डिप्थीरिया बैक्टीरिया की वजह से होने वाला संक्रमण है, जो कि कोरिनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया नामक बैक्टीरिया की वजह होता है। यह स्थिति मुख्य रूप से गले और ऊपरी वायुमार्ग को प्रभावित करती है, लेकिन बैक्टीरिया की वजह से बनने वाला विषाक्त पदार्थ अन्य अंगों को संक्रमित कर सकता है। डिप्थीरिया इंफेक्शन के लक्षणों में गले में खराश, हल्का बुखार और गले में ग्रंथियों की सूजन होना शामिल है। यह बीमारी शारीरिक संपर्क या संक्रमित व्यक्ति द्वारा खांसने या छींकने पर निकलने वाली सूक्ष्म बूंदों के संपर्क में आने से आसानी से फैल सकती है। डिप्थीरिया की वजह से बच्चों में मृत्यु दर 5-10 प्रतिशत है। हालांकि, टीकाकरण से डिप्थीरिया की मृत्यु दर में बड़ी मात्रा में गिरावट आई है।

(और पढ़ें - गले में खराश ठीक करने के घरेलू उपाय)

भारत में डिप्थीरिया के मामले बहुत ज्यादा हैं, यहां पिछले 20 वर्षों (1996-2016) में, डिप्थीरिया के ज्यादातर मामले स्कूल जाने वाले बच्चों में पाए गए हैं। डिप्थीरिया को रोकने का सबसे बढ़िया तरीका टीकाकरण कार्यक्रम में तेजी लाना और स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए वैक्सीन की शुरुआत करने पर ध्यान देना है। इस स्थिति का ज्यादातर इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है। बैक्टीरिया के प्रभाव को बेअसर करने और अंगों को नुकसान पहुंचने से रोकने के लिए एंटीटॉक्सिन भी दिया जाता है।

इस रोग के उपचार में होम्योपैथिक उपायों की प्रभावकारिता के आधार पर इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया है :

  • पहली श्रेणी - लैचेसिस और लाइकोपोडियम
  • दूसरी श्रेणी - एपिस, अरुम मैक्यूलेटम, ब्रायोनिया, बेलाडोना, कैली बाइक्रोमिकम, लैक कैनाइनम, मर्क्यूरियस आयोडेटस, मर्क्यूरियस सॉल्यूबिलिस और फाइटोलैक्का डेसेंड्रा
  • तीसरी श्रेणी - एकोनाइट, आर्सेनिकम, ब्रोमीन, कैंथैरिस, लैचन्नानथस, सल्फर

इन उपायों को मरीज के व्यक्तिगत लक्षणों, उम्र और समग्र स्वास्थ्य स्थितियों जैसी विशेषताओं के आधार पर चुना जाता है।

  1. डिप्थीरिया की होम्योपैथिक दवा - Diphtheria homeopathic medicine in Hindi
  2. डिप्थीरिया की होम्योपैथिक दवा कितने प्रभावी हैं - How much effective homeopathic medicine for Diphtheria in Hindi
  3. डिप्थीरिया के लिए होम्योपैथी के अनुसार आहार - Diet according to homeopathy for Diphtheria in Hindi
  4. डिप्थीरिया के लिए होम्योपैथिक दवा का नुकसान - Disadvantages of homeopathic medicine for Diphtheria in Hindi
  5. डिप्थीरिया के होम्योपैथिक उपचार से संबंधित टिप्स - Tips related to homeopathic treatment for Diphtheria in Hindi
डिप्थीरिया की होम्योपैथिक दवा और इलाज के डॉक्टर

डिप्थीरिया के कुछ होम्योपैथिक उपचार निम्नलिखित हैं :

लैकेसिस म्यूटस
सामान्य नाम :
बुशमास्टर या सुरुकुकु (लैकेसिस)
लक्षण : यह उपाय सांप के जहर से बना होता है। यह उन स्थितियों के उपचार में मदद करता है जो सेप्सिस (एक तरह का ब्लड इंफेक्शन) का कारण बनते हैं। यह ब्लीडिंग की प्रवृत्ति को कम करता है। इसके अलावा यह निम्नलिखित लक्षणों को दूर करने में मदद करता है :

(और पढ़ें - ब्लड इंफेक्शन की होम्योपैथिक दवा)

  • गले में मटमैला, काले रंग की झिल्ली बनना
  • लंबे समय से गले की खराश जिसकी वजह से निगलने में ​कठिनाई होती है
  • गले का दर्द, जो गर्म पेय पीने से बढ़ जाता है
  • शरीर के बाईं ओर से समस्याएं शुरू होना
  • डिप्थीरिया से संक्रमित होने के बाद देखने से जुड़ी समस्याएं
  • लेटने पर घुटन महसूस होना
  • लैरिंक्स यानी स्वरयंत्र में दर्द, विशेषकर छूने पर
  • त्वचा पर परप्यूरिया (खून के धब्बे)

यह लक्षण वसंत के मौसम में, आंख बंद करने पर, सोने के बाद, गर्म पानी से नहाने या गर्म पेय पीने से खराब हो जाते हैं। जबकि गर्म सिकाई से इन लक्षणों में सुधार होता है।

लाइकोपोडियम क्लैवेटम
सामान्य नाम :
क्लब मॉस (लाइकोपोडियम)
लक्षण : यह उपाय उनके लिए निर्धारित किया जाता है, जिन्हें पेशाब या पाचन संबंधित समस्याएं हैं। इस उपाय से जिन्हें फायदा होता है, उनके लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं और यह लक्षण शरीर में दाएं से बाएं ओर बढ़ते हैं। यह निम्नलिखित लक्षणों में भी मददगार है :

यह लक्षण (गले और पेट के लक्षणों को छोड़कर, जिसमें गर्म पेय लेने से राहत मिलती है) गर्मी से, गर्म कमरे में और गर्म सिकाई से बढ़ जाते हैं। जबकि आधी रात, गर्म खाद्य और ड्रिंक्स लेने और ठंडे वातावरण में रोगी बेहतर महसूस करता है।

कैलियम बाइक्रोमिकम
सामान्य नाम :
बाइक्रोमैट ऑफ पोटैश (कैली बाइक्रोमिकम)
लक्षण : यह उपाय विशेष रूप से वायुमार्ग और जठरांत्र प्रणाली की श्लेष्म झिल्ली को प्रभावित करता है। यह किडनी और हृदय पर भी असर करता है। इसके अलावा यह निम्नलिखित लक्षणों को भी ठीक करने में मदद करता है : 

  • माइग्रेटिंग पेन यानी अलग-अलग समय पर शरीर के अलग-अलग हिस्सों में दर्द उठना
  • एनीमिया (और पढ़ें - एनीमिया के घरेलू उपचार)
  • दर्द व साथ में नाक की जड़ पर दबाव महसूस होना
  • नाक से गाढ़ा, रूखा, हरे-पीले रंग का डिस्चार्ज
  • मुंह सूखना व साथ में जीभ चिकनी, चमकदार, सूखी व लाल होना
  • पैरोटिड ग्रंथियों में सूजन
  • मुंह और नाक से झागदार डिसचार्ज होना

यह लक्षण सुबह या बीयर पीने पर बिगड़ जाते हैं। जबकि गर्मी से इनमें सुधार होता है।

मर्क्यूरियस आयोडैटस रबर
सामान्य नाम :
बिन-आयोडाइड ऑफ मर्क्यूरी
लक्षण : इस उपाय का उपयोग निम्नलिखित लक्षणों के इलाज में किया जाता है :

(और पढ़ें - लार ग्रंथि संबंधी विकार का इलाज)

एकोनिटम नेपेलस
सामान्य नाम :
मॉन्कशूद
लक्षण : आमतौर पर अचानक व तेज संक्रमण के साथ बुखार होने की स्थिति में यह उपाय दिया जाता है। यह चिंतित, बेचैन और घबराए हुए लोगों पर अच्छा असर करता है। इसके अलावा यह निम्नलिखित लक्षणों को भी दूर करता है :

  • सिर भारी लगना व साथ में सिर में जलन और धमक जैसा दर्द होना
  • लाल और सूजी हुई आंखें, ऐसा एहसास होना जैसे आंख में बालू के कण चले जाना
  • नाक बंद हो जाना व श्लेष्म झिल्ली सूख जाना
  • नाक से ब्लीडिंग होना
  • गला सूखना व साथ में जलन और चुभने जैसा एहसास होना
  • टॉन्सिल में सूजन
  • संक्रमित त्वचा 

(और पढ़ें - त्वचा संक्रमण का इलाज)

यह लक्षण शाम और रात में, गर्म कमरे में और प्रभावित हिस्से के बल लेटन पर खराब हो जाते हैं, लेकिन खुली हवा में रहने पर इनमें सुधार होता है।

आर्सेनिकम एल्बम
सामान्य नाम :
आर्सेनिक एसिड, आर्सेनिक ट्राइऑक्साइड
लक्षण : आर्सेनिकम एल्बम का इस्तेमाल एनीमिया और सेप्टिक इंफेक्शन व प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने पर किया जाता है। यह निम्नलिखित लक्षणों को ठीक करने में भी असरदार है :

(और पढ़ें -  इम्यूनिटी बढ़ाने के उपाय)

  • नाक से पानी आना
  • मुंह के छाले
  • मुंह सूखना
  • मसूड़ों का स्वस्थ न होना
  • गले में सूजन व साथ-साथ निगलने में कठिनाई
  • गले में डिप्थीरिटिक झिल्ली, जो सूखी और झुर्रीदार दिखाई देती है
  • सोरायसिस

(और पढ़ें - सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज)

यह लक्षण आधी रात के बाद, नम मौसम में और कोल्ड ड्रिंक्स के सेवन पर बढ़ जाते हैं। गर्म पेय लेने और सिर को ऊंचा रखने पर रोगी बेहतर महसूस करता है।

ब्रोमियम
सामान्य नाम :
ब्रोमीन (ब्रोमम)
लक्षण : यह उपाय उन लोगों में निर्धारित किया जाता है, जिनमें श्वसन समस्याएं वॉयस बॉक्स और श्वसन नली को प्रभावित करती हैं। इसका इस्तेमाल निम्नलिखित लक्षणों के प्रबंधन में भी किया जा सकता है :

  • गला बैठना (और पढ़ें - गला बैठने का इलाज)
  • निगलने के दौरान टॉन्सिल में दर्द होना (और पढ़ें - टॉन्सिलाइटिस की होम्योपैथिक दवा)
  • सांस लेने पर श्वसन नली में गुदगुदी जैसा महसूस करना
  • सूखी खंसी व साथ ही साथ ब्रेस्ट बोन के पीछे वाले हिस्से में जलन जैसा दर्द
  • लेरिंजियल डिप्थेरिया - एक ऐसी स्थिति जिसमें लैरिंक्स (वॉयस बॉक्स) में डिप्थीरिया झिल्ली बनना शुरू होती है और ऊपर की ओर फैलती है

यह लक्षण देर शाम, आराम करते समय और गर्म कमरे में रहने पर बिगड़ जाते हैं, लेकिन व्यायाम करने, चलने फिरने से इनमें सुधार होता है।

कैंथारिस वेसिकेटोरिया
सामान्य नाम :
स्पेनिश फ्लाई (कैंथारिस)
लक्षण : इस उपाय से निम्नलिखित लक्षणों को ठीक करने में मदद मिलती है :

(और पढ़ें - लेरिन्जाइटिस का इलाज)

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डिप्थीरिया सहित कई बीमारियों के इलाज में होम्योपैथी ट्रीटमेंट प्रभावी रहा है। इसका टीकाकरण आने से पहले, डिप्थीरिया के मामले समय-समय पर दिखाई देते थे, लेकिन टीकाकरण के बाद शायद ही ऐसे मामले दिखाई दिए हों। होम्योपैथी में यदि कोई उपाय पहले वर्ष में प्रभावी है, तो उसके दूसरे वर्ष में उपयोगी होने की संभावना कम होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो मरीज की स्थिति के अनुसार कुछ समय बाद दवाइयों में बदलाव किया जा सकता है। इसलिए, होम्योपैथिक डॉक्टर डिप्थीरिया के हर मामले के लिए व्यक्तिगत रूप से उपाय निर्धारित करते हैं। डिप्थीरिया से ग्रसित कुछ लोगों पर न्यूयॉर्क में 1862 से 1864 तक शोध किया गया, जिसमें पता चला कि होम्योपैथिक ट्रीटमेंट लेने वालों में 16.4% की मृत्यु दर थी, जबकि एलोपैथी उपचार विकल्प लेने वालों में मृत्यु दर 83.6% थी।

1799 में, होम्योपैथी के संस्थापक डॉ. सैमुअल हैनीमैन ने लाल बुखार जैसी महामारी की बीमारियों को रोकने के लिए होम्योपैथिक उपचार के प्रभावों के बारे में जाना।

उस समय इन उपायों की मदद से कई महामारियों और प्रकोपों ​​का सफलतापूर्वक इलाज किया गया। 1932 में, डॉ. चावणों (Dr. Chavanon) ने 45 बच्चों पर किए गए एक प्रयोग को प्रकाशित किया, जिनका स्किक टेस्ट (डिप्थीरिया होने पर एंटीबॉडी का पता लगाने वाला टेस्ट) निगेटिव आया था।

1941 में, डॉक्टर. पैटरसन और बॉयड द्वारा 33 बच्चों पर किए गए शोध में भी समान परिणाम देखने को मिले, जिनमें से 23 ने होम्योपैथिक उपचार लिया था और उनके टेस्ट निगेटिव आया था। डॉ. राउक्स ने 1947 में परीक्षण को दोहराया और फिर से समान परिणाम मिले।

(और पढ़ें - एंटीबॉडी किसे कहते हैं)

होम्योपैथिक दवाओं की खुराक बेहद कम मात्रा में दी जाती है और यह आसानी से घुलनशील होती हैं। इसलिए रोगी को यह सुझाव दिया जाता है कि इन दवाइयों का प्रयोग करते समय आहार में कुछ जरूरी बदलाव किए जाएं। इस दौरान सुनिश्चत किया जाए कि औषधीय गुणों वाले पदार्थों का सेवन न किया जाए, क्योंकि यह पदार्थ होम्योपैथी दवाओं के असर को कम कर सकते हैं। यहां ऐसे ही कुछ जरूरी बदलावों के बारे में बताया जा रहा है :

क्या करना चाहिए

  • गर्म मौसम में लेनिन के कपड़ों के बजाय सूती कपड़े पहनें।
  • नियमित रूप से व्यायाम करें, भले हल्के या मध्यम तीव्रता की गतिविधियां करें। इससे शारीरिक रूप से आप सक्रिय रहेंगे। इसके अलावा पौष्टिक व संतुलित आहार लें।
  • एक्यूट (अचानक) मामलों में, रोगी को कुछ खाद्य पदार्थ और पेय लेने की इच्छा हो सकती है। इन इच्छाओं को पूरा करने से ट्रीटमेंट में बाधा आ सकती है। ऐसे में कोशिश करें उस विशेष पदार्थ को कम मात्रा में मरीज को दिया जाए, इससे उन्हें संतोष भी होगा और ट्रीटमेंट में कोई खास बाधा भी नहीं आएगी।

क्या नहीं करना चाहिए

  • हर्बल टी, कॉफी और शराब या बीयर जैसे पेय का सेवन न करें।
  • मसालेदार व्यंजन, प्याज से बने सूप और सॉस, औषधीय गुणों से युक्त खानपान का सेवन न करें।
  • इन दवाओं को किसी भी खुशबूदार चीज (जैसे कि इत्र, कपूर, ईथर) के पास नहीं रखना चाहिए, क्योंकि ये चीजें दवाओं के प्रभाव को बेअसर कर सकती हैं।
  • गतिहीन जीवन शैली न अपनाएं और न ही तो ऐसे स्थान पर रहें जहां पर्याप्त साफ सफाई नहीं है।
  • नम कमरे में रहें।

(और पढ़ें - शराब छुड़ाने के उपाय)

होम्योपैथिक उपचार का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है। इन्हें हर उम्र के लोगों के लिए सुरक्षित और साइड इपेक्ट मुक्त माना जाता है। यह दवाएं प्राकृतिक स्रोतों जैसे पौधों, जानवरों और खनिजों से तैयार की जाती हैं, इसलिए इनका सेवन बच्चों से लेकर बूढ़ों तक कोई भी कर सकता है। इसके अलावा जब इन उपायों को कॉम्प्लीमेंट्री थेरेपी के रूप में लिया जाता है, तो आमतौर पर यह पारंपरिक रूप से ली जा रही दवाओं के असर में कोई बाधा नहीं पहुंचाती हैं। हालांकि, इन उपाय को करने से पहले किसी अनुभवी डॉक्टर से परामर्श करना सबसे अच्छा है।

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डिप्थीरिया एक जानलेवा रोग है। यह मुख्य रूप से श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है, लेकिन अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। इसमें गले में खराश, सांस लेने में कठिनाई, बुखार और कमजोरी जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। पारंपरिक रूप से इसका इलाज टीकाकरण और एंटीबायोटिक दवाओं व एंटीटॉक्सिन के साथ किया जा सकता है।

(और पढ़ें - वायरल बुखार में क्या करना चाहिए)

होम्योपैथी ट्रीटमेंट न सिर्फ बीमारी के लक्षणों को ठीक करता है बल्कि यह पूरे स्वास्थ्य को भी ठीक करता है। इन उपायों को व्यक्ति द्वारा बताए गए लक्षणों के अनुसार निर्धारित किया जाता है। इसके अलावा व्यक्ति की मानसिक, शारीरिक स्थिति, मेडिकल हिस्ट्री और उम्र को भी ध्यान रखा जाता है। इन उपायों का ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं है, लेकिन अच्छे, जल्दी व सटीक उपचार के लिए अनुभवी होम्योपैथिक डॉक्टर से परामर्श करना न भूलें।

Dr. Anmol Sharma

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Dr.Gunjan Rai

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DR. JITENDRA SHUKLA

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संदर्भ

  1. World Health Organization, Department of Reproductive Health and Research. Diphtheria. Fifth edition; World Health Organization; 2010.
  2. Murhekar M. Epidemiology of Diphtheria in India, 1996-2016: Implications for Prevention and Control. . Am J Trop Med Hyg. 2017 Aug;97(2):313-318. PMID: 28722581
  3. National Centre of Homeopathy. Treatment of Epidemics with Homeopathy - A History. Mount Laural NI; [Internet]
  4. National Centre of Homeopathy. Homeoprophylaxis: Human Records, Studies and Trials. Mount Laural NI; [Internet]
  5. British Homeopathic Association. Is homeopathy safe?. London; [Internet]

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