कई पुरुषों के स्क्रोटम (अंडकोष) में नसें बढ़ी हुई होती है। अंडकोष वह थैली है जिसमें टेस्टिकल्स या वृषण रहते हैं। डॉक्टर अंडकोष में पाई जाने वाली इन बढ़ी हुई नसों को वैरीकोसेल कहते हैं। वैरीकोसेल वाले कई पुरुषों में इसके कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन कुछ प्रजनन से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं।
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कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि वैरीकोसेल का इलाज प्रजनन क्षमता में सुधार कर सकता है। हालांकि, एक व्यवस्थित समीक्षा से पता चलता है कि उपलब्ध सबूत बहुत कम हैं और डॉक्टरों को इस विषय पर अभी अधिक शोध करना चाहिए।
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वैरीकोसेल की समस्या तब होती है जब अंडकोष के अंदर बढ़ी हुई नसों के कारण एक उभार बन जाता है। जब किसी को वैरीकोसेल की समस्या होती है, तो उनको अंडकोष में सूजन और कोमलता का अनुभव भी हो सकता है। अंडकोष की सूजन आमतौर पर टेस्टिकल के ऊपर एक उभार जैसी दिखती है।
पंपिनिफॉर्म प्लेक्सस अंडकोष के अंदर नसों का एक समूह है। टेस्टिकुलर धमनी तक खून पहुंचने से पहले ये नसें खून को ठंडा करने में मदद करती है। टेस्टिकुलर धमनी टेस्टिकल्स को रक्त की आपूर्ति करती है। यदि अंडकोष बहुत गर्म हो, तो वे स्वस्थ शुक्राणु नहीं बना पाता है। शुक्राणु का स्वास्थ्य व्यक्ति की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है, इसलिए यह आवश्यक है कि नसों से रक्त ठंडा हो जाए।
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2014 में हुए एक अध्ययन में बांझपन से प्रभावित 816 पुरुषों के आंकड़े इकट्ठा किए गए और देखा गया कि लगभग एक तिहाई पुरुषों में वैरीकोसेल की समस्या थी। यह परिणाम बताते हैं कि वैरीकोसेल कभी-कभी बांझपन का कारण हो सकती हैं, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता।
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क्या वैरीकोसेल का इलाज करने से प्रजनन क्षमता में सुधार कर सकते हैं इस पर हुए अध्ययनों के मिश्रित परिणाम आए है।
एक 2012 में हुए मेटा-विश्लेषण में कुछ सबूत मिले कि वैरीकोसेल का इलाज प्रजनन क्षमता में सुधार कर सकता है, खासकर यदि किसी जोड़े में बांझपन का कारण अज्ञात है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने चेतावनी भी दी है कि मौजूदा साक्ष्य पर्याप्त नहीं है, इसलिए किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए काफी अधिक शोध की आवश्यकता है।
वैरीकोसेल की समस्या में मुख्य चिंता यह है कि नसों का उभार शुक्राणुओं को नुकसान पहुंचा सकता है और शुक्राणुओं की संख्या भी कम कर सकता है। शुक्राणुओं की औसत संख्या वाले व्यक्तियों में वैरीकोसेल के बांझपन का कारण होने की आशंका नहीं है।
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जब कोई जोड़ा गर्भधारण नहीं कर पा रहा है, तो शुक्राणुओं की संख्या सहित विभिन्न तरह के परीक्षण करना महत्वपूर्ण है और यह नहीं मानना चाहिए कि वैरीकोसेल की समस्या ही इसका एकमात्र कारण है।
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