एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) एक ऐसा वायरस है जो इंसान के शरीर के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है और अगर एचआईवी का समय पर इलाज न हो तो वह एड्स का कारण बन जाता है। एचआईवी को कंट्रोल करने के लिए उचित चिकित्सीय मदद और इलाज की जरूरत होती है। लेकिन अब एक बेहद हैरान करने वाला मामला सामने आया है। एचआईवी से संक्रमित एक महिला बिना किसी इलाज या दवा का सेवन किए ही एचआईवी वायरस से ठीक हो गई है।
महिला को 1992 में हुआ था एचआईवी संक्रमण
बताया जा रहा है कि 66 साल की एक महिला जिसे साल 1992 में एचआईवी का संक्रमण हुआ था, और अब करीब 28 साल बाद वह महिला दुनिया की पहली शख्स बन गई है जो बोन-मैरो ट्रांसप्लांट या किसी तरह की दवाइयों का सेवन किए बिना ही एचआईवी से ठीक हो गई है। शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है।
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बिना दवाओं के एचआईवी को किया गया नियंत्रित
इस स्टडी में 63 और लोगों को भी शामिल किया गया था जिन्होंने दवाओं के बिना ही एचआईवी संक्रमण को नियंत्रित किया। वैज्ञानिकों ने इस बारे में रिपोर्ट करते हुए बताया कि इसके लिए स्पष्ट रूप से एचआईवी को शरीर में इस तरह से तनहा या निर्जन किया गया कि वह अपनी प्रतिलिपियां तैयार नहीं कर पाया। इस स्टडी के नतीजों का सुझाव है कि इन लोगों ने एक "व्यावहारिक या क्रियात्मक इलाज" प्राप्त कर लिया है।
एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी लेने वाले भी वायरस को दबाने में सक्षम हो सकते हैं
इस रिसर्च को नेचर नाम के जर्नल में प्रकाशित किया गया है जिसमें एक नए तंत्र की रूपरेखा तैयार की गई है जिसके द्वारा शरीर एचआईवी को दबा सकता है, जो केवल आनुवांशिकी में प्रगति के कारण दिखाई देता है। स्टडी में इस बात की भी उम्मीद जगी है कि कुछ संक्रमित लोगों की छोटी संख्या जिन्होंने एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी कई सालों तक ली है, वे भी इसी तरह वायरस को दबाने में सक्षम हो सकते हैं और दवाइयों का सेवन बंद कर सकते हैं, क्योंकि इन दवाइयों का शरीर पर समुचित रूप से बुरा असर पड़ता है।
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अमेरिका के सैन फ्रांसिसको स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में एड्स के एक्सपर्ट और इस नई स्टडी के ऑथर डॉ स्टीव डीक्स कहते हैं, 'यह सुझाव देता है कि इलाज खुद ही लोगों का उपचार कर सकता है, जो सभी सिद्धांतों और हठधर्मिता के खिलाफ जाता है।'
इम्यून सिस्टम ने किया एंटीवायरल दवाइयों का काम
एचआईवी संक्रमण से ठीक होने वाली यह महिला कैलिफोर्निया की रहने वाली 66 साल की लॉरीन विलेनबर्ग हैं जो पहले ही शोधकर्ताओं के बीच प्रसिद्ध हो चुकी हैं क्योंकि उनके शरीर ने सत्यापित संक्रमण का पता चलने के दशकों बाद भी वायरस को दबाकर रखा। लॉरीन, एचआईवी से पीड़ित उन 0.5 प्रतिशत से भी कम वाले विशिष्ट नियंत्रण ग्रुप में आती हैं जिनका इम्यून सिस्टम प्राकृतिक रूप से एंटीवायरल दवाइयों का काम करता है। इम्यून सिस्टम वायरस को इस तरह से दबा देता है कि वायरस का पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है, वायरस संचारित होने या फैलने में असमर्थ हो जाता है और वायरस अपनी प्रतिकृतियां भी नहीं बना पाता।
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शरीर में जड़ से खत्म हो गई वायरस की निशानी
लॉरीन, इस विशिष्ट ग्रुप की पहली शख्स हैं जिनके शरीर में वायरस की निशानी जड़ से खत्म हो चुकी है। अनुसंधानकर्ताओं ने लॉरीन के शरीर में मौजूद 1.5 बिलियन रक्त कोशिकाओं, गट, आंत और मलाशय में मौजूद सभी कोशिकाओं की जांच की और वे सभी एचआईवी फ्री हैं। लॉरीन के अलावा दुनिया के केवल 2 अन्य लोग हैं जिन्हें एचआईवी संक्रमण से पूरी तरह से मुक्त होना घोषित किया गया है। वे हैं- कैलिफोर्निया के ही टिमोथी ब्राउन और लंदन के ऐडम कैस्टिल्लेजो। ये दोनों ही पुरुष कैंसर के लिए भीषण बोन-मैरो ट्रांस्प्लांट से गुजरे जिसने उनके इम्यून सिस्टम को वायरस के खिलाफ प्रतिरोधी बना दिया।
बोन-मैरो ट्रांसप्लांट जोखिम भरा इलाज
एचआईवी से संक्रमित अधिकांश मरीजों के लिए बोन-मैरा ट्रांसप्लांट बेहद जोखिम भरा होता है, लेकिन मरीजों में हो रहे स्वास्थ्य्य लाभ ने इस बात की उम्मीद जताई है कि इसका इलाज संभव है। मई 2020 में ब्राजील के शोधकर्ताओं ने बताया कि एच.आई.वी. के इलाज का संयोजन, एक और उपचार का कारण बन सकता है लेकिन अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि इस खोज की पुष्टि करने के लिए और अधिक परीक्षणों की आवश्यकता है।
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