से मरीज अपने लक्षणों के लिए ग्लूटेन को ट्रिगर के तौर पर देखते हैं। हालांकि, आईबीएस पर ग्लूटेन के प्रभाव के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं। ग्लूटेन एक प्रकार का प्रोटीन है जो गेहूं और कुछ अन्य अनाजों में पाया जाता है। जिन लोगों में गैर-सीलिएक ग्लूटेन संवेदनशीलता होती है वे विशेष रूप से अपने आहार से ग्लूटेन कम करने पर लक्षणों में राहत पाते हैं। साल 2016 के एक अध्ययन में पाया गया कि ग्लूटेन मुक्त आहार से चार हफ्ते के भीतर ही गैर-सीलिएक ग्लूटेन संवेदनशील रोगियों में लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है।

हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि गैर-सीलिएक ग्लूटेन संवेदनशील रोगियों में आईबीएस ट्रिगर होने का कारण ग्लूटेन नहीं बल्कि, गेहूं में मौजूद कुछ अन्य यौगिक (शॉर्ट-चेन फ्रुक्टेन्स) हो सकते हैं। यही नहीं, अपने भोजन से ग्लूटेन युक्त अनाज को पूरी तरह से हटाने पर पोषण की कमी हो सकती है। क्योंकि कई ग्लूटेन युक्त खाद्य पदार्थों में बहुत से पोषक तत्व मौजूद होते हैं।

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कम FODMAP युक्त आहार - Low FODMAP diet for IBS in Hindi

फर्मेंटेबल ऑलिगोसेकेराइड्स, डिसकाराइड्स, मोनोसैकाराइड्स और पॉलीओल्स को संक्षिप्त में एफओडीएमएपी (FODMAP) कहा जाता है। मोनोसैकाराइड्स शुगर के सरल अणु होते हैं, जिन्हें और अधिक नहीं तोड़ा जा सकता है। डिसकाराइड्स में दो मोनोसैकाराइड्स होते हैं और ऑलिगोसेकेराइड्स में तीन से 10 तक मोनोसैकाराइड्स होते हैं।

यह शॉर्ट चेन फर्मेंटेबल कार्बोहाइड्रेट का समूह है। अगर आईबीएस से पीड़ित हैं तो आपको इनके सेवन से बचना चाहिए। यहां हम आपको कम एफओडीएमएपी वाले खाद्य पदार्थों के बारे बता रहे हैं, जिन्हें आप अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं -

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अध्ययनों में यह देखा गया है कि आईबीएस रोगियों को कम एफओडीएमएपी आहार शुरू करने के एक या दो (ज्यादा से ज्यादा तीन से चार सप्ताह) के भीतर लक्षणों में सुधार का अनुभव होने लगता है।

उच्च एफओडीएमएपी वाले खाद्य पदार्थ या वे खाद्य पदार्थ जिन्हें आईबीएस के रोगियों को नहीं लेना चाहिए, उनमें शामिल हैं शहद, सेब, गोभी जैसी सब्जियां, लहसुन, गेहूं और गेहूं से बनी चीजें जैसी ब्रेड या पास्ता, फलियां, नाशपाती, आम, तरबूज, मशरूम। यदि संभव हो तो इन खाद्य पदार्थों से दूरी बना लें और इन्हें खाने से बचें। चूंकि कम एफओडीएमएपी खाद्य पदार्थों के बारे में जानना और समझना आसान नहीं है, इसलिए ऐसे डाइट प्लान के लिए अपने डायटीशियन से बात करें।

एलिमिनेशन डाइट में बीमारी के लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए उन सभी खाद्य पदार्थों को एक-एक करके अपनी डाइट से हटाया जाता है, जिनकी वजह से लक्षण उभरते हैं। आईबीएस के लिए एलिमिनेशन डाइट में सबसे पहले फाइबर, कॉफी, नट्स और चॉकलेट को डाइट से हटाया जाता है। फिर आपको धीरे-धीरे इस सूची में और ऐसे खाद्य पदार्थों को जोड़ते जाना है, जिनसे आईबीएस के लक्षण उभरते हैं। अमेरिका की इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर ने आईबीएस एलिमिनेशन डाइट के अभ्यास का एक तरीका बताया है -

  • एक कागज पर, उन सभी संभावित खाद्य पदार्थों के नाम लिखें, जिनसे आपको लगता है कि आप में आईबीएस के लक्षण पैदा हो रहे हैं
  • अब इस लिस्ट में से किसी एक खाद्य पदार्थ को 12 हफ्तों के लिए खाना बंद कर दें
  • यदि आपको लक्षणों में कोई सुधार महसूस होता है तो उसे नोट कर लें
  • अब इसी तरह से सूची में मौजूद सभी खाद्य पदार्थों को एक-एक करके 12 हफ्तों के लिए छोड़ दें और कोई भी बदलाव मससूस हो तो उसे नोट कर लें
  • यदि आपको यह समझ नहीं आ रहा कि किस खाद्य पदार्थ की वजह से आईबीएस के लक्षण उभर रहे हैं तो सबसे पहले फाइबर, कॉफी, नट्स और चॉकलेट से शुरुआत करें
  • आईबीएस का एक प्रमुख कारण अघुलनशील फाइबर होता है, इसलिए अपने आईबीएस एलिमिनेशन डाइट की शुरुआत फाइबर से ही करें

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चलिए जानते हैं उन खाद्य पदार्थों के बारे में जो आपमें आईबीएस के लक्षणों को बिगाड़ सकते हैं -

1. अघुलनशील फाइबर : यह सही है कि कुछ प्रकार के फाइबर आईबीएस के लक्षणों में सुधार करते हैं। लेकिन हर तरह का फाइबर आईबीएस के मरीजों के लिए अच्छा नहीं होता। अघुलनशील फाइबर भी उनमें से एक है, जो आंतों में भोजन की आसान आवाजाही को अवरुद्ध करता है और आईबीएस की स्थिति को और भी खराब कर सकता है। अघुलनशील फाइबर से भरपूर कुछ खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज, गेहूं का चोकर, बीज और सूखे मेवे शामिल हैं। (और पढ़ें - गेहूं के फायदे)

2. तला हुआ और फैटी फूड : लैब में हुए अध्यनों से संकेत मिलता है कि तैलीय और वसा से भरपूर भोजन आंतों में गैस का कारण बनता है। इसकी वजह से पेट फूलना और दर्द की समस्या होती है। यदि कोई व्यक्ति आईबीएस से पीड़ित है तो इस स्थिति में उसके लक्षण और भी बिगड़ जाते हैं।

बहुत से आईबीएस पीड़ितों ने यह महसूस किया है कि तला हुआ और वसायुक्त भोजन लक्षणों के उभरने का कारण बनता है। हालांकि, आईबीएस में वसायुक्त भोजन के नकारात्मक असर को लेकर क्लिनिकल स्टडी के रूप में कोई सबूत नहीं है। बल्कि, कुछ अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि पॉलीअनसैचुरेटिड फैटी एसिड (ओमेगा3 और ओमेगा6 जैसे हैल्दी फैट) आंतों में सूजन को कम करने में सहायक हैं और इस तरह से यह आईबीएस के खिलाफ प्रभावी हो सकते हैं। अगर आप आईबीएस से पीड़ित हैं तो इस बात को परखें कि क्या वसायुक्त भोजन से आपके लक्षण बिगड़ जाते हैं। कोशिश करें कि तलने की बजाए बेकिंग और ग्रिलिंग तकनीक का इस्तेमाल करके भोजन तैयार करें।

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कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि आईबीएस रोगियों को प्रति दिन 50 ग्राम वसा लेनी चाहिए। जबकि एक स्वस्थ वयस्क के लिए प्रतिदिन 2000 कैलोरी आहार में 65 ग्राम वसा अनुशंसित है। एक ग्राम वसा आपको लगभग 9 कैलोरी देती है। आपकी दैनिक ऊर्जा में वसा की मात्रा 20 से 35 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए।

3. मसालेदार भोजन : मसालेदार भोजन से आईबीएस के लक्षण बिगड़ जाते हैं। मिर्च में कैप्साइसिन नामक यौगिक होता है, जो आंतों में कुछ रिसेप्टर्स से जुड़ जाता है और आंतों में भोजन के आगे बढ़ने की रफ्तार को बढ़ा देता है। इसके कारण पेट में दर्द और जलन होने लगती है। ईरान में हुए एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि मसालेदार भोजन नहीं करने वाले लोगों कि तुलना में मसालेदार भोजन करने वालों में आईबीएस होने की आशंका ज्यादा होती है। महिलाओं में ऐसा अंतर ज्यादा देखने को मिलता है।

हालांकि, कुछ वैज्ञानिक इस अध्ययन को सही नहीं मानते हैं, क्योंकि यह अध्ययन एशियाई लोगों पर किया गया था और यूरोपीय मूल के लोगों की तुलना में यहां प्रति व्यक्ति प्रति सप्ताह मिर्च की औसत खपत ज्यादा होती है। इसके अलावा एक पूर्व के अध्ययन के अनुसार लंबी अवधि तक लाल मिर्च के सेवन (गोली के रूप में लेने पर, जो दवा को सीधे पेट में घोलती है) से आईबीएस के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है। इसमें पेट फूलना और दर्द जैसे लक्षण भी शामिल हैं। अगर मसालेदार खाने से आपके लक्षण बिगड़ते हैं तो अच्छा यही रहेगा कि आप इनके सेवन से परहेज करें।

4. डेयरी उत्पाद : कुछ लोगों ने दूध जैसे डेयरी प्रोडक्ट से भी आईबीएस के लक्षण बिगड़ने की शिकायत की है। माना जाता है कि डेयरी उत्पादों में पायी जाने वाली शुगर, लैक्टोज आईबीएस रोगियों में दूध के नकारात्मक प्रभाव के लिए जिम्मेदार है। कुछ लोगों में लैक्टेट डीहाइड्रोजिनेज नाम के एक एंजाइम की कमी होती है, जिसकी मदद से शरीर में लैक्टोज का पाचन होता है। ऐसे लोग डेयरी उत्पादों को पचा नहीं पाते हैं। अगर आप भी लैक्टोज इनटोलरेंस से पीड़ित हैं, तो आपकी आंत में मौजूद माइक्रोब्स लैक्टोज को स्मॉल चेन फैटी एसिड में तोड़ देंगे। यह आपकी आतों में वैसा ही असर दिखाएगा, जैसा वसायुक्त भोजन दिखाता है।

हालांकि, एक डबल ब्लाइंड अध्ययन में लैक्टेज सप्लीमेंटेशन को इस स्थिति में मददगार नहीं पाया गया। इसलिए, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि लैक्टोज आईबीएस के लक्षणों को ट्रिगर करता है। इसके बजाय, दूध में मौजूद कुछ अन्य प्रोटीन को इस प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

5. कैफीन : हालांकि, ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो यह सुनिश्चित करता हो कि कैफीन के सेवन से आईबीएस के लक्षण ट्रिगर हो सकते हैं। यह साबित हो चुका है कि कॉफी जैसे कैफीन युक्त खाद्य पदार्थ से लैक्सेटिव इफेक्ट हो सकता है और यह डायरिया का कारण बन सकता है। कोला जैसे कैफीन युक्त पेय भी आईबीएस रोगियों के लिए अच्छे नहीं माने जाते, क्योंकि उनमें भी गैस होती है। वयस्कों के लिए प्रति दिन 400 मिलीग्राम कैफीन को सुरक्षित माना जाता है। इसको इस तरह से समझा जा सकता है कि आप प्रतिदिन चार (240 मिली लीटर) कप कॉफी, आठ (240 मिली लीटर) कप चाय या तीन से चार एनर्जी ड्रिंक पी सकते हैं। हालांकि, अच्छा यह रहेगा कि आप समझें कि वे कौन से कारण हैं, किस चीज से आपके लक्षण बिगड़ते हैं और डॉक्टर से बात करें कि आपकी स्थिति के अनुसार आप कितनी कैफीन ले सकते हैं।

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6. शराब : आईबीएस के लक्षणों के लिए शराब को एक ट्रिगर के तौर पर माना जाता है। शराब शरीर में डिहाइड्रेशन का कारण बनती है और आईबीएस रोगियों में कब्ज की समस्या को बढ़ा सकती है। हालांकि, अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय में हुई एक ऑब्जर्वेशनल स्टडी में वैज्ञानिकों ने पाया कि शराब के सेवन से आईबीएस के लक्षण बिगड़ सकते हैं, लेकिन उनमें जो अत्यधिक शराब (प्रतिदिन 4 ड्रिंक से ज्यादा) पीते हैं। जो लोग नियंत्रित मात्रा में (प्रतिदिन तीन ड्रिंक से कम) पीते हैं, उनमें शराब कोई प्रभाव नहीं दिखाती। आमतौर पर माना जाता है कि बियर से आईबीएस के लक्षण बिगड़ जाते हैं। बहरहाल, शराब और आईबीएस के बीच संबंध को स्थापित करने के लिए और अधिक अध्ययनों की जरूरत है।

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यदि आप आईबीएस से पीड़ित हैं, तो ध्यान रखें :
अगर आप महिला हैं तो प्रतिदिन एक ड्रिंक से ज्यादा ना लें और पुरुष दो ड्रिंक प्रतिदिन से ज्यादा का सेवन ना करें। दिलचस्प बात यह भी है कि लिवर रोगों से बचाव के लिए शराब के सेवन की अधिकतम सीमा यही है। यही नहीं, सप्ताह में कम से कम दो दिन ऐसे रखें, जिसमें आप शराब ना पिएं।

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Dr. Dhanamjaya D

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पोषणविद्‍
16 वर्षों का अनुभव

Dt. Surbhi Upadhyay

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3 वर्षों का अनुभव

Dt. Manjari Purwar

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पोषणविद्‍
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Dt. Akanksha Mishra

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पोषणविद्‍
8 वर्षों का अनुभव

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