बीते कई दशकों के दौरान लाखों लोगों की जान लेने वाली बीमारी एड्स के लिए जिम्मेदार ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस यानी एचआईवी इससे संक्रमित व्यक्ति के मस्तिष्क में छिप सकता है। चूहों और मानव ऊतकों (टिशू) पर हुए एक नए शोध के आधार पर वैज्ञानिकों यह जानकारी दी है। उनका कहना है कि एचआईवी इतना सक्षम है कि जब एड्स के मरीज को एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी दी जा रही होती हैं, उस समय भी यह वायरस मस्तिष्क की कोशिकाओं में घुसकर उनकी शरण ले सकता है। अगर एड्स का इलाज बंद हो जाए तो वायरस बाद में शरीर के बाकी हिस्सों को संक्रमित करना शुरू कर देता है।

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कॉम्बिनेशन एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (सीएआरटी या कार्ट) शरीर में एचआईवी की मात्रा को तेजी से कम कर सकती है। इस थेरेपी के चलते एचआईवी रोगाणु इस हद तक कम होता जाता है कि उसे टेस्ट में डिटेक्ट करना भी मुश्किल होता है। ऐसे में मरीज में एड्स के ज्यादातर लक्षण कम हो जाते हैं, जिससे आगे चलकर वह किसी और को संक्रमित करने की स्थिति में नहीं रह जाता। लेकिन इस तरह के परिणाम के लिए एड्स के मरीज को कार्ट थेरेपी हर रोज लेनी होती है। अगर इसमें किसी तरह की रुकावट आए या थेरेपी लेना बंद कर दिया जाए तो कोशिकाओं में छिपा एचआईवी वायरस फिर से सामने आ सकता है।

'प्लॉज पैथोजन्स' नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित शोध के मुताबिक, दिमाग की जिन कोशिकाओं में एचआईवी शरण लेता है, उनमें से एक का नाम है 'ऐस्ट्रोसाइट्स'। शोध मे बताया गया है कि दिमाग की 60 प्रतिशत कोशिकाएं ऐस्ट्रोसाइट्स से ही बनी होती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, मस्तिष्क की इन 60 प्रतिशत कोशिकाओं में से एक से तीन प्रतिशत कोशिकाएं एचआईवी की पनाहगाह बन सकती हैं।

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इस शोध के एक प्रमुख लेखक और शिकागो स्थित रश यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में माइक्रोबायल पैथोजन्स एंड इम्यूनिटी विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख लेना अल-हार्थी ने लिखा है, 'एक प्रतिशत (कोशिकाएं) भी वायरस के संग्रह के लिए महत्वपूर्ण हैं। अगर हम एचआईवी का इलाज ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं तो हम इसमें मस्तिष्क की भूमिका को अनदेखा नहीं कर सकते।' विज्ञान के विषयों से जुड़ी जानी-मानी वेबसाइट लाइव साइंस ने एक विशेषज्ञ के हवाले से बताया है कि इस जानकारी के सामने आने के बाद अब इस तथ्य को लेकर और शोध करने की आवश्यकता है कि आखिर एचआईवी वायरस कैसे मानव शरीर में बने रहता है।

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