कई प्रयासों के बावजूद गर्भधारण न कर पाने को बांझपन कहा जाता है. जब कोई कपल 6 महीने से लेकर 1 साल तक गर्भधारण की कोशिश करता है, लेकिन वह सक्षम नहीं हो पाता है, तो इस स्थिति को इनफर्टिलिटी के रूप में जाना जाता है. इनफर्टिलिटी दो प्रकार के होते हैं - प्राइमरी इनफर्टिलिटी और सेकेंडरी इनफर्टिलिटी. पेल्विक एरिया में सूजन, पीरियड्स के दौरान दर्द व अनियमित पीरियड्स इनफर्टिलिटी के लक्षण हो सकते हैं.

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आज इस लेख में आप महिला सेकेंडरी इनफर्टिलिटी के कारण व इलाज के बारे में विस्तार से जानेंगे -

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  1. महिला सेकेंडरी इनफर्टिलिटी क्या है?
  2. महिलाओं में सेकेंडरी इनफर्टिलिटी के कारण
  3. सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का इलाज
  4. सारांश
महिला सेकेंडरी इनफर्टिलिटी के कारण व इलाज के डॉक्टर

जब महिला को पहली डिलीवरी के बाद दूसरी बार गर्भधारण करने में मुश्किल होती है, तो उसे सेकेंडरी इनफर्टिलिटी कहा जाता है. सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का पता तब चल पाता है, जब महिला 6 महीने से लेकर एक वर्ष तक प्रयास करने के बावजूद गर्भधारण नहीं कर पाती है.

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वैसे तो प्राइमरी और सेकेंडरी इनफर्टिलिटी के कारण एक समान ही होते हैं, लेकिन कुछ अन्य कारण भी हैं, जो सेकेंडरी इनफर्टिलिटी के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. सेकेंडरी इनफर्टिलिटी के कारण इस प्रकार हैं -

ओवुलेशन डिसऑर्डर

आजकल अधिकतर महिलाएं ओवुलेशन डिसऑर्डर का सामना कर रही हैं. ओवुलेशन डिसऑर्डर सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का एक मुख्य कारण हो सकता है. इनफर्टिलिटी वाली 40 प्रतिशत महिलाएं लगातार ओवुलेट नहीं कर पाती हैं. ओवुलेशन की समस्या भी कुछ कारणों की वजह से हो सकती हैं, जैसे -

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यूट्रस या फैलोपियन ट्यूब की समस्या

यूट्रस या फैलोपियन ट्यूब में किसी तरह की समस्या होने पर भी महिलाओं को गर्भधारण करने में मुश्किल हो सकती है. अगर फैलोपियन ट्यूब में रुकावट आती है, तो शुक्राणु और अंडाणु आपस में नहीं मिल पाते हैं. इसके अलावा, अगर यूट्रस में टिश्यू डैमेज हो जाते हैं, जो इंप्लानटेशन रुक सकता है.

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सी-सेक्शन स्कारिंग

अगर पहली डिलीवरी सिजेरियन या सी-सेक्शन से हुई थी, तो इससे यूट्रस में निशान पड़ सकते हैं. इससे यूट्रस में सूजन आ सकती है, जिसकी वजह से इंप्लानटेशन प्रभावित होता है. ऐसे में गर्भधारण करने के लिए इसका इलाज करना जरूरी हो जाता है.

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इंफेक्शन

इंफेक्शन भी सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का एक कारण हो सकता है. इंफेक्शन या किसी तरह का कोई यौन संचारित संक्रमण पेल्विक में सूजन पैदा कर सकता है. इससे फैलोपियन ट्यूब में निशान पड़ सकते हैं और ब्लॉकेज हो सकती है. अगर किसी को ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) संक्रमण है, तो यह गर्भाशय ग्रीवा के म्यूक्स को भी प्रभावित कर सकता है. इस स्थिति में प्रजनन क्षमता कम हो सकती है. अगर संक्रमण का समय पर इलाज किया जाता है, तो गर्भधारण किया जा सकता है.

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ऑटोइम्यून डिसऑर्डर

ऑटोइम्यून डिसऑर्डर को इनफर्टिलिटी का मुख्य कारण माना जाता है. दरअसल, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर शरीर के हेल्दी टिश्यू पर हमला करते हैं. इसमें प्रजनन टिश्यू भी शामिल हो सकते हैं. हाशिमोटो, लुपस और रूमेटाइड अर्थराइटिस जैसे ऑटोइम्यून विकार गर्भाशय और प्लेसेंटा में सूजन पैदा कर सकते हैं. 

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बढ़ती उम्र

गर्भधारण के लिए 20 से 30 साल की आयु सबसे सही मानी जाती है. 30 वर्ष की आयु के बाद महिलाओं में प्रजनन क्षमता कम होने लगती है. वहीं, 40 वर्ष की आयु के बाद तो महिलाएं तमाम कोशिशों के बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. ऐसे में गर्भधारण करने के लिए सही उम्र में ही प्लानिंग कर लेनी चाहिए. इससे महिला बांझपन से बच सकती है.

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जिस तरह से प्राइमरी इनफर्टिलिटी का इलाज संभव है, उसी तरह सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का इलाज भी किया जा सकता है. सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का इलाज करने के लिए डॉक्टर दवाइयों व सर्जरी की सलाह दे सकते हैं. साथ ही हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाने को भी कहा जा सकता है -

दवाइयां

सेकेंडरी इनफर्टिलिटी होने पर डॉक्टर निम्न प्रकार की दवाएं लेने की सलाह दे सकते हैं -

  • अगर महिला सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का सामना कर रही है, तो डॉक्टर हार्मोन को सामान्य करने वाली दवाइयों का सेवन करने की सलाह दे सकते हैं. 
  • इसके अलावा, सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का इलाज करने के लिए प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाली दवाइयां लिख सकते हैं.
  • पीसीओएस इनफर्टिलिटी का मुख्य कारण है. ऐसे में डॉक्टर इस समस्या का इलाज करके फर्टिलिटी को बढ़ा सकते हैं.

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सर्जरी

सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का सामना करने वाले कुछ लोगों को सर्जरी की भी जरूरत पड़ सकती है. जब कोई महिला गर्भाशय फाइब्रॉएड, यूट्रस निशान या एंडोमेट्रियोसिस जैसी समस्याओं की वजह से गर्भधारण नहीं कर पाती है, तो डॉक्टर सर्जरी करने की सलाह दे सकते हैं.

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एडवांस रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी

एडवांस रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी इनफर्टिलिटी का इलाज करने में सहायक हो सकती है. इसमें आईयूआई और आईवीएफ शामिल है. इसके तहत आईयूआई में शुक्राणु एकत्र किए जाते हैं और फिर ओवुलेशन के समय गर्भाशय में डाले जाते हैं. वहीं, आईवीएफ में महिला के एग्स और शुक्राणुओं को एकत्र किया जाता है. फिर अंडे और शुक्राणुओं को एक साथ निषेचित किया जाता है, जिससे भ्रूण विकसित होता है.

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सेकेंडरी इनफर्टिलिटी वह होता है, जब कोई कपल एक बच्चे के बाद दोबारा कोशिश करता है, लेकिन गर्भधारण नहीं कर पाता है. गर्भधारण न कर पाना ही सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का मुख्य लक्षण होता है. यह कई कारणों से होता है. महिलाओं और पुरुषों में सेकेंडरी इनफर्टिलिटी के कारण अलग-अलग हो सकते हैं. अगर कोई महिला 6 महीने से लेकर 1 साल तक कोशिश के बाद भी गर्भधारण न कर पाए, तो डॉक्टर से मिलकर इलाज करवाना जरूरी हो जाता है.

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