आयुर्वेद में बुखार को ज्वर एवं अनेक रोगों का लक्षण कहा जाता है। एलोपैथी के अनुसार शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से बढ़ने पर बुखार घेर लेता है। बुखार होने पर शरीर का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है एवं बुखार के कारण कई तरह के रोग हो सकते हैं। बुखार के अन्य लक्षणों में खांसी, जुकाम, बदन दर्द, भूख में कमी और कब्ज शामिल है।
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आयुर्वेद के अनुसार बुखार को नियंत्रित करने के लिए वमन कर्म (औषधियों से उल्टी करवाने की विधि), विरेचन कर्म (दस्त की विधि), बस्ती कर्म (एनिमा कर्म) और नास्य कर्म (नाक से औषधि डालने की विधि) का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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बुखार के इलाज में गुडुची (गिलोय), आमलकी (आंवला), वासा (अडूसा), अदरक, भूमि आमलकी, पिप्पली और मुस्ता (नागरमोथा) का प्रयोग किया जाता है। बुखार के लिए चिकित्सक द्वारा संजीवनी वटी, मृत्युंजय रस, त्रिभुवन कीर्ति रस और सितोपलादि चूर्ण की सलाह दी जाती है।
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