WHO के आंकड़ों की मानें तो दुनियाभर में एचआईवी-एड्स की वजह से होने वाली हर 3 में से 1 मौत टीबी यानी तपेदिक के को-इंफेक्शन की वजह से होती है। जैसा की नाम से ही पता चल रहा है कि को-इंफेक्शन एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को एक साथ 2 या इससे अधिक संक्रामक बीमारियां हो जाती हैं। एड्स के मरीजों में को-इंफेक्शन होना बेहद सामान्य सी बात है क्योंकि ऐसे मरीज बहुत ज्यादा इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड यानी प्रतिरक्षा में अक्षम होते हैं।

WHO के आंकड़े ये भी दिखाते हैं कि वैसे लोग जिन्हें एचआईवी का संक्रमण होता है उनमें सक्रिय टीबी होने का खतरा 18 गुना बढ़ जाता है उन लोगों की तुलना में जिन्हें एचआईवी इंफेक्शन नहीं होता है। लिहाजा एचआईवी के मरीजों में टीबी होने से रोकने और उसे मैनेज करने के लिए खास ऐहतियाती कदम उठाने की जरूरत होती है। हालिया आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में इस वक्त 3 करोड़ 80 लाख से ज्यादा लोग एचआईवी से पीड़ित हैं जिसमें से 17 लाख मरीज अकेले साल 2019 में डायग्नोज हुए थे। साल 2019 में दुनियाभर में टीबी संक्रमण के 1 करोड़ मामले सामने आए थे जिसमें से 32 लाख महिलाएं और 12 लाख बच्चे थे। इतना ही नहीं, साल 2019 में जिन 14 लाख लोगों की टीबी की वजह से मृत्यु हुई थी उसमें से 2 लाख 8 हजार मरीजों में एचआईवी इंफेक्शन भी था।

(और पढ़ें - एचआईवी-एड्स हो तो क्या करना चाहिए)

विश्व एड्स दिवस के मौके पर हम आपको एचआईवी-एड्स और टीबी को-इंफेक्शन होने के कारण, लक्षण और उसे मैनेज करने के तरीकों के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं।

  1. एचआईवी टीबी लिंक
  2. एचआईवी-एड्स के मरीजों में टीबी का खतरा अधिक क्यों है?
  3. टीबी एचआईवी को-इंफेक्शन जोखिम और जटिलताएं
  4. एचआईवी टीबी को-इंफेक्शन के लक्षण
  5. एचआईवी टीबी को-इंफेक्शन गाइडलाइन्स
  6. एचआईवी पॉजिटिव मरीज में टीबी का डायग्नोसिस
  7. एचआईवी टीबी को-इंफेक्शन में टीबी का इलाज
  8. एचआईवी टीबी को-इंफेक्शन में एचआईवी का इलाज
  9. एचआईवी टीबी को-इंफेक्शन के लिए 99 डॉट्स
  10. टीबी एचआईवी से बचने के दिशा-निर्देश
एचआईवी/एड्स के मरीजों में टीबी का को-इंफेक्शन के डॉक्टर

ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (hiv) इंफेक्शन की वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) कमजोर होकर बिगड़ने लगती है। वैसे तो एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के जरिए वायरल लोड को दबाकर इंफेक्शन को मैनेज किया जा सकता है लेकिन मौजूदा समय में एचआईवी का कोई सटीक इलाज मौजूद नहीं है। एचआईवी की वजह से इम्यूनिटी को पर्याप्त नुकसान पहुंचता है जिस कारण अक्वायर्ड इम्यूनोडिफिशिएंसी सिंड्रोम (aids) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

(और पढ़ें- एचआईवी के शरीर में छिपने की जगहों का वैज्ञानिकों ने लगाया पता)

टीबी एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है जो प्राथमिक रूप से श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है लेकिन यह शरीर के बाकी अंगों पर भी असर डाल सकता है। आमतौर पर छिपा हुआ या अंतर्निहित टीबी इंफेक्शन सक्रिय बीमारी की तुलना में ज्यादा सामान्य है। हालांकि एचआईवी होने के बाद जब मरीज का इम्यून सिस्टम पहले से ही अक्षम हो जाता है, ऐसे में को-इंफेक्शन का बोझ भी महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, एचआईवी और टीबी इंफेक्शन एक दूसरे को शक्ति प्रदान करते हैं। एचआईवी के मरीजों में टीबी को डायग्नोज करना मुश्किल होता है क्योंकि ऐसे मरीजों में लक्षणों के साथ ही इम्यून प्रतिक्रिया की भी कमी होती है। 

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Urjas Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को सेक्स समस्याओं के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
Long Time Capsule
₹712  ₹799  10% छूट
खरीदें

एचआईवी एक तरह का रेट्रोवायरस है जो इंसानों में कोशिकीय जेनेटिक मटीरियल के साथ विलय करके सीडी4+ टी-सेल्स को संक्रमित करता है। अलग-अलग घटती बढ़ती प्रक्रियाओं के जरिए इन मददगार टी-कोशिकाओं पर हमला करने के बाद यह वायरस सीडी4+ टी-सेल्स को बर्बाद करना शुरू कर देता है। इन कोशिकाओं की आबादी में तेजी से होने वाली कमी की वजह से कोशिकाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली इम्यूनिटी की हानि होने लगती है। प्रतिरक्षा में कमी की ऐसी स्थिति में अवसरवादी संक्रमण भी हावी हो जाता है। विशिष्ट अवसरवादी संक्रमणों में निम्नलिखित चीजें शामिल हैं:

टीबी एक संक्रामक बीमारी है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकोलोसिस नाम के बैक्टीरिया की वजह से होती है। वैसे तो यह श्वसन से जुड़ी बीमारी है (जो हवा और ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन से फैलती है) जो फेफड़ों को प्रभावित करती है लेकिन यह शरीर के कई दूसरे अंगों पर भी असर डाल सकती है। एक्सट्रा-पल्मोनरी (फेफड़ों के बाहर) टीबी के उदाहरण में शामिल हैं- एब्डॉमिनल ट्यूबरकोलोसिस, ट्यूबरकुलर ऑस्टियोमाइलाइटिस (हड्डियों का संक्रमण), ट्यूबरकुलर मेनिनजाइटिस (दिमागी बुखार) आदि। ज्यादातर ट्यूबरकुलर इंफेक्शन अलक्षणी यानी असिम्प्टोमैटिक होते हैं या छिपे हुए इंफेक्शन होते हैं क्योंकि इंसान की कोशिका में प्रवेश करने के बाद भी ये बैक्टीरिया बीमारी पैदा नहीं करते। लिहाजा, लंबे समय से बीमार रहने की स्थिति में या फिर एचआईवी जैसी स्थिति में जब शरीर का इम्यून सिस्टम पहले से ही कमजोर होता है, बैक्टीरिया कोशिका पर हमला कर सक्रिय इंफेक्शन का कारण बनता है।

टीबी के सामान्य लक्षणों में निम्नलिखित चीजें शामिल हैं:

टीबी एक ऐसी बीमारी है जिसे होने से रोका जा सकता है और इसके लिए बीसीजी वैक्सीन मौजूद है। सरल टीबी इंफेक्शन के इलाज में 4 एंटीबायोटिक दवाइयों की ड्रग थेरेपी दी जाती है जिसमें रिफामपिसिन, आइसोनियाजिड, पाइराजिनामिड और एथैमबुटोल शामिल है। हालांकि इन दवाइयों के अत्यधिक इस्तेमाल की वजह से टीबी पैदा करने वाले बैक्टीरिया ने इन दवाइयों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लिया है। लिहाजा, ड्रग रेजिस्टेंट ट्यूबरकोलोसिस के मामले में- मल्टीड्रग रेजिस्टेंट टीबी (एमडीआर टीबी) या एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी (एक्सडीआर-टीबी)- वैकल्पिक दवाइयां दी जाती हैं और दवाइयों की समय सीमा को भी बढ़ाया जाता है।

पहले से मौजूद एचआईवी इंफेक्शन टीबी की घटनाओं को शक्ति देकर उसे बढ़ाने का काम करता है। सक्रिय ट्यूबरकुलर बीमारी बदले में एचआईवी इंफेक्शन को आगे बढ़ाकर एड्स में परिवर्तित कर देती है। यह बात सही है कि एचआईवी के सभी मरीज एड्स से पीड़ित नहीं होते हैं। एचआईवी इंफेक्शन मरीज के सीडी4+टी-सेल्स के आधार पर अलग-अलग स्टेज में आगे बढ़ता है। जब सीडी4+सेल्स की संख्या प्रति बूंद 200 कोशिकाएं प्रति मिलिमीटर खून से कम हो जाती है तब अवसरवादी संक्रमण बढ़ना शुरू होते हैं।

(और पढ़ें- टीबी हो तो क्या करना चाहिए)

लक्षणों की बात करें तो एचआईवी के मरीज शुरुआत में पूरी तरह से अलक्षणी रह सकते हैं सिवाए आलस्य और सुस्ती के। बाद में जैसे-जैसे कोशिकीए इम्यूनिटी कम होने लगती है एचआईवी से जुड़े अवसरवादी इंफेक्शन बढ़ने लगते हैं। जब मरीज को रोजाना एआरटी थेरेपी दी जाती है तो उसका वायरल लोड कम होने लगता है जिससे एड्स मरीज का रोग निदान बेहतर हो जाता है। वैसे मरीज जिनमें एचआईवी इंफेक्शन की वजह से इम्यून सिस्टम कमजोर हो चुका है और जिन्हें वायरल लोड को दबाने के लिए पर्याप्त या बिलकुल भी एआरटी थेरेपी नहीं दी जा रही है उनमें सक्रिय ट्यूबरकोलोसिस यानी टीबी इंफेक्शन होना सामान्य बात है।

सामान्य इम्यून प्रतिक्रिया वाले ज्यादातर मरीजों में जहां टीबी इंफेक्शन छिपा हुआ या अलक्षणी होता है वहीं एचआईवी पॉजिटिव मरीजों में एक्टिव ट्यूबरकुलर बीमारी होने का खतरा 18 गुना अधिक होता है। इसके अलावा मजबूत इम्यूनिटी वाले व्यक्ति को जहां अपने जीवनकाल में टीबी होने का खतरा सिर्फ 5 से 10 प्रतिशत तक होता है वहीं, एचआईवी पॉजिटिव मरीज को जीवन के हर साल टीबी होने का खतरा उतना ही अधिक होता है।

जिस व्यक्ति का इम्यून सिस्टम सक्षम होता है उसमें टीबी के लक्षण, शरीर की इम्यूनिटी द्वारा इंफेक्शन से लड़ने के कारण पैदा होने वाले बाइप्रॉडक्ट की वजह से होता है। एचआईवी के मरीज में बैक्टीरिया को भगाने के लिए इस्तेमाल होने वाली यह प्रक्रिया मौजूद नहीं होती और इस कारण एचआईवी पॉजिटिव मरीज में टीबी के सामान्य लक्षण मौजूद नहीं होते और अगर होते भी हैं तो बेहद माइल्ड होते हैं। इसके अतिरिक्त इंफेक्शन के प्रति इम्यून प्रतिक्रिया कमजोर होने के कारण सामान्य टीबी में इस्तेमाल होने वाले टेस्ट और डायग्नोसिस इसमें लाभदायक नहीं होते। इस कारण बीमारी का पता लगाना, डायग्नोसिस और इलाज की शुरुआत करना एक चैलेंज बन जाता है।

WHO का सुझाव है कि एचआईवी के वयस्क मरीज में इन 4 लक्षणों के आधार पर टीबी होने का शक किया जा सकता है:

  • मौजूदा समय में खांसी
  • बुखार
  • वजन घटना
  • रात में पसीना आना

12 महीने से अधिक उम्र के एचआईवी से पीड़ित बच्चों में टीबी के 4 लक्षण नजर आ सकते हैं:

  • वजन न बढ़ना
  • बुखार
  • खांसी
  • टीबी मरीज के संपर्क में आने का इतिहास

डॉक्टर के साथ होने वाली हर मीटिंग इन चारों लक्षणों की जांच की जाती है और इसके आधार पर इलाज तय होता है। अगर इनमें से कोई भी लक्षण मौजूद न हो तो आइसोनियाजिड प्रोफाइलैक्सिस थेरेपी दी जाती है लेकिन अगर कोई लक्षण मौजूद हो तो टीबी का टेस्ट किया जाता है।

एचआईवी के साथ जी रहे व्यक्ति में अगर ऊपर बताए गए 4 में से कोई भी 1 लक्षण (बुखार, खांसी, रात में पसीना आना और वजन कम होना वयस्कों में) नजर आते हैं प्राथमिकता के आधार पर तुरंत उनका कार्ट्रिज-बेस्ड न्यूक्लिक एसिड ऐम्प्लिफिकेशन टेस्ट (cbnaat) किया जाता है। सामान्य परिस्थितियों में किया जाने वाला स्पटम स्मियर टेस्ट एचआईवी के मरीज के लिए विश्वसनीय नहीं है क्योंकि उनकी इम्यून प्रतिक्रिया पहले से ही बेहद कमजोर होती है जिस वजह से यह टेस्ट की गलत तरीके से नकारात्मक व्याख्या करता है। इसके अलावा, एंटीबायोटिक (मुख्य रूप से रिफैम्पिसिन) संवेदनशीलता का परीक्षण करने के लिए, स्पटम या लार का परीक्षण अव्यवहारिक हो जाता है क्योंकि इसमें लंबा समय लगता है।

हालांकि cbnaat,दो घंटे के अंदर किसी भी सैंपल की जांच कर सकता है (जिसमें खून मौजूद न हो) यह देखने के लिए कि उसमें ट्यूबरकोलोसिस बेसिली और रिफैम्पिसिन संवेदनशीलता मौजूद है या नहीं। जो लोग इस टेस्ट में नेगेटिव आते हैं उन्हें आइसोनियाजिड प्रोफिलैक्सिस थेरेपी (आईपीटी) दी जाती है, जबकि वे मरीज जिनमें सक्रिय टीबी की समस्या होती है उन्हें एंटी-ट्यूबरकुलर ट्रीटमेंट (एटीटी) दिया जाता है।

IRIS एक ऐसी अद्भुत घटना है जिसके द्वारा, एचआईवी मरीज के इम्यून सिस्टम की रिकवरी होना शुरू होता है, जिनमें पहले टीबी जैसा अवसरवादी संक्रमण हो चुका है जो पहले अलक्षणी से लेकर हल्के लक्षणों वाला था, वह बाद में बढ़ जाता है और लक्षण भी अतिरंजित हो जाते हैं। मौजूदा समय में भारतीय दिशानिर्देश बताते हैं कि इलाज की विफलता को रोकने और मरीजों को आसानी हो इसके लिए उन्हें रोजाना एंटी-ट्यूबरकुलर ट्रीटमेंट (एटीटी) दवाइयां दी जानी चाहिए लेकिन वजन-विशिष्ट (वेट-स्पेसिफिक) फिक्स खुराक के कॉम्बिनेशन में। इसका मतलब ये हुआ कि 4 प्रमुख एटीटी दवाइयां- रिफैम्पिसिन, आइसोनियाजिड, पाइराजिनामिड और एथैम्बुटोल- को मिलाकर एक सिंगल टैबलेट बनायी जाएगी जिसे रोजाना एक बार लेना होगा एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) दवाइयों के साथ।

एचआईवी बीमारी के साथ जीने वाले लोगों में टीबी का इलाज ठीक उसी तरह से किया जाता है जिस तरह से उन लोगों में जिन्हें एचआईवी नहीं होता है। ड्रग-सेंसिटिव पल्मोनरी टीबी का इलाज रिफैम्पिसिन, आइसोनियाजिड, पाइराजिनामिड और एथैम्बुटोल के साथ किया जाता है शुरुआती 4 महीनों में। इसके बाद के 2 महीनों में रिफैम्पिसिन, आइसोनियाजिड और एथैम्बुटोल दिया जाता है।

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Urjas Energy & Power Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को शारीरिक व यौन कमजोरी और थकान जैसी समस्या के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
Power Capsule For Men
₹719  ₹799  10% छूट
खरीदें

ऊपर बताए गए इलाज के विपरीत, अगर टीबी के मरीज में एचआईवी डायग्नोज होता है तो एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) की शुरुआत, एंटी-ट्यूबरकुलर ट्रीटमेंट (एटीटी) की शुरुआत के 2 हफ्ते बाद की जाती है और एआरटी अधिक से अधिक 2 महीने तक ही हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि टीबी के मरीज में दबे हुए इम्यून सिस्टम के अचानक दोबारा से सक्रिय होने की वजह से प्रतिरक्षा पुनर्गठन सूजन सिंड्रोम (इम्यून रीकॉन्स्टिट्यूशन इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम IRIS) हो सकता है।

हालांकि, अगर सीडी4+ कोशिकाओं की संख्या 50 से कम हो जाती है तो एआरटी को जल्द से जल्द शुरू करना चाहिए- एटीटी पूरा होने के 2 सप्ताह के बाद। अगर लक्षणों के अचानक बिगड़ने के कारण IRIS का संदेह होता है, तो पहले एटीटी फेलियर से इनकार किया जाता है और फिर, यदि प्रतिक्रिया गंभीर हो, तो डॉक्टरों द्वारा स्टेरॉयड थेरेपी दी जाती है।

नैशनल एड्स कंट्रोल प्रोग्राम (nacp) और नैशनल ट्यूबरकोलोसिस एलिमिनेशन प्रोग्राम (ntep)ने साथ मिलकर एक सरंचना तैयार की है जिसके तहत टीबी और एचआईवी की रोकथाम और प्रबंधन गतिविधियों का समन्वय किया जाता है। मरीजों के खराब अनुपालन के कारण विशेष रूप से टीबी-एचआईवी को-इंफेक्शन के अधिक बोझ को टार्गेट करने के लिए, सरकार ने 2015 में 99 डॉट्स लॉन्च किया था। इस नए सिस्टम की शुरुआत इसलिए की गई थी ताकि एचआईवी सह-संक्रमित मरीज में रोजाना एंटी-ट्यूबरकुलर ट्रीटमेंट डॉट्स (डायरेक्टली ऑब्सर्व्ड ट्रीटमेंट शॉर्ट कोर्स) की निगरानी हो सके। वैसे मरीज जो रोजाना एआरटी सेंटर तक आना-जाना नहीं कर सकते उन्हें स्पेशल एटीटी ब्लिस्टर-पैक दिया जाता है।

हर एक ब्लिस्टर पैक को खोलने पर उसमें से एटीटी एफडीसी टैबलेट निकलती है, एक मोबाइल फोन नंबर होता है जिसे मरीज द्वारा गेस करना होता है। टोल-फ्री नंबर पर मरीज को मिस कॉल देने के निर्देश दिए जाते हैं। ये कॉल्स एक केंद्रीय सिस्टम से रेजिस्टर होते हैं जिससे पता चलता है कि एटीटी मरीज के हाथ में था और उसे मरीज द्वारा लिया भी गया। यह इलाज के अनुपालन की निगरानी करने के साथ ही छूटी हुई खुराक को ट्रैक करने में भी मदद करता है।

WHO का सुझाव है कि इन 4 लक्षणों के साथ ही 3 आई रणनीति अपनायी जाती है ताकि एचआईवी से पीड़ित मरीज में टीबी को होने से रोका जा सके। इस रणनीति को भारतीय परिदृश्य में इस तरह से शामिल किया जा सकता है:

  • इंटेन्सिफाइड (तीव्र) केस का पता लगाना - इसके लिए एआरटी थेरेपी सेंटर्स पर क्लिनिकल ​​संदेह होने पर टीबी सीबीएनएएटी परीक्षण को एकीकृत करके और दवा-प्रतिरोधी (ड्रग रेजिस्टेंट) टीबी मरीजों के लिए एचआईवी टेस्टिंग की पेशकश करना। नशीली दवाओं का सेवन करने वालों, सेक्स वर्कर्स और समलैंगिक लोगों की आबादी को विशेष रूप से टेस्ट करवाने के लिए प्रोत्साहित करना। 
  • आइसोनियाजिड प्रोफाइलैक्सिस थेरेपी - एचआईवी के मरीज जिनमें सक्रिय टीबी डायग्नोज नहीं होता है उन्हें आइसोनियाजिड थेरेपी दी जाती है ताकि छिपे हुए टीबी क सक्रिय बीमारी में परिवर्तित होने से रोका जा सके और री-इंफेक्शन को भी रोका जा सके। एचआईवी के व्यापक इलाज के तौर पर दैनिक आइसोनियाजिड की न्यूनतम छह महीने की सिफारिश की जाती है।
  • इंफेक्शन कंट्रोल - इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड (प्रतिरक्षा में अक्षम) मरीजों में टीबी बीमारी फैलने से रोकने के लिए एआरटी सेंटर पर हवा से फैलने वाले (एयरबॉर्न) संक्रमण को कंट्रोल करने की गतिविधियां की जाती हैं। इन उपायों में केंद्र में पर्याप्त वेंटिलेशन सुनिश्चित करना और श्वसन लक्षण वाले मरीजों को अलग करना और उनकी देखभाल को तेजी से ट्रैक करना शामिल है। हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए मास्क जैसे व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण (पीपीई) का उपयोग अनिवार्य है।
Dr Rahul Gam

Dr Rahul Gam

संक्रामक रोग
8 वर्षों का अनुभव

Dr. Arun R

Dr. Arun R

संक्रामक रोग
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Neha Gupta

Dr. Neha Gupta

संक्रामक रोग
16 वर्षों का अनुभव

Dr. Anupama Kumar

Dr. Anupama Kumar

संक्रामक रोग

संदर्भ

  1. World Health Organization, Geneva [Internet]. TB causes 1 in 3 HIV deaths, 26 September 2018.
  2. Sabin C.A., Lundgren J.D. The natural history of HIV infection. Current Opinion in HIV and AIDS, July 2013; 8(4): 311-7. doi: 10.1097/COH.0b013e328361fa66. PMID: 23698562.
  3. Centres for Disease Control and Prevention [Internet]. AIDS and opportunistic infections. CDC, U.S. Department of Health & Human Services. Accessed on 29 November 2020.
  4. Cardona P.J. Pathogenesis of tuberculosis and other mycobacteriosis. Enfermedades infecciosas y microbiología clínica, January 2018; 36(1): 38-46. English, Spanish. doi: 10.1016/j.eimc.2017.10.015. Epub 2 December 2017. PMID: 29198784.
  5. World Health Organization, Geneva [Internet]. Tuberculosis, 14 October 2020.
  6. World Health Organization, Geneva [Internet]. Implementing the WHO stop TB strategy: a handbook for national tuberculosis control programmes, 2008: 67.
  7. Pape J.W., Jean S.S., Ho J.L., Hafner A., Johnson W.D. Jr. Effect of isoniazid prophylaxis on incidence of active tuberculosis and progression of HIV infection. Lancet, 31 July 1993; 342(8866): 268-72.
  8. World Health Organization, Geneva [Internet]. The three I's for TB/HIV.
  9. National AIDS Control Organisation and DOTS, Ministry of Health and Family Welfare [Internet]. Guidelines on prevention and management of TB in PLHIV at ART centres, 2016.
  10. Bruchfeld J., Correia-Neves M. and Källenius G. Tuberculosis and HIV coinfection. Cold Spring Harbor Perspectives in Medicine, 26 February 2015; 5(7): a017871. doi: 10.1101/cshperspect.a017871. PMID: 25722472.
  11. Naidoo K., Baxter C. and Karim S.S.A. When to start antiretroviral therapy during tuberculosis treatment?. Current Opinion in Infectious Diseases, February 2013; 26(1): 35-42. 10.1097/QCO.0b013e32835ba8f9.
  12. Thakkar D., Piparva K.G. and Lakkad S.G. A pilot project: 99DOTS information communication technology-based approach for tuberculosis treatment in Rajkot district. Lung India, March-April 2019; 36(2): 108-111. doi: 10.4103/lungindia.lungindia_86_18. PMID: 30829243.
  13. National Tuberculosis Elimination Programme (https://nikshay.in/). Low-cost monitoring and improving medication adherence.
ऐप पर पढ़ें