आयुर्वेद में डायरिया को अतिसार कहा जाता है। ये बीमारी पाचन तंत्र को प्रभावित करती है जिसमें बार-बार मल त्याग करना पड़ता है। सामान्य तौर पर दस्त की समस्या माइक्रोबियल इंफेक्शन या अपच की वजह से होती है लेकिन कभी-कभी डर या आत्मग्लानि (कुछ गलत करने का अहसास) जैसे मानसिक कारणों की वजह से भी दस्त हो सकते हैं।
न पचने वाला भोजन और अमा (विषाक्त पदार्थों) पेट में जम जाता है जिसकी वजह से तीनों दोषों में से कोई एक दोष खराब होने लगता है। इसके कारण पेट में मरोड़ और असहज महसूस होने के साथ-साथ पतला मल आता है और मल का रंग बदल जाता है। दस्त में कभी-कभी मल के साथ खून भी आता है।
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दस्त के आयुर्वेदिक उपचार में अमा और खराब दोष को पूरी तरह से साफ किया जाता है। अतिसार के इलाज के लिए दीपन (भूख बढ़ाने वाले) और पाचन गुण रखने वाले हर्बल मिश्रणों का इस्तेमाल किया जाता है जिससे पाचन को सुधारा जा सके।
अमा को साफ करने के लिए किसी भी तरह की दवा लेने से पहले हरीतकी जैसी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। दस्त की स्थिति में पंचकर्म थेरेपी में से विरेचन (दस्त लाने वाली) और बस्ती (एनिमा) कर्म की सलाह दी जाती है। सही तरह से दी गई बस्ती चिकित्सा से शरीर में से पूरी तरह से अमा को हटाने में भी मदद मिलती है।
दस्त के इलाज के लिए शुंथि (सोंठ), बिल्व (बेल), ददिमा (अनार), त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण), कुटज, इला (इलायची), जातिफल (जायफल), पिप्पली, मारीच (काली मिर्च) और नागरमोथ से युक्त हर्बल औषधियों का इस्तेमाल विभिन्न मिश्रणों के साथ किया जाता है।
हल्का भोजन लेने से भी सेहत बेहतर करने में मदद मिल सकती है। दस्त के आयुर्वेदिक उपचार से न केवल लक्षणों से राहत मिलती है बल्कि सेहत में भी सुधार आता है और दस्त की समस्या दोबारा नहीं होती है। हालांकि, इस स्थिति के संपूर्ण उपचार के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह मानना जरूरी है।