आयुर्वेद में मिर्गी को अपस्‍मार कहा जाता है। ये एक तंत्रिका तंत्र से संबंधी विकार है जिसमें दौरे पड़ना, मुंह से झाग आना, आंखों के सामने अंधरो छा जाना, कुछ समय के लिए याददाश्‍त खो जाना और मानसिक क्षमता में कमी हो जाती है। त्रिदोष के खराब होने के कारण मिर्गी की समस्‍या उत्‍पन्‍न होती है जिसमें वात प्रमुख कारक है।

(और पढ़ें - त्रिदोष क्या होता है)

शीघ्र निदान से मरीज की स्थिति के अनुसार सही उपचार का चयन किया जा सकता है। प्रमुख पंचकर्म थेरेपी में से स्‍नेहन (तेल लगाने की विधि) के पूर्व कर्म और स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि) कर्म दिया जाता है जिसमें वमन (औषधियों से उल्‍टी करवाने की विधि), बस्‍ती (एनिमा), नास्‍य (नाक से दवा डालना) और विरेचन शामिल है। ये खराब दोष को साफ कर शरीर को आगे के उपचार एवं औषधि के लिए तैयार करता है।

मेध्‍य रसायन (मस्तिष्‍क के लिए शक्‍तिवर्द्धक और ऊर्जादायक) गुणों से युक्‍त जड़ी बूटियां मिर्गी का इलाज करने में बहुत मददगार साबित होती हैं। मिर्गी के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में ब्राह्मी, अश्वगंधा, शतावरी, जटामांसी और शंखपुष्पी का नाम शामिल है।

इन सभी जड़ी बूटियों से बने मिश्रण मिर्गी की स्थिति को नियंत्रित करने में बहुत असरकारी होते हैं। मिर्गी की स्थिति में सही समय पर निदान, नियमित उपचार और आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से नियमित परामर्श लेना बेहतर रहता है। मिर्गी के लिए अधिकतर आयुर्वेदिक उपचार चिकित्‍सकीय रूप से सुरक्षित और असरकारी साबित हुए हैं।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से मिर्गी - Ayurveda ke anusar Mirgi
  2. मिर्गी के दौरे का आयुर्वेदिक इलाज - Mirgi ke daure ka ayurvedic ilaj
  3. मिर्गी की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Mirgi ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार एपिलेप्‍सी होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Mirgi hone par kya kare kya na kare
  5. मिर्गी की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Epilepsy ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. मिर्गी की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Epilepsy ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. एपिलेप्‍सी के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Mirgi ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
मिर्गी की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

मिर्गी, तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकार है जिसे आयुर्वेद में अपस्‍मार के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी में दौरे पड़ना, मुंह से झाग निकलना, याददाश्‍त कमजोर होना, मानसिक और बौद्धिक क्षमता में कमी आने जैसी समस्‍याएं होती हैं। आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोष में से किसी एक दोष में या तीनों दोषों में एक साथ असंतुलन आने के कारण अपस्‍मार की स्थिति उत्‍पन्‍न होती है।

(और पढ़ें - वात, पित्त और कफ असंतुलन के लक्षण)

आमतौर पर दूषित या अनुचित खाद्य पदार्थ खाने, शराब पीने या दुख, गुस्‍से या डर लगने जैसे मानसिक कारकों की वजह से ऐसा होता है। मन से संबंधित दोष जैसे कि तमस (असंतुलन, विकार, चिंता उत्‍पन्‍न करने वाला) और रजस (आकांक्षा, जोश और रोशनी उत्‍पन्‍न करने वाला) में नकारात्‍मक प्रवृत्तियां आने पर भी ऐसा होता है। दोष के खराब होने के आधार पर अपस्‍मार को चार विभिन्‍न प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:

  • वातज:
    इसमें लगातार दौरे पड़ते हैं और व्‍यक्‍ति अचेतावस्‍था (बेहोशी की हालत) में रहता है। उसे कुछ समय के बाद होश आता है। इसमें प्रमुख तौर पर वात दोष खराब होता है। इसके अन्‍य लक्षणों में आंखें बाहर आना, रोना, मुंह से झाग आना, नाखूनों का लाल या भूरा पड़ना, हाथ कांपना और मुड़ना एवं सिर तथा गर्दन में अत्‍यधिक भारीपन और अकड़न महसूस होना शामिल है। बेहोश होने से पहले व्‍यक्‍ति को धुंधला दिखाई देने लगता है। (और पढ़ें - बेहोश होने पर प्राथमिक उपचार)
  • पित्तज:
    इस प्रकार के मिर्गी में प्रमुख दोष पित्त होता है। इसमें व्‍यक्‍ति को बेहोश होने के कुछ समय बाद होश आता है। पित्तज मिर्गी की स्थिति में मरीज जमीन को खुरचने लगता है और उसके नाखूनों एवं त्‍वचा का रंग पीला, हरा या भूरा पड़ने लगता है। बेसुध होने से पहले मरीज को सभी दृश्य एवं पदार्थ रक्त के समान लाल, प्रदीप्त और उत्तेजित दिखने लगते हैं।
  • कफज:
    कफज अपस्‍मार में कफ दोष खराब होता है। इसमें व्‍यक्‍ति को लंबे समय तक दौरे पड़ते हैं और ठीक होने में भी समय लगता है। नाखून और त्‍वचा का रंग सफेद पड़ने लगता है। इसमें मुंह से लार टपकने लगती है और शरीर काम करना बंद कर देता है। बेसुध होने से पहले मरीज को चीजें भारी और स्निग्‍ध (ऑयली) दिखाई देती हैं। 
  • सन्निपातज:
    ये त्रिदोष के खराब होने के कारण होता है। अत: इसमें मिले-जुले लक्षण देखने को मिलते हैं। इस प्रकार की मिर्गी का इलाज मुश्किल होता है।

आयुर्वेदिक उपचार से मिर्गी का इलाज एवं इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें खराब हुए दोष के आधार पर शोधन (शुद्धिकरण) और शमन (दोष को शांत करना) किया जाता है। विरेचन, वमन, बस्‍ती और नास्‍य द्वारा शोधन किया जाता है। दीपन (भूख बढ़ाने वाली औषधियों), पाचन (पाचक), स्‍नेहन, स्‍वेदन और धारा (शरीर पर गर्म औषधीय तरल को डालना) के प्रयोग से शमन चिकित्‍सा की जाती है।

मेध्‍य रसायन गुणों से युक्‍त जड़ी बूटियां मिर्गी के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं। सामान्‍य तौर पर ब्राह्मी, अश्‍वगंधा, यष्टिमधु (मुलेठी), शतावरी और वच का इस्‍तेमाल किया जाता है। इन्‍हें आप अकेले या इनके पॉलीहर्बल मिश्रण (एक से ज्‍यादा जड़ी बूटियों का मिश्रण) को क्‍वाथ (काढ़े), चूर्ण (पाउडर), घृत (घी) या वटी (गोली) के रूप में ले सकते हैं।

(और पढ़ें - काढ़ा बनाने की विधि)

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Urjas Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को सेक्स समस्याओं के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
Long Time Capsule
₹712  ₹799  10% छूट
खरीदें
  • स्‍नेहन
    • मिर्गी में नारायण तेल और बला तेल (औषधीय तेल) से 15 से 35 मिनट तक शरीर की मालिश की जाती है।
    • अंदरूनी स्‍नेहन (शरीर को अंदर से चिकना करने) के लिए पंचगव्‍य घृत और ब्राहृमी घृत दिया जाता है।
    • स्‍नेहन शरीर से वात को हटाती है और नींद की गुणवत्ता में सुधार लाती है। (और पढ़ें - गहरी नींद आने के घरेलू उपाय)
    • उपचार के बाद गुस्‍सा, चिंता, दिन के समय सोने, सेक्स, शारीरिक कार्य और ठंडे एवं गर्म मौसम में जाने से बचें। (और पढ़ें - गुस्सा कैसे कम करें)
       
  • स्‍वेदन
    • स्‍नेहन के बाद स्‍वेदन किया जाता है। आमतौर पर स्‍वेदन एक लकड़ी के कैबिनेट में किया जाता है जिसमें 30 से 45 मिनट तक जड़ी बूटियों के काढ़े से बनी भाप दी जाती है। (और पढ़ें - भाप लेने का तरीका)
    • ये विषाक्‍त पदार्थों को पतला कर उन्‍हें पसीने के जरिए शरीर से बाहर निकालता है।
    • आमतौर पर मिर्गी की स्थिति में स्‍वेदन के लिए दशमूल काढ़े का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • उपचार के दौरान ब्‍लड प्रेशर और पल्‍स रेट को मॉनिटर करना जरूरी होता है।
       
  • नास्‍य
    • इस उपचार में हर्बल पाउडर और औषधीय तेलों को नाक के जरिए डाला जाता है। इसमें मरीज की स्थिति एवं रोग की गंभीरता के आधार पर जड़ी बूटियों का चयन किया जाता है।
    • चूंकि, नाक को मस्तिष्‍क का द्वार माना जाता है इसलिए नास्‍य सीधा मस्तिष्‍क पर असर करता है।
    • मिर्गी में नास्‍य के लिए वच पाउडर, अणु तेल और पंचेंद्रिय तेल जैसी कुछ औषधियों के प्रयोग की सलाह दी जाती है।
       
  • वमन
    • मिर्गी में खराब दोष को साफ करने के लिए वमन कर्म किया जाता है।
    • वमन कर्म के लिए शहद या काले नमक के साथ औषधि दी जाती है।
    • कफज और पित्तज अपस्‍मार को वमन कर्म से ठीक किया जा सकता है।
    • शरीर में पानी की अत्‍यधिक कमी होने से बचने के लिए मरीज को मॉनिटर करना बहुत जरूरी होता है। (और पढ़ें - पानी की कमी कैसे पूरी करें)
    • अगर मिर्गी का दौरा तीव्र हो तो ऐसी स्थिति में तेज असर करने वाली वमन वाली जड़ी बूटियां नहीं देनी चाहिए।
    • गर्भवती महिलाओं और ह्रदय से संबंधित समस्‍या एवं हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को वमन कर्म नहीं देना चाहिए। बुजुर्ग व्‍यक्‍ति और बच्‍चों को भी वमन चिकित्‍सा नहीं देनी चाहिए।
       
  • विरेचन
    • पित्तज मिर्गी की स्थिति में प्रमुख तौर पर शुद्धिकरण के लिए विरेचन (दस्त की विधि) किया जाता है।
    • मरीज की स्थिति के आधार पर विरेचन के लिए मिश्रण का चयन किया जाता है। मिर्गी में विरेचन के लिए त्रिवृत अवलेह का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ये शरीर से दोषों को साफ करने में मदद करती है।
    • मिर्गी के लक्षणों में सुधार लाने में स्‍वेदन के बाद विरेचन कर्म को असरकारी पाया गया है।
    • कमजोर व्‍यक्‍ति या सीने में किसी समस्‍या से ग्रस्‍त या गुदा एवं मलाशय में चोट लगने की स्थिति में विरेचन कर्म नहीं किया जाता है।
       
  • बस्‍ती
    • आमतौर पर वातज अपस्‍मार के इलाज के लिए बस्‍ती कर्म किया जाता है। ये शरीर से खराब वात दोष को हटाता है।
    • यापन बस्‍ती (बस्‍ती कर्म का ही एक प्रकार) में रसायन (ऊर्जादायक) प्रभाव होते हैं इसलिए मिर्गी के इलाज में इसकी सलाह दी जाती है।
    • गर्भावस्‍था, माहवारी या गुदा में सूजन होने की स्थिति में बस्‍ती कर्म नहीं करना चाहिए।
       
  • शिरोधारा
    • इसमें सिर के ऊपर से एक लय में तरल पदार्थ डाला जाता है।
    • ये शमन चिकित्‍सा का एक प्रकार है जिसमें औषधीय तेलों और घृत का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • मिर्गी में शिरोधारा के लिए ब्राह्मी घृत मिश्रण का इस्‍तेमाल किया जाता है जिसमें कि ब्राह्मी, वच, शंखपुष्‍पी और घृत मौजूद है। कूष्‍मांडा घृत भी मिर्गी के लिए उपयोगी है। इसमें कूष्‍मांडा (सफेद कद्दू) का रस और यष्टिमधु का पेस्‍ट होता है।

मिर्गी के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • ब्राह्मी
    • ब्राह्मी का पूरा पौधा परिसंचरण और तंत्रिक तंत्र संबंधी विकारों में उपयोगी है।
    • इसे काढ़े के रूप में या घी या तेल के साथ मिलाकर ले सकते हैं।
    • इस मिश्रण का सेवन करने पर ब्राहृमी शरीर में दोष का शमन कर शोधन थेरेपी के लिए तैयार करती है। इससे याददाश्‍त भी बढ़ती है। (और पढ़ें - याददाश्त बढ़ाने के घरेलू उपाय)
    • ब्राह्मी के प्रभाव से मिर्गी में अटैक ज्‍यादा लंबे समय के लिए नहीं आते हैं और ज्‍यादा गंभीर भी नहीं होते हैं। साथ-साथ ही बार-बार अटैक आने की समस्‍या से भी छुटकारा मिलता है।
    • ब्राह्मी की अधिक खुराक लेने पर सिरदर्द हो सकता है। (और पढ़ें - सिर दर्द का होम्योपैथिक इलाज)
       
  • शंखपुष्‍पी
    • ये नसों को आराम देने वाली प्रमुख औषधियों में से एक है।
    • इस पूरे पौधे का ही इस्‍तेमाल चिकित्‍सकीय उद्देश्‍य के लिए किया जाता है। आमतौर पर इसे जूस, काढ़े, पेस्‍ट और पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • मिर्गी के लक्षणों जैसे कि कमजोर याददाश्त, घबराहट और उन्‍मांदता (मानसिक रोग) से राहत पाने में शंखपुष्‍पी मदद करती है।
    • ये त्रिदोष को संतुलित कर मन को शांति प्रदान करती है और गहरी नींद पाने एवं चिंता और तनाव से मुक्‍ति दिलाने में मदद करती है। (और पढ़ें - तनाव दूर करने के घरेलू उपाय)
       
  • शतावरी
    • मिर्गी के इलाज में शतावरी की जड़ का इस्‍तेमाल या तो दानों या तेल में काढ़े के रूप में किया जाता है।
    • शतावरी पित्त, कफ और वात दोष को साफ करती है। ये वात दोष के कारण पैदा हुए आक्रामक अटैक (दौरे) को भी रोकती है।
    • शतावरी के दानों को दूध के साथ लेने की सलाह दी जाती है। मिर्गी के मरीजों के लिए नास्‍य कर्म में शतावरी के काढ़े को तेल में मिलाकर इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ये मस्तिष्‍क के कार्यों में अवरोध उत्‍पन्‍न करने वाले तमस को दूर करता है।
       
  • वच
    • इस जड़ी बूटी के प्रकंद (ऐसे कंद जो जमीन के अंदर होते हैं) का इस्‍तेमाल तंत्रिका तंत्र संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है।
    • ये याददाश्‍त को बढ़ाती है और मस्तिष्‍क को ऊर्जा प्रदान करती है और मस्तिष्‍क में खून के प्रवाह में सुधार लाती है। (और पढ़ें - ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के उपाय)
    • नास्‍य कर्म में वच के पाउडर को तेल के साथ डाल सकते हैं या इसे चूर्ण के रूप में खा सकते हैं। अनेक आयुर्वेदिक मिश्रणों में वच का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • अगर इसे अदरक जैसी कटु जड़ी बूटियों के साथ संतुलित मात्रा में न लिया जाए तो इसकी वजह से बंद नाक की समस्‍या हो सकती है। (और पढ़ें - बंद नाक खोलने के उपाय)

मिर्गी के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • पंचगव्‍य घृत
    • इस मिश्रण में गौ शकृद रस (गाय के गोबर को पानी में मिलाकर छानने के बाद तैयार हुआ), गौ क्षीर (गाय का दूध), गोमूत्र (गाय का मूत्र) और गाय का घी मौजूद है। इस मिश्रण का सेवन किया जाता है।
    • इसमें रसायन (शक्‍तिवर्द्धक), मेध्‍य (दिमाग को शक्‍ति देने वाला) और स्‍मृतिकर (याददाश्‍त बढ़ाने वाला) गुण होते हैं।
    • इससे दौरे बार-बार नहीं पड़ते हैं और कम समय के लिए आते हैं। ये आक्रामक अटैक से भी सुरक्षा प्रदान करता है।
    • लंबे चलने वाले उपचार में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
       
  • कूष्माण्ड घृत
    • इसे कूष्माण्ड, यष्टिमधु और घृत से तैयार किया गया है।
    • इस मिश्रण में मेध्‍य रसायन गुण मौजूद हैं और ये मानसिक कार्यों में सुधार लाता है।
    • स्‍नेहपान (शरीर को अंदर से चिकना करने के लिए औषधि का पान) के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • ये मिश्रण बेचैनी और चिंता को कम कर मिर्गी के मरीजों को राहत प्रदान करता है। (और पढ़ें - बेचैनी कैसे दूर करे)
       
  • मंस्यादि क्‍वाथ
    • इस काढ़े को अश्‍वगंधा, जटामांसी और अजवाइन से तैयार किया गया है।
    • आमतौर पर इसे खाली पेट लिया जाता है।
    • ये तनाव और चिंता से राहत दिलाता है जिससे मिर्गी के इलाज में मदद मिलती है।
    • जटामांसी मन को शांत करती है और अजवाइन मस्तिष्‍क के तमस एवं रजस दोष को ठीक करती है।
    • अश्‍वगंधा में मेध्‍य गुण होते हैं।
    • इस मिश्रण का सेवन सुरक्षित और असरकारी है।
       
  • सारस्‍वत चूर्ण
    • इस पॉली-हर्बल मिश्रण में कुठ की सूखी जड़ और अश्‍वगंधा,  लवण (सेंधा नमक), अजवाइन, जीरक (जीरा), कृष्‍ण जीरक (काला जीरा), पिप्पली और मारीच (काली मिर्च) शामिल है। इसके अलावा इसमें शुंथि (सोंठ) और वच का सूखा प्रकंद, पाठा का पूरा पौधा सूखा मौजूद है। इन सभी सामग्रियों को ब्राह्मी के ताजे रस में मिलाकर सारस्‍वत चूर्ण तैयार किया जाता है।
    • इन सभी सामग्रियां मेध्‍य रसायन प्रभाव रखती हैं और मिर्गी के इलाज में असरकारी हैं।
    • ये मिश्रण दौरे पड़ने को नियंत्रित करता है और तनाव एवं चिंता को दूर कर मन को शांति प्रदान करता है। (और पढ़ें - मन और दिमाग शांत करने के नुस्खे)

क्‍या करें

क्‍या न करें

  • वात बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे कि मिर्च, आलू और कलय (पीले मटर) खाने से बचें।
  • बासी भोजन न करें। 
  • विरुद्ध अन्‍न (अनुचित खाद्य पदार्थ) जैसे कि मछली के साथ दूध न खाएं।
  • शराब से दूर रहें। (और पढ़ें - शराब की लत छुड़ाने के घरेलू उपाय)
  • चिंता और तनाव से दूर रहने का प्रयास करें।
  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि मल त्‍याग और पेशाब को रोके नहीं। (और पढ़ें - पेशाब रोकने से क्या होता है)
  • ज्‍यादा गहरे पानी, ज्‍यादा ऊंचाई पर खड़े होने और आग वाली जगहों के आसपास न जाएं। इस तरह की एडवेंचर एक्टिविटीज करने से बचें।

(और पढ़ें - मिर्गी का होम्योपैथिक इलाज)

मिर्गी का आयुर्वेदिक उपचार न केवल सुरक्षित और असरकारी है बल्कि किफायती भी है। इसमें मेध्‍य रसायन गुणों से युक्‍त जड़ी बूटियों और मिश्रणों के इस्‍तेमाल से शमन और शोधन किया जाता है।

एक अध्‍ययन में 4 से 14 वर्ष के 60 बच्‍चों को शामिल किया गया था। मिर्गी से ग्रस्‍त इन बच्‍चों पर पंचगव्‍य घृत के प्रभाव की जांच की गई। अध्‍ययन में 30 बच्‍चों को पंचगव्‍य घृत दिया गया जबकि बाकी 30 बच्‍चों को पारंपरिक औषधि दी गई।

इनमें दौरे आने की संख्‍या, समयावधि, याददाश्‍त में कमी और आंखों के आगे अंधेरा छाने जैसे लक्षणों की नियमित जांच की गई। पंचगव्‍य घृत मस्तिष्‍क में समस्‍याएं और मिर्गी की बीमारी पैदा करने वाले खराब वात दोष को साफ करता है। इस अध्‍ययन के परिणाम में सामने आया कि पंचगव्‍य घृत दौरे पड़ने की संख्‍या और समयावधि को नियंत्रित करने में असरकारी है और इसके कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं हैं।

(और पढ़ें - मिर्गी के दौरे क्यों आते हैं)

एक अन्‍य रिसर्च में दौरे पड़ने से पीडित 17 वर्षीय मरीज को शामिल किया गया। उसे मंस्यादि क्‍वाथ के साथ पंचकर्म चिकित्‍सा में स्‍नेहन, स्‍वेदन, विरेचन और नास्‍य कर्म दिया गया।

2 महीने तक मरीज में लक्षणों का मूल्‍यांकन किया गया और इसके बाद एक और महीने मरीज की स्थिति पर नजर रखी गई। हर्बल मिश्रण के साथ पचंकर्म के इस्‍तेमाल से मरीज की हालत में सुधार देखा गया। मिर्गी के दौरे पड़ने की संख्‍या और समयावधि में भी कमी आई साथ ही उसकी जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार आया। इस उपचार का कोई हानिकारक प्रभाव नहीं देखा गया।

मिर्गी के उपचार में शामिल पंचकर्म और आयुर्वेदिक मिश्रण सुरक्षित और असरकारी हैं। साथ ही ये पारंपरिक औषधि की तुलना में ज्‍यादा किफायती हैं।

आयुर्वेदि‍क चिकित्‍सक द्वारा बताई गई औषधि की निश्‍चित खुराक और ठीक समय पर दवा लेने से लक्षणों से राहत मिलती है और बीमारी का सही इलाज होता है। हालांकि, कुछ औषधियां जैसे कि ब्राह्मी की अधिक खुराक लेने की वजह से सिरदर्द हो सकता है।

पंचकर्म थेरेपी आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की देख-रेख में ही लेनी चाहिए और इसमें लगातार मरीज की स्थिति को मॉनिटर करने की जरूरत होती है।

(और पढ़ें - बच्चों में मिर्गी के कारण)

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Urjas Energy & Power Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को शारीरिक व यौन कमजोरी और थकान जैसी समस्या के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
Power Capsule For Men
₹719  ₹799  10% छूट
खरीदें

मिर्गी या अपस्‍मार की समस्‍या दोष के खराब होने पर उत्‍पन्‍न होती है। खानपान से संबंधित गलत आदतों, शराब पीने और डर, दुख, क्रोध एवं सदमे जैसे मानसिक कारणों की वजह से दोष खराब या असंतुलित हो सकते हैं। आयुर्वेदिक उपचार से मिर्गी के लक्षणों को नियंत्रित और बीमारी का इलाज किया जा सकता है। मिर्गी के इलाज में सामान्‍य तौर पर विरेचन, बस्‍ती, नास्‍य, वमन और शिरोधारा का इस्‍तेमाल किया जाता है।

मिर्गी के इलाज में ब्राहृमी, शतावरी, जटामांसी और शंखपुष्‍पी जैसी औषधीय जड़ी बूटियां बहुत असरकारी और सुरक्षित होती हैं। रोज औषधि लेने और आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से नियमित परामर्श कर इस बीमारी को ठीक करने में मदद मिल सकती है। स्‍वस्‍थ आहार, योग और ध्‍यान की मदद से इस बीमारी को दोबारा होने से रोका जा सकता है।

(और पढ़ें - मिर्गी रोग के लिए घरेलू उपाय)

Dr. Harshaprabha Katole

Dr. Harshaprabha Katole

आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

Dr. Dhruviben C.Patel

आयुर्वेद
4 वर्षों का अनुभव

Dr Prashant Kumar

Dr Prashant Kumar

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr Rudra Gosai

Dr Rudra Gosai

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Ministry of Ayush. [Internet]. Government of India. Ayurvedic Standard Treatment Guidelines.
  2. Swami Sadashiva Tirtha. The Ayurvedic Encyclopedia. Sat Yuga Press, 2007. 657 pages.
  3. Lakshmi C. Mishra. Scientific Basis for Ayurvedic Therapies. C.R.C Press.
  4. Central Council for Research in Ayurvedic Sciences. [Internet]. National Institute of Indian Medical Heritage. Handbook of Domestic Medicine and Common Ayurvedic Medicine.
  5. Rajdip Rao et al. [link]. International Ayurvedic Medical Journal, 4(12)2016.
  6. Sharmitesh R Trpiathi et al. Efficacy of Shatavari taila nasya and Brahmi ghrita in the management of Apasmara. J.Pharm Sci Innov, 2017; 5(6):181-184.
  7. Parul Agarwa et al. An update on Ayurvedic herb Convolvulus pluricaulis Choisy. Asian Pac J Trop Biomed. 2014 Mar; 4(3): 245–252.
  8. Rajani Chandre et al,. Clinical evaluation of Kushmanda Ghrita in the management of depressive illness. Ayu. 2011 Apr-Jun; 32(2): 230–233.
  9. Neha G Tank. [link]. International Journal of Ayurvedic Medicine, 2015, 6(1), 33-43.
  10. Rahul Kaushik et al. Studying the pharmacological basis of an antiepileptic ayurvedic formulation - Sarasvata churna. International Journal of Green Pharmacy, 2017; 11(2): 62-64.
ऐप पर पढ़ें