वैज्ञानिकों ने कहा है कि नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर (एनएएफएलडी) बीमारी के इलाज में अमीनो एसिड ग्लाइसिन पर आधारित ट्रीटमेंट से मदद मिल सकती है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में यह संकेत मिला है कि नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर के डेवलेपमेंट में ग्लाइसिन के कम लेवल की भूमिका होती है। इस आधार पर उन्होंने कहा है कि अगर फैटी लिवर से जुड़े इस तथ्य पर फोकस किया जाए तो इससे भविष्य में इसके इलाज में बड़ी सफलता मिल सकती है। इस जानकारी को चर्चित मेडिकल पत्रिका साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है।

अध्ययन में मिले परिणामों पर बात करते हुए इसके एक वरिष्ठ लेखक और मिशिगन यूनिवर्सिटी में इंटर्नल मेडिसिन एंड सर्जरी के प्रोफेसर वाई यूजीन चेन ने कहा है, 'हमने एक नए मेटाबॉलिक पाथवे और (एनएएफएलडी के एक) संभावित नए इलाज पर से पर्दा उठाया है।' प्रोफेसर चेन का मानना है कि नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर के मरीजों के लिए इलाज के कई नए विकल्प बढ़ाने की काफी ज्यादा जरूरत है। यह उल्लेखनीय है कि एनएएफएलडी सबसे आम क्रॉनिक लिवर डिजीज है, लेकिन इसके इलाज के लिए अभी तक कोई मान्यता प्राप्त दवा उपलब्ध नहीं है।

इस जरूरत को पूरा करने के मकसद से मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने वेन स्टेट यूनिवर्सिटी और इजरायल स्थित टेक्नियन-इजरायल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एनएएफएलडी और असामान्य अमीनो एसिड मेटाबॉलिज्म के संबंध को समझने का प्रयास किया, जिसे लेकर पर्याप्त जानकारी मेडिकल जानकारों को नहीं है।

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इस प्रयास में शोधकर्ताओं को जो पता चला, उस पर बात करते हुए मिशिगन यूनिवर्सिटी के रिसर्च फेलो ओरेन रोम ने कहा है, 'हमें एनएएफएलडी से पीड़ित मरीजों में विशेष रूप से ग्लाइसिन का स्तर कम होने की शिकायत बार-बार मिली है। साथ ही उनमें अन्य बीमारियों का भी पता चला, जिनमें डायबिटीज, मोटापा और हृदय रोग शामिल हैं। हमारा अध्ययन न सिर्फ नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज में डिफेक्टिव ग्लाइसिन मेटाबॉलिज्म के बारे में विस्तार से व्याख्या करता है, बल्कि यह इस बीमारी के लिए संभावित ग्लाइसिन आधारित ट्रीटमेंट पर भी बात करता है।'

शोधकर्ताओं की मानें तो उन्होंने डीटी-109 नाम के एक ट्राईपेप्टाइड (तीन अमीनो एसिड से निकलने वाला प्रोटीन का एक अंश) का इस्तेमाल करते हुए चूहों में एनएएफएलडी से संबंधित बॉडी कंपोजिशन और अन्य मानकों में सुधार करने में कामयाबी हासिल की है। इस बारे में अध्ययन के लेखक कहते हैं, 'ग्लाइसिन आधारित ट्रीटमेंट से एक्सपेरिमेंटल नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज कमजोर हुई है। इस मेथड से हेपटिक फैटी एसिड ऑक्सिडेशन और ग्लूटेथियोन सिंथेसिस सक्रिय हुआ, जिससे प्रयोगात्मक रोग दुर्बल हो गया।' शोधकर्ताओं को यकीन है कि उनका यह प्रयोग एनएएफएलडी के संभावित नए इलाज का मार्ग खोल सकता है।

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क्या है फैटी लिवर?
लिवर हमारे शरीर का एक बेहद महत्वपूर्ण अंग है। यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि और दूसरा सबसे बड़ा अंग होता है। लिवर पित्त का निर्माण करता है, जिसे वसा यानी फैट को टूटने में मदद मिलती है। यह रक्त के डिटॉक्सिफिकेशन या साधारण भाषा में कहें तो खून की साफ-सफाई में मदद करता है। जानकार बताते हैं कि एक सामान्य लिवर में कुछ फैट जरूर होता है। लेकिन कभी-कभी लिवर की कोशिकाओं में गैर-जरूरी फैट की मात्रा बढ़ जाती है। इसे गंभीर रोग की स्थिति माना जाता है, जिसे सामान्यतः फैटी लिवर कहा जाता है।

इस बीमारी के दो मुख्य प्रकार होते हैं- अल्कोहोलिक फैटी लिवर और नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर। मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, गलत खानपान के अलावा नियमित रूप से और अधिक मात्रा में शराब पीने से फैटी लिवर की समस्या हो सकती है। मोटापा भी इस बीमारी का एक कारण हो सकता है। अगर किसी व्यक्ति को फैटी लिवर है तो उससे उसके बच्चों को भी इससे खतरा हो सकता है। यानी फैटी लिवर एक आनुवंशिक बीमारी भी हो सकती है।

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