एक बड़े और महत्वपूर्ण अध्ययन में वैज्ञानिकों ने उन कारणों का पता लगाने का दावा किया है, जिनके चलते एचआईवी के मरीजों में क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन देखने को मिलती है। खबर के मुताबिक, अध्ययन में पता चला है कि एचआईवी संक्रमितों का जीवनकाल बिना एचआईवी वाले लोगों की तुलना में पांच से दस साल छोटा होता है। इसके मुताबिक, इस बीमारी के चलते ऐसे लोग तेजी से बुढ़ापे की ओर बढ़ने लगते हैं। इस आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि एचआईवी संक्रमितों में क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन इन तथ्यों से जुड़ी हुई है, जिनसे पीड़ित में बुढ़ापे से जुड़ी समस्याएं जल्दी शुरू हो सकती हैं, जैसे- एथरोस्क्लेरोसिस, कैंसर या न्यूरोकॉग्निटिव डिक्लाइन।

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जर्नल ऑफ इन्फेक्शियस डिसीजेज नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन कारणों के बारे में जानने की कोशिश की, जिन्हें एचआईवी में होने वाली इन्फ्लेमेशन से जोड़कर देखा जाता है। साथ ही, मौजूदा एचआईवी डीएनए में एचआईवी आरएनए के प्रॉडक्शन को नियंत्रित नहीं कर पाने की अक्षमता का भी पता लगाया, जिसे इन्फ्लेमेशन का एक संभावित प्रमुख कारण बताया गया है। परिणामों के आधार पर वैज्ञानिकों ने एचआईवी से जुड़ी क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन के लिए नए तरह के उपचार विकसित करने की बात रेखांकित की है।

अध्ययन कहता है कि संक्रमण होने के बाद एचआईवी मरीज के डीएनए का एक हिस्सा बन जाता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि बीमारी के दौरान ज्यादातर संक्रमित कोशिकाएं शांत रहती हैं और वायरस का रेप्लिकेशन नहीं करतीं। हालांकि अलग-अलग मौकों पर एचआईवी डीएनए, आरएनए का उत्पादन करता रहता है, रेप्लिकेशन की दिशा में पहला कदम माना जाता है। बहरहाल, यहां यह उल्लेखनीय है कि एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट से एचआईवी और एड्स से जुड़ी जटिलताओं को रोकने में मदद मिलती है, लेकिन ये उपचार क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन को नहीं रोकते, जोकि एचआईवी संक्रमितों में काफी कॉमन है और बीमारी की मृत्यु दर से भी जुड़ी है।

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अध्ययन से जुड़ी लेखिका और अमेरिका की बॉस्टन यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता नीना लिन कहती हैं, 'हमने ऐसे लोगों में न दिखने वाले एचआईवी संक्रमित सेल्स और क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन के संभावित आपसी जुड़ाव को आइडेंटिफाई करने के लिए यह अध्ययन किया है, जिन्होंने एचआईवी के वायरल लोड दबा दिया है।' इसके लिए शोधकर्ताओं ने अध्ययन में 57 एचआईवी संक्रमितों को शामिल किया। इन लोगों का एंटीरेट्रवायरल थेरेपी के तहत इलाज किया गया था। इनमें युवा (35 साल से कम) और बुजुर्ग (50 साल से ज्यादा) मरीजों के रक्त और अन्य वायरस मेजरमेंट में इन्फ्लेमेशन की तुलना की गई। साथ ही, रक्त में मौजूदा इन्फ्लेमेशन की एचआईवी प्रॉडक्शन को एक्टिवेट करने की क्षमता की भी एचआईवी जीनोम वाले साइलेंट कोशिकाओं से तुलना की गई। इसमें पता चला कि एचआईवी आरएनए प्रॉडक्शन को कंट्रोल नहीं कर पाने की अक्षमता की वजह से मरीजों में इन्फ्लेमेशन देखने को मिलती है। ऐसा उन एचआईवी संक्रमितों के साथ भी होता है, जिन्होंने रेट्रोवायरल ड्रग ट्रीटमेंट लिया होता है।

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इस जानकारी पर अध्ययन के लेखकों ने कहा है, 'हमारे (अध्ययन के) परिणाम बताते हैं कि एचआईवी के साथ जी रहे लोगों में इन्फ्लेमेशन को टार्गेट करने के लिए नई उपचारों को विकसित करने की जरूरत है। मौजूदा एंटीरेट्रोवायरल ड्रग्स नए संक्रमण को रोकते हैं, लेकिन एचआईवी आरएनए प्रॉडक्शन को वे नहीं रोक पाते, जोकि हमारे अध्ययन के हिसाब से इन मरीजों में इन्फ्लेमेशन का एक बड़ा कारण है।'

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