एचआईवी यानी ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस। लंबे समय से एचआईवी एक जानलेवा बीमारी बनी हुई है। इसका इलाज मौजूद नहीं है और यह वायरस मरीज को धीरे-धीरे मौत की तरफ धकेल देता है। हालांकि, वक्त के साथ मेडिकल साइंस ने कई रिसर्च के बाद एचआईवी जैसी ला-इलाज बीमारी का तोड़ लगभग निकाल लिया है। एचआईवी का इलाज अब संभव हो सकता है। अमेरिकन जीन टेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टरों की एक टीम ने एंटीरेट्रोवायरल दवाओं का विकास कर इस बीमारी के इलाज की संभावनाओं के साथ एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
रिसर्च में जुटे शोधकर्ता
एजीटी (अमेरिकन जीन टेक्नोलॉजी) की रिपोर्ट के मुताबिक एंटीरेट्रोवाइरल ड्रग कीमोथेरेपी (दवाई) देने के बाद भी एचआईवी का वायरस कुछ हफ्तों के बाद फिर से एक्टिव (सक्रिय) हो जाता है। एजीटी एक हाइली इनोवेटिव ट्रीटमेंट रणनीति विकसित कर रही है, जो जेनेटिक मेडिसिन के टूल का इम्यूनोथेरेपी के लिए इस्तेमाल करेगा। इससे एचआईवी का एक बेहतर इलाज भी संभव हो पाएगा।
(और पढ़ें- इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए क्या करें?)
क्या है एचआईवी ?
एचआईवी आज दुनियाभर में सबसे बड़ी पब्लिक हेल्थ (सार्वजनिक स्वास्थ्य) से जुड़ी समस्या है। इसने साल 1980 से अब तक 32 लाख से ज्यादा लोगों को जान ली है।
- यह वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी सिस्टम) को नुकसान पहुंचाता है, इसलिए व्यक्ति किसी भी संक्रमण (इंफेक्शन) से लड़ने में सक्षम नहीं होता।
- मौजूदा समय में एचआईवी का इलाज एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी से किया जाता है, जो वायरस के विकास को नियंत्रित (कंट्रोल) करता है, लेकिन शरीर से इस वायरस को पूरी तरह से खत्म नहीं करता। जिसके कारण अभी तक इसका पूरी तरह से इलाज संभव नहीं है।
(और पढ़ें- एचआईवी का आयुर्वेदिक इलाज)
वैज्ञानिकों ने किया दावा
हालांकि, एजीटी के वैज्ञानिक अलग सोच के साथ इस बीमारी के खिलाफ लड़ रहे हैं। वैज्ञानिक वायरस से लड़ने की बजाय व्यक्ति की रोग प्रतिरोधन क्षमता (इम्यूनिटी सिस्टम) बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं। ताकि शरीर खुद ही एचआईवी के वायरस से लड़ सके।
क्या है दवा का नाम ?
इस दवा को AGT103T का नाम दिया गया है। अमेरिकी जीन टेक्नोलॉजीज ने इस दवा को पहले ही अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के पास आईएनडी (इन्वेस्टिगेशनल ड्रग एंड डिवाइस) यानि जांच के लिए आवेदन भेजकर इसका इंसानों पर पहले चरण की परीक्षण की इजाजत मांगी है।
कैसे बनाई एचआईवी की दवाई?
अमेरिकन जीन टेक्नोलॉजी की रिसर्च AGT103T वास्तव में एक वायरस-आधारित सिंगल-डोज (एकल-खुराक) जीन थेरेपी है। लेकिन क्या इससे इलाज संभव है ?
- इस दवा या थेरेपी को विकसित करने के लिए, एजीटी की शोधकर्ताओं की टीम ने एचआईवी पॉजिटिव लोगों से रक्त के नमूने इकट्ठा किए। फिर, एक विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं, जैसे- टी हेल्पर कोशिकाओं को अलग किया।
- टी हेल्पर (सीडी 4+) कोशिकाओं पर विशेष रूप से एचआईवी वायरस हमला करते हैं। एक संक्रमित व्यक्ति में सभी टी हेल्पर कोशिकाओं का एक छोटा सा हिस्सा एचआईवी से लड़ने के लिए विकसित होता है। ये कोशिकाएं एचआईवी के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं और वायरस का खात्मा भी नहीं कर पातीं।
- एजीटी की रिसर्च टीम ने एक वायरस का इस्तेमाल किया और डीएनए के एक विशेष हिस्से को पहले से ही अलग की गई टी हेल्पर कोशिकाओं में स्थानांतरित (ट्रांसफर) कर दिया।
- डीएनए के इस हिस्से की वजह से कोशिकाओं को एचआईवी वायरस प्रतिरोधी ताकत मिली। इसके बाद इन एचआईवी वायरस प्रतिरोधी कोशिकाओं की लाखों कॉपियां लैब में तैयार कर ली गईं। इस पूरी प्रक्रिया में 11 दिन लगे।
- अब एजीटी की टीम इस थेरेपी की सुरक्षा जांच करने जा रही है, इसके बाद इन्हें एचआईवी पॉजिटिव रोगी में फिर से इंजेक्ट किया जाएगा।
क्या है डॉक्टर की राय ?
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर शहनाज जफर का कहना है कि, क्योंकि एचआईवी पूरी तरह से खत्म करने के लिए अभी तक कोई दवा नहीं है इसलिए इस दवाई के आने से एचआईवी पीड़ित लोगों को फायदा होगा। बता दें कि वर्तमान में एचआईवी के लिए दी जाने वाली दवा महज वायरस को कंट्रोल (नियंत्रित) करती, उसे पूरी तरह खत्म नहीं करती।
पहले भी हो चुकी है रिसर्च
ये पहली बार नहीं है कि वैज्ञानिकों ने एचआईवी के उपचार के लिए जीन थेरेपी का उपयोग करने के बारे में सोचा है। कोशिकाओं में एचआईवी को आने से रोकना, स्वस्थ कोशिकाओं से संक्रमित डीएनए को काटना, संक्रमित कोशिकाओं से एचआईवी वायरस को हटाना और एचआईवी प्रतिरोधी कोशिकाओं का उत्पादन करना, ये सभी कदम पहले से ही आजमाए जा चुके हैं। इस शोध की अलग बात यह है कि इसमें वायरस से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी सिस्टम) की क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
एटीजी के चीफ साइंस ऑफिसर सी. डेविड पौजा ने बताया कि कैसे ये थेरेपी पहले से अलग और बेहतर है। खैर वैज्ञानिकों का यह शोध जरूर कड़ी मेहनत का परिणाम है, अगर यह थेरेपी कारगर साबित हुई तो वास्तव में विश्व में मौजूद तमाम एचआईवी पीड़ित लोगों को दोबारा जीवन जीने का मौका मिलेगा।